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मंगलवार, मार्च 08, 2022

World Women's Day

आज 8 मार्च को सम्पूर्ण विश्व Women's Day अर्थात नारी दिवस मना रहा है। जिसकी बधाई सभी विविध माध्यम से समाज का प्रत्येक वर्ग दे रहा है। मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है हम जन्मदिन, वैवाहिक व मृत्यु के तारीख के तर्ज पर ही शायद Women's Day, Mother's Day, Children Day, Father's Day, Valentine's Day जैसे के मनाने के लिए एक दिवस को चयनित कर सीमा में बांध दिया। जबकि यह सारे दिवस एक दिवसीय नहीं होते ये तो रोज के दिवस है पर हम सभ्य सामाजिक प्राणी है ख़ुशी के इजहार के लिए एक दिन चयन कर लेते है। क्या हम सिर्फ उस एक विशेष घोषित दिन को ही उन्हें बधाई देते है, उनसे आशीर्वाद लेते है या रोज ही आशीर्वाद लेते है या चिंतन करने योग्य बात है। हम दिल की गहराई से चिंतन जरुर करें।


आज समाज का हर वर्ग जब इस दिवस के लिए बधाई प्रेषित कर रहा है इसलिए मैं भी सभी के स्वर के साथ अपना एक स्वर मिलाते हुए आज के दिवस की बधाई देता हूँ। परन्तु मेरी यह बधाई / शुभकामना सिर्फ आज के लिए ही नहीं है। मेरी बधाई / शुभकामना शक्ति की प्रतिक नारी को सदा के लिए समर्पित है।


हम मूलतः नारी को माँ, बहन, जीवनसंगनी या बेटी के रूप में देखते है।


माँ हमें संसार में जन्म दे हमारा पालन पोषण कर शिक्षा दे हमें अलग पहचान देती है।


भाई बहन का सबसे पवित्र रिश्ता भावनओं के तार से जुड़ा होता है बहन जब कलाई में मोली के कच्चे धागों को भावनाओं के स्नेहाशीष से अटूट शक्ति भर बाँधती है जिससे भाई की रक्षा होती है।


जीवनसंगनी विवाह के पश्चात अपने माता - पिता का घर छोड़ जीवन भर 7 वचनों के पवित्र संकल्पों से अपने पति का साथ हर कदम पर देते हुए उसके परिवार का साथ जीवन भर निभाती है।


बेटी एक ऐसी अनमोल कड़ी है जो एक घर नहीं दो घर (जन्म लेकर पिता के घर, विवाह बाद पति के घर) को रौशन करती है।


हम नारी को दुर्गा, सरस्वती व लक्ष्मी के रूप में भी देखते है। हम ध्यान से देखे तो ये तीनो रूप एक तरह से शक्ति के ही पर्याय है।


आज इस दिवस को कई जगह सशक्तिकरण के रूप में भी मनाया जा रहा है। मनाना भी चाहिए क्योकि नारी सर्व शक्तिशाली है संसार पुरुष प्रधान हो सकता है पर सहनशीलता और कार्य करने की असीम क्षमता नारी में ही देखने की मिलती जिसमें सहने की क्षमता हो वो ही शक्तिशाली हो सकता है। कमजोर में सहने की क्षमता नहीं होती है। इसलिए मेरा पुरजोर मानना है की प्रत्येक नारी दुर्गा, सरस्वती व लक्ष्मी की प्रतिबिम्ब होती है।


बस यह अलग बात है की शक्ति जिसके पास है वो उसे कैसे उपयोग करता है कैसे उस शक्ति के द्वारा सृजन करता है या विनाश करता है।


कई बार हम सुनते है नारी अबला है, कमजोर है पर मैं यह नहीं मानता मेरा व्यक्तिगत मानना है की शक्ति की प्रतिबिम्ब नारी को सिर्फ नारी ही दबा सकती है अन्य किसी में वो क्षमता नहीं जो शक्तिरूपी नारी से मुकाबला कर सके। क्योकि जो शक्ति एक नए जीवन को संसार में अस्तित्व प्रदान करती है वो कमजोर हो ही नहीं सकती समय आने पर वो सरस्वती रूप में बच्चे की पहली शिक्षक बन ज्ञान, संस्कार प्रदान करती है, लक्ष्मी रूप में विष्णु (पति) के सहयोग से शांति द्वारा समृद्धि लाती है हम सुनते ही है बुजुर्गो से की जहाँ शांति है वहा समृद्धि है वही अन्याय के खिलाफ जब खड़ी होती है तब लोगों द्वारा अबला कहे जाने वाली नारी दुर्गा, काली, चंडी का रूप ले लेती है। नारी कमजोर नहीं हो सकती क्योकि उसमे माँ समाहित है और किसी की उत्पत्ति माँ द्वारा ही हो सकता है। प्रसंगवश कह रहा हूँ  हमारी जिद्द / हट के आगे उसकी माँ, बहन, पत्नी व बेटी झुक जाती है इसका अर्थ यह नहीं की जो झुकता है वो अबला होता है वास्तिवकता यह है की ये हमारे स्नेह के कारण भी कई बार झुकती है। 

हम अध्ययन करे तो लगेगा की हम नारी शक्ति के अनगिनत उदाहरण पढ़ चुके, देख चुके और भविष्य में भी पढने और देखने को मिलेगा पर उस शक्ति को शक्ति माने कैसे यह बात कईयों को आज भी समझ नहीं आती। इसलिए आज सभी से मैं पंकज दुधोडिया कोलकाता से यही कहना चाहता हूँ की -


यह दिवस नहीं

सिर्फ

एक दिवस का

ये दिवस तो रोज

प्रतिदिन आता है।


प्रति दिवस करें हम

शक्ति रूपी को

नमन

जिनसे प्राणी

अस्तित्व पाता है।


"पंकज" कहता यही

हे शक्ति रूपी

स्विकारों बधाई

भावों से नित मेरी

जो अन्तर्मन देता है।।

रविवार, जुलाई 18, 2021

लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता - आचार्य महाश्रमण

 चातुर्मास हेतु शांतिदूत का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्य का प्रथम चातुर्मास

