बुधवार, मई 27, 2009

लालच और भौतिकवाद है मंदी का कारण: आचार्य महाप्रज्ञ

बहुचर्चित कृति महावीर का अर्थशास्त्र के लेखक राष्ट्र संत आचार्य महाप्रज्ञ ने दुनियाभर की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के संकट में आ जाने के पीछे लालच और भौतिकवादी संस्कृति है।उन्होंने अमरीका में हुए एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि जो बात भगवान महावीर ने हजारों वर्ष पहले कह दी उसे आज शोध के द्वारा कहा जा रहा है। भगवान महावीर ने श्रावको के लिए उपभोग परिमाण व्रत का जो विधान बनाया अगर उस पर ध्यान दिया जाता तो आज इस समस्या का सामना हीं नहीं करना पडता।आचार्य ने कहा कि यह जैनों की सबसे बडी भूल है कि उन्होंने अहिंसा पर बहुत चिंतन किया लेकिन अपरिग्रह पर ध्यान नहीं दिया। अपरिग्रह को समझने वाला ही अहिंसा को पूर्ण रूप से समझ सकता है। हिंसा और परिग्रह को अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि वर्तमान अर्थशास्त्र उपभोगवादी मनोवृति को जागृत कर रहा है, इसी कारण आज मंदी की समस्या आई है। जैसे-जैसे पैसा बढता है वैसे-वैसे स्वार्थ बढ जाता है। उन्होंने कहा कि आज धर्मशास्त्रों के साथ आरोग्यशास्त्र और अर्थशास्त्र का अध्ययन होना चाहिए और अर्थशाçस्त्रयों को धर्मशास्त्र का अध्ययन करना चाहिए।महाप्रज्ञ ने अहिंसा की व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा बहुत बडा विषय है। इसको अनेक कोणों से देखा जाना चाहिए। अहिंसा से अनेक बडी बीमारियों का इलाज संभव है। जो व्यक्ति दूसरों पर झूठा दोषारोपण, चुगली, निंदा करता है वह अपने शरीर को रोगग्रस्त बना लेता है। हिंसा अनेक रोगों की जननी है। उन्होने कहा कि आज बाह्य प्रदूषण पर तो ध्यान दिया जा रहा है पर मानसिक प्रदूषण पर ध्यान नहीं है। उन्होंने नैतिकता, चरित्र, अणुव्रत और आचार्य तुलसी को समझने के लिए तुलसी विचार दर्शन पढने की प्रेरणा बहुचर्चित कृति महावीर का अर्थशास्त्र के लेखक राष्ट्र संत आचार्य महाप्रज्ञ ने दुनियाभर की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के संकट में आ जाने के पीछे लालच और भौतिकवादी संस्कृति है।उन्होंने अमरीका में हुए एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि जो बात भगवान महावीर ने हजारों वर्ष पहले कह दी उसे आज शोध के द्वारा कहा जा रहा है। भगवान महावीर ने श्रावको के लिए उपभोग परिमाण व्रत का जो विधान बनाया अगर उस पर ध्यान दिया जाता तो आज इस समस्या का सामना हीं नहीं करना पडता।आचार्य ने कहा कि यह जैनों की सबसे बडी भूल है कि उन्होंने अहिंसा पर बहुत चिंतन किया लेकिन अपरिग्रह पर ध्यान नहीं दिया। अपरिग्रह को समझने वाला ही अहिंसा को पूर्ण रूप से समझ सकता है। हिंसा और परिग्रह को अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि वर्तमान अर्थशास्त्र उपभोगवादी मनोवृति को जागृत कर रहा है, इसी कारण आज मंदी की समस्या आई है। जैसे-जैसे पैसा बढता है वैसे-वैसे स्वार्थ बढ जाता है। उन्होंने कहा कि आज धर्मशास्त्रों के साथ आरोग्यशास्त्र और अर्थशास्त्र का अध्ययन होना चाहिए और अर्थशाçस्त्रयों को धर्मशास्त्र का अध्ययन करना चाहिए।महाप्रज्ञ ने अहिंसा की व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा बहुत बडा विषय है। इसको अनेक कोणों से देखा जाना चाहिए। अहिंसा से अनेक बडी बीमारियों का इलाज संभव है। जो व्यक्ति दूसरों पर झूठा दोषारोपण, चुगली, निंदा करता है वह अपने शरीर को रोगग्रस्त बना लेता है। हिंसा अनेक रोगों की जननी है। उन्होने कहा कि आज बाह्य प्रदूषण पर तो ध्यान दिया जा रहा है पर मानसिक प्रदूषण पर ध्यान नहीं है। उन्होंने नैतिकता, चरित्र, अणुव्रत और आचार्य तुलसी को समझने के लिए तुलसी विचार दर्शन पढने की प्रेरणा दी।

2 टिप्‍पणियां:

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

अति सुन्दर प्रयास।

तेरापन्थ धर्म के बारे मे पढकर अच्छा लगा।

हम कुछ मिलकर इसे आगे बढाए। आपका क्या विचार है।

आभार

हे प्रभु यह तेरापन्थ

मुम्बई टाईगर

PANKAJ DUDHORIA ने कहा…

Aap ke vichar bilkil sahi hai.