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सोमवार, दिसंबर 06, 2021

राग-द्वेष पाप का आधार है - आचार्य महाश्रमण

पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल संग सैंकड़ों लोगों ने स्वीकार किए संकल्प, प्राप्त किया आशीर्वाद


06.12.2021, सोमवार, कापरेन स्टेशन, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जिस ओर भी निकलते हैं, जन-जन उनकी अभिवंदना में जुट जाता है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में अरनेठा ने मंगल प्रस्थान किया तो स्थानीय ग्रामीणों ने हाथ जोड़कर वंदना की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। रास्ते में आने वाले क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग और क्या नौजवान जो भी अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री को देख नतमस्तक होकर आचार्यश्री की अभिवंदना करता तो आचार्यश्री भी सभी पर समान रूप से आशीषवृष्टि करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कापरेन स्टेशन गांव पहुंचे तो लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री कापरेन स्टेशन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में पधारे। 


 विद्यालय प्रांगण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो भी पाप करता है उसके पृष्ठभूमि में राग और द्वेष होते हैं। दुनिया में आदमी जो भी कार्य करता है उसके जड़ में राग और द्वेष ही होते हैं। इसलिए राग और द्वेष को कर्मों का बीज भी कहा जाता है। अगर राग-द्वेष न हो तो आदमी कोई पाप ही न करे। आदमी किसी को मारे, किसी से झगड़ा करे, झूठ बोले, कोई अनैतिक कार्य करे, वह या तो राग के वशीभूत होकर करता है अथवा द्वेष की भावना से करता है। यदि आदमी के भीतर राग-द्वेष की न्यूनता हो जाए अथवा राग-द्वेष की भावना समाप्त हो जाए तो आदमी धर्मानुरागी बन सकता है। राग-द्वेष पाप का आधार है। आदमी को ध्यान, स्वाध्याय, जप और अन्य धर्माचरणों के माध्यम से राग-द्वेष को न्यून अथवा प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को राग-द्वेष को कम कर पापों से बचते हुए धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। 


 मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के उपरान्त पूर्व विधायक श्री प्रहलाद गुंजल व स्थानीय नेता रूपेश शर्मा के नेतृत्व में कापरेन, अजन्दा, जालीजिका बराना, कोडकिया, शिरपुरा, माइजा, रोटेदा, रड़ी व अरनेठा के सैंकड़ों लोग आचार्यश्री के दर्शनार्थ और पावन प्रेरणा के लिए उपस्थित हुए। इस तरह मानों आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनायास एक कार्यक्रम-सा आयोजित हो गया। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि 84 लाख जीव योनियों में यह मानव जीवन दुर्लभ है। पशु और मानव में धर्म का ही अंतर होता है। जो मनुष्य धर्महीन हो जाए, वह पशु के समान हो जाता है। सभी के जीवन में धार्मिकता का विकास हो। आचार्यश्री ने जैन धर्म, साधुचर्या, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्य परंपरा व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए कहा कि सभी के प्रति सद्भावना हो। किसी से वैर-विरोध नहीं होना चाहिए। आदमी जो भी काम करे, उसमें नैतिकता, प्रमाणिकता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के आह्वान पर समुपस्थित पूर्व विधायक गुंजल सहित सैंकड़ों लोगों ने करबद्ध खड़े होकर आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। 

            इसके पूर्व अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनिकुमारश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा की अवगति प्रस्तुत की। पूर्व विधायक ने आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि यह हम सभी का परम सौभाग्य है जो आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महापुरुष के दर्शन करने, उनकी मंगल कल्याणकारी वाणी को सुनने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। मानवता की सेवा की लिए आप जो कठोर श्रम करा रहे हैं वे अद्वितीय हैं, इससे जन-जन का कल्याण हो रहा है। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से हम सभी का जीवन धन्य हो गया। 


साभार : महासभा केम्प ऑफिस

रविवार, दिसंबर 05, 2021

मानव का शरीर एक नौका के समान है - आचार्य महाश्रमण

धर्म-साधना द्वारा संसार सागर से तरने का प्रयास करे मानव

आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

05.12.2021, रविवार, अरनेठा, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता की प्रेरणा देने वाली, लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाली अहिंसा यात्रा वर्तमान में बूंदी जिले की सीमा में गतिमान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में अहिंसा यात्रा बूंदी जिले के नित नए गांव में मानवता की अलख जगा रही है। रविवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गामछ गांव से प्रातः की बेला में मंगल विहार किया। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। सबको आशीर्वाद बांटते, लोगों को प्रेरित करते आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर अरनेठा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो इस विद्यालय सहित पूरा अरनेठा पावनता को प्राप्त हो गया। रविवार को विद्यालय की छुट्टी होने के बावजूद भी आज पूरा विद्यालय स्थानीय ग्रामीणों व श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। ग्रामीणों तथा विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। 

 मध्याह्न के उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से अरनेठावासियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव का शरीर एक नौका के समान है, जीव इसका नाविक है और यह संसार सागर के समान है। त्यागी संत और महर्षि लोग इस संसार सागर को तर जाते हैं। गृहस्थ भी धर्म-साधना के द्वारा इस संसार सागर को तरने का प्रयास कर सकता है। शरीर है तो इससे साधना करते हुए आदमी को तरने का प्रयास करना चाहिए। शरीर रूपी नौका में आश्रव रूपी छेद भी हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, क्रोध, लोभ आदि आश्रव रूपी वह छिद्र हैं जो मानव जीवन रूपी नौका में पाप का पानी भरते हैं, जिसके कारण यह नौका संसार सागर में डूबती रहती है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। आदमी को पापकर्मों से बचने हुए इस शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। संतों की वाणी, भगवान का ध्यान, उनकी कथा श्रवण आदि के माध्यम से अपने जीवन में धर्म को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अच्छे हों, उनमें सद्गुणों का विकास हो, जीवन में धार्मिकता का विकास हो तो यह जीवन भव सागर से पार पाने वाला और कल्याणपथगामी बन सकता है। 

 मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान तो ग्रामीणों ने खड़े होकर संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री ने उन्हें व्यसनों से मुक्त रहने की विशेष प्रेरणा व पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के आगमन से मानों पूरा विद्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र मेला जैसा बना हुआ था। ग्रामीण जन पूरे दिन भर आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहे। उन्हें यथानुकूलता आचार्यश्री के दर्शन व आशीष का लाभ पूरे दिन प्राप्त होता रहा। 

साभार : महासभा कैम्प आफिस