स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य


18 जुलाई 2021, रविवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान, तेरापंथ नगर आदित्य विहार, प्रातः 09 बज कर 21 मिनट पर जैसे ही शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महाश्रमण सभागार में चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया पूरा वातावरण 'जय जय ज्योतिचरण - जय जय महाश्रमण' के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। हर ओर श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा था। वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री का यह चातुर्मास प्रवेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्यों का यह पहला चातुर्मास है। आचार्य श्री के साथ भी प्रथम बार 200 से अधिक साधु-साध्वियां चातुर्मास में है। देश- विदेश की हजारों किलोमीटर पदयात्रा संपन्न कर मेवाड़ पधारे गुरुवर के स्वागत में सभी में उत्साह-उमंग की नई लहर छाई हुई है।


प्रशासनिक दिशा-निर्देश एवं कोविद गाइडलाइन के मद्देनजर प्रवेश जुलूस का आयोजन नहीं रखा गया था। साधु-साध्वियों की धवल पंक्ति के मध्य आचार्य प्रवर को मंगल प्रवेश करता देख सभी श्रद्धानत थे। भीलवाड़ा वासियों का वर्षों पूर्व देखा गया स्वप्न आज साकार हो गया, ऐसा लग रहा था मानो भीलवाड़ा शहर महाश्रमणमय बन गया हो।


स्वागत समारोह में आचार्य प्रवर ने कहा- इस संसार में जब मंगल की बात आती है तो कई चीजों का नाम आ सकता है। कोई मुहूर्त आदि को मंगल मानता है, तो कहीं गुड़, नारियल आदि को भी मंगल माना जाता है, परंतु ये सब उत्कृष्ट मंगल नहीं है। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल होता है। धर्म साथ में है तो फिर सदा मंगल है।अहिंसा, संयम, तप ये धर्म के लक्षण हैं। जीवन में अगर ये है, तो मानो धर्म है, अध्यात्म है। अहिंसा एक ऐसा तत्व है जो लोक में सबके लिए क्षेमंकरी है, कल्याणकारी है। आज समाज, राजनीति में भी अहिंसामय नीति होनी चाहिए। लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों जनता की भलाई के लिए होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता। अहिंसा, प्रेम-मैत्री से भी समस्या सुलझाई जा सकती है।


गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि- इस भारत देश में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं पंथनिरपेक्षता भी है। सबको अपनी रुचि अनुसार धर्म करने की छूट है। भारत एक आजाद देश है, आजादी के साथ संयम, अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता। साथ ही सत्ता में निस्वार्थ सेवा रूपी तप भी होना चाहिए। सत्ता में आकर अगर जनता की सेवा ना करें तो वह व्यर्थता है। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर सकता है।


चातुर्मास प्रवेश पर गुरुदेव ने कहा कि- यह चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्षभर यात्रा के पश्चात ये चार महीने ऐसे होते हैं जब साधु को एक स्थान पर रहना होता है। आज चातुर्मास हेतु यहां प्रवेश हुआ है। कितने ही रत्नाधिक व छोटे साधु-साध्वियां वर्षों बाद इस बार साथ में है। यहां की जनता भी जितना हो सके उतना धर्म का लाभ उठाएं। यह चातुर्मास उपलब्धिकारक रहे, मंगलकामना।


साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने उद्बोधन में कहा- आचार्यश्री एक महान यात्रा, विजय यात्रा कर यहां पधारे हैं। मेवाड़ के श्रावकों में विशिष्ट भक्ति है। चातुर्मास में सभी लक्ष्य बनाएं कि हमें गुरुवर की वाणी को आत्मसात कर जीवन में अपनाना है। यह सिर्फ भीलवाड़ा का ही नहीं पूरे मेवाड़ का चतुर्मास है।


स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य

शांतिदूत के स्वागत में पंजाब के महामहिम राज्यपाल श्री वीपी सिंह बदनोर विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर सांसद श्री सुभाष बहेरिया, विधायक श्री रामलाल जाट, विधायक श्री विट्ठल शंकर अवस्थी, नगर परिषद चेयरमैन श्री राकेश पाठक, जिला कलेक्टर श्री शिव प्रकाश नकाते, जिला पुलिस अधीक्षक श्री विकास शर्मा, राइफल संघ के जिलाध्यक्ष श्री अभिजीत सिंह बदनोर, वरिष्ठ एडवोकेट उमेद सिंह राठौड़ आदि अनेक गणमान्य जनों ने भी आचार्य वर का अभिनंदन किया।


स्वागत करते हुए राज्यपाल श्री वीपी.सिंह बदनोर ने कहा- यह मेरा परम सौभाग्य है जो आज मेवाड़ की धरा पर मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। आप के प्रवचन हम सभी का मार्गदर्शन करने वाले हैं। मेरी विनती है पंजाब की धरा पर भी आप पधारे। इस चातुर्मास से पूरे देश में धर्म की ज्योति जलेगी।


कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया, स्वागताध्यक्ष श्री महेंद्र ओस्तवाल, वरिष्ठ श्रावक श्री नवरतन झाबक ने अपने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी व व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री निर्मल गोखरू ने किया।

शुक्रवार, मई 15, 2020

सिद्ध और बुद्ध

पिछले दिनों वैशाख शुक्ला दशमी के दिन कई वर्ष पूर्व भगवान महावीर को सिद्धत्व की प्राप्ति हुई व वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भगवान बुद्धबुद्धत्व को प्राप्त हुए। वैसे तो दोनों शब्दों में कोई लंबा फर्क नहीं है।सिद्ध और बुद्ध दोनों ही करीब-करीब समानार्थी शब्द है। 

भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही करीब करीब समकालीन है,समकालीन ही नहीं दोनों भारत भूमि के उसी एक ही क्षेत्र से आते हैं जो वर्तमान में बिहार है और दोनों का अधिकतर विहार क्षेत्र भी वहीं रहा। चाहे राजगृह हो, चाहे नालंदा, चाहे वैशाली हो, चाहेमगध, चाहे पाटलिपुत्र। उनके अधिकतर चातुर्मास व विरहण इसी क्षेत्र में हुए। दोनों राजकुमार थे। दोनों ने विवाह किया। भगवान महावीर के पुत्री हुई है, एसा श्वेतांबर संप्रदाय मानता है और भगवान बुद्ध के 1 पुत्र था। भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही यौवन काल में घर गृहस्थी छोड़ के, राजमहल त्याग के, सन्यास की ओर मुड़े। सन्यास जीवन में ध्यान और तप कर आगे बढ़े। सिद्ध और बुद्ध बने दोनों ने श्रमण संस्कृति को आगे बढ़ाया।

कहा यह जाता है उस जमाने में करीब आठ-नौ लोग अपने आपको तीर्थंकर कहा करते थे और सब के सैकड़ों शिष्य बनाए थे। बुद्ध वमहावीर के भी थे और आज अढ़ाई-तीन हज़ार वर्ष बाद केवल बुद्ध व और महावीर का नाम रह गया। लोग भूल गए पुण्य कश्यप को,अजीत केश काबली को या मैं बात करूं मंखली पुत्र गौशालक की व प्रबुद्ध कात्यायन की, सबके अपने-अपने दर्शन थे और उन दर्शन के आधार पर ही इन सब का एक विभाजक रेखा बनी हुई थी।

लेकिन महावीर और बुद्ध तब से आज तक अपनी परंपरा के अनुसार चले आ रहे हैं और श्रमण संस्कृति के पुरोधा के रूप में दोनों की एक अपनी पहचान भारतीय संस्कृति में सदा के लिए अंकित है। दोनों महापुरुष एक ही महीने में सिद्ध - बुद्ध बने। एक ही समय में एक ही क्षेत्र में बिचरण किया और उन्हीं राजाओं को जो कि हिंसक थे,उन्हें अहिंसा का पाठ पढ़ाया। चाहे बिंबिसार, श्रेणिक हो, उदयन हो, चंड-प्रद्योत, इन सब राजाओं को उन्होंने अपने ज्ञान के द्वारा अनुयायी बनाया और अपनी शिक्षाएं उन्हें दी। हजारों लाखों लोगों को जीवन में अहिंसा का पाठ पढ़ाया, अपरिग्रह बताया और अपने संघ का अनुयायी बनाया।

मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा मेरे पापा जी की एक कविता का जहां उन्होंने बताया है

गंगा तो है एक, उसके घाट हैं अनेक,
हर घाट में कूदकर, व्यक्ति पा सकता है, असीम प्रभाह
और डुबकी लगाकर, पूरी कर सकता, निर्मल बनने की चाह
इसी तरह सत्य और अस्तित्व की गंगा से,
जो होना चाहता एकाकार
संकल्प और श्रम के तीर्थ से छलांग भरकर
जो पावन हो, उतरना चाहता उस पार
उसके लिए, तुमने श्रमण संस्कृति के तीर्थ का किया नवनिर्माण
तपोनिष्ठ ध्यान योगी बनकर, कहलाए तुम तीर्थंकर महान।

महावीर ने जहां पांच महाव्रत बताएं बुद्ध ने वही अष्टयाम धर्म बताया। महावीर के बात को गौतम और सुधर्मा ने आगे बढ़ाया, बुद्ध की बात को आनंद आदि शिष्य ने आगे बढ़ाया। वैसे कई विदेशी लेखक दोनों को एक मानते हैं क्योंकि उन्हें इनके इतिहास की, इनके परिवार की, इनके परिवेश की जानकारी नहीं है लेकिन दोनों का एक अपना अपना अलग-अलग महत्व है और अलग-अलग दर्शन है। कई बातें जैन धर्म मानता है वह बौद्ध धर्म नहीं मानता। बौद्ध धर्म में आत्मा का इतना महत्व नहीं है;जैन धर्म आत्मकृतत्ववाद के आधार पर ही आधारित रखता है।

यहाँ ऐसा भी कहा जाता है भगवान महावीर और बुद्ध आपस में कभी मिले या नहीं मिले, बहुत बड़ा प्रश्न है? दोनों समकालीन थे, क्षेत्र एक ही था और दोनों का मिलन क्यों नहीं हुआ, जब मिलन हुआ तो उसके बारे में कहीं कोई बात ना आगमों में आती है न ही त्रिपिटक  मेंआती है।

मेरे पिता श्री ने इस पर भी एक कविता के माध्यम से अपनी बातकही है कि

यही सही है कि कभी मिले नहीं बुद्ध और महावीर
और यह भी सही है कि उनके अंदर जागृत चेतन एक सा था
यद्यपि उनके अलग से शरीर
वे भी मिल लेते तो अलग दिखता न आकार
और अलग रहे तो भी उनका रहा एक ही प्रकार
मिलने पर केवल हृदय बोलता मौन हो जाता वचन
अंतर में दोनों के प्रभावित हो रहा था एक सा ज्योतिर्मय जीवन
ज्ञानियों के बीच बात हो सकती है पर होती न कभी
और अज्ञानी बात कर नहीं सकते पर बहुत बोलते सभी
दोनों का असीम केवल-ज्ञान शब्दों में होता नहीं आबद्ध
और उनकी अपूर्व मुक्त चेतना तन में रही नहीं प्रतिबद्ध
यह तथ्य है कि कभी मिले नहीं उनके तन
और यह सत्य है कि मिलता रहा
सदा सर्वदा उनका जागृत चेतन।

ऐसे दोनों प्रणम्य पुरुषों को मैं प्रणाम करता हूं और भारतीय संस्कृति के इन दोनों पुरोधाओं को जिन्होंने हमें जीवन जीने की कला में नवीनता बताइए और हमें साधना के आधार पर जीवन को जीना सिखाया है। हमें इनके बारे में पढ़कर अपने जीवन मैं सार्थकता लानी है। इन्हें भी समझना है, जानना है, पढ़ना है और आने वाली पीढ़ी को इनके बारे में बताना है। बता तभी पाएंगे जब हम स्वयं जानेंगे अन्यथा कोरे रह जाएंगे। मानव जीवन मिला है कोरा ना रहे और कुछ ना कुछ आध्यात्मिकता जीवन में जरूर रहे। यही बुद्ध व महावीर ने सिखाया यही समझाया है।


