बुधवार, अगस्त 09, 2023

अनोखा है, इंसानी जिस्म

*🛑 अनोखा है, इंसानी जिस्म 🛑*
जानिए जिस्म के बारे में

*जबरदस्त फेफड़े*
हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.

*ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं*
हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.

*लाखों किलोमीटर की यात्रा*
इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.

*धड़कन, धड़कन*
एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.

*सारे कैमरे और दूरबीनें फेल*
इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.

*नाक में एंयर कंडीशनर*
हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.

*400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार*
तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.

*जबरदस्त मिश्रण*
शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.

*बेजोड़ झींक*
झींकते समय बाहर निकले वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर झींक मारना नामुमकिन है.

*बैक्टीरिया का गोदाम*
इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं.

*ईएनटी की विचित्र दुनिया*
आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.

*दांत संभाल के*
इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.

*मुंह में नमी*
इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.

*झपकती पलकें*
वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.

*नाखून भी कमाल के*
अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.

*तेज रफ्तार दाढ़ी*
पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.

*खाने का अंबार*
एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.

*बाल गिरने से परेशान*
एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.

*सपनों की दुनिया*
इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.

*नींद का महत्व*
नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.

स्त्रियां जब चली जाती हैं

केदार नाथ सिंह की एक सुंदर मार्मिक कविता :

*स्त्रियां जब चली जाती हैं*

स्त्रियां
अक्सर कहीं नहीं जातीं
साथ रहती हैं
पास रहती हैं
जब भी जाती हैं कहीं
तो आधी ही जाती हैं
शेष घर मे ही रहती हैं

लौटते ही
पूर्ण कर देती हैं घर
पूर्ण कर देती हैं हवा, माहौल, आसपड़ोस

स्त्रियां जब भी जाती हैं
लौट लौट आती हैं
लौट आती स्त्रियां बेहद सुखद लगती हैं
सुंदर दिखती हैं
प्रिय लगती हैं

स्त्रियां
जब चली जाती हैं दूर
जब लौट नहीं  पातीं
घर के प्रत्येक कोने में तब
चुप्पी होती है
बर्तन बाल्टियां बिस्तर चादर नहाते नहीं
मकड़ियां छतों पर लटकती  ऊंघती हैं
कान में मच्छर बजबजाते हैं
देहरी हर आने वालों के कदम सूंघती  है

स्त्रियां जब चली जाती हैं
ना लौटने के लिए
रसोई टुकुर टुकुर देखती है
फ्रिज में पड़ा दूध मक्खन घी फल सब्जियां एक दूसरे से बतियाते नहीं
वाशिंग मशीन में ठूँस कर रख दिये गए कपड़े 
गर्दन निकालते हैं बाहर
और फिर खुद ही दुबक-सिमट जाते हैँ मशीन के भीतर

स्त्रियां जब चली जाती हैं 
कि जाना ही सत्य है
तब ही बोध होता है
कि स्त्री कौन होती है
कि जरूरी क्यों होता है 
घर मे स्त्री का बने रहना

आप के जैसा दूसरा कोई नहीं

*यदि आपने चाँद को देखा तो आपने ईश्वर की सुन्दरता देखी ...यदि आपने सूर्य को देखा तो आपने ईश्वर का तेज (बल) देखा...और यदि आपने शीशा देखा तो आपने ईश्वर की सबसे सुंदर रचना को देखा...इसलिए खुद पर विश्वास रखो,आप जैसे भी हो बेमिसाल हो । आप के जैसा दूसरा कोई नहीं ।*
*🙏जय जिनेन्द्र🙏*

मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या माँसाहारी ??

*शाकाहारी और माँसाहारी में अन्तर*     एक शिक्षक का अद्भुत ज्ञान

मनुष्य मांसाहारी है या शाकाहारी है....पुरा पढिये

एक बार एक चिंतनशील शिक्षक ने अपने 10th स्टेंडर्ड के बच्चों से पूछा कि 
आप लोग कहीं जा रहे हैं और 
सामने से कोई कीड़ा मकोड़ा या कोई साँप छिपकली या कोई गाय-भैंस या अन्य कोई ऐसा विचित्र जीव दिख गया, जो आपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा हो, तो प्रश्न यह है कि 
आप कैसे पहचानेंगे कि 
वह जीव अंडे देता है या बच्चे?  
क्या पहचान है उसकी ?

