Humanity लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Humanity लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, मार्च 13, 2025

ABTYP was awarded the India Book of Records for organizing a blood donation camp for 108 hours continuously

अभातेयुप हुआ लगातार 108 घंटे रक्तदान शिविर करने के लिए India Book of Records से सम्मानित

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में कोलकाता - हावड़ा एवं सबर्बन की समस्त परिषदों द्वारा आयोजित लगातार 108 तक चलने वाले रक्तदान शिविर का आयोजन हुआ । लगातार 108 घंटे चलने वाले इस रक्तदान शिविर के लिए गौरव का पल है क्योंकि इस शिविर को India Book of Records से आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी की सानिध्य में सम्मानित किया गया।


India Book of Records सम्मान को सीमा मनिकोट ने अभातेयुप को प्रदान किया। इसे लेने के लिए अभातेयुप एवं तेयुप के प्रतिनिधि मौजूद थे। 


गौरतलब है कि इस कार्यक्रम को सफल करने में यूको बैंक, कमल ललवानी जी, RJ प्रवीण, केंद्रीय संस्थाओं व स्थानीय संस्थाओं के पदाधिकारी / कार्यकर्ताओं का अतुलनीय सहयोग रहा।


indiabookofrecords Website

indiabookofrecords FB

रविवार, मई 21, 2023

"चिट्ठी ले लीजिये।"


आंखो में आंसु आ गए पढ़ कर 

एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा..."चिट्ठी ले लीजिये।"


आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक लड़की की आवाज गूंजी..." अभी आ रही हूँ...ठहरो।"


लेकिन लगभग पांच मिनट तक जब कोई न आया तब डाकिये ने फिर कहा.."अरे भाई! कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो...मुझें औऱ बहुत जगह जाना है..मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता....।"


लड़की की फिर आवाज आई...," डाकिया चाचा , अगर आपको जल्दी है तो दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ कुछ देर औऱ लगेगा । 


" अब बूढ़े डाकिये ने झल्लाकर कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,किसी का हस्ताक्षर भी चाहिये।"


तकरीबन दस मिनट बाद दरवाजा खुला।


डाकिया इस देरी के लिए ख़ूब झल्लाया हुआ तो था ही,अब उस लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया औऱ उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।उसका सारा गुस्सा पल भर में फुर्र हो गया।


उसके सामने एक नन्ही सी अपाहिज कन्या जिसके एक पैर नहीं थे, खड़ी थी। 


लडक़ी ने बेहद मासूमियत से डाकिये की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया औऱ कहा...दो मेरी चिट्ठी...।


डाकिया चुपचाप डाक देकर और उसके हस्ताक्षर लेकर वहाँ से चला गया।


वो अपाहिज लड़की अक्सर अपने घर में अकेली ही रहती थी। उसकी माँ इस दुनिया में नहीं थी और पिता कहीं बाहर नौकरी के सिलसिले में आते जाते रहते थे।


उस लड़की की देखभाल के लिए एक कामवाली बाई सुबह शाम उसके साथ घर में रहती थी लेकिन परिस्थितिवश दिन के समय वह अपने घर में बिलकुल अकेली ही रहती थी।


समय निकलता गया।


महीने ,दो महीने में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती, डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की दरवाजे तक न आती तब तक इत्मीनान से डाकिया दरवाजे पर खड़ा रहता।


धीरे धीरे दिनों के बीच मेलजोल औऱ भावनात्मक लगाव बढ़ता गया।


एक दिन उस लड़की ने बहुत ग़ौर से डाकिये को देखा तो उसने पाया कि डाकिये के पैर में जूते नहीं हैं।वह हमेशा नंगे पैर ही डाक देने आता था ।


बरसात का मौसम आया।


फ़िर एक दिन जब डाकिया डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां गीली मिट्टी में डाकिये के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। 


अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवाकर घर में रख लिए ।


जब दीपावली आने वाली थी उससे पहले डाकिये ने मुहल्ले के सब लोगों से त्योहार पर बकसीस चाही ।


लेकिन छोटी लड़की के बारे में उसने सोचा कि बच्ची से क्या उपहार मांगना पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।


साथ ही साथ डाकिया ये भी सोंचने लगा कि त्योहार के समय छोटी बच्ची से खाली हाथ मिलना ठीक नहीं रहेगा।बहुत सोच विचार कर उसने लड़की के लिए पाँच रुपए के चॉकलेट ले लिए।


उसके बाद उसने लड़की के घर का दरवाजा खटखटाया। 


अंदर से आवाज आई...." कौन?


" मैं हूं गुड़िया...तुम्हारा डाकिया चाचा ".. उत्तर मिला।


लड़की ने आकर दरवाजा खोला तो बूढ़े डाकिये ने उसे चॉकलेट थमा दी औऱ कहा.." ले बेटी अपने ग़रीब चाचा के तरफ़ से "....


लड़की बहुत खुश हो गई औऱ उसने कुछ देर डाकिये को वहीं इंतजार करने के लिए कहा..


उसके बाद उसने अपने घर के एक कमरे से एक बड़ा सा डब्बा लाया औऱ उसे डाकिये के हाथ में देते हुए कहा , " चाचा..मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।


डब्बा देखकर डाकिया बहुत आश्चर्य में पड़ गया।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।


कुछ देर सोचकर उसने कहा," तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं कोई उपहार कैसे ले लूँ बिटिया रानी ? 


"लड़की ने उससे आग्रह किया कि " चाचा मेरी इस गिफ्ट के लिए मना मत करना, नहीं तो मैं उदास हो जाऊंगी " ।


"ठीक है , कहते हुए बूढ़े डाकिये ने पैकेट ले लिया औऱ बड़े प्रेम से लड़की के सिर पर अपना हाथ फेरा मानो उसको आशीर्वाद दे रहा हो ।


बालिका ने कहा, " चाचा इस पैकेट को अपने घर ले जाकर खोलना।


घर जाकर जब उस डाकिये ने पैकेट खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें डबडबा गई ।


डाकिये को यक़ीन नहीं हो रहा था कि एक छोटी सी लड़की उसके लिए इतना फ़िक्रमंद हो सकती है।


अगले दिन डाकिया अपने डाकघर पहुंचा और उसने पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन दूसरे इलाक़े में कर दिया जाए। 


पोस्टमास्टर ने जब इसका कारण पूछा, तो डाकिये ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे गले से कहा, " सर..आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस छोटी अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा ?"


इतना कहकर डाकिया फूटफूट कर रोने लगा ।




साभार :  https://www.facebook.com/groups/Loverkarma/permalink/1227085751336088/?mibextid=Nif5oz