रविवार, जुलाई 31, 2011

बारह व्रत


उपासक श्रेणी

महासभा द्वारा संचालित प्रवृत्तियों में उपासक श्रेणी का निर्माण एक प्रमुख कार्य है। तेरापंथ समाज के विकास और उसके बढ़ते हुए प्रभाव को ध्यान में रखकर यह आवश्यक समझा गया कि साधु-साध्वियों, समण-समणियों के अतिरिक्त एक ऐसी श्रेणी का निर्माण किया जाये जो पूरे तेरापंथ समाज को आध्यात्मिक संबल, संरक्षण और संस्कार निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके। इस श्रेणी की आवश्यकता और उपयोगिता को आज से बहुत पहले पूज्य गुरुदेव तुलसी ने महसूस की थी और उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप 1970 के दशक में उपासक श्रेणी के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। फलस्वरूप धर्म क्षेत्र के एक वर्ग के लोगों को प्रशिक्षण देकर इस रूप में तैयार किया जाने लगा जो पर्युषण पर्व एवं अन्य अवसरों पर निर्दिष्ट स्थानों पर उपस्थित होकर प्रवचन, प्रयोग आदि के द्वारा वहाँ के लोगों को आध्यात्मिक आराधना में सहायता कर सकें।
उपासक का अर्थ है साधना के द्वारा आत्मोन्नयन की दिशा में अग्रसर होना। उपासक बनने के इच्छुक व्यक्तियों को पूज्यवरों के सान्निध्य में प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है, जिसके पूर्व उन्हें प्रशिक्षण शिविर में प्रवेश हेतु निर्दिष्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता है।
प्रवेश परीक्षा का पाठ्यक्रम
  1. अर्हत वंदना
  2. परमेष्टि वंदना
  3. पंचपद वंदना
  4. प्रतिक्रमण
  5. पच्चीस बोल
(इनका कंठस्थ होना आवश्यक है)
उपर्युक्त पाठ्यक्रम के अनुसार लिखित परीक्षा ली जाती है जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है।
शिविर आयोजन का समय प्रतिवर्ष के लिए निर्धारित है।
दस दिवसीय शिविर का प्रारंभ श्रावण कृष्ण पंचमी से होता है।
उपासकों की श्रेणियाँ
उपासकों की मुख्यतः दो श्रेणियां निर्धारित हैं।
  1. सहयोगी उपासक
  2. प्रवक्ता
    सहयोगी उपासक
    यह उपासक की प्रथम भूमिका है। प्रवक्ता उपासक के साथ सहायक के रूप में पर्युषण यात्रा पर जाते हैं। उपर्युक्त लिखित प्रवेश परीक्षा में सफल होने वाले बहन-भाइयों को ही ‘केंद्रीय उपासक प्रशिक्षण शिविर’ में प्रवेश मिलता है एवं शिविर में उन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है।
  3. पाठ्यक्रम –
  4. पच्चीस बोल (भावार्थ)
  5. श्रावक सम्बोध (भावार्थ)
  6. भगवान महावीर के पूर्वभव एवं संपूर्ण जीवनवृत
  7. ग्यारह गणधर का इतिहास
  8. जैन जीवनशैली के नौ सूत्र
  9. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है, जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है। सफल होने पर सहयोगी उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में ‘प्रवक्ता उपासक’ के साथ पर्युषण यात्रा पर जा सकते हैं।
- सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अधिकतम दो अवसर दिए जाते हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है।
प्रवक्ता उपासक
यह उपासकों की अपेक्षाकृत परिपक्व श्रेणी होती है। प्रवक्ता उपासकों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिविर में प्रशिक्षण दिया जाता है।
पाठ्यक्रम
  1. पर्युषण विषय
  2. कालचक्र और तीर्थंकर
  3. प्रभावक जैन आचार्य
  4. अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान
  5. गाथा (सिद्धांत एवं कथाएं)
  6. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी।
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है। सफल होने पर प्रवक्ता उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में पर्युषण यात्रा में जा सकते हैं।
- प्रवक्ता उपासक के लिए प्रशिक्षण शिविर में सीधे प्रवेश नहीं मिलता है, पहले सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है एवं दो पर्युषण यात्राएं करनी होती हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उतीर्ण होना अनिवार्य होता है। तब तक सहयोगी के रूप में पर्युषण यात्रा कर सकते हैं।

शनिवार, जुलाई 23, 2011

Kelwa – The Land of 13 chronicle of Tera panth

"TERA PANTH" was Founded by Acharya Bhikshu in Vikram Sambat 1817 i.e. June 28th of 1760 (Saturday) at KELWA (a small town in Udaipur District of Rajasthan State).In 1817 The first Chaturmas of First "TERA PANTH“ Acharya was completed at Kelwa.
Firstly Swami Bhikam Ji and four monks taken “Bhav Diksha” in 1817 at Kelwa.
Acharya Bhikshu completed 6 Chaturmas at kelwa in 1817-21-25-38-49-58.
Second Acharya Vharimal completed two Chaturmas in 1864-78 at kelwa.
In the History of Tera Panth firstly in the midnight MuniShree Vardhman Ji taken Diksha under Acharya Vharimal in 1870 at kelwa.
The first Landocrat Bhakt named “Thakur Mokham singh” Ji was from kelwa in tera panth.
The first Writer of Terapanth was Shree Shobraj Kothari from kelwa.
Kelwa – The Land of 13 chronicle of Tera panth
In the History of Terapanth first time two youth acharya was nominated. Acharya Vharimal has nominated munishree Khetsi and munishree Raichand in his succession letter which was written at kelwa.
Acharya Tulsi has granted Diksha to Current Sadhvi Pramukha “ Shree Kanak prabha Ji” at kelwa.
At kelwa 15 Sadhuvrand and 15 Sadhvivrandh total 30 Diksha has completed till date.
The Grand ceremony of “Dham Jagran “ celebrated in Ashad Purnima from last Seventeen years at kelwa.
Under the guidance of Acharya Tulsi the first program of Mantra Diksha was started at kelwa.
On 8-9 June 2004 under the guidance of Acharya shree Maha pragya ji 3 Diksha was Completed in front of group of 25000 people at kelwa.

How To Reach Kelva Acharya Mahasraman Ji Chaturmashik Place

By Bus – Nearest Bus Depot Nathdwara or Kankroli (All Luxury and Govt Buses are available)Distance – From Nathdwara to Kelwa is approximately 1 HourBy Train – From Falna approximately 2-3 HRS by Car From Mavli Junction approximately 1 Hour by Car By Air – From Udaipur airport (approximately 2-3 HRS)Udaipur is well connected to all metro city of IndiaBy Car – Form Falna or Mavali (2-2.5 HRS)