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मंगलवार, जनवरी 04, 2022

आत्मा की शुद्धि के लिए ऋजुता आवश्यक - आचार्य महाश्रमण

 

04.01.2022, मंगलवार, बोराज, जयपुर (राजस्थान), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजस्थान की रेतीली धरती पर ज्ञान की गंगा बहाते हुए निरंतर गतिमान हैं। इस निर्मल गंगा से अब तक राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़ जिले के साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर भी पावनता को प्राप्त हो चुकी है। ग्यारह दिवसीय संघ प्रभावक जयपुर प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में गतिमान हैं। मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ देहमी कलां स्थित मणिपाल विश्वविद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। ठंड के मौसम में जहां लोग गर्म कपड़ों से ढंके होने के बावजूद भी बाहर निकलने पर आग का सहारा लेते दिखाई दे रहे थे वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना को और जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने के लिए महातपस्वी महाश्रमण गतिमान थे। रास्ते में अनेकानेक लोगों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से पावन बनाते आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर बोराज गांव में पधारे। ग्राम्यजनों तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल, शिक्षक व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री भव्य स्वागत किया। 

 विद्यालय परिसर के एक कमरे से आचार्यश्री ने वर्चुअल रूप में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? निर्वाण का अर्थ मोक्ष भी हो सकता है, किन्तु कभी-कभी एकार्थक शब्दों में गहराई में जाने पर कुछ सूक्ष्म भिन्नता भी प्राप्त हो सकता है। निर्वाण प्राप्ति की बात की जाए तो जिस आदमी के भीतर धर्म हो अर्थात् धर्मवान मनुष्य निर्वाण को प्राप्त हो सकता है। एक प्रश्न और हो सकता है कि धर्मवान कौन होता है अथवा धर्म किस आदमी के भीतर हो सकता है तो उसका उत्तर यह होगा कि जिस आदमी की आत्मा शुद्ध हो व धर्मवान होता है। पुनः एक प्रश्न हो सकता है आत्मा शुद्ध कैसे हो? इसका उत्तर होगा कि जो आदमी ऋजु अर्थात् सरल होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी के भीतर संयम, दया, शील, सत्य आदि की भावना हो तो आत्मशुद्धि की बात हो सकती है। जिस आदमी के भीतर छल-कपट हो, उसकी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती। 


शुक्रवार, अगस्त 06, 2021

भीतर का "मैं" का मिटना ज़रूरी है...



सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे| उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी |

वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो?''

लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें इस समुन्द्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं |''

बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे |

अब पूछने की बारी बच्चे की थी |

बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?'


सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ |


आज तुमने सिखा दिया कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता है , मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा |''


यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुन्द्र में फेंक दिया और बोला- "सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है |"इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले-

"बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है|


हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ |"


ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए |

सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया | जिस सुकरात से मिलने के सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे |


ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं " सबसे पहले मिटता है |


या यूँ कहें....जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है |



साभार : टेलीग्राम लिंक👇🏻

https://t.me/joinchat/RD6z0BzLAXlkQdBaWCQhFQ


रविवार, जुलाई 18, 2021

लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता - आचार्य महाश्रमण

 चातुर्मास हेतु शांतिदूत का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्य का प्रथम चातुर्मास

स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य


18 जुलाई 2021, रविवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान, तेरापंथ नगर आदित्य विहार, प्रातः 09 बज कर 21 मिनट पर जैसे ही शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महाश्रमण सभागार में चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया पूरा वातावरण 'जय जय ज्योतिचरण - जय जय महाश्रमण' के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। हर ओर श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा था। वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री का यह चातुर्मास प्रवेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्यों का यह पहला चातुर्मास है। आचार्य श्री के साथ भी प्रथम बार 200 से अधिक साधु-साध्वियां चातुर्मास में है। देश- विदेश की हजारों किलोमीटर पदयात्रा संपन्न कर मेवाड़ पधारे गुरुवर के स्वागत में सभी में उत्साह-उमंग की नई लहर छाई हुई है।


प्रशासनिक दिशा-निर्देश एवं कोविद गाइडलाइन के मद्देनजर प्रवेश जुलूस का आयोजन नहीं रखा गया था। साधु-साध्वियों की धवल पंक्ति के मध्य आचार्य प्रवर को मंगल प्रवेश करता देख सभी श्रद्धानत थे। भीलवाड़ा वासियों का वर्षों पूर्व देखा गया स्वप्न आज साकार हो गया, ऐसा लग रहा था मानो भीलवाड़ा शहर महाश्रमणमय बन गया हो।


