शनिवार, अक्तूबर 05, 2019

Save Drive Save Life व नशामुक्ति जागरूकता अभियान

कोलकाता का प्रमुख अखबार सन्मार्ग व नवगठित संगठन उत्कृष्ट ने पश्चिम बंगाल का प्रमुख त्यौहार दुर्गा पूजा के अवसर पर देशवासियों को जागरूक करने के उद्देश्य से व्यापक प्रचार प्रसार किया।
बंगाल की दुर्गा पूजा विश्व प्रसिद्ध है। लाखों-लाखों लोग इसे निहारने हेतु बंगाल की धरा विशेष कर कोलकाता हावड़ा आते है। सन्मार्ग व उत्कृष्ट ने इस बार हावड़ा सिटी पुलिस के साथ मिलकर हावड़ा क्षेत्र में हावड़ा के विशेष पूजा पंडालों में व हावड़ा के मुख्य मार्गों में लोगों को नशे से होने वाले दुष्परिणाम व नशे से दूर रहने व Save Drive Save Life मुहिम के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से सैकड़ों बैनर व हार्डिंग लगाये गए।
उल्लेखनीय है कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा, अहिंसा यात्रा कर लोगों को नशा मुक्ति का प्रेरणा दे रहे है। आप लाखों लोगों को नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला चुके है। नशामुक्ति के लिए आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा दिये जा रहें प्रेरणा से ही प्रेरित होकर उत्कृष्ट ने इस बार नशामुक्ति के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इस आयाम को बंगाल के विशेष अवसर पर संपादित करने का निर्णय किया। जिसमें उत्कृष्ट को महानगर के विख्यात हिन्दी अखबार सन्मार्ग व हावड़ा सिटी पुलिस का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। उत्कृष्ट के श्री अमित तातेड़ सहित उत्कृष्ट के साथियों ने इस हेतु विशेष श्रम किया।

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

HOWDY MODI कार्यक्रम में समणी वृन्द को विशेष रूप से किया गया आमंत्रित

तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी पुण्यप्रज्ञा जी और समणी जिज्ञासा प्रज्ञा जी जिनका इस बार ह्यूस्टन (अमेरिका) में प्रवास है। उन्हें भी HOWDY MODI कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
सम्पूर्ण विश्व की नजर जिस कार्यक्रम पर टिकी हुई थी। जिस कार्यक्रम का अलग आकर्षण था। ऐसे प्रवासी भारतीयों की ओर से समायोजित कार्यक्रम में जैन धर्म के प्रतिनिधि के रुप में आपको आमंत्रित किया गया था वहाँ किसी साधर्मिक बंधु द्वारा लिया गया छायाचित्र।

सोमवार, सितंबर 23, 2019

आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए : आचार्य महाश्रमण

 समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम

23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

साभार : महासभा कैम्प ऑफिस, फ़ोटो साभार : बबलू भाई

आत्मा को हल्का बनाएं : आचार्य महाश्रमण





समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम



23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

बुधवार, सितंबर 18, 2019

Contact and Connection

एक साधु का न्यूयार्क में बडे पत्रकार इंटरव्यू ले रहा थे। 

पत्रकार-
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में 
संपर्क (Contact) और
 संजोग (Connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दिया।

"आप न्यूयॉर्क से हैं?"

पत्रकार: "Yeah..."

सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"

पत्रकार को लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहे है क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं सब शादीशुदा हैं "

साधू ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा:
 "आप अपने पिता से बात करते हैं?"

पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...

साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से last कब बात की?"

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले".

साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले एक परिवार की तरह ?"

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?  
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस पर 2 साल पहले".

साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब साथ में रहे ?"

पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला :  "3 दिन..."

साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा... 

साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ? 
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ ?  
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है ?

पत्रकार की आंखों से आंसू छलकने लगे।

साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, परेशान या दुखी मत होना। 
मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुंचाई हो,
 लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । "संपर्क और संजोग" 
(Contact and Connection)

आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (Contact) में हैं
 ‌पर आपका उनसे कोई 'Connection'  (जुड़ाव ) नही है।
 You are not connected to him.
आप अपने father से संपर्क में हैं जुड़े नही है 

Connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है।
 heart से heart होता है। 
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना 

आप अपने  पिता, भाई और बहनों  के संपर्क ('Contact') में हैं लेकिन आपका आपस मे कोई' जुड़ाव '(Connection) नहीं है".

पत्रकार ने आंखें पोंछी और बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".

वो तब का न्यूयार्क था पर आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है।
 At home and society में सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं पर कोई connection नही।
कोई विचार-विमर्श  नहीं।
हर आदमी अपनी नकली दुनिया में खोया हुआ है।

 हमें केवल "संपर्क" नहीं बनाए रखना चाहिए अपितु "कनेक्टेड" भी रहना चाहिये। हमें हमारे सभी प्रियजनों की देखभाल करना, उनके सुख-दुख को साझा करना और साथ में समय व्यतीत करना चाहिए।

वो साधु और कोई नहीं " स्वामी विवेकानंद" थे।

साभार : नीलेश भाई द्वारा प्राप्त Whatsapp