मंगलवार, सितंबर 17, 2019

बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी मिलीं श्रीमती जशोदाबेन से

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कोलकाता एअरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परित्यक्ता धर्मपत्नी जशोदाबेन से भेंट कर कुछ देर बातें कीं। इसके बाद ममता दिल्ली रवाना हो गयीं, जहां कल उन्हें प्रधानमंत्री से भेंट करनी है। मोदी के जन्मदिन पर जशोदाबेन बंगाल में आसनसोल के कल्याणेश्वरी मंदिर में पूजा करने आई थीं। उनके आने की खबर किसी को नहीं थीं। जसोदाबेन के साथ उनके भाई और भाभी थीं। उन्होंने मंदिर के सामने राजेश प्रसाद की दुकान से 201 रुपए का प्रसाद खरीदा, उसके बाद मंदिर में पूजा कराने के एवज में पुरोहित बिल्टू मुखर्जी और शुभंकर देवघरिया को 101 रुपए की दक्षिणा प्रदान की।
साभार : राष्ट्रीय महानगर ग्रुप के प्रमुख श्री प्रकाश चंडालिया जी

सोमवार, सितंबर 16, 2019

व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए - आचार्य महाश्रमण


शांति पाने के लिए करे साधना – आचार्य महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 44वें वार्षिक अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मानित
16-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, बेंगलुरु के आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में चातुर्मास कालीन प्रवास कर रहे तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जनमेदिनी को  संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि हमारे कर्मों में मोह कर्म सेनापति के रूप में है अन्य कर्म इसके अंतर्गत रहते हैं। जब सेनापति के रूप में  इसका क्षय हो जाता है तो अन्य कर्म अपने आप क्षीण हो जाते हैं और केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। सामान्य आदमी को संन्यासी जीवन नीरस लगता है परंतु साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ही इसकी सरसता का ज्ञान होता है। जो सुख अध्यात्म के क्षेत्र में है वह भौतिक जीवन में नहीं मिल सकता है। भौतिकता से बाहरी सुख मिल जाता है परंतु आंतरिक सुख अध्यात्म मय जीवन में ही आता है अर्थात भौतिक साधनों से सुख मिलता है और साधना से शांति का अनुभव होता है। हमारे जीवन में शरीर दिखाई देता है परंतु चेतना दिखाई नहीं देती है। हम शरीर को भौतिक साधनों से स्वच्छ कर सकते हैं परंतु चेतना अगर मैली हो जाए तो इसे स्वच्छ रखने के लिए आध्यात्मिकता और नैतिकता का आलंबन लेकर स्वच्छ किया जा सकता है। आचार्यवर ने आगे कहा कि व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्य करें उसे साधनों की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में ईमानदारी का प्रयास करें और जीवन में गुस्से का परिहार करना चाहिए। व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए।
*आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार के विषय में आचार्यश्री ने कहा -  कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके सम्मान से पुरस्कार भी सम्मानित होता है और श्रीमती सुमित्रा महाजन के सम्मान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आचार्यप्रवर ने आचार्य तुलसी को कर्तृत्वशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने देश भर की यात्रा के माध्यम से नारी जाति एवं अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज का उत्थान किया। इस अवसर पर महिला मंडल का सर्वोच्च पुरस्कार आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 'लोकसभा' की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को प्रदान किया गया।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि आचार्य तुलसी ने महिलाओं के जीवन में पर्दा प्रथा, बाल विवाह और नारी उन्मूलन के लिए नया मोड़ कार्यक्रम से महिलाओं का कल्याण किया। आज महिलाएं केवल घरेलू बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रही है और इसका जीवंत उदाहरण महिला मंडल एवं स्वयं श्रीमती सुमित्रा महाजन है जो एक महिला है और इन्होंने देशभर से चुनकर आए प्रतिनिधियों को लोकसभा में एक सूत्र में बांधे रखा। अभातेमम  की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती  सायर बेंगाणी  एवं अभातेमम  अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा अपने विचार रखें।
पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ दोनों का संगम आचार्य महाश्रमण में देखने को मिलता है। उन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की तुलना एक माता से करते हुए अपने आप को इस पुरस्कार से सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस किया। उपस्थित महिला शक्ति को आह्वान करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को अपनी शक्ति को पहचानना जरूरी है। कार्यक्रम में पुरस्कार प्रायोजक श्री देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री बीसी जैन भलावत, श्री केसी जैन का भी सम्मान किया गया। महिला मंडल द्वारा हैप्पी एंड हारमोनियस डॉक्यूमेंट्री फिल्म, देशभर से प्राप्त आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी समारोह पर सौ कविताओं की पुस्तक "स्पंदन" का लोकार्पण भी हुआ। पुरस्कार सत्र का संचालन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया।