स्वागत समारोह में आचार्य प्रवर ने कहा- इस संसार में जब मंगल की बात आती है तो कई चीजों का नाम आ सकता है। कोई मुहूर्त आदि को मंगल मानता है, तो कहीं गुड़, नारियल आदि को भी मंगल माना जाता है, परंतु ये सब उत्कृष्ट मंगल नहीं है। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल होता है। धर्म साथ में है तो फिर सदा मंगल है।अहिंसा, संयम, तप ये धर्म के लक्षण हैं। जीवन में अगर ये है, तो मानो धर्म है, अध्यात्म है। अहिंसा एक ऐसा तत्व है जो लोक में सबके लिए क्षेमंकरी है, कल्याणकारी है। आज समाज, राजनीति में भी अहिंसामय नीति होनी चाहिए। लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों जनता की भलाई के लिए होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता। अहिंसा, प्रेम-मैत्री से भी समस्या सुलझाई जा सकती है।


गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि- इस भारत देश में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं पंथनिरपेक्षता भी है। सबको अपनी रुचि अनुसार धर्म करने की छूट है। भारत एक आजाद देश है, आजादी के साथ संयम, अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता। साथ ही सत्ता में निस्वार्थ सेवा रूपी तप भी होना चाहिए। सत्ता में आकर अगर जनता की सेवा ना करें तो वह व्यर्थता है। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर सकता है।


चातुर्मास प्रवेश पर गुरुदेव ने कहा कि- यह चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्षभर यात्रा के पश्चात ये चार महीने ऐसे होते हैं जब साधु को एक स्थान पर रहना होता है। आज चातुर्मास हेतु यहां प्रवेश हुआ है। कितने ही रत्नाधिक व छोटे साधु-साध्वियां वर्षों बाद इस बार साथ में है। यहां की जनता भी जितना हो सके उतना धर्म का लाभ उठाएं। यह चातुर्मास उपलब्धिकारक रहे, मंगलकामना।


साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने उद्बोधन में कहा- आचार्यश्री एक महान यात्रा, विजय यात्रा कर यहां पधारे हैं। मेवाड़ के श्रावकों में विशिष्ट भक्ति है। चातुर्मास में सभी लक्ष्य बनाएं कि हमें गुरुवर की वाणी को आत्मसात कर जीवन में अपनाना है। यह सिर्फ भीलवाड़ा का ही नहीं पूरे मेवाड़ का चतुर्मास है।


स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य

शांतिदूत के स्वागत में पंजाब के महामहिम राज्यपाल श्री वीपी सिंह बदनोर विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर सांसद श्री सुभाष बहेरिया, विधायक श्री रामलाल जाट, विधायक श्री विट्ठल शंकर अवस्थी, नगर परिषद चेयरमैन श्री राकेश पाठक, जिला कलेक्टर श्री शिव प्रकाश नकाते, जिला पुलिस अधीक्षक श्री विकास शर्मा, राइफल संघ के जिलाध्यक्ष श्री अभिजीत सिंह बदनोर, वरिष्ठ एडवोकेट उमेद सिंह राठौड़ आदि अनेक गणमान्य जनों ने भी आचार्य वर का अभिनंदन किया।


स्वागत करते हुए राज्यपाल श्री वीपी.सिंह बदनोर ने कहा- यह मेरा परम सौभाग्य है जो आज मेवाड़ की धरा पर मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। आप के प्रवचन हम सभी का मार्गदर्शन करने वाले हैं। मेरी विनती है पंजाब की धरा पर भी आप पधारे। इस चातुर्मास से पूरे देश में धर्म की ज्योति जलेगी।


कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया, स्वागताध्यक्ष श्री महेंद्र ओस्तवाल, वरिष्ठ श्रावक श्री नवरतन झाबक ने अपने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी व व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री निर्मल गोखरू ने किया।

शुक्रवार, जनवरी 29, 2021

Kayotsarg means, "abandoning the body" - Acharya Mahapragya

All humans have strong attachments to material things, and in fact, to their body. Strong attachments are a significant obstacle in practicing meditation. Attachments can make it difficult to take even the first step of meditation, called Kayotsarg. Kayotsarg means, "abandoning the body". 


