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शुक्रवार, दिसंबर 15, 2023

Spiritual meeting of two Acharyas of Jainism in 'Jainam Jayatu Shasanam' program


स्वयं की आत्मा को बनाएं मित्र : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

नवकार मंत्र से चलता है जिन शासन : ज्योतिषाचार्य प्रणामसागरजी

15.12.2023, शुक्रवार, दादर (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र), जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, मोक्ष प्राप्ति का साधन बताने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता की मंगल सन्निधि में दादर प्रवास के दूसरे दिन दिगम्बर सम्प्रदाय के ज्योतिषाचार्य प्रणाम सागरजी महाराज भी उपस्थित हुए। जैन सम्प्रदाय के दो आध्यात्मिक गुरुओं का आध्यात्मिक जन-जन को आह्लादित कराने वाला रहा। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में दोनों आचार्यों ने उपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रेरणा भी प्रदान की व जैन एकता का मंगल संदेश प्रदान किया। 

शुक्रवार को प्रातःकाल श्री साउण्ड सिने स्टूडियो में बने वर्धमान समवसरण में आज ‘जैनम् जयतु शासनम्’ का समायोजन हुआ। इस जैन शासन के प्रभावक कार्यक्रम में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में हर किसी के मित्र भी होते हैं, अथवा आदमी अपना मित्र बनाता है। शास्त्रों में एक बात बताई गई कि मानव की स्वयं की आत्मा ही उसकी सबसे अच्छी मित्र होती है, और आत्मा ही शत्रु भी हो सकती है। अच्छी प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा उस व्यक्ति की मित्र होती है और बुरी प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा उस व्यक्ति की शत्रु होती है। अहंकार, क्रोध, लोभ व माया में लिप्त आत्मा आदमी की शत्रु व निरहंकार, संतोषी, सरल, धर्म परायण आत्मा स्वयं की मित्र होती है। 

मानव अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाने का प्रयास करे। क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषायों से अपनी आत्मा को मुक्त रखने का प्रयास हो। हम जैन संप्रदायों में भेद में भी अभेद को देखने का प्रयास करें। परस्पर सहयोग और सेवा की भावना का विकास होता रहे। जैन शासन के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के 2500 वर्ष के उपलक्ष में दिल्ली में एक विशाल कार्यक्रम का समायोजन हुआ था, जिसमें परम पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी भी उपस्थित थे। उस दौरान जैन एकता के एक प्रतीक, एक ध्वज और एक ग्रन्थ की बात भी सामने आई थी। 

दिगम्बर जैन संप्रदाय के ज्योतिषाचार्य प्रणाम सागरजी महाराज ने कहा कि आज ‘जैन जयतु शासनम्’ का आयोजन है। नवकार महामंत्र के द्वारा हम सभी जैन हैं। संतों की वाणी से आदमी सौभाग्यशाली बनता है। शासन वोट के द्वारा चलता है और जिन शासन नवकार मंत्र से चलता है। परम पूजनीय आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संतों के साथ समागन तो बहुत ही सुखद फल देने वाला है। हम सभी को जैन एकता का ध्यान रखना है और आचार्यजी के बताए मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। इस दौरान उन्होंने स्वरचित अनेक पुस्तकें आचार्यश्री को उपहृत की। आचार्यश्री ने भी उन्हें एक पुस्तक उपहृत की। मंच पर दोनों आचार्यों के परस्पर स्नेह को देखकर जनता अभिभूत नजर आ रही थी। 


Make your soul a friend: Yugpradhan Acharyashri Mahashraman

 Jina rule is governed by Navkar Mantra: Astrologer Pranamsagarji

 15.12.2023, Friday, Dadar (East), Mumbai (Maharashtra), the eleventh member of the Jain Shwetambar Terapanth Dharma Sangh, who awakens the spirit of goodwill, morality and de-addiction among the people, who shows the right path to the people and tells the means of attaining salvation.  Pranam Sagarji Maharaj, the astrologer of Digambara sect, was also present on the second day of his stay in Dadar in the Mangal Sannidhi of Anushasta.  The spiritual teachings of two spiritual gurus of the Jain sect brought joy to the people.  In the main discourse program, both the Acharyas provided sacred inspiration to the devotees present and gave the auspicious message of Jain unity.

 Today on Friday morning, 'Jainam Jayatu Shashanam' was organized in the Vardhaman Samavasarana of Shree Sound Cine Studio.  The resplendent Mahasurya Acharyashri Mahashramanji of the Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, while presenting the sacred Patheya to the people present in this impressive program of Jain rule, said that everyone has friends in the world, or man makes his own friends.  One thing mentioned in the scriptures is that man's own soul is his best friend, and the soul itself can be an enemy.  The soul engaged in good tendencies is the friend of that person and the soul engaged in bad tendencies is the enemy of that person.  The soul indulged in ego, anger, greed and illusion is man's enemy and the egoless, content, simple and religious soul is his own friend.

 Man should try to make his soul his friend.  Try to keep your soul free from the pain of anger, pride, illusion and greed.  Let us try to see the difference even within the differences in Jain sects.  The spirit of mutual cooperation and service should continue to develop.  A huge program was organized in Delhi to commemorate the 2500 years of Lord Mahavir, the last Tirthankar of Jain rule, in which His Holiness Gurudev Shri Tulsi was also present.  During that time, there was also talk of a symbol of Jain unity, a flag and a book.

Astrologer Pranam Sagarji Maharaj of Digambar Jain sect said that 'Jain Jayatu Shashanam' is being organized today.  By Navkar Mahamantra we all are Jains.  Man becomes fortunate by the words of saints.  Governance is run through votes and Jin's governance is run through Navkar Mantra.  Meeting with saints like the most revered Acharyashri Mahashramanji is going to give very pleasant results.  We all have to take care of Jain unity and move forward on the path shown by Acharyaji.  During this period, he gifted many self-written books to Acharyashree.  Acharyashree also gifted him a book.  The public seemed overwhelmed by the mutual affection between the two Acharyas on the stage.

रविवार, सितंबर 10, 2023

महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सन्निधि में पहुंचे इस्कॉन संत श्री गौर गोपालदासजी


10.09.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र), मानवता के उत्थान के लिए संकल्पित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मानवों का मानों रेला-सा उमड़ रहा है। केवल तेरापंथी ही नहीं, अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी बड़ी संख्या में ऐसे महापुरुष के दर्शन और मंगल प्रवचन श्रवण का लाभ प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। 

रविवार को नन्दनवन परिसर विशेष रूप से गुलजार हो जाता है। कामकाजी लोगों की छुट्टियां वर्तमान समय में आध्यात्मिक वातावरण में व्यतीत हो रही हैं। पूरे परिवार के साथ नन्दनवन में पहुंचकर श्रद्धालु धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। तीर्थंकर समवसरण पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। नित्य की भांति तीर्थंकर समवसरण में तीर्थंकर के प्रतिनिधि अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। 


जैन भगवती आगम के आधार पर अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न किया गया कि जीव के कर्म चैतन्य के द्वारा कृत होते हैं या अचैतन्य के द्वारा। भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि जीव के कर्म चैतन्य द्वारा ही कृत होते हैं, अचैतन्य के द्वारा कृत नहीं। 


धर्म के जगत में आत्मवाद और कर्मवाद बहुत महत्त्वपूर्ण व प्रमुख सिद्धान्त है। धर्म व अध्यात्म जगत के लिए आत्मवाद और कर्मवाद मानों आधार स्तम्भ हैं। अध्यात्म का जो जगत है, अध्यात्म की साधना आत्मवाद पर निर्धारित है। आत्मा है तो धर्म और अध्यात्म की साधना का विशेष महत्त्व हो सकता है। आत्मा है ही नहीं, तो अध्यात्म और धर्म का विशेष मूल्य नहीं रह जाता। आत्मा शाश्वत है, इसलिए आत्मा की निर्मलता व सुख-शांति के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना होती है। इन्द्रियों से ग्राह्य और भौतिक पदार्थों से प्राप्त सुख क्षणिक होता है, किन्तु कर्म की निर्जरा, साधना, ध्यान, जप योग से प्राप्त होने वाला आत्मिक सुख वास्तविक और स्थाई होता है। इसलिए आदमी को स्थाई सुख की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। निर्मल व शुद्ध आत्मा मोक्ष का भी वरण कर सकती है। 


मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने 12 सितम्बर से आरम्भ होने जा रहे पर्युषण महापर्व के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आठ दिनों का यह पर्व धर्म की साधना में लगाने वाले दिन हैं। सांसारिक कार्यों को थोड़ा गौण कर धर्म की प्रभावना करने का प्रयास करना चाहिए। व्रत, उपवास व त्याग में एक त्याग व उपवास डिजिटल उपकरणों का भी हो। इन आठ दिनों में रात्रि भोजन न हो। इस प्रकार अपने जीवन को धर्म के आचरण से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री से तपस्या का प्रत्याख्यान किया। श्री बाबूलाल जैन उज्ज्वल ने समग्र जैन चतुर्मास सूची का आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पण करते हुए अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 


मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ट्रान्सफायर कार्यक्रम समायोजित हुआ। इस कार्यक्रम के निदेशक श्री दिलीप सरावगी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्रीमती श्वेता लोढ़ा ने मुख्य बिजनेसमैन श्री मोतीलाल ओसवाल का परिचय प्रस्तुत किया। श्री मोतीलाल ओसवाल ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संत की सन्निधि प्राप्त हुई है। आपका आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहे। श्री विरार मधुमालती वानखेड़े ने आचार्यश्री के समक्ष तेरापंथ गाथा गीत को प्रस्तुति दी। 