रचनाकार: श्री मर्यादा कुमार कोठारी, (आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष , अणुव्रत महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री रह चुके हैं।)


सोमवार, अप्रैल 06, 2020

तीर्थंकर का समवशरण कैसा होता है ? : प्रियंका गादिया

तीर्थंकर के केवल कल्याणक के बाद देवता समवशरण की रचना करते हैं समवशरण खुला प्रवचन स्थल होता है इसके चारों तरफ तीन कोट चकरा कार दीवार होती है पहला कोट चांदी का होता है उस पर सोने के रंग कंगूरे होते हैं उस कोट के भीतर 1300 धनुष का अंतर छोड़कर दूसरे सोने का कोट होता है उस पर रत्नों के कंगूरे होते हैं फिर उसके भीतर 1300 धनुष का अंतर छोड़कर रत्नों का बना हुआ तीसरा कोट होता है उस पर मणि रत्नों के कंगूरे होते हैं इस कोर्ट के मध्य में 8 माह प्रतिहार य से युक्त तीर्थंकर भगवान पद्मासन में विराजमान होकर भगवान प्रतिभूति भावना से धर्म देशना देते हैं

प्रियंका गादिया , राजगढ़

महावीर प्रभु की वाणी दुनिया को आज अपनाने की ज़रूरत है - जयंत सेठिया

दुनिया वालों याद करो महावीर प्रभु की वाणी को
आज ज़रूरत दुनिया में इस वाणी की हर प्राणी को

जब सम्पूर्ण विश्व आज एक समस्या से सामना कर रहा है ऐसे समय में भगवान महावीर के सिद्धांत वर्तमान की आवश्यकता है।
पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला ने बालक वर्धमान को जन्म दिया। वर्धमान से महावीर तक का सफ़र आसान नहीं था, संसार के सुख-वैभव छोड़कर अपनी इच्छा से कष्ट सहन करना, जब तक माता-पिता जीवित हैं तब तक उनकी सेवा और तत्पश्चात् अपना सम्पूर्ण जीवन संसार के कल्याण के लिए अर्पित करना, अवतरित महापुरुष ही इस पथ पर चल सकते हैं।
भगवान महावीर ने आत्मा को महत्व देते हुए बताया की प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है, आनंद बाहर से नहीं आता.
भगवान ने असली शत्रु लालच, द्वेष, क्रोध, घमंड, आसक्ति इत्यादि को बताया और कहा ये शत्रु हमारे भीतर रहते हैं, इन पर विजय प्राप्त करना बाहरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने से बेहतर है।
हर जीवित प्राणी, चाहे वह एकेंद्रिय हो या पंचेंद्रिय, के प्रति समभाव और दयाभाव ही अहिंसा है, घृणा से मनुष्य का विनाश होता है। भगवान ने अहिंसा के महत्व को बताया।
भगवान महावीर ने अपने जीवन को रोशन करने के साथ-साथ दूसरों के जीवन के अंधेरे को भी दूर करते हुए जैन धर्म प्रतिपादित किया। जीवन में मोक्ष पाने के हर रास्ते पर पहले स्वयं चले जिसमें भव्य सफलता प्राप्त करने के बाद उन्होंने जगत को बताया की मनुष्य जीवन मोक्ष पाने की उत्तम सेवा है और पिछले जन्मों में किए हर बंधन से मुक्त होने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
तप, धर्म और दया इन बातों को प्राप्त करने के लिए अपने जीवन में साढ़े बारह वर्षों तक कठोर साधना करने के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और बाद में परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त किया। 
आत्मा को परमात्मा बनाने वाले और दुनिया को अहिंसा सिखाने वाले भगवान महावीर का जन्म कल्याणक  मनाना तब सार्थक होगा जब हम महावीर के दिए उपदेशों को जीवन में अपनाएँ।

जयंत सेठिया, गंगाशहर

रविवार, मार्च 15, 2020

कोरोना मार्केट मंदी सोशल मीडिया और जागरूकता : करुणा कोठारी

श्रीमती करुणा कोठारी
आज पूरा विश्व एक ही डर के साये में जी रहा है,पूरे विश्व मे एक आतंक है। आपसी मतभेदों को भुला कर आज सब साथ खड़े है। एक छोटे से वायरस ने ना सिर्फ आम जनजीवन को प्रभावित किया है वरन पूरे विश्व मे एक इमरजेंसी जैसा माहौल बना दिया है। आर्थिक मंदी से जूझते विश्व मे कोरोना के कारण गिरावट आई है। वैश्विक मार्केट पर इसका सीधा प्रभाव दिख रहा है।

इससे पूर्व भी कई बार विभिन्न आपदाओं के कारण विश्व आर्थिक मंदी से गुजरा है,कई बीमारियों के कारण विश्व के हालात पर भी असर पड़ा है। फिर इस बार अचानक इतना व्यापक रूप कैसे लिया वायरस ने। इसे इतनी व्यापकता के साथ फैलाने में कही ना कही एक महत्वपूर्ण रोल सोशल मीडिया ने भी निभाया है।

कोरोना वायरस कोविड 19 जिसकी पुष्टि चीन के वुहान शहर में सबसे पहले हुई और फिर अचानक से पुर चीन में इस वायरस के पेशेंट दिखाई देने लगे। चीन में अभी न्यू ईयर का माहौल होता है और ये वक़्त होता है जब चीन की अर्थव्यवस्था उछाल पर होती है। लेकिन इस वायरस ने लोगो को घर तक सीमित कर दिया व्यापार ठप्प हो गया। चीन में सबसे ज्यादा उपभोक्ता है जिसके कारण विश्व की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में चीन का योगदान भी है।साथ ही आयात के साथ निर्यात भी बंद हो गया। विधवा के कई देश कई चीजों के लिए चीन पर निर्भर है जिसमे मोबाईल से लेकर रोजमर्रा की चीजें भी है।