There is a technique very similar to kayotsarg in Hindu tradition of Hathyoga called shavaasan. There are simi|arities and differences between Hathyoga’s shavaasan and Jain tradition’s kayotsarg. Therefore, readers who have heard about shavaasan should not assume that kayotsarg and shavaasan are the same. In shavaasan one concentrates on relaxing the body, whereas in kayotsarg one not only makes the body relaxed but goes beyond the body to experience the separateness of body and soul and detachment from the body (mamatva visarjan).


 This is a profound realization of seeing the soul as different from the body, and is known by a technical term in Jain philosophy called bhed-vigyaan (Le. the science of differentiation between the soul and the body). To completely achieve the state of kayotsarg it is essential to use bhed vigyaan, the science of differentiation. 


~ Acharya Mahapragya


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साभार : Preksha Meditation

गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020

स्वाध्याय परम तप है

चूना और बाल्टी

गुरु शिष्यों को अपने प्रवचन में स्वाध्याय का महत्व बता रहे थे।

गुरु ने बताया कि हर प्रकार के तप से कर्मों की निर्जरा होती है और उनमें से स्वाध्याय भी एक तप है।
शिष्य ने पूछा - गुरु जी,  वह कैसे?

हमें तो कल का पढ़ा हुआ आज भी याद नहीं रहता और आज का सुना हुआ प्रवचन के पंडाल से निकलते ही भूल जाता है। फिर हमारे कर्म कैसे कटेंगे? 

"चाहे याद रहे या न रहे,  बस! सुनते रहो।"

ऐसा करो अंदर एक बाल्टी रखी है। वह लेकर आओ।

शिष्य बाल्टी लेकर आया तो सबने देखा कि बाल्टी में कई वर्ष पहले से चूना घोलते रहने के कारण वह चूना उसमें बुरी तरह चिपका हुआ था।
यहां तक कि उसने लोहे की बाल्टी को भी खाना शुरू कर दिया था।

उस बाल्टी में छेद होने लगे थे,  जो अभी तक चूने से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

गुरु ने कहा कि इस बाल्टी में साफ पानी डालो।

शिष्य ने पानी डाला तो चूना घुलने लगा और पानी छेदों में से बाहर निकलने लगा।
होते - होते सारा पानी निकल गया।

गुरु ने कहा कि और पानी डालो।
शिष्य ने और पानी डाला लेकिन जैसे प्रवचन की बातें एक कान से सुनते ही दूसरे कान से निकल जाती हैं,  वैसे ही पानी की एक बूँद भी उसमें नहीं टिकी।

गुरु ने कहा - और पानी डालो।
शिष्य ने कहा भी कि पानी डालने के क्या होगा?  टिकता तो है नहीं।

पर वह भी गुरु का आज्ञाकारी शिष्य था। गुरु ने 25 बाल्टी पानी उसमें डलवा दिया।

अब गुरु ने पूछा कि क्या तुम्हें कोई बदलाव दिखाई देता है इसमें? 

शिष्य ने ध्यान से देखा और कहा कि  गुरु जी,  इसमें बाल्टी में पानी भले ही न टिका हो, पर बाल्टी साफ हो गई है और चूना इसे छोड़कर पानी के साथ बह चुका है।
अब बाल्टी बिल्कुल साफ दिखाई दे रही है।
इसके छिद्र भी दिखाई दे रहे हैं जो पहले चूने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

बस! यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्रवचन की बातें भले ही तुम्हारे मन में नहीं टिके,  बार-बार सुनने से मन का मैल तो धुल ही जाएगा और तुम्हें अपने अवगुण दिखाई देने लगेंगे।

अभी तक तो तुम उन दोषों को छिपाए बैठे थे। अब तुम्हें अहसास हो जाएगा कि उनको दूर किए बिना बाल्टी में पानी टिकने वाला नहीं है और तुम गुणों को धारण करने की प्रक्रिया में लग जाओगे।

इसीलिए  निरंतर स्वाध्याय करो। एक दिन यही तप तुम्हें मोक्ष- मार्ग पर लाकर खड़ा कर देगा।

साभार : व्हाट्सएप्प ग्रुप से श्री विकास धाकड़ द्वारा प्राप्त

रविवार, दिसंबर 29, 2019

टोडरमल जैन की धार्मिक सहिष्णुता और उदारता की प्रेरणास्प्रद कहानी - डॉ अनेकांत कुमार जैन

