शनिवार, दिसंबर 25, 2021

मेरे जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है - पंकज दुधोडिया

आज क्रिसमस के दिन यह मनमोहक तस्वीर देख मन मे विचार आया कि एक मान्यता है सेंटा 25 दिसंबर को गिफ्ट देने आते है पर मैं तो यह कहता हूँ मेरे  जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है।

माता पिता ने जीवन दिया, संस्कार दिए, कवच बन सदा सुरक्षा की और मेरे आध्यात्मिक गुरु तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से रोज सबको अनमोल गिफ्ट देते है आपका गिफ्ट मानव जीवन को उन्नत बनाने के लिए संदेश रूप में नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति की प्रेरणा देता है यदि यह गिफ्ट सभी ग्रहण कर ले तो विश्व की लगभग तमाम समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।

सोमवार, दिसंबर 06, 2021

राग-द्वेष पाप का आधार है - आचार्य महाश्रमण

पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल संग सैंकड़ों लोगों ने स्वीकार किए संकल्प, प्राप्त किया आशीर्वाद


06.12.2021, सोमवार, कापरेन स्टेशन, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जिस ओर भी निकलते हैं, जन-जन उनकी अभिवंदना में जुट जाता है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में अरनेठा ने मंगल प्रस्थान किया तो स्थानीय ग्रामीणों ने हाथ जोड़कर वंदना की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। रास्ते में आने वाले क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग और क्या नौजवान जो भी अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री को देख नतमस्तक होकर आचार्यश्री की अभिवंदना करता तो आचार्यश्री भी सभी पर समान रूप से आशीषवृष्टि करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कापरेन स्टेशन गांव पहुंचे तो लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री कापरेन स्टेशन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में पधारे। 


 विद्यालय प्रांगण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो भी पाप करता है उसके पृष्ठभूमि में राग और द्वेष होते हैं। दुनिया में आदमी जो भी कार्य करता है उसके जड़ में राग और द्वेष ही होते हैं। इसलिए राग और द्वेष को कर्मों का बीज भी कहा जाता है। अगर राग-द्वेष न हो तो आदमी कोई पाप ही न करे। आदमी किसी को मारे, किसी से झगड़ा करे, झूठ बोले, कोई अनैतिक कार्य करे, वह या तो राग के वशीभूत होकर करता है अथवा द्वेष की भावना से करता है। यदि आदमी के भीतर राग-द्वेष की न्यूनता हो जाए अथवा राग-द्वेष की भावना समाप्त हो जाए तो आदमी धर्मानुरागी बन सकता है। राग-द्वेष पाप का आधार है। आदमी को ध्यान, स्वाध्याय, जप और अन्य धर्माचरणों के माध्यम से राग-द्वेष को न्यून अथवा प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को राग-द्वेष को कम कर पापों से बचते हुए धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। 


 मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के उपरान्त पूर्व विधायक श्री प्रहलाद गुंजल व स्थानीय नेता रूपेश शर्मा के नेतृत्व में कापरेन, अजन्दा, जालीजिका बराना, कोडकिया, शिरपुरा, माइजा, रोटेदा, रड़ी व अरनेठा के सैंकड़ों लोग आचार्यश्री के दर्शनार्थ और पावन प्रेरणा के लिए उपस्थित हुए। इस तरह मानों आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनायास एक कार्यक्रम-सा आयोजित हो गया। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि 84 लाख जीव योनियों में यह मानव जीवन दुर्लभ है। पशु और मानव में धर्म का ही अंतर होता है। जो मनुष्य धर्महीन हो जाए, वह पशु के समान हो जाता है। सभी के जीवन में धार्मिकता का विकास हो। आचार्यश्री ने जैन धर्म, साधुचर्या, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्य परंपरा व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए कहा कि सभी के प्रति सद्भावना हो। किसी से वैर-विरोध नहीं होना चाहिए। आदमी जो भी काम करे, उसमें नैतिकता, प्रमाणिकता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के आह्वान पर समुपस्थित पूर्व विधायक गुंजल सहित सैंकड़ों लोगों ने करबद्ध खड़े होकर आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। 

            इसके पूर्व अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनिकुमारश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा की अवगति प्रस्तुत की। पूर्व विधायक ने आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि यह हम सभी का परम सौभाग्य है जो आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महापुरुष के दर्शन करने, उनकी मंगल कल्याणकारी वाणी को सुनने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। मानवता की सेवा की लिए आप जो कठोर श्रम करा रहे हैं वे अद्वितीय हैं, इससे जन-जन का कल्याण हो रहा है। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से हम सभी का जीवन धन्य हो गया। 


