गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

लेख प्रतियोगिता संघ विकाश में युवाशक्ति का योगदान

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा आयोजित लेख प्रतियोगिता संघ विकाश में युवाशक्ति का योगदान पर ५०० शब्दों में लेख लिख कर १८ जनवरी तक स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद् कार्यालय में या उपाशक पंकज दुधोडिया के पास जमा करा सकते है


जल्द कलम उठे
आपकी लिखे जल्द लेख
इंतजार में पंकज है
पाने आप का आलेख
पंकज दुधोडिया
9339514474

रविवार, दिसंबर 07, 2008

जय जिनेन्द्र,
South Howrah तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित प्रतेक शनिवार को सामाईक का आयोजन होता है । आप सभी उसका लाभ उठा कर अपने जीवन को मंगलमय बनाय।
पंकज दुधोडिया
9339514474

बुधवार, नवंबर 19, 2008

जय जिनेन्द्र,
दक्षिण कोलकाता तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित प्रतेक शनिवार को सामाईक का आयोजन होता है ।
आप सभी उसका लाभ उठा कर अपने जीवन को मंगलमय बनाय

मंगलवार, नवंबर 11, 2008

वक़्त करता कुछ दगा या तुम दगा करते कभी

वक़्त करता कुछ दगा या तुम दगा करते कभी
साथ चलते और तो हम भी बिछड़ जाते कभी
आजकल रिश्तों में क्या है , लेने देने के
सिवाखाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ वो आख़िरी था इम्तिहा
दो कदम मंज़िल थी तेरी काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज़ृ में जलते कभी
कल सिसक के हिन्दी बोली ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
आजकल मिट्टी वतन की रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

श्रद्धा जैन

सोमवार, नवंबर 10, 2008

मारवाडी शब्द को भुना रहे ठेकेदार

मारवाडी शब्द को भुना रहे ठेकदार
जैसे तैसे चल पड़े उनका भी कारोबार
उनका भी कारोबार, कि चिंता नही समाज की
मूल जाए गर्त में, पकडो चाबी ब्याज की।
सेठों के पकडो पैर, और उनसे साधो मतलब
झंडा ऊँचा रखो अपना, दिखा-दिखा के करतब।
दिखा दिखा के करतब, यारों परवाह किसकी करनी
थू-थू करे समाज चाहे, वाह-वाह ख़ुद ही करनी
कुछ तो शर्म करो, बेशर्मों , यह कॉम हमारी माता है
जिस्म इसी का, जान इसी की, माँ-बेटे का नाता है।
- श्री प्रकाश चंडालिया

राष्ट्रीय महानगर का सांध्य संस्करण नए जोश के साथ पुनः शुरू

कोलकाता. तेरापंथ समाज के तेजतर्रार युवा पत्रकार श्री प्रकाश चंडालिया के संपादन में निकलने वाले हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय महानगर का प्रकाशन नए जोश और तल्ख़ तेवरों के साथ फ़िर शुरू हो गया है। महानगर का प्रकाशन पिछले मई महीने में स्थगित कर दिया गया था। कम्पनी की योजना आक्रामक तेवरों वाले टैब्लोइड साप्ताहिक एवं सामाजिक पत्रिका प्रकाशित करने की थी. लेकिन इस दौरान महानगर के सांध्य संस्करण के हजारों पाठकों ने प्रबंधन पर दबाव बनाये रखा और नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रीय महानगर का सांध्य संस्करण ४ नवम्बर से फ़िर स्टैंड पर आ गया. जनसत्ता, संडे मेल जैसे अख़बारों में वर्षों तक खोजी पत्रकारिता कर चुके प्रकाश चंडालिया ने कोलकाता में सांध्य पत्रकारिता को नया आयाम दिया है. कई समाचारपत्रों में वे नियमित कालम लिखते रहे हैं. उनकी बेबाक लेखनी और आक्रामक तेवरों से राजनैतिक पार्टियों के नेता और बयान-बहादुर कर्मी बौखलाए रहते हैं. १९९९ में एक राष्ट्रीय पार्टी के गुंडों ने सांध्य अख़बार के दफ्तर में जबरदस्त तोड़फोड़ तक कर डाली थी. गैर हिन्दी भाषी प्रदेश में बगैर किसी औद्योगिक घराने और सरकारी विज्ञापनों के समर्थन के अखबार चलाना और बाकायदा १० वर्षों से पाठकों में लोकप्रिय बनाये रखना, कलम की धार का परिचय देता है. प्रकाश ने बताया कि पाठकों के दबाव के कारण फिलहाल साप्ताहिक संस्करण कि योजना स्थगित कर दी गई है, लेकिन सामाजिक विषयों पर आधारिक पत्रिका का प्रकाशन शीघ्र शुरू किया जाएगा.

'अणुव्रत' हमें सूक्ष्म से भी सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करता है।


सूर्य और अंधेरे की ताकत का इस बात से सहज ही अंदाज लगाया जा सकता हे कि दोनों एक दूसरे के समानान्तर कभी नहीं रहते। जबकि सूर्य को अपनी शक्ति से ही देदीप्यमान होना पड़ता है और अंधेरे के साथ प्राकृतिक ने हवा, पानी और बादलों को सहयोगी बना दिया। फिर भी पल भर का अन्तर नहीं रहता एक दूसरे आने-जाने में। प्रकाश का प्रवेश ही काफी होता है, अंधेरे को मिटाने के लिए। हाँ ! प्रकाश का बना रहना ही अंधेरे को हटाना कहा जा सकता है। आचार्यवर तुलसी जी इस पृथ्वी पर एक अखण्ड दीप के समान आलोकित महानआत्मा हैं जो हम सबके जीवन को ज्योतित करने के लिए अवतीर्ण लिए हैं।
आचार्यवर तुलसी जी इस पृथ्वी पर एक अखण्ड दीप के समान आलोकित महान आत्मा हैं जो हम सबके जीवन को ज्योतित करने के लिए अवतीर्ण लिए हैं। इस अखण्ड दीप का जलना इस बात का द्योतक है कि भले ही अंधकार कितना ही शक्तिशाली, बलवान, ताकतवर, क्रोधी या उद्दण्ड रहा है, भीतर से वह काफी कमजोर और डरपोक भी है, जो एक छोटे से दीप की टीमटीमाती लौ के सामने भी नहीं खड़ा रह पाता। इस अखण्ड दीप का जलना इस बात का द्योतक है कि भले ही अंधकार कितना ही शक्तिशाली, बलवान, ताकतवर, क्रोधी या उद्दण्ड रहा है, भीतर से वह काफी कमजोर और डरपोक भी है, जो एक छोटे से दीप की टीमटीमाती लौ के सामने भी नहीं खड़ा रह पाता। फिर भी हम अपने आपको उसके सामने समर्पित कर देते हैं।तेज हवा का झोंका आते ही या पानी की हल्की सी बूंदे भी इस जलती हुई लौ को अपने बांहों में भर कर उड़ा ले जाती है। पुनः अखण्ड दीप उसे बार-बार जलाती रहती है। यह क्रम संसार में चलता रहता है और चलता रहेगा। इसका दूसरा कोई विकल्प अभी तक नहीं हो पाया है। सूर्य का प्रकाशमान होना, छुप जाना, अंधेरे का संसार फैल जाना यह क्रम है जो हमारे जीवन का अब अंग सा बन चुका है। एक बात हमने अपने जीवन में भी अनुभव किया होगा जो व्यक्ति स्वयं को दिव्यमान कर लेते हैं दीप को सदैव जलाये रखते हैं, उनके मुखमंडल पर आभा की किरणें सदा झलकती रहती है। इसीप्रकार हमारे शास्त्रों में व्रत का महत्व है। व्रत भी एक प्रकार का प्रकाश है, जिसे अनैतिकता पर नैतिकता का विजय भी कहा जा सकता है। इस व्रत से भी महान व्रत है- 'अणुव्रत', अणुव्रत से हम सीधा सा अंदाज लगा सकते हैं कि हम सूक्ष्म से भी सूक्ष्म कारणों के निवारण या समाधान के लिये व्रत करें। जिसे आंतरिक या बाहरी दोनों रूप से किया जा सकता है। हमारे पास सब सुविधा रहते हुए भी हम भटकते रहतें हैं, जिसका समाधान 'अणुव्रत' से किया जा सकता है। जिस प्रकार हम 'अहिंसा' का अर्थ सिर्फ 'हिसा' से लगा लेते हैं, पर आत्मीय हिंसा, स्वःहिंसा, विचारों की हिंसा की ओर हमारा ध्यान कदापि नहीं जाता ।जबकि जैन धर्म में 'अणुव्रत' हमें सूक्ष्म से भी सूक्ष्म दृष्टि प्रदान कर हर प्रकार की हिंसा पर भी नियंत्रण करने का मार्ग दिखाती है। अणुव्रत की आचार संहिता नैतिकता की आचार संहिता है। उसे समझने के लिए अणुव्रत के दर्शन को समझना आवश्यक है। आचार्यवर तुलसी जी ने बहुत संक्षेप में अणुव्रत दर्शन के व्यापक कोण प्रस्तुत किए हैं -
" हमारी दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील ही नहीं होता, कुछ शाश्वत भी होता है। प्रकृति शाश्वत है। मनुष्य की प्रकृति भी शाश्वत है। उसमें आदतें हैं और उन आदतों के हेतु- क्रोध, मान, माया और लोभ आदि तत्त्व हैं। अच्छाई नई नहीं है, बुराई भी नई नहीं है। ये सब चिरकालीन हैं। केवल इनका रूप बदलता रहता है। फिर मनुष्य क्यों नहीं बदलता? अणुव्रत बदलने का दर्शन है। मनुष्य अपनी प्रकृति का निरीक्षण करे, उसे समझे और उसमें परिवर्तन लाने के लिए अभ्यास करे, अणुव्रत इसीलिए है।"
"तुलसी विचार दर्शन" में आचार्य महाप्रज्ञ जी ने लिखा है कि "आचार्य तुलसी का अर्थ है एक महान आत्मा, एक शब्दातीत आत्मा। महान का लघु में समावेश संभव नहीं होता, शब्दातीत को शब्दों में बांधना भी संभव नहीं होता। फिर भी शब्दों की दुनिया में जीता हूँ, इस लिए शब्दातीत को शब्दों में बांधने का प्रयत्न किया है।"
वैसे तो जैन धर्म को समझना बहुत साधना का कार्य है पर आचार्यवर तुलसी जी ने इसे इतने सरल शब्दों में परिभाषित कर जन-जन तक पहूँचा दिया। अणुव्रत के माध्यम से जैन धर्म को तो और व्यपकता प्रदान की है आपने। इस युगपुरुष गुरूवर आचार्य तुलसीजी को मेरे सादर प्रणाम।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी. -453/2, साल्ट लेक सिटी, कोलकाता- 700106

WELCOME

आप सब साथीयो का स्वागत है
आपको इस ब्लॉग का माध्यम से जान पायंगे
जैन धर्म की एक शाखा तेरापंथ धर्मसंघ
और
उस संघ से जुड़े हुए लोगो आलेख और उनके विचारो के बारे मे।
आप का हर दिन मंगलमय हो इसी भावना के साथ आप सब का स्वागत करता हुआ।
आपका अपना पंकज दुधोडिया
09339514474