मंगलवार, अक्तूबर 22, 2024

हे महाश्रमण ! मैं तुझे क्या कहूँ


हे महाश्रमण ! मैं तुझे क्या कहूँ !!!

             

सूर्य का प्रकाश कहूँ  या चन्द्रमा की शीतलता कहूँ ,

करुणा की झील कहूँ  या ज्ञान का सागर कहूँ  !

कोमल की मधुरता कहूँ  या शहद की मिठास कहूँ ,

तारा कहूँ  या ध्रुव तारा कहूँ , निर्मल कहूँ  या निर्मलता कहूँ !

मां की ममता कहूँ  या पिता का प्यार कहूँ ,

भाई का कर्तव्य कहूँ  या वात्सल्य का झरना कहूँ  !

कोमल की मधुरता कहूँ  या शहद की मिठास कहूँ  !

विद्यालय कहूँ  या विश्वविद्यालय कहूँ ,

आलय कहूँ  या आत्म हिमालय कहूँ !

अनुकम्पा का प्रसाद कहूँ  या प्रभु का आशीर्वाद कहूँ !

दिव्यता कहूँ  या भव्यता कहूँ , सुंदरता कहूँ  या आत्म सुंदरता कहूँ !

नम्रता कहूँ  या विनम्रता कहूँ  समता कहूँ  या सरलता कहूँ !

नोट कहूँ  या नोटों का बैंक कहूँ , कुछ कहे तो आध्यात्मिक एटीएम कहूँ !

तपस्वी कहूँ  या महातपस्वी कहूँ , यशस्वी कहूँ  या महायशस्वी कहूँ !

उज्ज्वलता का आकाश कहूँ  या संकल्पों की बरसात कहूँ  !

जल कहूँ  या जल की तरंग कहूँ ,

 कुछ कहूँ  तो जीवन की उमंग कहूँ !

   ज्योति कहूँ  या ज्वाला कहूँ , 

  कुछ कहूँ  तो दिव्य उजाला कहूँ  !

मान कहूँ  या आत्म सम्मान कहूँ !

मैं तो तुलसी महाप्रज्ञ का हनुमान कहूँ 

सत्य कहूँ  या शाश्वत कहूँ , समझ में नहीं आता है,           मैं क्या कहूँ !

अगर कुछ कहूँ  तो शाश्वत ज्ञाता दृष्टा कहूँ !

पुष्प कहूँ  या हृदय का हार कहूँ !

अगर कुछ कहूँ  तो जगत का पालनहार कहूँ !          

विशेषण कम विशेषताएं अनेक हैं,  शब्द कम उपमाएं अनेक हैं !

हे महाश्रमण ! तुझे मैं क्या कहूँ , 

 अगर कुछ कहूँ  तो ये ही कहूँ 

मेरे हृदय की सांस कहूँ , 

तुलसी , महाप्रज्ञ और तीर्थंकर

का साक्षात कहूँ !

हे नेमा नंदन, झूमर वंदन मेरे महाश्रमण तुझे प्रणाम !!!!


 -  हेमन्त छाजेड़