पहले से आर्थिक मंदी का असर विश्व के कई देशों पर दिख रहा था लेकिन अब तो अमेरिका जैसे देश पर भी ये संकट महसूस किया जा सकता है।

चीन के सामानों का उपभोक्ता मार्केट में पिछले 10 से 15 वर्षो में ज्यादा बड़ा है। हर छोटी बड़ी वस्तु को सस्ता करके लोगो मे एक तरह से उनकी लत ही लगा दी गई। चीन में शायद सबसे ज्यादा रिसर्च यही होती है कि किस तरह आम आदमी के बजट में हम नवीन वस्तुओं को लांच कर सके और ये कहना गलत नही होगा कि इसमें चीन सफल भी हुआ है।

लेकिन आज जब चीन मार्केट बंद है तो स्थानीय स्तर पर वही वस्तुए अधिक या दुगुने दाम में भी बिक रही है। ऐसे माहौल में व्यक्तिगत रूप से भी मंदी बढ़ेगी,जो लोग इस बीमारी के कारण शाकाहार की ओर बढ़ रहे है और घर के खाने को ज्यादा महत्व दे रहे है उसका असर होटल व्यवसाय ओर किराना स्टोर पर दिख रहा है।

हैंड वाश ओर सेनिटाइजर जिनके दाम पिछले कुछ दिनों में जिस तरह बड़े है क्या आम व्यक्ति की पहुंच में है एक व्यक्ति जो सड़क पर अपना ठेला लगा कर परिवार का पालन करता है ये सब उसकी पहुँच से बाहर है,उसका व्यवसाय तो लगभग बंद ही हो गया है।

सरकार को इस समय इस तबके विशेष के लिए भी सोचना आवश्यक है जिनके लिए 2 जून की रोटी मुश्किल है वो कोरोना से बच कर भुखमरी की गिरफ्त में ना पहुच जाए।

सोशल मीडिया पर कोरोना से बचाव के जितने मेसेज आ रहे है उनकी सत्यता संदिग्ध है। फिर वो कोई भी मेसेज क्यो ना हो यहाँ किसी खाने की चीज का या कुछ और करने का लिख कर हम उस मेसेज को आगे नही बढ़ाना चाहते।

लेकिन जब तक उनकी सत्यता सिद्ध ना हो हम ऐसे बिना प्रमाण वाले निम हकीम से दूरी ही रखे। जिस तरह गाड़ी के पीछे लिखा होता है कीप डिस्टेंस दूरी बनाए रखे बस इसी लाइन को अपने जीवन मे अपना ले और शारीरिक रूप से दूरी बनाए रखे। हाथ मिलाने की बजाय नमस्ते कहे हाथ पैरों को अच्छे धोए किसी से बात करते समय मुह पर मास्क या कपड़ा रखे।घर से बाहर जाते समय मास्क का उपयोग करे ये कोरोना के साथ प्रदूषित हवा से भी बचाएगा। सर्दी खांसी सांस फूलना बुखार आना चाहे मौसमी ही क्यो ना हो डॉ से जल्द से जल्द सम्पर्क करें।

क्योकि बचाव ही सुरक्षा है। प्रतिदिन प्रातः उठते ही ओर रात को सोने से पूर्व अपने सकारात्मक प्रार्थना अवश्य करे कि आप स्वस्थ है आपकी रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति अच्छी है।आपका मन शांत है,आपके भीतर की ऊर्जा आपके मनोबल को मजबूत कर रही है और आप खुश है।

किसी भी प्रकार के डर को खुद पर हावी ना होने दे व्यस्त रहे जिससे फालतू की बातों से दूर रह सके,ओर सिर्फ सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी की बातों पर ध्यान दे।सोशल मीडिया पर कोई मेसेज आये जीसमे किसी भी इलाज की जनकारी हो तो उसे फॉरवर्ड करने से पहले देख ले कि वो सम्बंधित संस्था के लेटर पेड़ पर है या नही।अपवाहों को फैलने से रोकना भी कोरोना को रोकने के लिए एक सफल प्रयास ही होगा।

देश जिस विकट हालातो का सामना कर रहा है उस समय सब एकजुटता से एकसाथ खड़े रहे।

लेखिका प्रबुद्ध मोटिवेशनल स्पीकर, विचारक होने के साथ साथ JTN मुम्बई की प्रतिनिधि भी है।

रविवार, दिसंबर 29, 2019

टोडरमल जैन की धार्मिक सहिष्णुता और उदारता की प्रेरणास्प्रद कहानी - डॉ अनेकांत कुमार जैन

2016 में महावीर जयंती के दिन मुझे पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरु ग्रन्थ साहिब वर्ल्ड यूनिवर्सिटी में एक अन्ताराष्ट्रीय सम्मेलन में जैनदर्शन पर व्याख्यान देने हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ| फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला का मुख्यालय है। यह जिला सिक्‍खों की श्रद्धा और विश्‍वास का प्रतीक है। 

पटियाला के उत्‍तर में स्थित यह स्‍थान ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। सिक्‍खों के लिए इसका महत्‍व इस लिहाज से भी ज्‍यादा है कि यहीं पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को सरहिंद के तत्‍कालीन फौजदार वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। उनका शहीदी दिवस आज भी यहां लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरुद्वारों का शहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां पर अनेक गुरुद्वारे हैं जिनमें से गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का विशेष स्‍थान है। 

वहां के जागरूक शोधअध्येताओं ने मुझसे जैनदर्शन पर बहुत अभिरुचि प्रगट की ,वे मुझे वहां के उस प्रसिद्द गुरूद्वारे ले गए जहाँ गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों पुत्रों को वहां के नवाब ने दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था | 

इसी सन्दर्भ में उन्होंने वहां के दीवान टोडरमल जैन की उदार दृष्टि की जो कथा सुनाई वह मुझे पता ही नहीं थी , उन्होंने बताया कि  -