साभार : महासभा केम्प ऑफिस

The basis of sinful deeds is anger and hatred: Acharya Mahashraman

Hundreds of people with former MLA Prahlad Gunjal accepted the resolution of non violence journey and received blessings 


06.12.2021, Monday, Kapren Station, Bundi (Rajasthan), Giving the message of humanity to human beings, the Jain Shvetambara Terapanth Dharmasangh Ekadashmadhishasta, the pioneer of non-violence journey, the shantidoot Acharyashree Mahashramanji, with his Dhaval army, wherever he goes, people get involved in his greetings. Acharyashree Mahashramanji on Monday morning at Mangal Bela, Arnetha departed for Mars, then the local villagers prayed with folded hands and Acharyashree blessed him with holy blessings. Whether the children coming on the way, the elderly and the young, whoever bowed down  on seeing the Akhand Parivrajak Acharya Shree.Acharya Shree was also moving towards the destination, showering blessings on everyone equally. When Acharyashree reached Kapren station village after visiting about 15 kms, people gave a grand welcome to Acharyashree with drums. Acharyashree came to the Government Secondary School premises located at Kapren station. 


In the main Mangal discourse program organized in the school premises, Acharyashree while providing holy inspiration to the devotees said that whatever sin a man commits, there is anger and hatred in the background. Whatever work a man does in the world is rooted in anger and hatred. That is why anger and aversion are also called seeds of actions. If there is no attachment or aversion, then a person should not commit any sin. A man kills someone, quarrels with someone, tells a lie, does some immoral act, he does it either out of passion or out of hatred. If there is a minimum of attachment and aversion within a person or the feeling of attachment and aversion ends, then a man can become a devotee of religion. Anger and hatred are the basis of sin. One should try to reduce anger and aversion through meditation, self-study, chanting and other religious practices. One should try to practice righteousness by reducing attachment and aversion and avoiding sins. 


After the main Mangal discourse program, under the leadership of former MLA Shri Prahlad Gunjal and local leader Rupesh Sharma, hundreds of people from Kapren, Ajanda, Jaljika Barana, Kodakia, Shirpura, Maija, Roteda, Radi and Arnetha appeared for Acharyashri's darshan and holy inspiration. In this way, it was as if a program was organized spontaneously in the Mangal Sannidhi of Acharyashree. Acharyashree while providing sacred inspiration to the people said that this human life is rare among 84 lakh creatures. Religion is the only difference between animal and human. A man who becomes religionless, he becomes like an animal.So there be development of righteousness in everyone's life. Giving information about Jainism, Sadhucharya, Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, Acharya tradition and non-violence journey, Acharyashree said that there should be goodwill towards all. There should be no conflict with anyone. In whatever work a man does, one should try to maintain morality, authenticity. One should try to lead a drug free life and try to make the present life good. On the call of Acharyashree, hundreds of people including former MLA Gunjal, who were present, accepted all the three resolutions of non-violence journey from Acharyashree and got blessings from him too.

Earlier, non-violence yatra spokesperson Muni Kumarshramanji presented the information about non-violence yatra. The former MLA, while giving his expression in the obeisance of Acharyashree, said that-"it is the utmost good fortune of all of us who have got the opportunity to see a great man like Acharyashree Mahashramanji, listen to his auspicious voice and get blessings from him. The hard work you are doing for the service of humanity is unique, it is benefiting the people. All our lives have become blessed with your inspiration and blessings."


Broadcaster : Jain Shwetambar Terapanth Mahasabha

रविवार, दिसंबर 05, 2021

Human should try to come out from the ocean of the world through religious practice - Acharya Mahashraman

With the inspiration of Acharya Shri, the villagers accepted the resolution of non-violence journey

 

05.12.2021, Sunday, Arnetha, Bundi (Rajasthan), The non-violence journey of Acharya Mahashraman which inspires humanity to human beings, awakens goodwill, morality and de-addiction among people, is currently moving in the border of Bundi district. Ahimsa Yatra under the able leadership of Acharya Shree Mahashramanji, the eleventh disciple of Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, is awakening the spirit of humanity in the new village of Bundi district. On Sunday, Mahatapasvi Acharyashree Mahashramanji, along with his non-violence journey, performed Mangal Vihar from Gamach village in the early morning hours. On the way, villagers of many villages were benefited by the darshan and blessings of Acharya Shree. Distributing blessings to everyone, motivating the people, Acharyashree visited the Government Higher Secondary School located in Arnetha village after traveling for about 16 kms, then the entire Arnetha including this school was attained to the holiness. Despite the school being a holiday on Sunday, today the whole school was full of local villagers and devotees. The villagers and the people associated with the school warmly welcomed and greeted Acharyashree. 