2016 में महावीर जयंती के दिन मुझे पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरु ग्रन्थ साहिब वर्ल्ड यूनिवर्सिटी में एक अन्ताराष्ट्रीय सम्मेलन में जैनदर्शन पर व्याख्यान देने हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ| फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला का मुख्यालय है। यह जिला सिक्‍खों की श्रद्धा और विश्‍वास का प्रतीक है। 

पटियाला के उत्‍तर में स्थित यह स्‍थान ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। सिक्‍खों के लिए इसका महत्‍व इस लिहाज से भी ज्‍यादा है कि यहीं पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को सरहिंद के तत्‍कालीन फौजदार वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। उनका शहीदी दिवस आज भी यहां लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरुद्वारों का शहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां पर अनेक गुरुद्वारे हैं जिनमें से गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का विशेष स्‍थान है। 

वहां के जागरूक शोधअध्येताओं ने मुझसे जैनदर्शन पर बहुत अभिरुचि प्रगट की ,वे मुझे वहां के उस प्रसिद्द गुरूद्वारे ले गए जहाँ गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों पुत्रों को वहां के नवाब ने दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था | 

इसी सन्दर्भ में उन्होंने वहां के दीवान टोडरमल जैन की उदार दृष्टि की जो कथा सुनाई वह मुझे पता ही नहीं थी , उन्होंने बताया कि  -

तीन सौ वर्ष पहले सरहिंद में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों को दीवार में चिनवाने के बाद उनके व दादी मां के पार्थिव शरीरों को अंतिम संस्कार के लिए नवाब जगह नहीं दे रहा था , उसने शर्त रखी कि अंतिम संस्कार के लिए जितनी जगह चाहिए उतनी जगह स्वर्ण मुहरें बिछा दो , वहां के सुप्रसिद्ध नगर सेठ टोडरमल जैन ने यह जिम्मेदारी  अपने ऊपर ले ली, और स्वर्ण मुद्राएँ बिछा दीं , नवाब का लालच बढ़ गया और फिर उसने कहा कि स्वर्ण मुद्राएँ खड़ी करके बिछाओ लिटा का नहीं, टोडरमल जी ने फिर भी शर्त मान ली और खड़ी स्वर्ण मोहरें बिछा दीं और अंतिम संस्कार हेतु जगह ली |

 नवाब से स्वर्ण मोहरें बिछाकर भूमि प्राप्त करने वाले दीवान टोडरमल जैन का नाम भी तीर्थ भूमि सरहिंद से जुड़ा है। सामाना में जन्मे व माता चक्रेश्वरी देवी के उपासक टोडरमल जैन जमीनी मामलों के जानकार होने के कारण सरहिंद के नवाब वजीर खां के दरबार में दीवान के पद पर असीन हुए। उन्होंने नवाब से सोने की मोहरों के बदले भूमि लेकर उन तीनों महान विभूतियों का स्वयं अंतिम संस्कार किया। उसी स्थान पर फतेहगढ़ साहिब में गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप बना हुआ है जिसके बेसमैंट का नाम सिख समाज ने स्मृति स्वरूप दीवान *टोडरमल जैन हाल* रखा है।
उसके बाद वे वहां स्थित जैन मंदिर ले गए जहाँ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी की अधिष्ठात्री चक्रेश्वरी देवी का एकमात्र ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर, सरहिंद शहर के चंडीगढ़ रोड पर स्थित है। यहां 12वीं सदी से लगातार माता जी के श्रद्धालु विशेषत: खंडेलवाल बंधु अपनी कुलदेवी के रूप में माता जी की पूजा-अर्चना के लिए आते रहे हैं।पास में ही तीर्थंकर आदिनाथ का एक सुन्दर श्वेताम्बर मंदिर भी है|

उन्होंने बताया कि12वीं शताब्दी में मारवाड़ में भीषण अकाल के कारण पंजाब की ओर लोगों ने पलायन किया। जैन खंडेलवाल परिवारों का एक जत्था कांगड़ा में विराजित भगवान ऋषभ देव के दर्शनों के लिए बढ़ रहा था जो सरहिंद में एक रात्रि के लिए रुका। अगली सुबह अधिष्ठात्री कुलदेवी की पूजन शिला वाली बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी। दूसरी रात्रि भी वहीं रुकना पड़ा, तब आकाशवाणी सुनाई दी-मेरा स्थान आ गया है। मेरा भवन यहीं बनवाया जाए। भक्तों ने वहीं पर मंदिर बनवाया और स्वयं भी सरहिंद एवं पंजाब के अन्य शहरों में बस गए परन्तु सरहिंद में माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान पर निरंतर आते रहे।

मैंने वहां देखा कि तीर्थ परिसर में विशाल धर्मशाला, विश्राम घर, खुले लॉन, भोजनशाला आदि की सुचारू व्यवस्था है। अपने गौरवपूर्ण व स्वर्णिम इतिहास तथा श्रद्धा का व्यापक आधार होने के कारण माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान को अब अखिल भारतीय जैन तीर्थ होने का भी गौरव प्राप्त है।वहीँ दीवार पर बने टोडरमल जी के दो चित्र भी इस लेख के साथ संलग्न हैं |

इस पूरी कहानी से यह पता चलता है कि जैन समाज अपने से अन्य धर्म और धार्मिकों के प्रति कितनी उदार दृष्टि रखता आया है | जैनों द्वारा इस प्रकार की धार्मिक सहिष्णुता के हजारों किस्से हैं | आज सिर्फ आवश्यकता है उनके इन सार्वजनीन सार्वभौमिक कार्यों को उजागर करने की ,क्यों कि उदारता की एक परिभाषा अपने दान को उजागर नहीं करने की भी रही है ,शायद इसीलिए भी इस प्रकार की नज़ीर दुनिया के सामने नहीं आ पातीं । 

आज साम्प्रदायिक द्वेष के काँटों भरे पेड़ों को ज्यादा सींचने के दुर्भाग्यपूर्ण माहौल के बीच इस प्रकार के उदाहरणों को प्रेरणा एवं सामाजिक सौहार्द के लिए सामने रखना ज्यादा आवश्यक हो गया है । 

आप अपने विचार मुझे email भी कर सकते हैं ।

डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली 
drakjain2016@gmail.com

रविवार, सितंबर 15, 2019

मोह जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है - आचार्य महाश्रमण

राजनीति के क्षेत्र में शुचिता की शांतिदूत ने प्रदान की प्रेरणा
भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दर्शन कर पाया आशीष

15-09-2019  रविवार , कुम्बलगोडु, कर्नाटक, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण का बेंगलुरु की धरा पर दक्षिण भारत का द्वितीय चातुर्मास प्रवर्धमान है।  पर्युषण महापर्व के बाद से अनेक गांवों व शहरों का श्रावक समाज एक के बाद एक संघ रूप में  गुरु दर्शनार्थ पहुंच रहा हैं।
रविवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य महाश्रमण जी ने कहा - जब व्यक्ति के मन में अपराध की चेतना उभर जाती है तो वह हिंसा,  चोरी आदि दुष्कृत्य करने लग जाता है।   ऐसी विकृत चेतना तब पैदा होती है जब ज्ञान और दर्शन का अभाव होता है।  लोभ और आवेश हिंसा के प्रमुख कारण है और मोह  जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है। 
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन में अगर इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो मोह कमजोर हो जाएगा। त्याग , तपस्या और जप मोह  को निष्फल करने के  श्रेष्ठ साधन है। 

बेंगलुरु में अब तक 40 मासखमण
चातुर्मास काल में बेंगलुरु में  हो रही तपस्याओं के संदर्भ में  महातपस्वी ने कहा -  तपस्या करना कोई  आसान काम नहीं है।  शौर्य शक्ति का क्षयोपशम  होने से ही लंबी तपस्या हो सकती है।  बेंगलुरु में 40 मासखमण होना कोई सामान्य बात नहीं है।  लोग तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं यह अपने आप में अनूठा है। 

राजनीति के क्षेत्र में सुचिता की प्रेरणा देते हुए अनुव्रत अनुशास्ता  ने कहा राजनीति सेवा का माध्यम है। राजनीति में शुद्धता और नैतिकता बनी रहे तो  समाज और देश का अच्छा विकास हो सकता है। 

भाजपा महामंत्री पहुंचे आशीर्वाद लेने
प्रवचन के दौरान भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आचार्य श्री से सन 2021 में इंदौर में  जन्मोत्सव एवं पटोत्सव ससमारोह मनाने की अर्ज की  एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर साध्वी  जिनप्रभा जी की पुस्तक ' जैन विद्या का प्रवेश द्वार :  पच्चीस बोल'  का विमोचन हुआ। 

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का राष्ट्रीय अधिवेशन
आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का 44वां राष्ट्रीय अधिवेशन के शुभारंभ हुआ जो 18 सितंबर तक चलेगा।  अमृतवाणी द्वारा ' महाप्राण महाप्रज्ञ' सीडी का लोकार्पण हुआ जिसमें गायक मनीष पगारिया ने स्वर दिया है। मंच का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