तीन सौ वर्ष पहले सरहिंद में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों को दीवार में चिनवाने के बाद उनके व दादी मां के पार्थिव शरीरों को अंतिम संस्कार के लिए नवाब जगह नहीं दे रहा था , उसने शर्त रखी कि अंतिम संस्कार के लिए जितनी जगह चाहिए उतनी जगह स्वर्ण मुहरें बिछा दो , वहां के सुप्रसिद्ध नगर सेठ टोडरमल जैन ने यह जिम्मेदारी  अपने ऊपर ले ली, और स्वर्ण मुद्राएँ बिछा दीं , नवाब का लालच बढ़ गया और फिर उसने कहा कि स्वर्ण मुद्राएँ खड़ी करके बिछाओ लिटा का नहीं, टोडरमल जी ने फिर भी शर्त मान ली और खड़ी स्वर्ण मोहरें बिछा दीं और अंतिम संस्कार हेतु जगह ली |

 नवाब से स्वर्ण मोहरें बिछाकर भूमि प्राप्त करने वाले दीवान टोडरमल जैन का नाम भी तीर्थ भूमि सरहिंद से जुड़ा है। सामाना में जन्मे व माता चक्रेश्वरी देवी के उपासक टोडरमल जैन जमीनी मामलों के जानकार होने के कारण सरहिंद के नवाब वजीर खां के दरबार में दीवान के पद पर असीन हुए। उन्होंने नवाब से सोने की मोहरों के बदले भूमि लेकर उन तीनों महान विभूतियों का स्वयं अंतिम संस्कार किया। उसी स्थान पर फतेहगढ़ साहिब में गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप बना हुआ है जिसके बेसमैंट का नाम सिख समाज ने स्मृति स्वरूप दीवान *टोडरमल जैन हाल* रखा है।
उसके बाद वे वहां स्थित जैन मंदिर ले गए जहाँ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी की अधिष्ठात्री चक्रेश्वरी देवी का एकमात्र ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर, सरहिंद शहर के चंडीगढ़ रोड पर स्थित है। यहां 12वीं सदी से लगातार माता जी के श्रद्धालु विशेषत: खंडेलवाल बंधु अपनी कुलदेवी के रूप में माता जी की पूजा-अर्चना के लिए आते रहे हैं।पास में ही तीर्थंकर आदिनाथ का एक सुन्दर श्वेताम्बर मंदिर भी है|

उन्होंने बताया कि12वीं शताब्दी में मारवाड़ में भीषण अकाल के कारण पंजाब की ओर लोगों ने पलायन किया। जैन खंडेलवाल परिवारों का एक जत्था कांगड़ा में विराजित भगवान ऋषभ देव के दर्शनों के लिए बढ़ रहा था जो सरहिंद में एक रात्रि के लिए रुका। अगली सुबह अधिष्ठात्री कुलदेवी की पूजन शिला वाली बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी। दूसरी रात्रि भी वहीं रुकना पड़ा, तब आकाशवाणी सुनाई दी-मेरा स्थान आ गया है। मेरा भवन यहीं बनवाया जाए। भक्तों ने वहीं पर मंदिर बनवाया और स्वयं भी सरहिंद एवं पंजाब के अन्य शहरों में बस गए परन्तु सरहिंद में माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान पर निरंतर आते रहे।

मैंने वहां देखा कि तीर्थ परिसर में विशाल धर्मशाला, विश्राम घर, खुले लॉन, भोजनशाला आदि की सुचारू व्यवस्था है। अपने गौरवपूर्ण व स्वर्णिम इतिहास तथा श्रद्धा का व्यापक आधार होने के कारण माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान को अब अखिल भारतीय जैन तीर्थ होने का भी गौरव प्राप्त है।वहीँ दीवार पर बने टोडरमल जी के दो चित्र भी इस लेख के साथ संलग्न हैं |

इस पूरी कहानी से यह पता चलता है कि जैन समाज अपने से अन्य धर्म और धार्मिकों के प्रति कितनी उदार दृष्टि रखता आया है | जैनों द्वारा इस प्रकार की धार्मिक सहिष्णुता के हजारों किस्से हैं | आज सिर्फ आवश्यकता है उनके इन सार्वजनीन सार्वभौमिक कार्यों को उजागर करने की ,क्यों कि उदारता की एक परिभाषा अपने दान को उजागर नहीं करने की भी रही है ,शायद इसीलिए भी इस प्रकार की नज़ीर दुनिया के सामने नहीं आ पातीं । 

आज साम्प्रदायिक द्वेष के काँटों भरे पेड़ों को ज्यादा सींचने के दुर्भाग्यपूर्ण माहौल के बीच इस प्रकार के उदाहरणों को प्रेरणा एवं सामाजिक सौहार्द के लिए सामने रखना ज्यादा आवश्यक हो गया है । 

आप अपने विचार मुझे email भी कर सकते हैं ।

डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली 
drakjain2016@gmail.com

रविवार, अगस्त 04, 2019

दोस्ती मेरी नजर में.......