After midday, Acharyashree gave holy inspiration to the people of Arnetha with his auspiciousness and said that the human body is like a boat, the soul is its sailor and this world is like the ocean. Tyagi saints and Maharishi people submerge this world ocean. The householder can also try to float this ocean of the world through religious practice. If there is a body, then while doing spiritual practice with it, one should try to get absorbed. There may also be a tear-shaped hole in the boat of the body. Violence, theft, lies, anger, greed, etc. are those holes in the form of tears which fill the water of sin in the boat of human life, due to which this boat keeps sinking in the ocean of the world. Eighteen sins are mentioned in Jainism. One should try to make the boat of this body free from sinful activities. Efforts should be made to increase religion in one's life through the speech of saints, meditation of God, listening to his story etc. If the householders are good, virtues are developed in them, righteousness is developed in life, then this life can become one who can cross the ocean of the world and go on the path of welfare. 

After the Mangal discourse, Acharyashree gave information about Jain Sadhucharya and Ahimsa Yatra to a large number of villagers and called upon them to accept the resolutions of Ahimsa Yatra, while the villagers stood up and accepted the resolutions. Acharyashree gave them special inspiration and holy blessings to be free from addictions. With the arrival of Acharyashree, the entire school campus and the surrounding area had become like a fair. The villagers continued to be present throughout the day for the darshan of Acharyashree. He continued to get the benefit of Acharyashree's darshan and blessings as per the condition throughout the day.


Credits: Mahasabha Camp Office

मानव का शरीर एक नौका के समान है - आचार्य महाश्रमण

धर्म-साधना द्वारा संसार सागर से तरने का प्रयास करे मानव

आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

05.12.2021, रविवार, अरनेठा, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता की प्रेरणा देने वाली, लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाली अहिंसा यात्रा वर्तमान में बूंदी जिले की सीमा में गतिमान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में अहिंसा यात्रा बूंदी जिले के नित नए गांव में मानवता की अलख जगा रही है। रविवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गामछ गांव से प्रातः की बेला में मंगल विहार किया। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। सबको आशीर्वाद बांटते, लोगों को प्रेरित करते आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर अरनेठा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो इस विद्यालय सहित पूरा अरनेठा पावनता को प्राप्त हो गया। रविवार को विद्यालय की छुट्टी होने के बावजूद भी आज पूरा विद्यालय स्थानीय ग्रामीणों व श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। ग्रामीणों तथा विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। 

 मध्याह्न के उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से अरनेठावासियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव का शरीर एक नौका के समान है, जीव इसका नाविक है और यह संसार सागर के समान है। त्यागी संत और महर्षि लोग इस संसार सागर को तर जाते हैं। गृहस्थ भी धर्म-साधना के द्वारा इस संसार सागर को तरने का प्रयास कर सकता है। शरीर है तो इससे साधना करते हुए आदमी को तरने का प्रयास करना चाहिए। शरीर रूपी नौका में आश्रव रूपी छेद भी हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, क्रोध, लोभ आदि आश्रव रूपी वह छिद्र हैं जो मानव जीवन रूपी नौका में पाप का पानी भरते हैं, जिसके कारण यह नौका संसार सागर में डूबती रहती है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। आदमी को पापकर्मों से बचने हुए इस शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। संतों की वाणी, भगवान का ध्यान, उनकी कथा श्रवण आदि के माध्यम से अपने जीवन में धर्म को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अच्छे हों, उनमें सद्गुणों का विकास हो, जीवन में धार्मिकता का विकास हो तो यह जीवन भव सागर से पार पाने वाला और कल्याणपथगामी बन सकता है। 

 मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान तो ग्रामीणों ने खड़े होकर संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री ने उन्हें व्यसनों से मुक्त रहने की विशेष प्रेरणा व पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के आगमन से मानों पूरा विद्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र मेला जैसा बना हुआ था। ग्रामीण जन पूरे दिन भर आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहे। उन्हें यथानुकूलता आचार्यश्री के दर्शन व आशीष का लाभ पूरे दिन प्राप्त होता रहा। 

