महासभा द्वारा संचालित प्रवृत्तियों में उपासक श्रेणी का निर्माण एक प्रमुख कार्य है। तेरापंथ समाज के विकास और उसके बढ़ते हुए प्रभाव को ध्यान में रखकर यह आवश्यक समझा गया कि साधु-साध्वियों, समण-समणियों के अतिरिक्त एक ऐसी श्रेणी का निर्माण किया जाये जो पूरे तेरापंथ समाज को आध्यात्मिक संबल, संरक्षण और संस्कार निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके। इस श्रेणी की आवश्यकता और उपयोगिता को आज से बहुत पहले पूज्य गुरुदेव तुलसी ने महसूस की थी और उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप 1970 के दशक में उपासक श्रेणी के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। फलस्वरूप धर्म क्षेत्र के एक वर्ग के लोगों को प्रशिक्षण देकर इस रूप में तैयार किया जाने लगा जो पर्युषण पर्व एवं अन्य अवसरों पर निर्दिष्ट स्थानों पर उपस्थित होकर प्रवचन, प्रयोग आदि के द्वारा वहाँ के लोगों को आध्यात्मिक आराधना में सहायता कर सकें।
उपासक का अर्थ है साधना के द्वारा आत्मोन्नयन की दिशा में अग्रसर होना। उपासक बनने के इच्छुक व्यक्तियों को पूज्यवरों के सान्निध्य में प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है, जिसके पूर्व उन्हें प्रशिक्षण शिविर में प्रवेश हेतु निर्दिष्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता है।
प्रवेश परीक्षा का पाठ्यक्रम
- अर्हत वंदना
- परमेष्टि वंदना
- पंचपद वंदना
- प्रतिक्रमण
- पच्चीस बोल
(इनका कंठस्थ होना आवश्यक है)
उपर्युक्त पाठ्यक्रम के अनुसार लिखित परीक्षा ली जाती है जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है।
शिविर आयोजन का समय प्रतिवर्ष के लिए निर्धारित है।
दस दिवसीय शिविर का प्रारंभ श्रावण कृष्ण पंचमी से होता है।
उपासकों की श्रेणियाँ
उपासकों की मुख्यतः दो श्रेणियां निर्धारित हैं।
- सहयोगी उपासक
- प्रवक्ता सहयोगी उपासकयह उपासक की प्रथम भूमिका है। प्रवक्ता उपासक के साथ सहायक के रूप में पर्युषण यात्रा पर जाते हैं। उपर्युक्त लिखित प्रवेश परीक्षा में सफल होने वाले बहन-भाइयों को ही ‘केंद्रीय उपासक प्रशिक्षण शिविर’ में प्रवेश मिलता है एवं शिविर में उन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है।
- पाठ्यक्रम –
- पच्चीस बोल (भावार्थ)
- श्रावक सम्बोध (भावार्थ)
- भगवान महावीर के पूर्वभव एवं संपूर्ण जीवनवृत
- ग्यारह गणधर का इतिहास
- जैन जीवनशैली के नौ सूत्र
- जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है, जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है। सफल होने पर सहयोगी उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में ‘प्रवक्ता उपासक’ के साथ पर्युषण यात्रा पर जा सकते हैं।
- सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अधिकतम दो अवसर दिए जाते हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है।
प्रवक्ता उपासक
यह उपासकों की अपेक्षाकृत परिपक्व श्रेणी होती है। प्रवक्ता उपासकों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिविर में प्रशिक्षण दिया जाता है।
पाठ्यक्रम
- पर्युषण विषय
- कालचक्र और तीर्थंकर
- प्रभावक जैन आचार्य
- अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान
- गाथा (सिद्धांत एवं कथाएं)
- जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी।
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है। सफल होने पर प्रवक्ता उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में पर्युषण यात्रा में जा सकते हैं।
- प्रवक्ता उपासक के लिए प्रशिक्षण शिविर में सीधे प्रवेश नहीं मिलता है, पहले सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है एवं दो पर्युषण यात्राएं करनी होती हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उतीर्ण होना अनिवार्य होता है। तब तक सहयोगी के रूप में पर्युषण यात्रा कर सकते हैं।