मंगलवार, फ़रवरी 07, 2023

कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए - आचार्य महाश्रमण


07.02.2023,  मंगलवार, सायला, जालौर (राजस्थान), 52 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा तय करने के बाद भी जनकल्याण एवं मानवता के नैतिक उत्थान के लिए निरंतर गतिमान मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज सायला ग्राम आगमन पर भव्य स्वागत हुआ। लगभग 10 वर्षों पूर्व 2013 में आचार्यश्री सायला में पधारे थे अब पुनः इतने वर्षों पश्चात शांतिदूत के पावन आगमन से क्षेत्र वासियों में विशेष हर्षोल्लास छाया हुआ था। प्रातः आचार्यश्री ने बावतरा से मंगल प्रस्थान किया तब स्थानीय रावले के ठाकुर भगतसिंह जी सहित ग्रामीणों ने कृतज्ञता भाव व्यक्त करते हुए आचार्यश्री से पुनः शीघ्र पदार्पण का निवेदन किया। तत्पचात स्थान–स्थान पर ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए गुरुदेव गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज शांतिदूत के सायला आगमन से जैन समाज ही नहीं अपितु सकल समाज में उत्साह, उमंग का माहौल था। गणवेश में जैन ध्वज लेकर सायलावासी जयघोषों से आचार्यश्री की आगवानी कर रहे थे। लगभग 13.8 किमी विहार कर पुज्यप्रवर सायला ग्राम में पधारे। इस दौरान सायला सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, पूर्व सीआई सुरेंद्र सिंह राठौड़, पंचायत समिति प्रधान शैलेंद्र सिंह सहित मुस्लिम समाज के लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। जैन मंदिर में पधार कर मंगलपाठ फरमाया। तत्पश्चात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में गुरुदेव प्रवास हेतु पधारे। 


धर्मसभा को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा– ध्यान आध्यात्म जगत का एक महत्वपूर्ण शब्द है। योग व ध्यान की अनेक पद्धतियाँ है, उनमें एक है – प्रेक्षाध्यान। शरीर में जिस प्रकार सिर का व वृक्ष में मूल का जो स्थान होता है, वही स्थान अध्यात्म जगत में ध्यान का है। एकाग्र चिंतन के साथ शरीर, वाणी व मन का संयम व निरोध करना ही ध्यान है। ध्यान के चार भेद कहे गए है– आर्त, रौद्र, धर्म व शुक्ल। आर्त और रौद्र अशुभ ध्यान होते है व धर्म और शुक्ल शुभ ध्यान। किसी प्रिय के वियोग से मोह होना अशुभ व अमोह की साधना शुभ होती है। मोह का संयोग व उससे प्रभावित हो जाना अशुभ ध्यान होता है। हम अशुभ भाव से बचने का व शुभ में रमण करने का प्रयास करें।


गुरुदेव ने आगे कहा कि उपदेश देना एक बात व उसका अनुपालन कर जीवन में उतारना दूसरी बात है। कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए। जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है जब प्रिय का वियोग व अप्रिय का संयोग मन के लिए कष्टकारक होता है। इस कष्ट को आध्यात्म यात्रा व अंतरयात्रा से कम किया जा सकता है। हम ध्यान से वीतरागता की ओर प्रस्थान करने क प्रयास करें व ध्यान हमारे आत्म कल्याण का हेतु बने। भाव क्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार व मित भाषण के प्रयोगों द्वारा ध्यान की साधना में आगे बढ़ा जा सकता है। 


प्रसंगवश आचार्यश्री ने कहा आज हमारा सायला में आना हुआ है। यहां के श्रद्धालुओं में अध्यात्म की चेतना बढ़ती रहे। और जितना हो सके धर्म आराधना का क्रम चले मंगलकामना। 


स्वागत के क्रम में श्री चंद्रशेखर सालेचा, सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, श्रीमती लीलादेवी सालेचा, किरण चारण, विद्यालय प्रिंसिपल हरिराम जी ने वक्तव्य द्वारा गुरुदेव का स्वागत किया। सालेचा परिचर की बहनों ने गीत का संगान किया। जसोल ज्ञानशाला से समागत ज्ञानार्थियों ने नियंठा दिग्दर्शन गीत पर प्रस्तुति दी।

सोमवार, फ़रवरी 06, 2023

विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है - आचार्य महाश्रमण


06.02.2023, सोमवार, बावतरा, जालौर (राजस्थान), अपनी अहिंसा यात्रा द्वारा नेपाल, भूटान एवं भारत के 23 राज्यों में पदयात्रा कर नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जालोर जिले में सानंद गतिमान है। बाड़मेर जिले को पावन बना अब आचार्यश्री जिरावला पार्श्वनाथ तीर्थ एवं आबूरोड की ओर प्रवर्धमान है। आज प्रातः शांतिदूत ने जीवाणा ग्राम से मंगल विहार किया। जीवाणावासी पुज्यप्रवर का पावन प्रवास पाकर कृतार्थता का अनुभव कर रहे थे। विहार मार्ग में जगह–जगह स्थानीय ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। विहार के दौरान आज तीव्र धूप मौसम के परिवर्तन का संकेत दे रही थी। लगभग 09 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बावतरा ग्राम में पधारे। इस मौके पर स्थानीय ठाकुर भगतसिंह जी एवं ग्रामीणों के निवेदन पर पुज्यश्री रावले में पधारे एवं ठाकुर परिवार को आशीष प्रदान किया। तत्पचात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। ग्राम सरपंच श्री पारस राजपुरोहित एवं विद्यालय के शिक्षकों सहित विद्यार्थियों ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। 


मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा – विद्यालय एक ऐसा ज्ञान का मंदिर है जहां ज्ञान का आदान प्रदान होता है। विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करे वह उनके जीवन में आचरित हो यह अपेक्षा है। बच्चे ही बड़े बनकर देश की बागडोर सँभालने वाले बनते है, देश का भविष्य होते है। विकास के लिए चार मुख्य बिंदु अपेक्षित होते हैं – शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास, मानसिक विकास व भावनात्मक विकास। इनके साथ–साथ आध्यात्मिकता का विकास भी हो, अध्यात्म विद्या भी जीवन में आए। विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है। 


गुरुदेव ने आगे एक कथा के माध्यम से प्रेरित करते हुए कहा कि व्यक्ति जीवन व्यवहार में अनेक प्रकार की प्रवृत्तियां करता है। खाना, पीना, सोना, चलना, कोई कार्य करना जैसी अनेकों प्रवृत्तियां है। इन प्रवृत्तियों में धर्म का भी समावेश भी हो। कर्म धर्मयुक्त बने। जीवन में स्वअनुशासन आए। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है, स्वतंत्र देश है। पर स्वतंत्रता का मतलब उषृंखलता नहीं होता। व्यक्ति दूसरों पर अधिकार करने की सोचता है उससे पूर्व खुद का खुद पर अधिकार है या नहीं ये ध्यान दे। जीवन में धर्म व अनुशासन का अंकुश हो तो प्रगति की दिशा सही हो सकती है। 


विद्यार्थियों ने लिया नशामुक्ति का संकल्प

कार्यक्रम में आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों एवं ग्रामीणों ने नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार करते हुए आजीवन नशामुक्ति का संकल्प लिया। इस अवसर पर ठाकुर श्री भगतसिंह जी एवं विद्यालय के प्रिंसिपल श्री गणेशाराम चौधरी ने शांतिदूत के स्वागत में अपने विचार रखे। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति अहमदाबाद के पदाधिकारियों ने स्मृति चिन्ह विद्यालय प्रिंसिपल को भेंट किया।


रविवार, फ़रवरी 05, 2023

व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो - आचार्य महाश्रमण


05.02.2023, रविवार, जीवाणा, जालौर (राजस्थान), अपनी पदयात्राओं द्वारा देश–विदेशों में परिभ्रमण कर जन-जन में नैतिक मूल्यों की चेतना को जागृत करने वाले तेरापंथ प्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज जीवाणा में मंगल पदार्पण हुआ। जालौर जिले में गतिमान आचार्यश्री ने प्रभात वेला में सिराणा से मंगल विहार किया। मार्ग में कई स्थानों पर स्थानीय ग्राम वासियों को आचार्यप्रवर का पावन आशीष प्राप्त हुआ। सड़क मार्ग के दोनों और अनार, अरंडी, आदि के विस्तृत खेत नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। ज्ञात हुआ कि यहां अनार की काफी प्रचुरता है तथा भारत में अनार की मंडी के रूप में तीसरे स्थान पर यह स्थान पहचाना जाता है। स्टेट हाईवे संख्या 16 पर गतिमान आचार्य श्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर जीवाणा ग्राम में पधारे। इस अवसर पर स्थानीय जैन समाज  के श्रद्धालु ही नहीं अपितु सकल ग्रामवासी आचार्यवर का जयनारों से स्वागत कर रहे था। श्री बायोसा आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय में आचार्य प्रवर का प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।

स्कूल प्रांगण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री ने कहा - मनुष्य इस दुनिया का श्रेष्ठ प्राणी है। मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जहां से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जहां केवलज्ञान प्राप्त हो सकता है और साधना के द्वारा 14 वां गुणस्थान फिर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु व्यक्ति पाप ज्यादा करें तो पतन में भी गिर सकता है, नरक में भी जा सकता है। मनुष्य बहुत बढ़िया कार्य कर सकता है, तो बहुत घटिया कार्य भी कर सकता है। भीतर हिंसा के है तो अहिंसा के भाव भी देखने को मिलते है। व्यक्ति में निष्ठुरता है तो दया के भाव भी होते हैं। अच्छाइयां होती है तो बुराइयां भी मिल जाती है। आवश्यकता इस बात की है की व्यक्ति हिंसा से, बुरे कार्यों से बचने का प्रयास करें।