अधिकांश बच्चे मौन रहे 
जबकि कुछ बच्चों में बस आंतरिक खुसर-फुसर चलती रही...।

मिनट दो मिनट बाद 
फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने स्वयम ही बताया कि 
बहुत आसान है,, 
जिनके भी *कान बाहर* दिखाई देते हैं *वे सब बच्चे देते हैं* 
और जिन जीवों के *कान बाहर नहीं* दिखाई देते हैं 
*वे अंडे* देते हैं.... ।।
फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि– 
ये बताइए आप लोगों के सामने एकदम कोई प्राणी आ गया... तो आप कैसे पहचानेंगे की यह *शाकाहारी है या मांसाहारी ?*  
क्योंकि आपने तो उसे पहले भोजन करते देखा ही नहीं, 
बच्चों में फिर वही कौतूहल और खुसर फ़ुसर की आवाजें..... 

शिक्षक ने कहा– 
देखो भाई बहुत आसान है,, 
जिन जीवों की *आँखों की बाहर की यानी ऊपरी संरचना गोल होती है, वे सब के सब माँसाहारी होते हैं*,
जैसे-कुत्ता, बिल्ली, बाज, चिड़िया, शेर, भेड़िया, चील या अन्य कोई भी आपके आस-पास का जीव-जंतु जिसकी आँखे गोल हैं वह माँसाहारी ही होगा है, 
ठीक उसी तरह जिसकी *आँखों की बाहरी संरचना लंबाई लिए हुए होती है, वे सब के सब जीव शाकाहारी होते हैं*, 
जैसे- हिरन, गाय, हाथी, बैल, भैंस, बकरी,, इत्यादि। 
इनकी आँखे बाहर की बनावट में लंबाई लिए होती है  .... 

फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों से पूछा कि-
बच्चों अब ये बताओ कि मनुष्य की आँखें गोल हैं या लंबाई वाली ?

इस बार सब बच्चों ने कहा कि मनुष्य की आंखें लंबाई वाली होती है... 
इस बात पर 
शिक्षक ने फिर बच्चों से पूछा कि 
यह बताओ इस हिसाब से मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या माँसाहारी ??
सब के सब बच्चों का उत्तर था *शाकाहारी* ।

फिर शिक्षक से पूछा कि 
बच्चों यह बताओ कि 
फिर मनुष्य में बहुत सारे लोग मांसाहार क्यों करते हैं ? 
तो इस बार बच्चों ने बहुत ही गम्भीर उत्तर दिया 
और वह उत्तर था कि *अज्ञानतावश या मूर्खता के कारण।*

फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों को दूसरी बात यह बताई कि 
जिन भी *जीवों के नाखून तीखे नुकीले होते हैं, वे सब के सब माँसाहारी* होते हैं, 
जैसे- शेर, बिल्ली, कुत्ता, बाज, गिद्ध या अन्य कोई तीखे नुकीले नाखूनों वाला जीव.... 
और 
जिन जीवों के *नाखून चौड़े चपटे होते हैं वे सब के सब शाकाहारी* होते हैं,
जैसे-गाय, घोड़ा, गधा, बैल, हाथी, ऊँट, हिरण, बकरी इत्यादि।

इस हिसाब से भी अब ये बताओ बच्चों कि मनुष्य के नाखून तीखे नुकीले होते हैं या चौड़े चपटे ??

सभी बच्चों ने कहा कि 
चौड़े चपटे,,

फिर शिक्षक ने पूछा कि 
अब ये बताओ इस हिसाब से मनुष्य कौन से जीवों की श्रेणी में हुआ ??
सब के सब बच्चों ने एक सुर में कहा कि *शाकाहारी ।*

फिर शिक्षक ने बच्चों से तीसरी बात यह बताई कि, 
जिन भी *जीवों अथवा पशु-प्राणियों को पसीना आता है, वे सब के सब शाकाहारी* होते हैं,
जैसे- घोड़ा, बैल, गाय, भैंस, खच्चर, आदि अनेकानेक प्राणी... ।
जबकि 
*माँसाहारी जीवों को पसीना नहीं आता है, इसलिए कुदरती तौर पर वे जीव अपनी जीभ निकाल कर लार टपकाते हुए हाँफते रहते हैं* 
इस प्रकार वे अपनी शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं.... ।

तो प्रश्न यह उठता है कि 
मनुष्य को पसीना आता है या मनुष्य जीभ से अपने तापमान को एडजस्ट करता है ??