आज दोपहर बाद लगभग तीन बजे के आसपास आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इस्कॉन के संत व मोटिवेसनर श्री गौर गोपालदासजी पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन किया। तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को उद्बोधित करते हुए आचार्यश्री ने भौतिकता पर आध्यात्मिकता का नियंत्रण रखने की प्रेरणा प्रदान की। इस्कान संत श्री गौर गोपालदासजी ने कहा कि यह अच्छी बात है कि भौतिकता के दौड़ में इतने लोग आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए पहुंचे हैं। आदमी अपने विचारों की दिशा सही रखे तो सही दिशा में तरक्की भी हो सकती है। परिस्थितियों से पार पाने के लिए मनःस्थिति को अच्छा बनाना होगा। 

गुरुवार, अगस्त 17, 2023

दिनचर्या को अच्छा बनाने के लिए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने किया अभिप्रेरित


शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण से भगवती सूत्र आगम के आधार पर उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से पूछा गया कि प्राणियों का जागना अच्छा या सोना? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि कुछ जीवों का सोना अच्छा और कुछ जीवों का जागना अच्छा होता है। भगवान महावीर ने इसका विस्तार प्रदान करते हुए बताया गया कि जीवों को उनके कर्मों के आधार पर दो भागों में बांटे तो धार्मिक और अधार्मिक जीव प्राप्त होते हैं।

इस दृष्टिकोण से धार्मिक जीवों का जागना अच्छा होता है और अधार्मिक जीवों का सोना अच्छा होता है। अधार्मिक यदि जगेगा तो दूसरे प्राणियों को कष्ट देगा, प्रताड़ित करेगा, किसी न किसी जीव की हत्या कर देगा, किसी को अपमानित करेगा, किसी को अनावश्यक कष्ट देगा। इससे वह अपनी आत्मा के कर्मबंध भी कर लेगा। इसलिए ऐसे अधार्मिक जीव का सोना अच्छा होता है। उसके सोने से कितने-कितने जीव कष्ट पाने से बच सकते हैं, कितने जीवों की प्राणों की रक्षा हो सकती है और कितने जीव शांति से जी सकते हैं।

दूसरी ओर धार्मिक जीव के जागरण से दुःखी जीवों की सेवा हो सकती है, कितने परेशान जीवों को परेशानी से बचा सकता है, कितनी की आत्मा के कल्याण का प्रयास करेगा, कितने जीवों को धार्मिकता के मार्ग पर लाएगा। इस प्रकार कितने जीवों का कल्याण हो सकता है। इसलिए धार्मिक जीव का जागना बहुत अच्छा हो सकता है।

प्राणी के तीन प्रकार भी किए जा सकते हैं, अधार्मिक कार्यों में संलग्न रहने वाला अधम का सोना अच्छा होता है। इससे प्राणी कष्ट, हत्या, प्रताड़ना आदि से बच जाते हैं और उसकी आत्मा भी कर्म बंधनों से बच सकती है। मध्यम श्रेणी के प्राणियों का सोना-जगना दोनों ही ठीक होता है। वे न तो पाप कर्म करते और न ही ज्यादा धार्मिक कार्य करते हैं। उत्तम श्रेणी के लोगों का सतत जागृत अवस्था में बने रहना लाभकारी हो सकता है। आदमी को अपने सोने और जागने के समय का निर्धारण करने का प्रयास करना चाहिए। इससे दिनचर्या अच्छी हो सकती है तो आदमी अपने जीवन में अच्छा विकास भी कर सकता है।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास का सरसशैली में आख्यान किया। आचार्यश्री के आख्यान का श्रवण कर जनता भावविभोर नजर आ रही थी।

बुधवार, अगस्त 16, 2023

अपनी आत्मा को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिए - अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण

16.08.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र), भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न बनाने के लिए अपनी धवल सेना के साथ मुम्बई में चतुर्मास प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रतिदिन आगमवाणी के माध्यम से अध्यात्मक की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। सागर तट पर प्रवाहित होने वाली यह निर्मल ज्ञानगंगा जन-जन के मानस के संताप का हरण करने वाली है। इस ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने के लिए मुम्बईवासी ही नहीं, देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। 


महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तपस्याओं की अनुपम भेंट भी श्रद्धालुओं ने इस प्रकार चढ़ाई हैं, जिसने तेरापंथ धर्मसंघ में एक नवीन कीर्तिमान का सृजन कर दिया है। इसके अतिरिक्त अनेकों प्रकार की तपस्याओं में रत श्रद्धालु अपने आराध्य से नियमित रूप से तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। 


युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से ज्ञानगंगा को प्रवाहित करते हुए कहा कि भगवान महावीर की मंगल देशना के बाद श्रमणोपासिका जयंती उनके पास पहुंचती है और प्रश्न करती है कि जीवों की आत्मा किन कर्मों से भारी बनती है? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए 18 चीजों को वर्णित किया, जिसके कारण जीव की आत्मा कर्मों का बंध कर भारी हो जाती है और अधोगामी बन जाती है। 18 चीजें अर्थात् अठारह पापों के कारण जीव की आत्मा गुरुता को प्राप्त करती है और पापकर्मों से भारी बनी आत्मा अधोगति की ओर जाती है। पापों से भारी आत्मा अधोगति और हल्की आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती है। इसलिए आदमी को इन पापों से विमरण करते हुए अपनी आत्मा को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी अच्छी सुगति की प्राप्ति हो सकती है। साधु तो सर्व सावद्य योगों का त्याग करने वाले होेते हैं, किन्तु श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका बारहव्रत, संयम, नियम आदि का स्वीकरण के द्वारा भी अपनी आत्मा को पापों के भार से बचाने का प्रयास कर सकते हैं। गृहस्थावस्था में पूर्ण विरमण भले न हो पाए, किन्तु आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी ही अच्छी बात हो सकती है। कई बार त्याग-तपस्या, नियम, व्रत व संयम के द्वारा श्रमणोपासक भी एक ही जन्म के बाद मोक्षश्री का भी वरण कर सकता है। इस प्रकार भगवान महावीर ने संयमयुक्त जीवन जीने और अपनी आत्मा को पापों से बचाने की प्रेरणा प्रदान की। 


आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए परम पूज्य कालूगणी के भीलवाड़ा से कष्टप्रद स्थिति में विहार करते हुए गंगापुर में चतुर्मास में पधारने और वहां सेवा में रत रहने वाले संतों को न्यारा में भेजने के प्रसंगों का सरसशैली में वर्णन किया। अपने सुगुरु की वाणी से अपने पूर्वाचार्य के इतिहास का श्रवण कर श्रद्धालुजन मंत्रमुग्ध नजर आ रहे थे। अनेक तपस्वियों को आचार्यश्री ने उनकी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। 

बुधवार, जुलाई 26, 2023

ज्ञानदाता के प्रति विनय, सम्मान की भावना हो - अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण जी


26.07.2023, बुधवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र), जैन धर्म में कर्मवाद का सिद्धांत है। भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि ज्ञानावरणीय कर्म प्रयोग का बंध किन कारणों से होता है? उत्तर दिया गया कि ज्ञान का विरोध करने, ज्ञान के विकास में अवरोध डालने, ज्ञान की अवज्ञा करने, ज्ञान की अवहेलना करने आदि कुल सात कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। भगवती सूत्र में वर्णित इन सातों को जानकर ज्ञानावरणीय कर्म बंध के इन सातों कारकों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को इनसे बचने के लिए ज्ञान के प्रति प्रेम, ज्ञान के प्रति विनय का भाव, ज्ञानदाता के प्रति आदर व विनय का भाव, दूसरों को ज्ञान प्रदान करने में सहयोग करने, ज्ञान प्राप्ति में अवरोध न बनने, ज्ञान की अवज्ञा नहीं करने, दूसरों के ज्ञान प्राप्ति में सहयोग करने, किसी को ज्ञान प्रदान करने से ज्ञानावरणीय कर्म बंध से बचा सकता है और ज्ञान का अच्छा विकास हो सकता है। 


भगवती सूत्र में वर्णित इन सात हेतुओं को जानकर आदमी को इनसे दूर रहने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञानावरणीय कर्म बंध से अपने आपको बचाने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के विकास में प्रतिकूल आचरण से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के प्रति विनय का भाव हो, ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेम हो, ज्ञानदाता के प्रति विनय, सम्मान की भावना हो, दूसरों के ज्ञान प्राप्ति में सहयोग करने का प्रयास और ज्ञानदान का भी प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। लाभ होना बुरा नहीं, बुद्धि बुरी नहीं होती, भोग बुरा नहीं होता, बस इसके प्रयोग में असंयम और इसके दुरुपयोग करना बुरा होता है। आदमी को ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा ज्ञानशाला के माध्यम से, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा श्रुतोत्सव के द्वारा, जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के द्वारा ज्ञान के क्षेत्र में विकास का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार अनेक माध्यमों से ज्ञान के विकास का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान की। 


मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में श्रुतोत्सव (तत्त्व/तेरापंथ प्रचेता दीक्षांत समारोह) का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया ने जानकारी प्रस्तुत की। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा श्रुतोत्सव के माध्यम से ज्ञानाराधना का अच्छा उपक्रम चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से महिला समाज ही नहीं, कई चारित्रात्माएं भी जुड़ी हुई हैं। जिन्होंने ज्ञान का विकास कर लिया है, वे दूसरों के ज्ञान के विकास में सहयोग करें। गोठी परिवार के सदस्य ज्ञान के विकास आदि से जुड़ा हुआ है। ज्ञान के विकास का अच्छा प्रयास होता रहे। 


आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में बुधवार को 21 जुलाई को देवलोक हुए मुनि शांतिप्रियजी की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने मुनि शांतिप्रियजी का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भावना व्यक्त की और आचार्यश्री सहित चतुर्विध धर्मसंघ ने उनकी आत्मा के शांति के लिए चार लोग्गस का ध्यान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी व साध्वीप्रमुखा विश्रुत ने मुनि शांतिप्रियजी के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की। मुनि अक्षयप्रकाशजी, मुनि कोमलकुमारजी, मुनि ध्रुवकुमारजी, मुनि मृदुकुमारजी व मुनि गौरवकुमारजी ने भी उनके प्रति अपनी अभिव्यक्ति दी। मुनि शांतिप्रियजी के संसारपक्षीय पुत्र श्री बिनोद बोरदिया व दीसा सभा के अध्यक्ष श्री रतनलाल मेहता व समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। 

मंगलवार, जुलाई 25, 2023

समस्याओं में भी बनी रहे प्रसन्नता : अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण


25.07.2023, मंगलवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र), मायानगरी मुम्बई में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के अनेक धार्मिक - आध्यात्मिक संगठनों के वार्षिक अधिवेशन, शिविर और प्रशिक्षण शिविर आदि का कार्यक्रम भी प्रारम्भ हो चुका है। मंगलवार को भी तीर्थंकर समवसरण में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को एक ओर भगवती सूत्र के आधार पर आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया तो दूसरी ओर अपने वार्षिक अधिवेशन के संदर्भ में गुरु सन्निधि में देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंची कन्याओं को आचार्यश्री ने जीवन में उज्ज्वलता की दिशा में गति करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री से पावन पाथेय प्राप्त कर तेरापंथ कन्या मण्डल की सदस्याएं स्वयं को कृतार्थ महसूस कर रही थीं। 

मंगलवार को तीर्थंकर समवसरण के प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में कभी शारीरिक अथवा मानसिक प्रतिकूलता भी आ सकती है। जीवन में कभी-कभी मौसम की प्रतिकूलता भी देखने को मिल सकती है। जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता की स्थिति आ सकती है। साधु का जीवन तो परमार्थ के लिए होता है। साधु अवस्था में अनुकूलता आए अथवा प्रतिकूलता, उसे सहन करने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों को भगवती सूत्र में 22 भागों बांटा गया है और उन प्रतिकूल परिस्थतियों को परिषह नाम से संबोधित किया गया है। साधु को परिषहों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। परिषहों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। उन प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराना और परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि परिषहों को सहने का प्रयास करना चाहिए। साधु को परिषहों को सहन करने से दोनों तरह से लाभ प्राप्त हो सकता है कि सहन करते हुए अपने मार्ग से च्यूत नहीं होता और कर्म की निर्जरा भी होती है। क्षुधा परिषह ऐसा परिषह तो कठिन है। जब किसी को भूख लगती है और कुछ खाने को न मिले तो बड़ी कठिनाई महसूस होती है। साधु को उसमें भी शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। आहार मिले तो साधु शरीर को पोषण देने का प्रयास करे और न मिले तो सहज रूप में हो रही तपस्या मान कर क्षुधा परिषह को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। 

साधु जीवन में ही क्या गृहस्थ जीवन में भी अनेक प्रकार की प्रतिकूलताएं आती रहती हैं। प्रतिकूलताओं में आदमी को समता और शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिकूलता में मानसिक शांति रहे, मनोबल मजबूत हो तो यह बड़ी उपलब्धि होती है। आदमी को प्रतिकूलताओं में अवसाद / डिप्रेशन में नहीं जाना चाहिए, बल्कि मजबूत मनोबल के साथ प्रतिकूलताओं का समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए। समस्याओं में भी प्रसन्नता बनी रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए।  

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार प्रत्याख्यान किया। आज के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में 19वां तेरापंथ कन्या मण्डल के राष्ट्रीय अधिवेशन का मंचीय उपक्रम भी रखा गया था। इस अधिवेशन की थीम ‘उजाला’ था। इस संदर्भ में तेरापंथ कन्या मण्डल की प्रभारी श्रीमती अर्चना भण्डारी ने अवगति प्रस्तुत की। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए वर्ष 2023 के लिए श्राविका गौरव अलंकरण श्रीमती भंवरीदेवी भंसाली को दिए जाने की घोषणा की। ‘उजाला’ के थीम गीत पर कन्याओं ने अपनी प्रस्तुति दी। 

कन्याओं को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित कन्याओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य अपने जीवन में कुछ लक्ष्य बनाए और उसके अनुरूप श्रम कर अपने जीवन को धन्य बना सकता हैं परिश्रमपूर्ण मानव जीवन की निष्पत्ति कर्मों का क्षय करना भी हो तो आदमी मोक्ष की दिशा में गति कर सकता है। कन्यओं में अच्छी प्रतिभा और शिक्षा का विकास हो रहा है। ज्ञान के संदर्भ में उजाला का आकलन पुष्ट हो तो उज्ज्वलता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कन्याओं में ईमानदारी और नैतिकता हो, गुस्से पर नियंत्रण हो और जीवन में शांति रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। उजाला और उज्ज्वलता में निरंतर विकास होता रहे। 

शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2023

जो नहीं है उसको प्रधानता न देकर जो हमें प्राप्त है उसमें सुखी रहने का प्रयास करें - आचार्य महाश्रमण


ब्रम्हाकुमारी मुख्यालय पदार्पण पर दादी रतन मोहिनी ने किया आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत

हजारों ब्रम्हाकुमारी सदस्यों को युगप्रधान ने प्रदान किया प्रेरणा पाथेय


17.02.2023,  शुक्रवार, आबू रोड, सिरोही (राजस्थान), हजारों हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर मानवता के समुत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशस्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज आबू रोड स्थित ब्रह्माकुमारी मुख्यालय में पावन पदार्पण हुआ। ब्रह्माकुमारी संस्थान के विशेष निवेदन पर शांतिदूत पूर्व निर्धारित यात्रा पथ में परिवर्तन कर आज यहां पधारे एवं 87 वें त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव में अपना पावन सानिध्य प्रदान किया। कल आचार्य प्रवर का प्रवास कॉस्मो रेसीडेंसी में था जहां से मध्यान्ह में विहार कर पूज्य प्रवर आबू रोड स्थित जैन मंदिर में पधारे। आज प्रातः लगभग तीन किलोमीटर विहार कर सीआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज में गुरुदेव का पदार्पण हुआ।


देश-विदेश में फैले ब्रह्माकुमारी संस्थान के आबू रोड स्थित मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, शांतिवन में जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का प्रथम बार आज पदार्पण हुआ तो मानो यह अध्यात्ममय प्रांगण एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत हो गया। ब्रम्हाकुमारी शांतिवन पदार्पण पर संस्थान की प्रमुख दादी रतन मोहिनी जी, बीके जयंती दीदी ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। इस दौरान कुछ देर आध्यात्मिक चर्चा वार्ता भी हुई। तत्पश्चात आचार्यश्री ने  परिसर का भी अवलोकन किया। ज्ञात हुआ की अभी महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु देश विदेश से 10 हजार से भी अधिक संख्या में ब्रम्हकुमार एवं ब्रम्हाकुमारी यहां पहुंचे हुए है। सेक्रेटरी BK मृत्युंजय कुमार एवं दादी रतन मोहिनी द्वारा भिक्षा ग्रहण करने की अर्ज पर आचार्य प्रवर ने अपने अनुग्रह से उन्हें अनुगृहित किया।


प्रवचन सभा में उपस्थित ब्रम्हाकुमारी संगठन से जुड़े हजारों सदस्यों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा – शरीर और आत्मा का योग जीवन है व आत्मा से शरीर का अलग हो जाना मृत्यु। आत्मा और शरीर का अत्यान्तिक वियोग होता है वह मोक्ष। जब तक शरीर और आत्मा का संबंध जुड़ा रहेगा यह जन्म मरण का चक्र चलता रहेगा। स्थाई रूप से दुःख मुक्ति व जन्म मरण से छुटकार राग-द्वेष के समाप्त होने पर ही संभव है।   हम इस संसार में रहते हुए भी पद्म-पत्र व कमल-पत्र की तरह अनासक्त रहने का प्रयास करे। जीवन में सुख-दुःख व अनुकूलता-प्रतिकूलता आती रहती है पर उसमें भी समता के भाव रखना एक विशेष उपलब्धि है। जो नहीं है उसको प्रधानता न देकर जो हमें प्राप्त है उसमें सुखी रहने का प्रयास करें। 


शांतिवन आगमन के संदर्भ में आचार्य श्री ने आगे कहा कि यात्रा के दौरान जगह जगह ब्रम्हाकुमारी की बहनों से मिलने का काम पड़ता रहता है। हर बार ये हमारे वहां आती हैं आज मैं यहां आया हु। ब्रम्हाकुमारी परिवार सद्भावना का एक उदाहरण है। संगठन में एक उदारता का दर्शन होता है। जब व्यक्ति की चेतना निर्मल होगी तभी समाज, राष्ट्र व विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। हमारे भीतर सबके प्रति मैत्री, प्रेम की भावना और बढ़ती रहे। ब्रम्हाकुमारी संगठन आध्यात्मिक विकास करता रहे अपने आचरणों से पाठ पढ़ाता रहे मंगलकामना। 


कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा ने सारगर्भित वक्तव्य दिया। मुनि कुमारश्रमण जी ने आचार्य प्रवर का परिचय प्रस्तुत किया। ब्रम्हाकुमारी संगठन के सेक्रेटरी BK मृत्युंजय कुमार ने आज के दिन को ऐतिहासिक बताते हुए आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। BK गीता बहन ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम संचालन संचालन शांतिवन की कार्यवाहक BK सविता जी ने किया। इस दौरान संगठन द्वारा साहित्य से शांतिदूत का अभिनंदन किया गया।

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2023

कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए - आचार्य महाश्रमण


07.02.2023,  मंगलवार, सायला, जालौर (राजस्थान), 52 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा तय करने के बाद भी जनकल्याण एवं मानवता के नैतिक उत्थान के लिए निरंतर गतिमान मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज सायला ग्राम आगमन पर भव्य स्वागत हुआ। लगभग 10 वर्षों पूर्व 2013 में आचार्यश्री सायला में पधारे थे अब पुनः इतने वर्षों पश्चात शांतिदूत के पावन आगमन से क्षेत्र वासियों में विशेष हर्षोल्लास छाया हुआ था। प्रातः आचार्यश्री ने बावतरा से मंगल प्रस्थान किया तब स्थानीय रावले के ठाकुर भगतसिंह जी सहित ग्रामीणों ने कृतज्ञता भाव व्यक्त करते हुए आचार्यश्री से पुनः शीघ्र पदार्पण का निवेदन किया। तत्पचात स्थान–स्थान पर ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए गुरुदेव गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज शांतिदूत के सायला आगमन से जैन समाज ही नहीं अपितु सकल समाज में उत्साह, उमंग का माहौल था। गणवेश में जैन ध्वज लेकर सायलावासी जयघोषों से आचार्यश्री की आगवानी कर रहे थे। लगभग 13.8 किमी विहार कर पुज्यप्रवर सायला ग्राम में पधारे। इस दौरान सायला सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, पूर्व सीआई सुरेंद्र सिंह राठौड़, पंचायत समिति प्रधान शैलेंद्र सिंह सहित मुस्लिम समाज के लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। जैन मंदिर में पधार कर मंगलपाठ फरमाया। तत्पश्चात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में गुरुदेव प्रवास हेतु पधारे। 


धर्मसभा को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा– ध्यान आध्यात्म जगत का एक महत्वपूर्ण शब्द है। योग व ध्यान की अनेक पद्धतियाँ है, उनमें एक है – प्रेक्षाध्यान। शरीर में जिस प्रकार सिर का व वृक्ष में मूल का जो स्थान होता है, वही स्थान अध्यात्म जगत में ध्यान का है। एकाग्र चिंतन के साथ शरीर, वाणी व मन का संयम व निरोध करना ही ध्यान है। ध्यान के चार भेद कहे गए है– आर्त, रौद्र, धर्म व शुक्ल। आर्त और रौद्र अशुभ ध्यान होते है व धर्म और शुक्ल शुभ ध्यान। किसी प्रिय के वियोग से मोह होना अशुभ व अमोह की साधना शुभ होती है। मोह का संयोग व उससे प्रभावित हो जाना अशुभ ध्यान होता है। हम अशुभ भाव से बचने का व शुभ में रमण करने का प्रयास करें।


गुरुदेव ने आगे कहा कि उपदेश देना एक बात व उसका अनुपालन कर जीवन में उतारना दूसरी बात है। कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए। जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है जब प्रिय का वियोग व अप्रिय का संयोग मन के लिए कष्टकारक होता है। इस कष्ट को आध्यात्म यात्रा व अंतरयात्रा से कम किया जा सकता है। हम ध्यान से वीतरागता की ओर प्रस्थान करने क प्रयास करें व ध्यान हमारे आत्म कल्याण का हेतु बने। भाव क्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार व मित भाषण के प्रयोगों द्वारा ध्यान की साधना में आगे बढ़ा जा सकता है। 


प्रसंगवश आचार्यश्री ने कहा आज हमारा सायला में आना हुआ है। यहां के श्रद्धालुओं में अध्यात्म की चेतना बढ़ती रहे। और जितना हो सके धर्म आराधना का क्रम चले मंगलकामना। 


स्वागत के क्रम में श्री चंद्रशेखर सालेचा, सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, श्रीमती लीलादेवी सालेचा, किरण चारण, विद्यालय प्रिंसिपल हरिराम जी ने वक्तव्य द्वारा गुरुदेव का स्वागत किया। सालेचा परिचर की बहनों ने गीत का संगान किया। जसोल ज्ञानशाला से समागत ज्ञानार्थियों ने नियंठा दिग्दर्शन गीत पर प्रस्तुति दी।

सोमवार, फ़रवरी 06, 2023

विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है - आचार्य महाश्रमण


06.02.2023, सोमवार, बावतरा, जालौर (राजस्थान), अपनी अहिंसा यात्रा द्वारा नेपाल, भूटान एवं भारत के 23 राज्यों में पदयात्रा कर नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जालोर जिले में सानंद गतिमान है। बाड़मेर जिले को पावन बना अब आचार्यश्री जिरावला पार्श्वनाथ तीर्थ एवं आबूरोड की ओर प्रवर्धमान है। आज प्रातः शांतिदूत ने जीवाणा ग्राम से मंगल विहार किया। जीवाणावासी पुज्यप्रवर का पावन प्रवास पाकर कृतार्थता का अनुभव कर रहे थे। विहार मार्ग में जगह–जगह स्थानीय ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। विहार के दौरान आज तीव्र धूप मौसम के परिवर्तन का संकेत दे रही थी। लगभग 09 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बावतरा ग्राम में पधारे। इस मौके पर स्थानीय ठाकुर भगतसिंह जी एवं ग्रामीणों के निवेदन पर पुज्यश्री रावले में पधारे एवं ठाकुर परिवार को आशीष प्रदान किया। तत्पचात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। ग्राम सरपंच श्री पारस राजपुरोहित एवं विद्यालय के शिक्षकों सहित विद्यार्थियों ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। 


मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा – विद्यालय एक ऐसा ज्ञान का मंदिर है जहां ज्ञान का आदान प्रदान होता है। विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करे वह उनके जीवन में आचरित हो यह अपेक्षा है। बच्चे ही बड़े बनकर देश की बागडोर सँभालने वाले बनते है, देश का भविष्य होते है। विकास के लिए चार मुख्य बिंदु अपेक्षित होते हैं – शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास, मानसिक विकास व भावनात्मक विकास। इनके साथ–साथ आध्यात्मिकता का विकास भी हो, अध्यात्म विद्या भी जीवन में आए। विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है। 


गुरुदेव ने आगे एक कथा के माध्यम से प्रेरित करते हुए कहा कि व्यक्ति जीवन व्यवहार में अनेक प्रकार की प्रवृत्तियां करता है। खाना, पीना, सोना, चलना, कोई कार्य करना जैसी अनेकों प्रवृत्तियां है। इन प्रवृत्तियों में धर्म का भी समावेश भी हो। कर्म धर्मयुक्त बने। जीवन में स्वअनुशासन आए। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है, स्वतंत्र देश है। पर स्वतंत्रता का मतलब उषृंखलता नहीं होता। व्यक्ति दूसरों पर अधिकार करने की सोचता है उससे पूर्व खुद का खुद पर अधिकार है या नहीं ये ध्यान दे। जीवन में धर्म व अनुशासन का अंकुश हो तो प्रगति की दिशा सही हो सकती है। 


विद्यार्थियों ने लिया नशामुक्ति का संकल्प

कार्यक्रम में आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों एवं ग्रामीणों ने नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार करते हुए आजीवन नशामुक्ति का संकल्प लिया। इस अवसर पर ठाकुर श्री भगतसिंह जी एवं विद्यालय के प्रिंसिपल श्री गणेशाराम चौधरी ने शांतिदूत के स्वागत में अपने विचार रखे। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति अहमदाबाद के पदाधिकारियों ने स्मृति चिन्ह विद्यालय प्रिंसिपल को भेंट किया।


रविवार, फ़रवरी 05, 2023

व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो - आचार्य महाश्रमण


05.02.2023, रविवार, जीवाणा, जालौर (राजस्थान), अपनी पदयात्राओं द्वारा देश–विदेशों में परिभ्रमण कर जन-जन में नैतिक मूल्यों की चेतना को जागृत करने वाले तेरापंथ प्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज जीवाणा में मंगल पदार्पण हुआ। जालौर जिले में गतिमान आचार्यश्री ने प्रभात वेला में सिराणा से मंगल विहार किया। मार्ग में कई स्थानों पर स्थानीय ग्राम वासियों को आचार्यप्रवर का पावन आशीष प्राप्त हुआ। सड़क मार्ग के दोनों और अनार, अरंडी, आदि के विस्तृत खेत नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। ज्ञात हुआ कि यहां अनार की काफी प्रचुरता है तथा भारत में अनार की मंडी के रूप में तीसरे स्थान पर यह स्थान पहचाना जाता है। स्टेट हाईवे संख्या 16 पर गतिमान आचार्य श्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर जीवाणा ग्राम में पधारे। इस अवसर पर स्थानीय जैन समाज  के श्रद्धालु ही नहीं अपितु सकल ग्रामवासी आचार्यवर का जयनारों से स्वागत कर रहे था। श्री बायोसा आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय में आचार्य प्रवर का प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।