मित्रता मात्र एक शब्द ही नहीं है,
ये विश्वास है, जीने का श्वास है।
दिल कहता है ये इतना अटूट है,
ये दोस्ती ही दोस्तो की जान है।।
ये रिश्ता इतना गजब रिश्ता है,
जो किसी का मोहताज नही है।
इसमें चुम्बक जैसा आकर्षण है,
"पंकज" ये दिल कुछ कहता है।।
बंधुत्व दिवस पर सभी दोस्तों को ढेरों बधाई। दिल तो एक - एक दोस्त को नाम लेकर बधाई देना चाहता है। आज का दिन इतना विशेष है कि जिसे शब्दो से बंधना असंभव है पर इस रिश्ते को विश्वास के डोर से बंधा जा सकता है क्योकि इसकी नींव ही विश्वास है।
यह वह रिश्ता है जो किसी जाती, धर्म, सम्प्रदाय, रंग, रूप आदि का मोहताज नही। यह वह रिश्ता है जो हम जन्म के बाद से स्वयं बनाते है। कुछ अच्छे दोस्त बनते है तो कुछ खराब। मेरा मानना है कि जन्म के साथ कोई दोस्त बनते है तो वो माँ-बाप बनते है, फिर आगे चलकर स्कूल, कॉलेज, समाज, व्यापार आदि के माध्यम से संपर्क में आये लोग दोस्त बनते जाते है। विवाह उपरांत पति पत्नी दोस्त बन जाते है। कभी पिता पुत्र , कभी माँ बेटे, कभी पति पत्नी तो कभी अनजान पहचान वाले भी मित्र बन जाते है। सिर्फ इंसान ही क्यों पशु पक्षी भी दोस्त बन जातें है। आखिर ऐसा क्या कमाल है इस दोस्ती में हो हर कोई जुड़ता जाता है दोस्त बनता जाता है। यह चुम्बक सा आकर्षण आखिर क्या है जो सबको एक दूसरे के प्रति आकर्षित करता है। कुछ तो खास बात जरूर है इसमें तभी हम दोस्त बनाते है।
मुझे अर्हत वंदना की पंक्ति मित्ति में सव्व भुवेसु....... स्मृति में आता है तो समझ आता है कि सभी मेरे मित्र है कोई शत्रु नही है।
मुझे मेरे खास परिचित भाई चंदन पांडे जी की वो बात स्मृति में आ गई जो कुछ दिन पहले उन्होंने कही थी -
👉 मित्र एक शब्द नहीं बल्कि भावनाओं का वह महासागर है, जिसमें डुबने का भी अथाह आनंद है। सारे रिश्ते व्यक्ति को जीवन में पूर्व निर्धारित रूप में प्राप्त होते हैं, किन्तु मित्रता एक ऐसा रिश्ता है, जिसका निर्माण भावनाओं के सम्यक् मिलाप से उत्पन्न होता है। मित्रता तो वह होती है जो विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत दीवाल की तरह अडिग होती है। जिससे टकराकर जीवन में आने वाला भूचाल भी मुंह की खाकर लौटता है।
मित्रता भावनाओं का वह ज्वार है, जो शब्द की सीमा से परे है। मित्रता सम्पूर्ण समर्पण है एक-दूसरे के प्रति। मित्रता विश्वास की पराकाष्ठा है एक-दूसरे के प्रति।
👆उपरोक्त बात कितनी सटीक है वाकई में इस मित्र शब्द की गहराई इतनी गहरी है जो विश्वास के बिना समझ पाना असंभव है। विश्वास की हर स्थिति परिस्थिति से ऊपर है। मित्र के उदहारण में कृष्ण और सुदामा की मित्रता अपने आप मे मिशाल है जहाँ एक अमीर तो दूसरा दरिद्र पर दोनों का परस्पर स्नेह आपस मे एक दूजे के प्रति निश्चल विश्वास के धागे से बंधा हुआ था। यही तो है मित्रता जो किसी स्वार्थ का मोहताज नही होता जहा होता है तो सिर्फ विश्वास विश्वास और विश्वास।



शुक्रवार, मई 14, 2010

Acharya Mahapragya

Sun can feel proud of it self if it pierces the dense layer of clouds and provides light to the earth. An artist is satisfied if he engraves and creates a lively statue from a huge unshaped rock. Acharya Mahapragya was one such personality who was gifted with both the virtues. A difficult job is encouraging for those who are transparent towards their goal and their commitment to serve mankind is evident. Nourishment amid darkness is meaningful only if it has ability to converge into light. “Nathu” as he was called in his childhood encouraged himself and got the nourishment to become Mahatma “Mahapragya”. Acharya Mahapragya born to Tolaramji Choraria and Baludevi Choraria at Tamkore (a small village in Jhunjhunun district of Rajasthan, India) in Choraria family was famous for his simple undeveloped image. But once he was admitted to monk hood by Acharya Kalugani, the 8th Acharya of Terapanth Order, he began his steps of the long journey of about 80 years under able guidance of Acharya Shri Tulsi. His determination, devotion, effort, politeness, sense of gratitude and his journey around soul enabled him to make great contribution to the society and world at large by discovery of modern meditation techniques named – ‘Preksha Meditation’ and ‘Science of Living ‘ to teach people the art of living purposeful life.
His enlightened spirituality has offered great solution to the modern world problem of terrorism, nonviolence and economic imbalances. His philosophy of relative economics offers amazing solution to the modern economic recession and related problems. His way of presentation of the teachings of Lord Mahavira i.e. principles of truth, non-stealing, non-violence, practice of chastity and non possessiveness have made Lord Mahavira more meaningful in the present scenario.

He has in the young age of about 80 years commenced the Ahimsa Yatra and studied the root causes of violence and has been regularly preaching people to remove those evils to eradicate terrorism and violence from the earth. Besides the Study of the modern problems he never ignored the smallest unit of the institution named family. He always preached to develop Equanimity, amity, assurance, compassion, affection, tolerance, endurance, encouragement of others to have peaceful co existence. He was a world renowned philosopher, writer of hundreds of books and commentaries. Even though he did not complete formal primary education, he has created such literary works that many research scholars have completed their Phd. on his literature.

Being a member of the Choraria Family of Tamkore, I too feel proud of the contributions made by His Holiness. His glorified effort has made the tiny village of Tamkore more prominent on the World Map.

The news of his untimely demise came as a great shock to our family. We are deeply saddened. a large vacuum has been created. I pray for his spiritual journey abode. May his soul get liberation from the bondage of karma and attain Moksha soon. I pray for myself to apply his teachings and experiments for spiritual development of my own soul.
I bow with folded hands –
OM NAMAH MAHAPRAGYA GURUVAI NAMAH !

FROM: SUSHIL KUMAR JAIN (CHORARIA), TAMKORE, KOLKATA

Acharya Mahapragya cremated Raj Sadosh



Sriganganagar/Abohar, May 10
Acharya Mahapragya, the 10th Acharya and supreme head of the Jain Swetambar Terapanth community was cremated today evening in Sardarshehar — the place where he gained monkhood and where he was staying for the past few days to conduct Chaturmaas.