साभार : महासभा कैम्प आफिस

सोमवार, सितंबर 27, 2021

नागपुर में मनाया गया जीवन विज्ञान दिवस

जीवन विज्ञान दिवस

नागपुर, 27 सितंबर 2021, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन, जीवन विज्ञान दिवस। कार्यक्रम की शुरुआत, महिला मंडल ने अणुव्रत गीत से की। साध्वी रिद्धि श्री जी ने उद्बोधन में कहा - शारीरिक मानसिक भावनात्मक विकास जरूरी है। सुंदर उदाहरण द्वारा उन्होंने बहुत अच्छे ढंग से समझाया। जीवन बिना लक्ष्य के, बिना उद्देश्य के, तथा बिना जीने की कला आए, व्यर्थ है। साध्वी वर्धमान श्री जी ने अपने उदबोधन में फरमाया - जीवन जीने की कला, बिना प्रयोग के संभव नहीं है। उन्होंने सुंदर गीतिका द्वारा प्रेक्षा ध्यान का महत्व समझाया। कुछ प्रयोग करवाएं। साथ ही श्वास प्रेक्षा तथा श्वास स्वर के द्वारा चिकित्सा कैसे कर सकते हैं, बताया। शरीर आपका ऑर्डर मानता है। बस दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ प्रयोग करें। सफलता जरूर मिलेगी। मंच संचालन प्रेक्षा ट्रेनर जतन जी मालू ने किया। साथ ही उन्होंने प्राणिक हीलिंग का छोटा सा सुंदर प्रयोग भी कराया।

रविवार, सितंबर 26, 2021

अणुव्रत समिति नागपुर ने किया संप्रदायिक सौहार्द दिवस का आयोजन

अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी, द्वारा 26 सितंबर से 2 अक्टूबर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह प्रतिवर्ष मनाया जाता है। आज दिनांक 26 सितंबर, रविवार को अणुव्रत समिति नागपुर  ने केंद्र द्वारा निर्देशित संप्रदायिक सौहार्द दिवस का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी श्री समीक्षा प्रभा जी,धृति प्रभा जी और राज श्री जी द्वारा अणुव्रत गीत से किया गया। नागपुर अणुव्रत समिति अध्यक्ष राजेंद्र जी पटावरी ने अपने वक्तव्य में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हुए कहा कि मैं अणुव्रत का  कार्यकर्ता हूँ। उन्होंने और भी अणुव्रत संबंधित जानकारी दी। साध्वी श्री जी द्वारा वक्तव्य, कविता तथा गीत का संगान किया गया। विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों का वक्तव्य हुआ। साध्वी चंदनबाला जी ने उद्बोधन में कहा - जब प्रकृति, कुदरत अपनी उर्जा देने में भेदभाव नहीं करते हैं ,तो फिर हम क्यों करें। साथ ही कहा संप्रदायिकता घातक है।केवल प्रोग्राम लेने मात्र से कुछ नहीं होगा, अपितु स्वयं में सुधार करना पड़ेगा। आपके व्यवहार में आचार में नैतिकता दिखनी चाहिए। नैतिकता से शुन्य जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

 ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा (हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई) अलग-अलग गेट अप में आ, सौहार्द सद्भावना का संदेश दिया। प्रोग्राम का कुशल संचालन मंत्री श्रद्धा जवेरी ने किया ।

शनिवार, सितंबर 04, 2021

जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है - आचार्य महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी

धार्मिक दृष्टि से पर्युषण सबसे महत्वपूर्ण समय - आचार्य महाश्रमण

पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस

04 सितम्बर 2021, शनिवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सान्निध्य में आज पर्वाधिराज पर्युषण का शुभारंभ हुआ। पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। पर्युषण अध्यात्म साधना का एक महान पर्व है। भाद्रव कृष्णा द्वादशी तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी के महाप्रयाण से भी जुड़ी हुई है। परम श्रद्धेय गुरुदेव के उद्बोधन से पूर्व मुख्यमुनि महावीर कुमार जी द्वारा गीत एवं साध्वीवर्या संबुद्ध यशा जी द्वारा श्रीमद जयाचार्य पर वक्तव्य दिया गया।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा पर्युषण का समय बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। हम देखें तो धार्मिक दृष्टि से वर्ष भर में एक अपेक्षा से चातुर्मास का अधिक महत्व होता है। चातुर्मास एक ऐसा समय है जब चारित्रआत्माएं विहार आदि नहीं करके एक ही स्थान पर चार मास प्रवास करते है। चातुर्मास में भी श्रावण - भाद्रव और फिर पर्युषण का सबसे अधिक महत्व है। पर्युषण धर्माराधना का एक अच्छा क्रम है। सकल जैन समाज इस अवसर पर विशेष रूप से धार्मिक साधना करता है। भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का भी पर्युषण काल में प्रवचन आदि द्वारा आख्यान किया जाता है। 

