सोमवार, सितंबर 23, 2019

आत्मा को हल्का बनाएं : आचार्य महाश्रमण





समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम



23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

बुधवार, सितंबर 18, 2019

Contact and Connection

एक साधु का न्यूयार्क में बडे पत्रकार इंटरव्यू ले रहा थे। 

पत्रकार-
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में 
संपर्क (Contact) और
 संजोग (Connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दिया।

"आप न्यूयॉर्क से हैं?"

पत्रकार: "Yeah..."

सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"

पत्रकार को लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहे है क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं सब शादीशुदा हैं "

साधू ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा:
 "आप अपने पिता से बात करते हैं?"

पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...

साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से last कब बात की?"

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले".

साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले एक परिवार की तरह ?"

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?  
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस पर 2 साल पहले".

साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब साथ में रहे ?"

पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला :  "3 दिन..."

साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा... 

साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ? 
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ ?  
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है ?

पत्रकार की आंखों से आंसू छलकने लगे।

साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, परेशान या दुखी मत होना। 
मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुंचाई हो,
 लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । "संपर्क और संजोग" 
(Contact and Connection)

आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (Contact) में हैं
 ‌पर आपका उनसे कोई 'Connection'  (जुड़ाव ) नही है।
 You are not connected to him.
आप अपने father से संपर्क में हैं जुड़े नही है 

Connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है।
 heart से heart होता है। 
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना 

आप अपने  पिता, भाई और बहनों  के संपर्क ('Contact') में हैं लेकिन आपका आपस मे कोई' जुड़ाव '(Connection) नहीं है".

पत्रकार ने आंखें पोंछी और बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".

वो तब का न्यूयार्क था पर आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है।
 At home and society में सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं पर कोई connection नही।
कोई विचार-विमर्श  नहीं।
हर आदमी अपनी नकली दुनिया में खोया हुआ है।

 हमें केवल "संपर्क" नहीं बनाए रखना चाहिए अपितु "कनेक्टेड" भी रहना चाहिये। हमें हमारे सभी प्रियजनों की देखभाल करना, उनके सुख-दुख को साझा करना और साथ में समय व्यतीत करना चाहिए।

वो साधु और कोई नहीं " स्वामी विवेकानंद" थे।

साभार : नीलेश भाई द्वारा प्राप्त Whatsapp

मंगलवार, सितंबर 17, 2019

बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी मिलीं श्रीमती जशोदाबेन से

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कोलकाता एअरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परित्यक्ता धर्मपत्नी जशोदाबेन से भेंट कर कुछ देर बातें कीं। इसके बाद ममता दिल्ली रवाना हो गयीं, जहां कल उन्हें प्रधानमंत्री से भेंट करनी है। मोदी के जन्मदिन पर जशोदाबेन बंगाल में आसनसोल के कल्याणेश्वरी मंदिर में पूजा करने आई थीं। उनके आने की खबर किसी को नहीं थीं। जसोदाबेन के साथ उनके भाई और भाभी थीं। उन्होंने मंदिर के सामने राजेश प्रसाद की दुकान से 201 रुपए का प्रसाद खरीदा, उसके बाद मंदिर में पूजा कराने के एवज में पुरोहित बिल्टू मुखर्जी और शुभंकर देवघरिया को 101 रुपए की दक्षिणा प्रदान की।
साभार : राष्ट्रीय महानगर ग्रुप के प्रमुख श्री प्रकाश चंडालिया जी

सोमवार, सितंबर 16, 2019

व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए - आचार्य महाश्रमण


शांति पाने के लिए करे साधना – आचार्य महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 44वें वार्षिक अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मानित
16-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, बेंगलुरु के आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में चातुर्मास कालीन प्रवास कर रहे तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जनमेदिनी को  संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि हमारे कर्मों में मोह कर्म सेनापति के रूप में है अन्य कर्म इसके अंतर्गत रहते हैं। जब सेनापति के रूप में  इसका क्षय हो जाता है तो अन्य कर्म अपने आप क्षीण हो जाते हैं और केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। सामान्य आदमी को संन्यासी जीवन नीरस लगता है परंतु साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ही इसकी सरसता का ज्ञान होता है। जो सुख अध्यात्म के क्षेत्र में है वह भौतिक जीवन में नहीं मिल सकता है। भौतिकता से बाहरी सुख मिल जाता है परंतु आंतरिक सुख अध्यात्म मय जीवन में ही आता है अर्थात भौतिक साधनों से सुख मिलता है और साधना से शांति का अनुभव होता है। हमारे जीवन में शरीर दिखाई देता है परंतु चेतना दिखाई नहीं देती है। हम शरीर को भौतिक साधनों से स्वच्छ कर सकते हैं परंतु चेतना अगर मैली हो जाए तो इसे स्वच्छ रखने के लिए आध्यात्मिकता और नैतिकता का आलंबन लेकर स्वच्छ किया जा सकता है। आचार्यवर ने आगे कहा कि व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्य करें उसे साधनों की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में ईमानदारी का प्रयास करें और जीवन में गुस्से का परिहार करना चाहिए। व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए।
*आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार के विषय में आचार्यश्री ने कहा -  कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके सम्मान से पुरस्कार भी सम्मानित होता है और श्रीमती सुमित्रा महाजन के सम्मान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आचार्यप्रवर ने आचार्य तुलसी को कर्तृत्वशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने देश भर की यात्रा के माध्यम से नारी जाति एवं अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज का उत्थान किया। इस अवसर पर महिला मंडल का सर्वोच्च पुरस्कार आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 'लोकसभा' की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को प्रदान किया गया।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि आचार्य तुलसी ने महिलाओं के जीवन में पर्दा प्रथा, बाल विवाह और नारी उन्मूलन के लिए नया मोड़ कार्यक्रम से महिलाओं का कल्याण किया। आज महिलाएं केवल घरेलू बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रही है और इसका जीवंत उदाहरण महिला मंडल एवं स्वयं श्रीमती सुमित्रा महाजन है जो एक महिला है और इन्होंने देशभर से चुनकर आए प्रतिनिधियों को लोकसभा में एक सूत्र में बांधे रखा। अभातेमम  की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती  सायर बेंगाणी  एवं अभातेमम  अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा अपने विचार रखें।
पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ दोनों का संगम आचार्य महाश्रमण में देखने को मिलता है। उन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की तुलना एक माता से करते हुए अपने आप को इस पुरस्कार से सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस किया। उपस्थित महिला शक्ति को आह्वान करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को अपनी शक्ति को पहचानना जरूरी है। कार्यक्रम में पुरस्कार प्रायोजक श्री देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री बीसी जैन भलावत, श्री केसी जैन का भी सम्मान किया गया। महिला मंडल द्वारा हैप्पी एंड हारमोनियस डॉक्यूमेंट्री फिल्म, देशभर से प्राप्त आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी समारोह पर सौ कविताओं की पुस्तक "स्पंदन" का लोकार्पण भी हुआ। पुरस्कार सत्र का संचालन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया।

साभार : महासभा कैम्प आफिस

यह भी नहीं रहने वाला


एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"

आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"

कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"

यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"

साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"

साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"

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साभार : Whatsapp