सभी बच्चों ने कहा कि मनुष्य को पसीना आता है, 

शिक्षक ने कहा कि अच्छा यह बताओ कि 
इस बात से भी मनुष्य कौन सा जीव सिद्ध हुआ, सब के सब बच्चों ने एक साथ कहा – 
*शाकाहारी ।*
सभी लोग विशेषकर अहिंसा में, सनातन धर्म, संस्कृति और परम्पराओं में विश्वास करने वाले लोग भी चाहे तो बच्चों को नैतिक-बौधिक ज्ञान देने अथवा सीखने-पढ़ाने के लिए इस तरह बातचीत की शैली विकसित कर सकते हैं, 
इससे जो वे समझेंगे सीखेंगे वह उन्हें जीवनभर काम आएगा... 
याद रहेगा, पढ़ते वक्त बोर भी नहीं होंगे....।

*बच्चे अगर बड़े हो जाएं तो उनको यह भी बताएं कि कैसे शाकाहारी मनुष्य जानकारी के अभाव में मांसाहार का उपयोग करता है और कहता है कि जब अन्न नहीं उपजाया जाता था तब मनुष्य मांसाहार का सेवन करते थे, जो सरासर गलत है तब मनुष्य कंद-मुल एवं फलों पर जीवित रहते थे, जो सही है एवं उसके संरचना और स्वभाव से मेल भी खाता है।*

*।। प्रकृति की ओर लौटिये तथा ईश्वर से सच्चे अर्थों में जुड़िये ।।*
🙏🌹🌹🙏

मृत्यु के 14 प्रकार

*मृत्यु के 14 प्रकार*

राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण से कहा:- तू तो मरा हुआ है, मरे हुए को मारने से क्या फायदा ?
रावण बोला:– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे ?
अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते  साँस तो लुहार की धौंकनी भी लेती है।

तब अंगद ने मृत्यु के 14  प्रकार बताए !!

कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा।
अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।
सदारोगबस संतत क्रोधी।
विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी।
जीवत शव सम चौदह प्रानी।।

1. कामवश:- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है।

2. वाममार्गी:- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

3. कंजूस:- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याणकारी कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, ऐसा आदमी भी मृतक समान ही है।

4. अति दरिद्र:- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। गरीब आदमी को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। दरिद्र-नारायण मानकर उनकी मदद करनी चाहिए।

5. विमूढ़:- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ ही होता है। जिसके पास बुद्धि-विवेक न हो, जो खुद निर्णय न ले सके, यानि हर काम को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो। ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृतक समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को नहीं समझता।

6. अजसि:- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है।

7. सदा रोगवश:- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8. अति बूढ़ा:- अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

9. सतत क्रोधी:- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृतक समान ही है। ऐसा व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता। पूर्व जन्म के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरकगामी होता है।

10. अघ खानी:- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है।

11. तनु पोषक:- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना न हो, ऐसा व्यक्ति भी मृतक समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकी किसी अन्य को मिलें न मिलें, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है।

12. निंदक:- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी मृत समान होता है। परनिंदा करने से नीच गोत्र का बंध होता है।

13. परमात्म विमुख:- जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं, हम जो करते हैं वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

14. श्रुति संत विरोधी:- जो संत, ग्रंथ, पुराणों का विरोधी है, वह भी मृत समान है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं। अगर गाड़ी में ब्रेक न हो, तो कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।

अतः मनुष्य को उपरोक्त चौदह दुर्गुणों से यथासंभव दूर रहकर स्वयं को मृतक समान जीवित रहने से बचाना चाहिए।

साभार : श्री सुबोध दुगड़ उदयपुर