स्कूल प्रांगण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री ने कहा - मनुष्य इस दुनिया का श्रेष्ठ प्राणी है। मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जहां से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जहां केवलज्ञान प्राप्त हो सकता है और साधना के द्वारा 14 वां गुणस्थान फिर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु व्यक्ति पाप ज्यादा करें तो पतन में भी गिर सकता है, नरक में भी जा सकता है। मनुष्य बहुत बढ़िया कार्य कर सकता है, तो बहुत घटिया कार्य भी कर सकता है। भीतर हिंसा के है तो अहिंसा के भाव भी देखने को मिलते है। व्यक्ति में निष्ठुरता है तो दया के भाव भी होते हैं। अच्छाइयां होती है तो बुराइयां भी मिल जाती है। आवश्यकता इस बात की है की व्यक्ति हिंसा से, बुरे कार्यों से बचने का प्रयास करें।

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो तो वह अपने जीवन में आगे बढ सकता है। अंधकार से प्रकाश की ओर मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। अज्ञान का अंधकार हमारे भीतर ज्ञान को कम कर देता है। अज्ञानी आदमी कभी भी हित–अहित, विवेक–अविवेक को समझ नहीं सकता। ज्ञान रूपी तलवार द्वारा अज्ञान को छिन्न किया जा सकता है। जीवन को ज्ञान द्वारा प्रकाशित करने का प्रयास करे यह काम्य है। 

इस अवसर पर पंजाब के गोविंदगढ़ से चातुर्मास संपन्न आज गुरु दर्शन करने वाली साध्वी प्रसन्नयशा जी ने गुरुदेव के समक्ष अपने विचार  रखे। 

तत्पश्चात जीवाणा आदर्श विद्या स्कूल के प्रधानाचार्य इंदरसिंहजी ने स्वागत वक्तव्य दिया। श्री धीरज गोलेछा, सोहनलालजी कोठारी (रिछेड़) ने भी गुरुदेव के समक्ष अपने विचार रखें। पूज्य चरणों में 'बढ़ते कदम' पुस्तक का विमोचन किया गया।

शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2023

इस जन्म के साथ अगले जन्म के बारे में भी चिंतन करे - आचार्य महाश्रमण


03.02.2023, शुक्रवार, अरणियाली, बाड़मेर (राजस्थान), पाव–पाव चल गांव, नगर, शहरों में नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की ज्योत जलाने वाले अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अरणियाली ग्राम में मंगल पदार्पण हुआ। प्रातः आचार्य श्री ने सिणधरी से मंगल विहार किया। लगभग 15 किलोमीटर विहार कर गुरुदेव राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय अरणियाली में प्रवास हेतु पधारे। बाड़मेर जिले के पश्चात अब उत्तर गुजरात की ओर अग्रसर गुरुदेव का आगामी कुछ दिन का जालोर जिला क्षेत्र में संभावित है। बायतु मर्यादा महोत्सव के पश्चात आचार्यवर की यात्रा अब गुजरात की ओर प्रवर्धमान है। 


अरणियाली में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान ने कहा –यह मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है। चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करते हुए यह मनुष्य जीवन दुबारा कब मिलेगा, यह कोई नहीं जानता। अभी तो यह हमें आसानी से उपलब्ध है इसे यूं ही गंवा देना भारी भूल है। संसार में सभी तो साधु नहीं बन सकते, ऐसे में गृहस्थ जीवन में रहकर भी जो आत्मस्थ, तटस्थ व मध्यस्थ रह सकता है, वह स्वयं के आत्म कल्याण के पथ को प्रशस्त कर सकता है। मनुष्य जन्म एक प्रकार का वृक्ष है, जिस वृक्ष में सुंदर फल होते है, हितकर फल होते है उसकी उपयोगिता होती है। 


आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस मनुष्य जन्म रूपी वृक्ष में हम छह प्रकार के फल लगाने का प्रयास करें। पहला है जिनेन्द्र-पूजा। अर्थात राग-द्वेष से मुक्त वीतराग भगवान की पूजा करें, उनकी स्तुति करे भक्ति करे। दूसरा फल है गुरु पर्युपासना। जो कंचन व कामिनी के त्यागी है ऐसे गुरुओं की सेवा उपासना करे। तीसरा सत्वानुकंपा यानी सब प्राणी मात्र के प्रति दया व करुणा के भाव रहे व किसी को भी कष्ट न दें। चौथा सुपात्रदान, अर्थात त्यागी साधुओं को शुद्ध दान दें। पांचवा गुणों के प्रति हमारे मन में अनुराग व प्रेम के भाव रहें। अनुराग व्यक्ति की अपेक्षा गुणों से होना चाहिए व गुण किसी में भी हो हमें उसका सम्मान करना चाहिए यह गुणानुराग हो। छठा श्रुतिरागमस्य, अर्थात आगम वाणी व शास्त्रों की वाणी का श्रवण करो। हम मनुष्य जीवन को इन छह फलों के द्वारा सुफल एवं सफल कर सकते है। इस जन्म के साथ अगले जन्म के बारे में भी चिंतन करे। 


विद्यालय के प्रिंसिपल श्री माधाराम जी ने आचार्य श्री के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। अहमदाबाद प्रवास व्यवस्था समिति से संबद्ध व्यक्तियों द्वारा प्रिंसिपल को अणुव्रत नियम पट्ट एवं साहित्य प्रदान किया गया।

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2023

व्यक्ति जितना स्वाध्याय करता है, ज्ञान की आराधना करता है, उतना ही ज्ञान पुष्ट बनता है - युगप्रधान आचार्य महाश्रमण



02.02.2023, शुक्रवार, सिणधरी, बाड़मेर (राजस्थान), अपनी पावन ज्ञानमयी वाणी से जनमानस के अज्ञान रूपी अंधकार को हरने वाले महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अपनी धवल सेना के साथ सिणधरी में मंगल पदार्पण हुआ। तेरापंथ शिरमौर के सिणधरी पदार्पण से स्थानीय जैन समाज में विशेष उत्साह, उमंग दिखाई दे रहा था। इससे पूर्व प्रातः आचार्यश्री ने कमठाई ग्राम से मंगल विहार किया। गत रात्रि ग्रामवासियों को आचार्यप्रवर का पावन आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। लगभग 09 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सिणधरी के नवकार विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे।



मंगल प्रवचन में अमृत देशना देते हुए गुरुदेव ने कहा– हमारे जीवन में ज्ञान का बड़ा महत्व है और ज्ञान प्राप्ति का एक उपाय है स्वाध्याय। व्यक्ति जितना स्वाध्याय करता है, ज्ञान की आराधना करता है, उतना ही ज्ञान पुष्ट बनता है। स्वाध्याय ज्ञान प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है। स्वाध्याय करने के बाधक तत्वों में पहली बाधा है – ज्यादा नींद लेना अथवा नींद को बहुमान देना। नींद अपेक्षित हो सकती है पर उसमें ज्यादा रस लेना व आवश्यकता से ज्यादा नींद लेना उचित नहीं। ज्ञान प्राप्ति की दूसरी बाधा है मनोरंजन में अधिक रस लेना। इसी प्रकार तीसरी गपशप में समय बर्बाद करना। अगर मनोरंजन और इधर उधर की बातों में समय लग जायेगा तो स्वाध्याय में बाधक बन सकता है। इन बाधक तत्वों से बचने का प्रयास करना चाहिए।


आचार्य श्री ने आचार्य भद्रबाहु एवं स्थुलिभद्र के दृष्टांत का वर्णन करते हुए कहा की स्वाध्याय के वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा व धर्मकथा के स्वाध्याय के पांच प्रकार है। अध्यापन, पुनरावर्तन से कंठस्थ किया हुआ ज्ञान विस्मृति में नहीं जाता, पुष्ट बन जाता है। वर्तमान में विद्या संस्थानों में विद्यार्थी पढ़ाई करते है। उनमें ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास हो। बालपीढ़ी संस्कारवान बने य अपेक्षित है। 

प्रसंगवश पूज्यप्रवर ने कहा कि आज हमारा सिणधरी के नवकार विद्यालय में आना हुआ है। यहां के बच्चों में जैनत्व के संस्कार भी आते रहे। जैन समाज में धर्म आराधना का क्रम निरंतर चलता रहे।


मंगलवार, जनवरी 17, 2023

नैतिकता से महके मानव जीवन - आचार्य महाश्रमण


फलसुंडवासियों पर बरसी गुरुकृपा, एक दिवस पूर्व ही युगप्रधान का मंगल पदार्पण


18 कि.मी. प्रलम्ब विहार कर मुख्यमुनि की जन्मस्थली फलसुंड पधारे ज्योतिचरण


17.01.2023, मंगलवार, फलसुंड, जैसलमेर (राजस्थान), मंगलवार का दिन आज फलसुंडवासियों के लिए मंगल ही मंगल लेकर आया। जब युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का निर्धारित दिवस से एक दिन पूर्व ही फलसुंड में धवल सेना संग पावन पदार्पण हुआ तो वर्षों से आराध्य के आगमन को प्रतीक्षारत श्रद्धालु श्रावक–श्राविकों का हर्ष हिलोरे लेने लगा। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज प्रातः जाखड़ ग्राम से मंगल विहार किया। 5-6 डिग्री सेल्सियस तापमान के सर्द मौसम में आमजन जहां घरों से बाहर निकलने से पहले कई बार सोचते है, ऐसे में जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध गुरुदेव सदा की भांति समत्व भाव से पदयात्रा के साथ गतिमान हुए। रेतिले धोरों की मरुधरा पर बाड़मेर जिले से जैसलमेर जिले में गुरुवर का प्रवेश हुआ। लगभग 12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री मानासर के राजकीय विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे। इस दौरान ग्रामवासियों से श्रद्धा भावों से शांतिदूत का स्वागत किया।