गुरूदेव ने आगे कहा कि जैन धर्म में आत्मवाद का सिद्धांत अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है। आत्मा ऐसा तत्व है जो शाश्वत है। जितनी आत्माएं अनंत काल से संसार में विद्यमान है उतनी ही अनंत काल तक रहेगी। कोई नई आत्मा जन्म नहीं लेती है। वही आत्मा थी है और रहेगी। इस आत्मवाद के सिद्धांत से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की बात भी सिद्ध हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व आत्मा जन्म-मरण करती रहती है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर इस अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर हुए। वें कोई एक ही दिन में तीर्थंकर नहीं बने, उनकी पृष्ठभूमि में कितनी ही साधना और तप है। आत्मवाद के साथ कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद भी जैनधर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत है। भगवान महावीर की 27 भवों की अध्यात्म यात्रा में हम जैन धर्म के सिद्धांतों को और अधिक गहराई से समझ सकते है।

खाद्य दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा- भोजन और शरीर का संबंध है। शरीर को टिकाने के लिए भोजन जरूरी है। कई तपस्या आदि भी करते है। जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है। खाते हुए भी नहीं खाना, संयम रखना बड़ी बात होती है। विगय वर्जन, द्रव्य सीमा द्वारा व्यक्ति भोजन में विवेक रखे यह काम्य है। 

प्रसंगवश आचार्यप्रवर ने कहा कि जयाचार्य हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट आचार्य हुए है। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी में आचार्य भिक्षु, द्वितीय शताब्दी में श्रीमदजयाचार्य और तीसरी शताब्दी में आचार्य तुलसी को मुख्यरूप से देख सकते है। जयाचार्य एक अध्यात्म वेत्ता, तत्व वेत्ता, विधि वेत्ता आचार्य थे। आज के दिन मैं उनके प्रति श्रद्धार्पण करता हूं।
कार्यक्रम में श्रीमती मीना गोखरू ने नौ, श्रीमती ऋतु चोरडिया ने  पन्द्रह,  श्रीमती जसोदा देवी चोपड़ा ने पैंतालीस, श्रीमती एकता ओस्तवाल ने आठ और श्री राकेश नौलखा ने नौ के तप में इक्कीस की तपस्या का गुरूदेव से प्रत्याख्यान किया।

साभार : जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

रविवार, अगस्त 08, 2021

Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha


Let's know about Jain 
Swetamber Terapanthi Mahasabha

Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha is the oldest apex and national institution of Terapanth Religion and Society. It was established on 28 October 1913 in Kolkata. Its registered head office is at 3, Pochugese Church Street, Kolkata 700001.

Initially the Mahasabha was named as 'Jain Swetamber Terapanthi Sabha', but after the establishment of many Terapanthi Sabhas in different regions of the country, it was renamed as 'Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha' on 30 January 1947. It has a three-storey private building called 'Mahasabha Bhavan' at the above address, in which its head office, discourse room, worship room, auditorium, monk columnist etc. are located.Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha is the oldest apex and national institution of Terapanth Religion and Society. It was established on 28 Oct'13 in Kolkata. Its registered head office is at 3, Pochugese Church Street, Kolkata 700001. Initially the Mahasabha was named as 'Jain Swetamber Terapanthi Sabha', but after the establishment of many Terapanthi Sabhas in different regions of the country, it was renamed as 'Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha' on 30 Jan'47. It has a three-storey private building called 'Mahasabha Bhavan' at the above address, in which its head office, discourse room, auditorium, monk columnist etc. are located.


Source : https://jstmahasabha.org/


AKHIL BHARTIYA TERAPANTH YUVAK PARISHAD


Let's know about AKHIL BHARTIYA Terapanth Yuvak Parishad


The Akhil Bhartiya Terapanth Yuvak Parishad is a youth forum that unites the Terapanthi youth from the age of 21 to 45 the world over. The formation of this organisation was due to the vision and able efforts of Acharya Shri Tulsi. It was his thinking that has led to this strong and rooted forum of Terapanthi youth. This organisation has a huge following of over 40000 youth across the world. The ABTYP has its wings spread all across the country with more than 325 branches which execute the vision of the present 11th Acharya of Terapanth His Holiness Acharya Shri Mahashramanji.

The vision of ABTYP is to generate opportunities and chances for the youth so that they can interact with the world. The organisation helps in strengthening the moral values of youth by creating opportunities to serve other people, state and nation through its various programmes, to network amongst themselves so that all can grow and a win-win scenario gets promoted and to inculcate in themselves the value of following the Jain philosophy. All this creates a platform for the youth from where the world see them as responsible citizens of the world.

ABTYP follows a missionary vision strategy wherein the missions are so aligned that the vision will only be achieved if the missions are followed well. Here the vision is the outcome of the missions. The first mission being that of service. The ABTYP pledges itself for the service of mankind and humanity. Under its service mission ABTYP runs and manages activities of social causes like Blood Donation Drives, Eye Check Up and Medical Check Up camps, De Addiction Programmes, helping the needy by timely distribution of needy things free of cost, setting up of pathology labs, giving services on days of national importance to the nation at large, supporting in times of national grief and natural calamities etc.

By its mission of empowerment the ABTYP pledges to empower the youth by inculcating the values of Jainism and Terapanth to the roots by way of having regular training and teaching camps and programmes. Inviting their services during the Chaturmas is another way of involving the youth to the philosophy of Humanity. Regular Meditation by means of Preksha Dhyan, Science of living (Jeevan Vigyan programmes), etc. are the ways in which empowerment of values in the youth is carried out. The mission of strengthening is basically to promote the feeling of fellowship among youth and enroute achieve a great network of Terapanthi youth all over the world. Facilities like encouragement to higher studies, hostel facilities in urban areas, talent hunt programmes,conducting seminars for personality and business development are the means by which the empowerment is generated in the youth and networking is promoted among them so that a youth is never out of resource and the hormonal links are established among the youth. Thus ABTYP intends to be a window of opportunities for the youth to interface with the world.

The aim is so set that the Objective of GOAL 2020 be achieved. GOAL 2020 – to become the largest NGO of youth in India. This have to be achieved by running development programmes as the following:

  • Brand Development
  • Image Development
  • Structure Development
  • Society Registration 588/83-84 Dt. 30/03/1984
  • NGO unique ID DL/2012/0048117

Source : www.abtyp.com

शुक्रवार, अगस्त 06, 2021

भीतर का "मैं" का मिटना ज़रूरी है...



सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे| उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी |

वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो?''

लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें इस समुन्द्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं |''

बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे |

अब पूछने की बारी बच्चे की थी |

बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?'


सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ |


आज तुमने सिखा दिया कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता है , मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा |''


यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुन्द्र में फेंक दिया और बोला- "सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है |"इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले-

"बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है|


हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ |"


ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए |

सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया | जिस सुकरात से मिलने के सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे |


ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं " सबसे पहले मिटता है |


या यूँ कहें....जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है |



साभार : टेलीग्राम लिंक👇🏻

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रविवार, जुलाई 18, 2021

लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता - आचार्य महाश्रमण

 चातुर्मास हेतु शांतिदूत का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्य का प्रथम चातुर्मास

स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य


18 जुलाई 2021, रविवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान, तेरापंथ नगर आदित्य विहार, प्रातः 09 बज कर 21 मिनट पर जैसे ही शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महाश्रमण सभागार में चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया पूरा वातावरण 'जय जय ज्योतिचरण - जय जय महाश्रमण' के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। हर ओर श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा था। वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री का यह चातुर्मास प्रवेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्यों का यह पहला चातुर्मास है। आचार्य श्री के साथ भी प्रथम बार 200 से अधिक साधु-साध्वियां चातुर्मास में है। देश- विदेश की हजारों किलोमीटर पदयात्रा संपन्न कर मेवाड़ पधारे गुरुवर के स्वागत में सभी में उत्साह-उमंग की नई लहर छाई हुई है।


प्रशासनिक दिशा-निर्देश एवं कोविद गाइडलाइन के मद्देनजर प्रवेश जुलूस का आयोजन नहीं रखा गया था। साधु-साध्वियों की धवल पंक्ति के मध्य आचार्य प्रवर को मंगल प्रवेश करता देख सभी श्रद्धानत थे। भीलवाड़ा वासियों का वर्षों पूर्व देखा गया स्वप्न आज साकार हो गया, ऐसा लग रहा था मानो भीलवाड़ा शहर महाश्रमणमय बन गया हो।


स्वागत समारोह में आचार्य प्रवर ने कहा- इस संसार में जब मंगल की बात आती है तो कई चीजों का नाम आ सकता है। कोई मुहूर्त आदि को मंगल मानता है, तो कहीं गुड़, नारियल आदि को भी मंगल माना जाता है, परंतु ये सब उत्कृष्ट मंगल नहीं है। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल होता है। धर्म साथ में है तो फिर सदा मंगल है।अहिंसा, संयम, तप ये धर्म के लक्षण हैं। जीवन में अगर ये है, तो मानो धर्म है, अध्यात्म है। अहिंसा एक ऐसा तत्व है जो लोक में सबके लिए क्षेमंकरी है, कल्याणकारी है। आज समाज, राजनीति में भी अहिंसामय नीति होनी चाहिए। लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों जनता की भलाई के लिए होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता। अहिंसा, प्रेम-मैत्री से भी समस्या सुलझाई जा सकती है।


गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि- इस भारत देश में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं पंथनिरपेक्षता भी है। सबको अपनी रुचि अनुसार धर्म करने की छूट है। भारत एक आजाद देश है, आजादी के साथ संयम, अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता। साथ ही सत्ता में निस्वार्थ सेवा रूपी तप भी होना चाहिए। सत्ता में आकर अगर जनता की सेवा ना करें तो वह व्यर्थता है। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर सकता है।


चातुर्मास प्रवेश पर गुरुदेव ने कहा कि- यह चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्षभर यात्रा के पश्चात ये चार महीने ऐसे होते हैं जब साधु को एक स्थान पर रहना होता है। आज चातुर्मास हेतु यहां प्रवेश हुआ है। कितने ही रत्नाधिक व छोटे साधु-साध्वियां वर्षों बाद इस बार साथ में है। यहां की जनता भी जितना हो सके उतना धर्म का लाभ उठाएं। यह चातुर्मास उपलब्धिकारक रहे, मंगलकामना।


साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने उद्बोधन में कहा- आचार्यश्री एक महान यात्रा, विजय यात्रा कर यहां पधारे हैं। मेवाड़ के श्रावकों में विशिष्ट भक्ति है। चातुर्मास में सभी लक्ष्य बनाएं कि हमें गुरुवर की वाणी को आत्मसात कर जीवन में अपनाना है। यह सिर्फ भीलवाड़ा का ही नहीं पूरे मेवाड़ का चतुर्मास है।


स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य

शांतिदूत के स्वागत में पंजाब के महामहिम राज्यपाल श्री वीपी सिंह बदनोर विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर सांसद श्री सुभाष बहेरिया, विधायक श्री रामलाल जाट, विधायक श्री विट्ठल शंकर अवस्थी, नगर परिषद चेयरमैन श्री राकेश पाठक, जिला कलेक्टर श्री शिव प्रकाश नकाते, जिला पुलिस अधीक्षक श्री विकास शर्मा, राइफल संघ के जिलाध्यक्ष श्री अभिजीत सिंह बदनोर, वरिष्ठ एडवोकेट उमेद सिंह राठौड़ आदि अनेक गणमान्य जनों ने भी आचार्य वर का अभिनंदन किया।


स्वागत करते हुए राज्यपाल श्री वीपी.सिंह बदनोर ने कहा- यह मेरा परम सौभाग्य है जो आज मेवाड़ की धरा पर मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। आप के प्रवचन हम सभी का मार्गदर्शन करने वाले हैं। मेरी विनती है पंजाब की धरा पर भी आप पधारे। इस चातुर्मास से पूरे देश में धर्म की ज्योति जलेगी।


कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया, स्वागताध्यक्ष श्री महेंद्र ओस्तवाल, वरिष्ठ श्रावक श्री नवरतन झाबक ने अपने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी व व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री निर्मल गोखरू ने किया।

गुरुवार, मई 06, 2021

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....


हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ ।


जन-जन है डरा हुआ,

हर मन है घुटन से भरा हुआ ।

आशा की नव किरण जगाने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ....


नकारात्मकता फैली है चहुँ ओर,

मृत्यु का भय फैला हर ओर ।

आत्म विजय का पाठ पढ़ाने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....


तन की "इम्युनिटी" हुई है क्षीण,

हर मन हुआ है जीर्ण - शीर्ण ।

प्रेक्षा से प्रज्ञा को जगाने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....


हिंसा का तांडव है फैला,

प्रेम भाव मानव है भुला ।

अहिंसा का नव अभियान चलाने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....


जीवन जीना, पर कैसे जीना ?

कैसे चलना, सोना, खाना ? 

जीने का विज्ञान सिखाने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ.....


महाप्रयाण दिवस द्वादश है आया,

सरदारशहर समाधि स्थल मन भाया ।

जन जन को "पावन" दर्श दिराने,

हे महाप्रज्ञ ! तुम फिर आओ .....


श्री पवन फुलफगर, सूरत - लाडनूँ की भावपूर्ण प्रस्तुति तेरापंथ के दशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के द्वादशम महाप्रयाण दिवस की पूर्व संध्या पर।

बुधवार, अप्रैल 21, 2021

नोट लेकर आया था खोट देकर गया


21/4/2021, विहार के मध्य आज श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य देखने को मिला। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जब विहार करा रहे थे तभी सामने से आता एक ट्रक सहसा शांतिदूत के समक्ष रुक गया और उसमें से ट्रक ड्राइवर ने उतरकर गुरुदेव को कुछ रुपए भेंट करने चाहे। जब उसे साधुचर्या के बारे में बताया गया कि जैन साधु रूपए-पैसे आदि नहीं लेते तब वह विस्मित हो उठा। आचार्यश्री की प्रेरणा से उसने शराब आदि नशे को छोड़ते हुए नशामुक्ति की भावना व्यक्त की। शांतिदूत के चरणों में नोट चढ़ाने आया वह व्यक्ति मानों अपने जीवन की खोट चढ़ा गया।

Fwd & Received

सोमवार, मार्च 22, 2021

मार्च एन्डिंग में जांचे स्वयं के जीवन की बैलेंस शीट


इस मार्च एन्डिंग में जीवन की बैलेंस शीट जांचने की इच्छा हुई तो पाया कि प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, भाईचारा, कर्तव्यनिष्ठा के खाते ही गायब हैं।

मन के 'मुनीम' से पूछा तो वो बोला - सर  जी, वर्षो से इनके साथ कोई लेनदेन हुआ ही नहीं।।।
  
ना जाने कितने रिश्ते, ख़त्म कर दिये इस भ्रम ने कि मैं ही सही हूँ, और सिर्फ़ मैं ही सही हूँ...!!

हम सभी के साथ कही ना कही ऐसा हो रहा है। हम भी अपना बेलेंसशिट चेक करे कही हम मैं के खातिर हम को तो नहीं भूल रहें। मैं एक अंगुली जैसी होती है और हम मुट्ठी जैसी। एकता मुट्ठी में ही होती है। अब समय है रिश्तों को सुधारने का सबके साथ वैचारिक मतभेद दूर करने का, आपसी सम्बन्ध व्यवस्थित करने का क्योकि रिश्ते बनाते सालों बीत जाते है पर टूट एक पल में जाते है क्योकि दिल तो बच्चा है जी वैसे बच्चा सरल होने के साथ साथ चंचल भी होता है।

पंकज नाम में जल व कीचड़ का योग मिलता है और कहते है कीचड़ में रहते हुए भी वो कीचड़ से निर्लिप्त रहता है। हम आज विश्व जल दिवस के अवसर पर संकल्पित हो की हम द्वेष रूपी कीचड़ से ऊपर उठकर जल रूपी पवित्र जीवन जिए क्योकि जल है तो जीवन है वैसे ही पवित्रता है, विश्वास है, मधुरता है तो जीवन अमृतमय बन जाता है।

अग्रेषित Whatsapp सन्देश साथ मेरे भावों के समावेश पर अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें - पंकज दुधोडिया

शुक्रवार, जनवरी 29, 2021

Kayotsarg means, "abandoning the body" - Acharya Mahapragya

All humans have strong attachments to material things, and in fact, to their body. Strong attachments are a significant obstacle in practicing meditation. Attachments can make it difficult to take even the first step of meditation, called Kayotsarg. Kayotsarg means, "abandoning the body". 


There is a technique very similar to kayotsarg in Hindu tradition of Hathyoga called shavaasan. There are simi|arities and differences between Hathyoga’s shavaasan and Jain tradition’s kayotsarg. Therefore, readers who have heard about shavaasan should not assume that kayotsarg and shavaasan are the same. In shavaasan one concentrates on relaxing the body, whereas in kayotsarg one not only makes the body relaxed but goes beyond the body to experience the separateness of body and soul and detachment from the body (mamatva visarjan).


 This is a profound realization of seeing the soul as different from the body, and is known by a technical term in Jain philosophy called bhed-vigyaan (Le. the science of differentiation between the soul and the body). To completely achieve the state of kayotsarg it is essential to use bhed vigyaan, the science of differentiation. 


~ Acharya Mahapragya


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साभार : Preksha Meditation