साभार : महासभा कैम्प आफिस

यह भी नहीं रहने वाला


एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"

आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"

कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"

यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"

साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"

साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"

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साभार : Whatsapp

रविवार, सितंबर 15, 2019

मोह जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है - आचार्य महाश्रमण

राजनीति के क्षेत्र में शुचिता की शांतिदूत ने प्रदान की प्रेरणा
भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दर्शन कर पाया आशीष

15-09-2019  रविवार , कुम्बलगोडु, कर्नाटक, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण का बेंगलुरु की धरा पर दक्षिण भारत का द्वितीय चातुर्मास प्रवर्धमान है।  पर्युषण महापर्व के बाद से अनेक गांवों व शहरों का श्रावक समाज एक के बाद एक संघ रूप में  गुरु दर्शनार्थ पहुंच रहा हैं।
रविवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य महाश्रमण जी ने कहा - जब व्यक्ति के मन में अपराध की चेतना उभर जाती है तो वह हिंसा,  चोरी आदि दुष्कृत्य करने लग जाता है।   ऐसी विकृत चेतना तब पैदा होती है जब ज्ञान और दर्शन का अभाव होता है।  लोभ और आवेश हिंसा के प्रमुख कारण है और मोह  जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है। 
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन में अगर इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो मोह कमजोर हो जाएगा। त्याग , तपस्या और जप मोह  को निष्फल करने के  श्रेष्ठ साधन है। 

बेंगलुरु में अब तक 40 मासखमण
चातुर्मास काल में बेंगलुरु में  हो रही तपस्याओं के संदर्भ में  महातपस्वी ने कहा -  तपस्या करना कोई  आसान काम नहीं है।  शौर्य शक्ति का क्षयोपशम  होने से ही लंबी तपस्या हो सकती है।  बेंगलुरु में 40 मासखमण होना कोई सामान्य बात नहीं है।  लोग तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं यह अपने आप में अनूठा है। 

राजनीति के क्षेत्र में सुचिता की प्रेरणा देते हुए अनुव्रत अनुशास्ता  ने कहा राजनीति सेवा का माध्यम है। राजनीति में शुद्धता और नैतिकता बनी रहे तो  समाज और देश का अच्छा विकास हो सकता है। 

भाजपा महामंत्री पहुंचे आशीर्वाद लेने
प्रवचन के दौरान भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आचार्य श्री से सन 2021 में इंदौर में  जन्मोत्सव एवं पटोत्सव ससमारोह मनाने की अर्ज की  एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर साध्वी  जिनप्रभा जी की पुस्तक ' जैन विद्या का प्रवेश द्वार :  पच्चीस बोल'  का विमोचन हुआ। 

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का राष्ट्रीय अधिवेशन
आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का 44वां राष्ट्रीय अधिवेशन के शुभारंभ हुआ जो 18 सितंबर तक चलेगा।  अमृतवाणी द्वारा ' महाप्राण महाप्रज्ञ' सीडी का लोकार्पण हुआ जिसमें गायक मनीष पगारिया ने स्वर दिया है। मंच का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे