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शनिवार, फ़रवरी 18, 2023

प्रार्थना


एक बार एक पिता और उसका पुत्र जलमार्ग से कहीं यात्रा कर रहे थे और तभी अचानक दोनों रास्ता भटक गये। फिर उनकी नौका भी उन्हें ऐसी जगह ले गई, जहाँ दो टापू आस-पास थे और फिर वहाँ पहुंच कर उनकी नौका टूट गई। पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है, हम दोनों का अंतिम समय आ गया है, दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है।

अचानक पिता को एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है, तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें। उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए।

एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग टापू पर ईश्वर की प्रार्थना करने लगे।

पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें। ईश्वर ने प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये। उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया। फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ। तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी। अब उसने सोचा कि मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न मैं ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे लूँ ? उसने ऐसा ही किया उसने प्रार्थना की, एक नई नाव आ जाए जिसमें सवार होकर मैं यहाँ से बाहर निकल सकूँ। तत्काल नाव प्रकट हुई और पुत्र उसमें सवार होकर बाहर निकलने लगा।

तभी एक आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो? अपने पिता को साथ नहीं लोगे ? पुत्र ने कहा, उनको छोड़ो, प्रार्थना तो उन्होंने भी की, लेकिन आपने उनकी एक भी नहीं सुनी।  शायद उनका मन पवित्र नहीं है, तो उन्हें इसका फल भोगने दो ना ? आकाशवाणी ने कहा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे पिता ने क्या प्रार्थना की ? पुत्र बोला, नहीं !आकाशवाणी बोली तो सुनो, तुम्हारे पिता ने एक ही प्रार्थना की... हे भगवन। मेरा पुत्र आपसे जो भी माँगे, उसे दे देना क्योंकि मैं उसे दुःख में हरगिज़ नहीं देख सकता औऱ अगर मरने की बारी आए तो मेरी मौत पहले हो और जो कुछ तुम्हें मिल रहा है उन्हीं की प्रार्थना का परिणाम है। पुत्र बहुत शर्मिंदा हो गया।

हमें जो भी सुख, प्रसिद्धि, मान, यश, धन, संपत्ति और सुविधाएं मिल रही है उसके पीछे किसी अपने की प्रार्थना और शक्ति जरूर होती है लेकिन हम नादान रहकर अपने अभिमान वश इस सबको अपनी उपलब्धि मानने की भूल करते रहते हैं और जब ज्ञान होता है तो असलियत का पता लगने पर सिर्फ़ पछताना पड़ता है। हम चाह कर भी अपने माता पिता का ऋण नहीं चुका सकते। यह याद रखो उस परमपिता को जिसने पूरी सृष्टि रचाई है।  कभी अभिमान नहीं करना चाहिए, हम किसके भाग्य का पा रहे हैं, कोई बोल नही सकता।


Once a father and his son were traveling somewhere by a waterway and then suddenly both lost their way.  Then his boat also took him to a place where two islands were nearby and then his boat broke down after reaching there.  The father said to the son, now it seems, the last time has come for both of us, no support is visible far and wide.


 Suddenly the father thought of a solution, told his son that anyway our last time is near, so why not pray to God.  They divided both the islands among themselves.


 Father on one and son on the other, and both started praying to God on different islands.


 The son said to God, O God, let trees and plants grow on this island, with whose fruits and flowers we can satisfy our hunger.  God heard the prayer, immediately trees and plants grew and fruits and flowers also came in it.  He said that this is a miracle.  Then he prayed, a beautiful woman should come so that we can stay here with her and settle our family.  Immediately a beautiful woman appeared.  Now he thought that my every prayer is being heard, so why don't I ask God for a way out of here?  He did so and prayed that a new boat should come in which I could get out of here.  Immediately the boat appeared and the son started coming out riding in it.

Only then there was an Akashvani, son, you are going alone?  Won't you take your father with you?  Son said, leave them, they also prayed, but you didn't listen to them.  Maybe their mind is not pure, so let them suffer the consequences, right?  Akashvani said, do you know what your father prayed?  The son said, no! Listen to what Akashvani said, your father made only one prayer... O God.  Whatever my son asks from you, give him because I can never see him in sorrow and if it is his turn to die, I should die first and whatever you are getting is the result of his prayers.  The son became very embarrassed.


 Whatever happiness, fame, respect, fame, wealth, wealth and facilities we are getting, behind it there is certainly the prayer and power of someone close to us, but being ignorant, due to our pride, we keep making the mistake of considering all this as our achievement and when knowledge  If it happens, then only you have to repent after finding out the reality.  We cannot repay the debt of our parents even if we want to.  Remember this Supreme Father who created the whole world.  One should never be proud, whose fortune we are getting, no one can say.



साभार  : जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के व्हाट्सएप्प ग्रुप में श्री महेंद्र दुगड़ द्वारा अग्रेषित

सोमवार, जून 27, 2022

हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है

ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ

आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है।


महिला सोचती है : - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता!


आदमी सोचता है :- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है ।


नैतिकता : - आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं।


यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए।

हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है।


साभार : फेसबुक

शनिवार, अप्रैल 25, 2020

मधुमक्खी से मिली प्रेरणा कोई आपका Creation चुरा जा सकता है Talent नहीं - पंकज दुधोडिया


💤💫 बहुत सुन्दर सन्देश 💫💤

एक चिड़िया ने मधुमक्खी से पूछा कि तुम इतनी मेहनत से शहद बनाती हो और इंसान आकर उसे चुरा ले जाता है, तुम्हें बुरा नहीं लगता ??
मधुमक्खी ने बहुत सुंदर मार्मिक जवाब दिया :
इंसान मेरा शहद ही चुरा सकता है पर मेरी शहद बनाने की कला नहीं !!
कोई भी आपका Creation चुरा सकता है पर आपका Talent (हुनर) नहीं चुरा सकता।

Whatsaap पर आये इस अग्रेषित मैसेज को पढ़ने के बाद ऐसा विचार (फिलिंग) मन में आया की चिंतन कितना विशाल है सकारात्मक है मधुमक्खी का की शहद चुरा सकता है पर टेलेंट नहीं।


इस सकारात्मक प्रेरणा देने वाले मैसेज के साथ मैं भी कुछ अपने विचार जोड़ रहा हूँ।


हम 84 लाख जीवयोनी मे मनुष्य जीवन को श्रेष्ठ मानते है। हम माने भी क्यों ना मनुष्य चिंतनशील प्राणी होता है।
यह अलग बात है चिंतन हम किस दिशा में करते है सकारात्मक दिशा या नकारात्मक दिशा यह हम विचार करें।

उपरोक्त FWD मैसेज में जो सकारात्मक जबाब मधुमक्खी ने दिया वो वास्तव में सीख प्रदान करता है की हम कभी जीवन में हतास ना हो सुख दुःख, ख़ुशी गम, आते रहेगे जाते रहेगे। पर हमें हर भाव में सकारात्मक सोच के साथ प्रसन्न रहना है। अपने विचार को सकारात्मक सोच से भावीत करना है। तभी हम जीवन की वास्तविक कड़वाहट के साथ साथ मिठास का अनुभव कर पायेगे। 
यह विचार मेरे स्वयं पर भी लागू होती है क्योकि हम लिखते तो बहुत है पर उसे जीवन में कितना अपनाते है यह महत्वपूर्ण है। हम जीवन में पढ़ते तो बहुत है पर उसे कितना आत्मसात करते है यह महत्वपूर्ण है।
हम आईने को रोज देखते है आइना हमें प्रतिबिम्ब दिखाता है कुछ ऐसा ही प्रतिबिम्ब हमें हमारी आत्मा में भी देखने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग करना चाहिए। आत्मावलोकन, आत्मवलोचन करना चाहिए व सदा इसे सकारात्मक चिंतन से भावीत करना चाहिए। जिससे हम ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण कर पाये की हमारा Creation कोई भले ही चुरा ले पर हम अपने Talent के बल पर पुनः सकारात्मक सोच, सकारात्मक कार्य से आगे बढ़ते हुए जीवन में विकास के सोपान चढ़ते जाए।
यदि हम अपनी ऊर्जा प्रयास के द्वारा मन वचन काया के माध्यम से होने वाले निगेटिव सोच को हटा सकारात्मक सोच को स्थापित कर पाये तो हो सकता है हम नव युग का निर्माण कर दें।
क्योकि हमारी सोच ही हमें ऊंचाई प्रदान करती है और हमारी सोच ही हमें निचे गिराती है।
मैं पंकज धन्यवाद देना चाहूँगा जिसने भी उपरोक्त मैसेज बनाया है और जिन्होंने FWD किया उनके माध्यम से प्राप्त मैसेज से यही सकारात्मक विचार आया की हम चिंतित ना हो, हतास ना हो हम अपने पुरुषार्थ से पुनः प्रयास करे जिससे हम जीवन में प्रगति कर सकते है।


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155256602639451&id=641524450

गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020

स्वाध्याय परम तप है

चूना और बाल्टी

गुरु शिष्यों को अपने प्रवचन में स्वाध्याय का महत्व बता रहे थे।

गुरु ने बताया कि हर प्रकार के तप से कर्मों की निर्जरा होती है और उनमें से स्वाध्याय भी एक तप है।
शिष्य ने पूछा - गुरु जी,  वह कैसे?

हमें तो कल का पढ़ा हुआ आज भी याद नहीं रहता और आज का सुना हुआ प्रवचन के पंडाल से निकलते ही भूल जाता है। फिर हमारे कर्म कैसे कटेंगे? 

"चाहे याद रहे या न रहे,  बस! सुनते रहो।"

ऐसा करो अंदर एक बाल्टी रखी है। वह लेकर आओ।

शिष्य बाल्टी लेकर आया तो सबने देखा कि बाल्टी में कई वर्ष पहले से चूना घोलते रहने के कारण वह चूना उसमें बुरी तरह चिपका हुआ था।
यहां तक कि उसने लोहे की बाल्टी को भी खाना शुरू कर दिया था।

उस बाल्टी में छेद होने लगे थे,  जो अभी तक चूने से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

गुरु ने कहा कि इस बाल्टी में साफ पानी डालो।

शिष्य ने पानी डाला तो चूना घुलने लगा और पानी छेदों में से बाहर निकलने लगा।
होते - होते सारा पानी निकल गया।

गुरु ने कहा कि और पानी डालो।
शिष्य ने और पानी डाला लेकिन जैसे प्रवचन की बातें एक कान से सुनते ही दूसरे कान से निकल जाती हैं,  वैसे ही पानी की एक बूँद भी उसमें नहीं टिकी।

गुरु ने कहा - और पानी डालो।
शिष्य ने कहा भी कि पानी डालने के क्या होगा?  टिकता तो है नहीं।

पर वह भी गुरु का आज्ञाकारी शिष्य था। गुरु ने 25 बाल्टी पानी उसमें डलवा दिया।

अब गुरु ने पूछा कि क्या तुम्हें कोई बदलाव दिखाई देता है इसमें? 

शिष्य ने ध्यान से देखा और कहा कि  गुरु जी,  इसमें बाल्टी में पानी भले ही न टिका हो, पर बाल्टी साफ हो गई है और चूना इसे छोड़कर पानी के साथ बह चुका है।
अब बाल्टी बिल्कुल साफ दिखाई दे रही है।
इसके छिद्र भी दिखाई दे रहे हैं जो पहले चूने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

बस! यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्रवचन की बातें भले ही तुम्हारे मन में नहीं टिके,  बार-बार सुनने से मन का मैल तो धुल ही जाएगा और तुम्हें अपने अवगुण दिखाई देने लगेंगे।

अभी तक तो तुम उन दोषों को छिपाए बैठे थे। अब तुम्हें अहसास हो जाएगा कि उनको दूर किए बिना बाल्टी में पानी टिकने वाला नहीं है और तुम गुणों को धारण करने की प्रक्रिया में लग जाओगे।

इसीलिए  निरंतर स्वाध्याय करो। एक दिन यही तप तुम्हें मोक्ष- मार्ग पर लाकर खड़ा कर देगा।

साभार : व्हाट्सएप्प ग्रुप से श्री विकास धाकड़ द्वारा प्राप्त

बुधवार, सितंबर 18, 2019

Contact and Connection

एक साधु का न्यूयार्क में बडे पत्रकार इंटरव्यू ले रहा थे। 

पत्रकार-
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में 
संपर्क (Contact) और
 संजोग (Connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दिया।

"आप न्यूयॉर्क से हैं?"

पत्रकार: "Yeah..."

सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"

पत्रकार को लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहे है क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं सब शादीशुदा हैं "

साधू ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा:
 "आप अपने पिता से बात करते हैं?"

पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...

साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से last कब बात की?"

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले".

साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले एक परिवार की तरह ?"

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?  
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस पर 2 साल पहले".

साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब साथ में रहे ?"

पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला :  "3 दिन..."

साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा... 

साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ? 
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ ?  
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है ?

पत्रकार की आंखों से आंसू छलकने लगे।

साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, परेशान या दुखी मत होना। 
मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुंचाई हो,
 लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । "संपर्क और संजोग" 
(Contact and Connection)

आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (Contact) में हैं
 ‌पर आपका उनसे कोई 'Connection'  (जुड़ाव ) नही है।
 You are not connected to him.
आप अपने father से संपर्क में हैं जुड़े नही है 

Connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है।
 heart से heart होता है। 
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना 

आप अपने  पिता, भाई और बहनों  के संपर्क ('Contact') में हैं लेकिन आपका आपस मे कोई' जुड़ाव '(Connection) नहीं है".

पत्रकार ने आंखें पोंछी और बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".

वो तब का न्यूयार्क था पर आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है।
 At home and society में सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं पर कोई connection नही।
कोई विचार-विमर्श  नहीं।
हर आदमी अपनी नकली दुनिया में खोया हुआ है।

 हमें केवल "संपर्क" नहीं बनाए रखना चाहिए अपितु "कनेक्टेड" भी रहना चाहिये। हमें हमारे सभी प्रियजनों की देखभाल करना, उनके सुख-दुख को साझा करना और साथ में समय व्यतीत करना चाहिए।

वो साधु और कोई नहीं " स्वामी विवेकानंद" थे।

साभार : नीलेश भाई द्वारा प्राप्त Whatsapp

सोमवार, सितंबर 16, 2019

यह भी नहीं रहने वाला


एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"

आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"

कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"

यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"

साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"

साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"

विचार करे 🙏

साभार : Whatsapp