04.01.2022, मंगलवार, बोराज, जयपुर (राजस्थान), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजस्थान की रेतीली धरती पर ज्ञान की गंगा बहाते हुए निरंतर गतिमान हैं। इस निर्मल गंगा से अब तक राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़ जिले के साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर भी पावनता को प्राप्त हो चुकी है। ग्यारह दिवसीय संघ प्रभावक जयपुर प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में गतिमान हैं। मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ देहमी कलां स्थित मणिपाल विश्वविद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। ठंड के मौसम में जहां लोग गर्म कपड़ों से ढंके होने के बावजूद भी बाहर निकलने पर आग का सहारा लेते दिखाई दे रहे थे वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना को और जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने के लिए महातपस्वी महाश्रमण गतिमान थे। रास्ते में अनेकानेक लोगों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से पावन बनाते आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर बोराज गांव में पधारे। ग्राम्यजनों तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल, शिक्षक व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री भव्य स्वागत किया।
विद्यालय परिसर के एक कमरे से आचार्यश्री ने वर्चुअल रूप में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? निर्वाण का अर्थ मोक्ष भी हो सकता है, किन्तु कभी-कभी एकार्थक शब्दों में गहराई में जाने पर कुछ सूक्ष्म भिन्नता भी प्राप्त हो सकता है। निर्वाण प्राप्ति की बात की जाए तो जिस आदमी के भीतर धर्म हो अर्थात् धर्मवान मनुष्य निर्वाण को प्राप्त हो सकता है। एक प्रश्न और हो सकता है कि धर्मवान कौन होता है अथवा धर्म किस आदमी के भीतर हो सकता है तो उसका उत्तर यह होगा कि जिस आदमी की आत्मा शुद्ध हो व धर्मवान होता है। पुनः एक प्रश्न हो सकता है आत्मा शुद्ध कैसे हो? इसका उत्तर होगा कि जो आदमी ऋजु अर्थात् सरल होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी के भीतर संयम, दया, शील, सत्य आदि की भावना हो तो आत्मशुद्धि की बात हो सकती है। जिस आदमी के भीतर छल-कपट हो, उसकी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती।
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