रविवार, जुलाई 31, 2011

बारह व्रत


उपासक श्रेणी

महासभा द्वारा संचालित प्रवृत्तियों में उपासक श्रेणी का निर्माण एक प्रमुख कार्य है। तेरापंथ समाज के विकास और उसके बढ़ते हुए प्रभाव को ध्यान में रखकर यह आवश्यक समझा गया कि साधु-साध्वियों, समण-समणियों के अतिरिक्त एक ऐसी श्रेणी का निर्माण किया जाये जो पूरे तेरापंथ समाज को आध्यात्मिक संबल, संरक्षण और संस्कार निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके। इस श्रेणी की आवश्यकता और उपयोगिता को आज से बहुत पहले पूज्य गुरुदेव तुलसी ने महसूस की थी और उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप 1970 के दशक में उपासक श्रेणी के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। फलस्वरूप धर्म क्षेत्र के एक वर्ग के लोगों को प्रशिक्षण देकर इस रूप में तैयार किया जाने लगा जो पर्युषण पर्व एवं अन्य अवसरों पर निर्दिष्ट स्थानों पर उपस्थित होकर प्रवचन, प्रयोग आदि के द्वारा वहाँ के लोगों को आध्यात्मिक आराधना में सहायता कर सकें।
उपासक का अर्थ है साधना के द्वारा आत्मोन्नयन की दिशा में अग्रसर होना। उपासक बनने के इच्छुक व्यक्तियों को पूज्यवरों के सान्निध्य में प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है, जिसके पूर्व उन्हें प्रशिक्षण शिविर में प्रवेश हेतु निर्दिष्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता है।
प्रवेश परीक्षा का पाठ्यक्रम
  1. अर्हत वंदना
  2. परमेष्टि वंदना
  3. पंचपद वंदना
  4. प्रतिक्रमण
  5. पच्चीस बोल
(इनका कंठस्थ होना आवश्यक है)
उपर्युक्त पाठ्यक्रम के अनुसार लिखित परीक्षा ली जाती है जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है।
शिविर आयोजन का समय प्रतिवर्ष के लिए निर्धारित है।
दस दिवसीय शिविर का प्रारंभ श्रावण कृष्ण पंचमी से होता है।
उपासकों की श्रेणियाँ
उपासकों की मुख्यतः दो श्रेणियां निर्धारित हैं।
  1. सहयोगी उपासक
  2. प्रवक्ता
    सहयोगी उपासक
    यह उपासक की प्रथम भूमिका है। प्रवक्ता उपासक के साथ सहायक के रूप में पर्युषण यात्रा पर जाते हैं। उपर्युक्त लिखित प्रवेश परीक्षा में सफल होने वाले बहन-भाइयों को ही ‘केंद्रीय उपासक प्रशिक्षण शिविर’ में प्रवेश मिलता है एवं शिविर में उन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है।
  3. पाठ्यक्रम –
  4. पच्चीस बोल (भावार्थ)
  5. श्रावक सम्बोध (भावार्थ)
  6. भगवान महावीर के पूर्वभव एवं संपूर्ण जीवनवृत
  7. ग्यारह गणधर का इतिहास
  8. जैन जीवनशैली के नौ सूत्र
  9. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है, जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है। सफल होने पर सहयोगी उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में ‘प्रवक्ता उपासक’ के साथ पर्युषण यात्रा पर जा सकते हैं।
- सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अधिकतम दो अवसर दिए जाते हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है।
प्रवक्ता उपासक
यह उपासकों की अपेक्षाकृत परिपक्व श्रेणी होती है। प्रवक्ता उपासकों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिविर में प्रशिक्षण दिया जाता है।
पाठ्यक्रम
  1. पर्युषण विषय
  2. कालचक्र और तीर्थंकर
  3. प्रभावक जैन आचार्य
  4. अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान
  5. गाथा (सिद्धांत एवं कथाएं)
  6. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी।
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है। सफल होने पर प्रवक्ता उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में पर्युषण यात्रा में जा सकते हैं।
- प्रवक्ता उपासक के लिए प्रशिक्षण शिविर में सीधे प्रवेश नहीं मिलता है, पहले सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है एवं दो पर्युषण यात्राएं करनी होती हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उतीर्ण होना अनिवार्य होता है। तब तक सहयोगी के रूप में पर्युषण यात्रा कर सकते हैं।