Former President Abdul Kalam, who had co-authored a book with the Mahapragya, too turned up and said “I have come here for ‘antim darshan’ of the great saint and philosopher".
Special emissaries of President Pratibha Patil, AICC president Sonia Gandhi and Gujarat Chief Minister Narendra Modi visited the town to deliver condolence messages. Modi was expected to attend the funeral procession but the programme was changed.
Baikunthi (procession carrying body of the deceased saint) was taken out from Shree Samvasaran complex where tens of thousands of devotees had made a beeline to have ‘antim darshan.’ People stood on both sides with folded hands, most of them bowing heads in reverence as the procession proceeded to the cremation ground through main roads of the historic town.
Punjab Governor Shivraj Patil said in his message, “The Acharya was a great sage and philosopher who gave a new direction to Anuvrat movement and spread the message of non-violence through his Ahimsa Yatra.”
Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot, his cabinet colleagues and other prominent people, attended the funeral along with Rajasthan Pradesh Congress president and Central minister CP Joshi. “He was a guru to all, including followers of other communities,” said state home minister Shanti Dhariwal. Gehlot said, “The country has lost a great guru and a social reformer.” Former CM Vasundhara Raje and Rajasthan BJP president Arun Chaturvedi too condoled the demise.
Notably, late Indian President S Radhakrishnan had termed Acharya Mahapragya (then known as Muni Nathmal) as one of the two finest philosophers of modern India along with Swami Vivekananda. Acharya Mahapragya is credited with the formulation of the ‘preksha’ meditation system in 1970s. He was also the supreme head of Jain Vishva Bharati University and played a key role in its establishment. He also took forward the Anuvrat movement launched by Acharya Tulsi.
- Lalit Garg

A brilliant mind – a beloved teacher — Sudhamahi Regunathan—


It is a struggle to find the right words to describe Acharya Mahaprajna. Either idolatry adjectives describe him best, like ‘the greatest saint’, “an apostle of peace”, ‘a supermind’ and so on. Or they fall wide off the mark and are tame semblances to the perfect picture. Acharya Mahaprajna referred to himself as an ascetic or a student of philosophy. So be it.

On Sunday the 9th of May 2010, Acharya Mahaprajna, the tenth spiritual head of the Terapanth Jain community left his bodily abode. The world lost a brilliant mind and the most twinkling pairs of eyes of his generation. Many people lost their precious teacher. He was ninety.

Nathmal, as his parents had named him, was the only son of businessman Tolaram and his wife Baluji. He was born on 14 th June 1920 in the village of Tamkor , Jhunjhunu district, Rajasthan. Even as Nathmal was playing with his friends, a sage passing through the village prophesied that this young boy would one day be a leader among men.

The little boy adjusted his pride possession, the gold watch and ran home, unaware of importance of what the saint had said. A few years later destiny saw Nathmal initiated into monk hood on 18th February 1930.

In today’s world of wondering and whimsical morals, Acharya Mahaprajna’s challenge was to be still relevant as a custodian of high principles and purity of heart. If he was equal to it, it was not just because of his erudition but also because of his alert mind which was in step with the ever-changing world with clarity and curiosity, not to mention humour.

Acharya Mahaprajna combined in his detachment, the best of enlightenment with an almost naive romanticism. And yet as a leader of a community he could take all kinds of people in his stride.

While Acharyaji practiced a religion that is seen as severe and dry ...he was anything but that. A sensitive writer, he wrote in every genre ranging from poetry to philosophy imbuing his writings with a sensitivity that was polished and subtle. Using his strength of self restraint like a musician uses a moment’s pause in his choreography Acharyaji wove layers of meaning into his writings.

Acharya Mahaprajna wrote in Hindi, Sanskrit and Prakrit. Elegance and logic are central to his writing be it in their clarity of thought, choosing the right word, not to mention writing with an element of suggestion and not with aggressive assertiveness.

Nonviolence was his religion. He saw it as the only solution to the problems of today and has written many books explaining its role in creating a peaceful society. He has also unfurled the idea of nonviolence in many aspects: as the other name for diplomacy, as respect for fellow beings and so on.

Walking across the length and breadth of the country became Acharya Mahaprajna’s method of seeking the truth. His interaction with people of diverse backgrounds and beliefs made him further develop the Jaina philosophical principle of anekanta which says everything is relative; even truth. Extending this idea as his basis for peaceful co-existence, this social artist - a communicator; a private, often enigmatic person was nonetheless keen to be widely and clearly understood, so as to draw more and more people towards a harmonious way of life.

Acharya Mahaprajna’s urge to communicate was not born of self aggrandizement for it spun far beyond his writings. He developed a system of meditation to nurture and protect the spirit of human kind. The problem of the present generation which would be bequeathed to the future, Acharya Mahaprajna said would be one of emotional imbalances. To keep control over emotions was a contemporary interpretation of the Jaina dictum for detachment. How to manage life and your mind without needing to become an ascetic?

In answer to this question he developed a system of meditation called Preksha dhyan which though eventually led you to moral edification, ans could in shorter spells calm the mind to attend to day to day matters without stress.

That which makes a lasting impact on everyone’s mind after a meeting with Acharya Mahaprajna is his affability. He was deeply revered and respected by not just the disciples in his fold and community members but also by intellectuals and influential people from all over the country. Under his patronage, urged by Dr. A.P.J Abdul Kalam, former President of India, Acharya Mahaprajna founded an organization for unity of religions and enlightened citizenship. The spiritual leaders from nine different religions who came together on the occasion had no hesitation in accepting Acharya Mahaprajna’s leadership.

When someone precious and deeply revered is no more, the happiest memories get recollected with regret bordering on sorrow. With Acharyaji there is a compulsive urge to fight such an expression. He gave so much so many people; he touched so many lives that one must be resolute, as perhaps he would have too, on treasure his influence beyond mourning.

So Acharya Mahaprajna lives on in many ways: first and foremost in the memories he leaves for those lucky enough to have known him or heard him speak, secondly in the system of meditation, preksha dhyan and thirdly in one of the most impressive and important bodies of work on philosophy and Jainism.

Lalit Garg