पूर्व निर्धारित यात्रा पथ के अनुसार धवल सेना का फलसुंड पदार्पण 18 जनवरी को संभावित था, किन्तु फलसुंडवासियों की तीव्र भावना एवं भक्ति भाव भरे निवेदन पर गुरुदेव ने स्वीकृति प्रदान की और मुख्यमुनि श्री महावीरकुमार जी की जन्मभूमि फलसुंड पर अनुग्रह कर आज ही पधारने की घोषणा की। लगभग 10 वर्ष पूर्व सन् 2012 में आचार्यश्री महाश्रमण फलसुंड में पधारे थे उस समय चार दिवसीय प्रवास यहां प्रदान किया था। तब मुख्यमुनि सामान्य मुनि अवस्था में थे। वर्तमान में मुख्यमुनि बनने के पश्चात अपनी जन्मभूमि पर आचार्यप्रवर के साथ उनका प्रथम बार यह आगमन हुआ है। एक दिवसीय अतिरिक्त प्रवास पाकर क्षेत्रवासियों का उल्लास द्विगुणित हो गया। मध्याह्न में लगभग 6 कि.मी. का विहार कर आचार्यप्रवर फलसुंड में श्री सवाईचंदजी कोचर के निवास स्थान पर रात्रि प्रवास हेतु पधारे।


मंगल प्रवचन में उद्बोधन देते हुए आचार्यश्री ने कहा- दुनियां में अनेक प्रकार के पाप बताए गए हैं। जैन धर्म में 18 प्रकार के पापों का वर्णन आता है। जिनमें अदत्तादान पाप तीसरा पाप है। अदत–आदान अर्थात जो नहीं दिया गया उसको लेना, चोरी करना। पराया धन तो धूलि के समान होता है। व्यक्ति को किसी दूसरे की वस्तु को हडपने का प्रयास नहीं करना चाहिए। साधु महाव्रती होते है उनके सर्व प्रकार की चोरी का त्योग होता है। गृहस्थ भी बड़ी चोरी से बचने का प्रयास करे और जितना संभव हो सूक्ष्म चोरी से भी बचे। जीवन में ईमानदारी, नैतिकता की सौरभ से महके यह जरुरी है। 


शांतिदूत ने एक कथा के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि चोरी के दो मुख्य कारण हो सकते है - अभाव और लोभ। बेरोजगारी, अभाव, गरीबी में आकर व्यक्ति चोरी की दिशा में बढ सकता है। इसी प्रकार लालच भी चोरी का एक बड़ा कारण है। व्यक्ति इन सबसे बचने का प्रयास करे। मनोबल के द्वारा और साधु, संतों की संगति में त्याग आदि ग्रहण कर व्यक्ति अदत्तादान पाप से बच सकता है।


कार्यक्रम में आचार्यप्रवर की प्रेरणा से ग्रामवासियों ने नैतिकता एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। फलसुंड की ग्रामीण बहनो ने गीत के द्वारा अपनी भावनाएं रखी।


मंगलवार, दिसंबर 20, 2022

भौतिकता पर रहे आध्यात्मिकता का अंकुश : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

 


20.12.2022, मंगलवार, कुड़ी, जोधपुर (राजस्थान), जनकल्याण के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में कांकाणी से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर कुड़ी स्थित जिनेट प्रा. लि. में पधारे तो जोधपुर के श्रद्धालुओं व जिनेट आफिस के कार्यकर्ताओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत अभिनंदन किया। आचार्यश्री ने जिनेट के परिसर में श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान कर अल्पकालीन प्रवास पुनः भक्तों की भावनाओं को देखते हुए सान्ध्यकालीन विहार किया। आचार्यश्री श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि करते हुए लगभग छह किलोमीटर का सान्ध्यकालीन विहार कर कुड़ी भक्तासिनी हाउसिंग बोर्ड के सेक्टर नम्बर दो में स्थित श्री मर्यादा कोठारी के निवास स्थान में पधारे। जहां नगरवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ। श्रद्धालुओं की भावनाओं को स्वीकार करते हुए अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने एक दिन में कुल लगभग 22 किलोमीटर का विहार किया। 


जिनेट में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ ने एक ही जन्म में भौतिक जगत के सबसे सर्वोच्च पद चक्रवर्ती को भी प्राप्त किया और भौतिक जगत का परित्याग किया तो अध्यात्म जगत के सर्वोच्च पद तीर्थंकर पद को भी प्राप्त कर लिया। अध्यात्म के समक्ष भौतिकता की बात बौनी-सी बात होती है। गृहस्थ के पास संपदा का भण्डार हो सकता है, किन्तु संयम रत्न के समक्ष उसकी समस्त सम्पदाएं मानों तुक्ष-से होते हैं। धन तो इसी जीवन में उपयोेग में आ सकता है, किन्तु संयम रूपी रत्न आगे भी काम आ सकता है। 


गृहस्थों को भौतिक संपदाओं के विकास पर अध्यात्मिकता का अंकुश लगाए रखने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन को चलाने के लिए भौतिक विकास की आवश्यकता होती है, किन्तु संपदा के अर्जन में नैतिकता, प्रमाणिकता रहे, तो संपदा के अर्जन में अध्यात्म का अंकुश रह सकता है। अर्थाजन में अहिंसा, संयम और प्रमाणिकता रहे तो शुद्धता की बात हो सकती है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने भी जनता को अभिप्रेरित किया। 


आचार्यश्री के आगमन से हर्षित जिनेट के ऑनर श्री सुरेन्द्र पटावरी (बेल्जीयम) व श्री संदीप पटावरी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। जिनेट ऑफिस की महिला टीम व राकेश सुराणा के नेतृत्व में पुरुष टीम ने स्वागत गीत का संगान किया। सुश्री खुशी चौपड़ा व श्रीमती मनोनिका चोरड़िया ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। ऑफिस के सदस्यों ने आचार्यश्री से कार्यालय समय के दौरान आधा घण्टा तक मोबाइल का यूज न करने का संकल्प स्वीकार किया। 


प्रलम्ब विहार, मंगल प्रवचन के बाद भी भक्तों की भावनाओं को स्वीकार करते हुए अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अल्पसमय का विश्राम कर पुनः सान्ध्यकालीन विहार को गतिमान हुए। आचार्यश्री के दर्शन को उमड़े श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति से अनायास ही भव्य जुलूस-सा दृश्य उपस्थित हो गया। आचार्यश्री लगभग छह किलोमीटर का विहार कर कुड़ी भक्तासिनी हाउसिंग बोर्ड के सेक्टर दो में स्थित कोठारी परिवार के निवास स्थान में पधारे, जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। 


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सोमवार, जुलाई 11, 2022

अर्हतों के अनुभवों का सार है आगम : युगप्रधान आचार्य महाश्रमण


 

छापरवासियों को प्रतिकूल परिस्थति में भी मानसिक शांति बनाए रखने की दी पावन प्रेरणा

आसपास के क्षेत्रों से गुरु सन्निधि में चतुर्मास करने पहुंच रहीं हैं चारित्रात्माएं

11.07.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान) , जैन आगमों में विभिन्न विषयों से संबंधित वर्णन प्राप्त होता है। हालांकि आगम आम आदमी के समझ में न भी आए, क्योंकि इसकी भाषा प्राकृत या अर्धमागधी है। आगमों की वाणी का अर्थ उसके हिन्दी अनुवाद अथवा टिप्पण आदि के माध्यम से जाना जा सकता है। जैन धर्म में बत्तीस आगम मान्य हैं। परम पूज्य आचार्य तुलसी के समय में आगम सम्पादन का कार्य प्रारम्भ हुआ था। इस कार्य में आचार्य महाप्रज्ञजी का कितना श्रम लगा। लगभग सभी आगमों के मूल पाठ के संपादन का कार्य तो गया, अब उनका अनुवाद, टिप्पण और परिशिष्ट आदि का कार्य आज भी गतिमान है। आगमों से अनेक विषयों का वर्णन मिलता है। सृष्टि, संसार की जानकारी मिलती है। अध्यात्म की साधना में क्या करणीय और क्या अकरणीय का ज्ञान प्राप्त होता है।

हमारे यहां नवदीक्षित साधु-साध्वियां दसवेंआलियं ग्रन्थ को कंठस्थ करते हैं। इस आगम के माध्यम से साधुचर्या का प्रशस्त मार्गदर्शन प्राप्त होता है। साधु को कैसे बोलना, किसी प्रकार गोचरी करना, विनय करना, साधुओं के पंच महाव्रत व हिंसा से बचने का वर्णन भी इस छोटे-से ग्रंथ से प्राप्त हो जाता है। साधु के लक्षण को जानने के लिए यह ग्रन्थ आदर्श है। आगमों में कितना तत्त्वज्ञान भरा हुआ है। ज्ञान के संदर्भ में नंदीसूत्र को देखा जा सकता है। इस प्रकार आगमों से विविध विषयों के संदर्भ में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए मानों यह कहा जा सकता है कि अर्हतों के अनुभवों का सार है आगम। इसलिए आगमों अध्ययन आदि करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान की प्राप्ति कर अपने जीवन को मोक्ष की दिशा में ले जाने का प्रयास कर सकता है। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने छापर चतुर्मास प्रवासस्थल में बने भव्य में एवं विशाल प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि यह संसार अनित्य है और यह जीवन अधु्रव है। यहां की दुःख की बहुलता है। जीवन में अनेक रूपों में दुःख प्राप्त होता है। कभी शारीरिक तो कभी मानसिक दुःख प्राप्त होता है। इसलिए आदमी आगमों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कर अपने मन में शांति बनाए रखने और चित्त को प्रसन्न बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की दुर्गति से बचने के लिए आदमी को सत्संगति के माध्यम से ज्ञानार्जन कर अपने जीवन को परमसुख अर्थात् मोक्ष की दिशा में जाने का प्रयास करे।

तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टामाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि में वर्ष 2022 के चतुर्मास हेतु पधारे आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आसपास के क्षेत्रों की चारित्रात्माएं भी गुरुकुलवास में चतुर्मास हेतु उपस्थित हो रही हैं। कार्यक्रम के दौरान बीदासर से साध्वी साधनाश्रीजी व साध्वी अमितप्रभाजी ने अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ दर्शन कर हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने साध्वियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के दर्शन कर साध्वियां हर्षविभोर नजर आ रही थीं।

कार्यक्रम में श्री झंकार दुधोड़िया, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री श्री दिलीप मालू व श्रीमती तारामणि दुधोड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। गुवाहाटी व छापर की तेरापंथ महिला मण्डल, भ्राताद्वय श्री सुरेन्द्र-नरेन्द्र कुमार नाहटा, अणुव्रत समिति की महिला सदस्याओं व श्री राहुल बैद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।


साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

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गुरुवार, जून 16, 2022

सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त हो जीवनशैली: शांतिदूत आचार्य महाश्रमण


16.06.2022, गुरुवार, गंगाशहर, बीकानेर (राजस्थान), गंगाशहर में भले ही जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का चार दिवसीय प्रवास ही प्राप्त हुआ हो, लेकिन इन चार दिनों में बीकानेर की आम जनता से लेकर हर क्षेत्र के उच्च पदस्थ पदाधिकारियों, विद्वतजनों, लेखकों, न्यायाधीशों सहित देश की सीमा की सुरक्षा में जुटे जवानों को भी आचार्यश्री महाश्रमणजी से मानवीय मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हो गया। इसमें भी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का अद्वितीय श्रम दृष्टिगोचर हो रहा था। 


 बुधवार की रात लगभग नौ बजे प्रबुद्धजन सम्मेलन में बीकानेर क्षेत्र के संभागीय आयुक्त नीरज के. पवन, पुलिस महानिरीक्षक, जिला कलक्टर, न्यायाधीश, वाइस चांसलर, महाविद्यालयों के प्रोफेसर, वकील, साहित्यकार, चिकित्सक, वरिष्ठ पत्रकार, कला, संस्कृति तथा व्यापारिक वर्ग के वरिष्ठजनों ने आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर आचार्यश्री से पावन प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करने के साथ ही पावन आशीर्वाद भी प्राप्त किया। 


 वहीं दूसरी ओर गुरुवार को प्रातः लगभग साढ़े छह बजे ही बीएसएफ के 100 से अधिक जवान डीआईजी श्री पुष्पेन्द्र सिंह व सिविल एयरपोर्ट अधिकारी श्री अनिल शुक्ला के नेतृत्व में तथा मिडिया के लोग आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए समुपस्थित हुए। आचार्यश्री ने जवानों को पावन प्रेरणा प्रदान की और आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि कुमारश्रमणजी ने उन्हें ध्यान-योग के प्रयोग द्वारा अपने चित्त को शांत और एकाग्र बनाने की विधि बताई। 


 इसके कुछ ही समय बाद आचार्यश्री अपने प्रातःकाल भ्रमण के दौरान गंगाशहर के असक्त, अक्षम और वयोवृद्ध श्रद्धालुओं को दर्शन देने और नगरवासियों पर कृपा बरसाने लगे। कुछ समय बाद ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आज बीकानेर क्षेत्र के समस्त जैन समाज की ओर ‘जैन जीवनशैली’ विषय पर आचार्यश्री का विशेष व्याख्यान भी आयोजित था तो आचार्यश्री प्रातःकालीन भ्रमण सम्पन्न कर कुछ ही क्षणों के बाद प्रज्ञा समवसरण में पहुंच जनता को पावन पाथेय प्रदान किया। देर रात तक बीकानेर के विशिष्ट लोगों को प्रेरणा, प्रातःकाल सेना के जवानों का उत्साहवर्धन और उनके जीवन को उन्नत बनाने की प्रेरणा और फिर श्रद्धालुओं को दर्शन देने की कृपा के बाद पुनः व्याख्यान में श्रद्धालुओं के मानस को अभिसिंचन प्रदान करना वह भी बिना रूके, बिना थके, बिना विश्राम किए। भला इससे अच्छा सोदाहरण महातपस्वी महाश्रमण के महाश्रम का और क्या हो सकता है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर रखा हो। आचार्यश्री के महाश्रम को देख केवल तेरापंथ ही नहीं, बीकानेर का जन-जन बस यहीं कह रहा था -‘महातपस्वी महाश्रमण की जय हो, जय हो, जय हो। 


 बुधवार की रात को आयोजित प्रबुद्धजन सम्मेलन में उपस्थित बीकानेर जिले के सभी वरिष्ठ लोगों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने अपनी बुद्धि को शुद्ध करने और बुद्धि द्वारा समस्या पैदा करने नहीं, समस्याओं के समाधान में नियोजित करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त उपस्थित विशिष्ट महानुभावों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने मन की जिज्ञासाओं को अभिव्यक्त किया तो आचार्यश्री ने सभी की जिज्ञासाओं का समाधान प्रदान किया। जिज्ञासा-समाधान का क्रम मानों कुछ तरह चल रहा था जैसे गुरुकुल में शिष्य अपने गुरु से अपनी जिज्ञासा करते हैं और सुगुरु उनकी जिज्ञासाओं को समाहित कर उन्हें आत्मतोष प्रदान करते हैं। कार्यक्रम के शुभारम्भ में तेरापंथी सभा-गंगाशहर के आयोजन प्रभारी श्री लूणकरण छाजेड़ ने स्वागत वक्तव्य दिया। मुनिकुमारश्रमणजी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी और अहिंसा यात्रा के विषय में जानकारी दी। श्री महावीर रांका ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में संभागीय आयुक्त श्री नीरज के. पवन के अलावा न्यायाधीश श्री महेश शर्मा, पत्रकार श्री हेम शर्मा, डॉ. सुधा आचार्य, बाफना अकादमी के सीइओ श्री पी.एस. बोहरा, कैरियर काउन्सलर श्री चन्द्रशेखर श्रीमाली व महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के सचिव श्री बिट्ठल बिस्सा ने अपनी जिज्ञासाएं प्रस्तुत कीं। इसके उपरान्त कार्यक्रम में पुलिस महानिरीक्षक श्री ओमप्रकाश, जिला कलक्टर श्री भगवती प्रसाद कलाल, एसडीएम श्री पंकज शर्मा, आयकर अधिकारी श्री प्रमोद के. देवड़ा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री विनोद कुमार, वृत्ताधिकारी श्री दीपचन्द, वास्तुविज्ञ श्री आर.के. सुथार, शिक्षाविद् डॉ. पन्नालाल हर्ष, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के डॉ. गिरिराज हर्ष, लॉयन एक्सप्रेस के पत्रकार श्री हरीश बी शर्मा, खबर एक्सप्रेस के श्री हेम शर्मा, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र पाल, एडवोकेट श्री अजय पुरोहित, लेखक डॉ. अजय जोशी, कवि श्री गिरिराज पारीक, श्री राजाराम स्वर्णकार, पूर्व महापौर श्री नारायण चौपड़ा, कार्डियोलॉजी विभाग के डा. श्री पिन्टू नाहटा, गैस्ट्रोलॉजी विभाग के डॉ. सुशील फलोदिया, सर्जन डा. संजय लोढ़ा, चिकित्सक होमियोपैथिक विभाग डा. चारूलाल शर्मा, प्राइवेट स्कूल ऐसोसिएशन राजस्थान (पेपा) के अध्यक्ष श्री गिरिराज खैरीवाल, प्राचार्य श्री प्रदीप लोढ़ा, अखिल भारतीय अल्पसंख्य आयोग के श्री सलीम भाटी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के श्री टेकचन्द बरड़िया, श्री राजेन्द्र अग्रवाल, सी.बी.एस. अस्पताल के डा. श्री एन.के.दारा, भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के एएसपी श्री रजनीश पुनिया, कार्डियोलाजिस्ट डा. आर.एल. रांका, नेत्र रोग विभाग के डा. जीसी जैन के अलावा अनेकों लेखन, कला, साहित्य, नाट्य, उद्योग, शिक्षा, व प्रशासनिक कार्यों से जुड़े विशिष्ट महानुभावों की उपस्थिति रही। उपस्थित सभी महानुभावों को साहित्य आदि से सम्मानित किया गया। 


 गुरुवार को प्रातः बीएसएफ के जवानों व मिडियाकर्मियों के साथ आयोजित कार्यक्रम में आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त बीएसएफ के डीआईजी श्री पुष्पेन्द्र सिंह ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। मुनि कुमारश्रमणजी ने जवानों को ध्यान आदि का प्रयोग कराया। 


 गुरुवार को ‘जैनी जीवनशैली’ विषय पर आधारित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी जीवन जीता है, किन्तु कलापूर्ण जीवन जीना महत्त्वपूर्ण बात होती है। जीवनशैली को अच्छा बनाने के लिए पहले जीवन में लक्ष्य का निर्धारण हो और फिर उसके अनुरुप सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए। विचार से लेकर आहार तक में विशुद्धि रखने का प्रयास हो तो ‘जैनी जीवनशैली’ की बात सार्थक हो सकती है। हिंसा से बचना, भोजन में मांसाहार का सर्वथा त्याग, नशा से मुक्तता ‘जैनी जीवनशैली का महत्त्वपूर्ण अंग है। 


 कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने अपना उद्बोधन दिया। अपनी जन्मभूमि में मुनि राजकुमारजी, समणी जयंतप्रज्ञाजी व समणी सन्मतिप्रज्ञाजी ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। मूर्तिपूजक समाज की ओर से तथा जैन महासभा के मंत्री श्री सुरेन्द्र जैन, स्थानकवासी समाज की ओर से श्री मोहन सुराणा, दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष श्री विनोद जैन, जैन महासभा के अध्यक्ष व जैन श्वेताम्बर तेरापंथी समाज की ओर से श्री लूणकरण छाजेड़ व तेरापंथी सभा-बीकानेर के मंत्री श्री रतनलाल छल्लाणी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला-गंगाशहर के ज्ञानार्थियों ने जैन ध्वज के साथ मार्च पास्ट करने के उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष ‘महाश्रमण अष्टकम्, भक्तामर, प्रतिक्रमण आदि की भावूपर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय-बीकानेर की शोधार्थिनी डा. मेघना व्यास ने आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित पुस्तक ‘रत्नपालचरितम्’ः एक समीक्षात्मक अनुशीलन शोध की पुस्तक पूज्यचरणों में समर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 


मंगलवार, जनवरी 04, 2022

आत्मा की शुद्धि के लिए ऋजुता आवश्यक - आचार्य महाश्रमण

 

04.01.2022, मंगलवार, बोराज, जयपुर (राजस्थान), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजस्थान की रेतीली धरती पर ज्ञान की गंगा बहाते हुए निरंतर गतिमान हैं। इस निर्मल गंगा से अब तक राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़ जिले के साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर भी पावनता को प्राप्त हो चुकी है। ग्यारह दिवसीय संघ प्रभावक जयपुर प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में गतिमान हैं। मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ देहमी कलां स्थित मणिपाल विश्वविद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। ठंड के मौसम में जहां लोग गर्म कपड़ों से ढंके होने के बावजूद भी बाहर निकलने पर आग का सहारा लेते दिखाई दे रहे थे वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना को और जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने के लिए महातपस्वी महाश्रमण गतिमान थे। रास्ते में अनेकानेक लोगों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से पावन बनाते आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर बोराज गांव में पधारे। ग्राम्यजनों तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल, शिक्षक व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री भव्य स्वागत किया। 

 विद्यालय परिसर के एक कमरे से आचार्यश्री ने वर्चुअल रूप में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? निर्वाण का अर्थ मोक्ष भी हो सकता है, किन्तु कभी-कभी एकार्थक शब्दों में गहराई में जाने पर कुछ सूक्ष्म भिन्नता भी प्राप्त हो सकता है। निर्वाण प्राप्ति की बात की जाए तो जिस आदमी के भीतर धर्म हो अर्थात् धर्मवान मनुष्य निर्वाण को प्राप्त हो सकता है। एक प्रश्न और हो सकता है कि धर्मवान कौन होता है अथवा धर्म किस आदमी के भीतर हो सकता है तो उसका उत्तर यह होगा कि जिस आदमी की आत्मा शुद्ध हो व धर्मवान होता है। पुनः एक प्रश्न हो सकता है आत्मा शुद्ध कैसे हो? इसका उत्तर होगा कि जो आदमी ऋजु अर्थात् सरल होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी के भीतर संयम, दया, शील, सत्य आदि की भावना हो तो आत्मशुद्धि की बात हो सकती है। जिस आदमी के भीतर छल-कपट हो, उसकी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती। 


सोमवार, दिसंबर 06, 2021

The basis of sinful deeds is anger and hatred: Acharya Mahashraman

Hundreds of people with former MLA Prahlad Gunjal accepted the resolution of non violence journey and received blessings 


06.12.2021, Monday, Kapren Station, Bundi (Rajasthan), Giving the message of humanity to human beings, the Jain Shvetambara Terapanth Dharmasangh Ekadashmadhishasta, the pioneer of non-violence journey, the shantidoot Acharyashree Mahashramanji, with his Dhaval army, wherever he goes, people get involved in his greetings. Acharyashree Mahashramanji on Monday morning at Mangal Bela, Arnetha departed for Mars, then the local villagers prayed with folded hands and Acharyashree blessed him with holy blessings. Whether the children coming on the way, the elderly and the young, whoever bowed down  on seeing the Akhand Parivrajak Acharya Shree.Acharya Shree was also moving towards the destination, showering blessings on everyone equally. When Acharyashree reached Kapren station village after visiting about 15 kms, people gave a grand welcome to Acharyashree with drums. Acharyashree came to the Government Secondary School premises located at Kapren station. 


In the main Mangal discourse program organized in the school premises, Acharyashree while providing holy inspiration to the devotees said that whatever sin a man commits, there is anger and hatred in the background. Whatever work a man does in the world is rooted in anger and hatred. That is why anger and aversion are also called seeds of actions. If there is no attachment or aversion, then a person should not commit any sin. A man kills someone, quarrels with someone, tells a lie, does some immoral act, he does it either out of passion or out of hatred. If there is a minimum of attachment and aversion within a person or the feeling of attachment and aversion ends, then a man can become a devotee of religion. Anger and hatred are the basis of sin. One should try to reduce anger and aversion through meditation, self-study, chanting and other religious practices. One should try to practice righteousness by reducing attachment and aversion and avoiding sins. 


After the main Mangal discourse program, under the leadership of former MLA Shri Prahlad Gunjal and local leader Rupesh Sharma, hundreds of people from Kapren, Ajanda, Jaljika Barana, Kodakia, Shirpura, Maija, Roteda, Radi and Arnetha appeared for Acharyashri's darshan and holy inspiration. In this way, it was as if a program was organized spontaneously in the Mangal Sannidhi of Acharyashree. Acharyashree while providing sacred inspiration to the people said that this human life is rare among 84 lakh creatures. Religion is the only difference between animal and human. A man who becomes religionless, he becomes like an animal.So there be development of righteousness in everyone's life. Giving information about Jainism, Sadhucharya, Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, Acharya tradition and non-violence journey, Acharyashree said that there should be goodwill towards all. There should be no conflict with anyone. In whatever work a man does, one should try to maintain morality, authenticity. One should try to lead a drug free life and try to make the present life good. On the call of Acharyashree, hundreds of people including former MLA Gunjal, who were present, accepted all the three resolutions of non-violence journey from Acharyashree and got blessings from him too.

Earlier, non-violence yatra spokesperson Muni Kumarshramanji presented the information about non-violence yatra. The former MLA, while giving his expression in the obeisance of Acharyashree, said that-"it is the utmost good fortune of all of us who have got the opportunity to see a great man like Acharyashree Mahashramanji, listen to his auspicious voice and get blessings from him. The hard work you are doing for the service of humanity is unique, it is benefiting the people. All our lives have become blessed with your inspiration and blessings."


Broadcaster : Jain Shwetambar Terapanth Mahasabha

रविवार, दिसंबर 05, 2021

Human should try to come out from the ocean of the world through religious practice - Acharya Mahashraman

With the inspiration of Acharya Shri, the villagers accepted the resolution of non-violence journey

 

05.12.2021, Sunday, Arnetha, Bundi (Rajasthan), The non-violence journey of Acharya Mahashraman which inspires humanity to human beings, awakens goodwill, morality and de-addiction among people, is currently moving in the border of Bundi district. Ahimsa Yatra under the able leadership of Acharya Shree Mahashramanji, the eleventh disciple of Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, is awakening the spirit of humanity in the new village of Bundi district. On Sunday, Mahatapasvi Acharyashree Mahashramanji, along with his non-violence journey, performed Mangal Vihar from Gamach village in the early morning hours. On the way, villagers of many villages were benefited by the darshan and blessings of Acharya Shree. Distributing blessings to everyone, motivating the people, Acharyashree visited the Government Higher Secondary School located in Arnetha village after traveling for about 16 kms, then the entire Arnetha including this school was attained to the holiness. Despite the school being a holiday on Sunday, today the whole school was full of local villagers and devotees. The villagers and the people associated with the school warmly welcomed and greeted Acharyashree. 


After midday, Acharyashree gave holy inspiration to the people of Arnetha with his auspiciousness and said that the human body is like a boat, the soul is its sailor and this world is like the ocean. Tyagi saints and Maharishi people submerge this world ocean. The householder can also try to float this ocean of the world through religious practice. If there is a body, then while doing spiritual practice with it, one should try to get absorbed. There may also be a tear-shaped hole in the boat of the body. Violence, theft, lies, anger, greed, etc. are those holes in the form of tears which fill the water of sin in the boat of human life, due to which this boat keeps sinking in the ocean of the world. Eighteen sins are mentioned in Jainism. One should try to make the boat of this body free from sinful activities. Efforts should be made to increase religion in one's life through the speech of saints, meditation of God, listening to his story etc. If the householders are good, virtues are developed in them, righteousness is developed in life, then this life can become one who can cross the ocean of the world and go on the path of welfare. 

After the Mangal discourse, Acharyashree gave information about Jain Sadhucharya and Ahimsa Yatra to a large number of villagers and called upon them to accept the resolutions of Ahimsa Yatra, while the villagers stood up and accepted the resolutions. Acharyashree gave them special inspiration and holy blessings to be free from addictions. With the arrival of Acharyashree, the entire school campus and the surrounding area had become like a fair. The villagers continued to be present throughout the day for the darshan of Acharyashree. He continued to get the benefit of Acharyashree's darshan and blessings as per the condition throughout the day.


Credits: Mahasabha Camp Office