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो तो वह अपने जीवन में आगे बढ सकता है। अंधकार से प्रकाश की ओर मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। अज्ञान का अंधकार हमारे भीतर ज्ञान को कम कर देता है। अज्ञानी आदमी कभी भी हित–अहित, विवेक–अविवेक को समझ नहीं सकता। ज्ञान रूपी तलवार द्वारा अज्ञान को छिन्न किया जा सकता है। जीवन को ज्ञान द्वारा प्रकाशित करने का प्रयास करे यह काम्य है। 

इस अवसर पर पंजाब के गोविंदगढ़ से चातुर्मास संपन्न आज गुरु दर्शन करने वाली साध्वी प्रसन्नयशा जी ने गुरुदेव के समक्ष अपने विचार  रखे। 

तत्पश्चात जीवाणा आदर्श विद्या स्कूल के प्रधानाचार्य इंदरसिंहजी ने स्वागत वक्तव्य दिया। श्री धीरज गोलेछा, सोहनलालजी कोठारी (रिछेड़) ने भी गुरुदेव के समक्ष अपने विचार रखें। पूज्य चरणों में 'बढ़ते कदम' पुस्तक का विमोचन किया गया।

शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2023

कोलकाता हावड़ा को जोड़ने वाला हावड़ा ब्रिज 80 वर्षो से दे रहा है आम नागरिकों को अपनी सेवाएं


आज विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक हावडा़ ब्रिज (रवीन्द्र सेतु) जो 3 फरवरी 1943 में निर्मित हुआ था यह आज दिनांक 3-2-2023 को "80" साल पुरे कर रहा है । 

जब हावडा़ पुल जब बना था न जाने बनाने वाले ने कितनी दूरदर्शिता कर साथ इसे इतना अद्भुत ब्रिज का निर्माण किया था तब आज जैसे आधुनिक संसाधन उपलब्ध नही थे। इस अद्वितीय ब्रिज का निर्माण करने वाली सोच को सलाम, इसके निर्माण में जुड़े हर एक शख्स को सलाम। इसकी सुरक्षा व रखरखाव की ज़िम्मेदारी निभा रहे "कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट" के सभी श्रम सेवकों को विशेष रूप से धन्यवाद सहित बधाई जिनके रखरखाव के कारण ही आज भी यह ब्रिज आवागमन का अहम मार्ग बना हुआ है। कोलकाता हावड़ा मे रहने वाले प्रत्येक नागरिकों  को भी बधाई।


न जाने जीवन मे कितनी ही अनमोल यादें इस हावड़ा ब्रिज से जुड़ी हुई है। तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी का 2017 में जब कोलकाता आगमन हुआ था तब हावड़ा ब्रिज के माध्यम से आपने कोलकाता में प्रवेश किया था वो अविस्मरणीय क्षण जिसका मैं भी साक्षी बना था ऐसे ही मेरी और शायद आप सब की भी यादें इस अनमोल सेतु के साथ जुड़ी हुई है।

यह अलबेला, अनोखा, अद्वितीय, अद्भुत हावड़ा ब्रिज जो हुगली नदी पर बना हुआ है यह ऐसे ही हम जैसे आम नागरिकों को अपनी सेवा देता रहें।

इस जन्म के साथ अगले जन्म के बारे में भी चिंतन करे - आचार्य महाश्रमण


03.02.2023, शुक्रवार, अरणियाली, बाड़मेर (राजस्थान), पाव–पाव चल गांव, नगर, शहरों में नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की ज्योत जलाने वाले अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अरणियाली ग्राम में मंगल पदार्पण हुआ। प्रातः आचार्य श्री ने सिणधरी से मंगल विहार किया। लगभग 15 किलोमीटर विहार कर गुरुदेव राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय अरणियाली में प्रवास हेतु पधारे। बाड़मेर जिले के पश्चात अब उत्तर गुजरात की ओर अग्रसर गुरुदेव का आगामी कुछ दिन का जालोर जिला क्षेत्र में संभावित है। बायतु मर्यादा महोत्सव के पश्चात आचार्यवर की यात्रा अब गुजरात की ओर प्रवर्धमान है। 


अरणियाली में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान ने कहा –यह मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है। चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करते हुए यह मनुष्य जीवन दुबारा कब मिलेगा, यह कोई नहीं जानता। अभी तो यह हमें आसानी से उपलब्ध है इसे यूं ही गंवा देना भारी भूल है। संसार में सभी तो साधु नहीं बन सकते, ऐसे में गृहस्थ जीवन में रहकर भी जो आत्मस्थ, तटस्थ व मध्यस्थ रह सकता है, वह स्वयं के आत्म कल्याण के पथ को प्रशस्त कर सकता है। मनुष्य जन्म एक प्रकार का वृक्ष है, जिस वृक्ष में सुंदर फल होते है, हितकर फल होते है उसकी उपयोगिता होती है। 


आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस मनुष्य जन्म रूपी वृक्ष में हम छह प्रकार के फल लगाने का प्रयास करें। पहला है जिनेन्द्र-पूजा। अर्थात राग-द्वेष से मुक्त वीतराग भगवान की पूजा करें, उनकी स्तुति करे भक्ति करे। दूसरा फल है गुरु पर्युपासना। जो कंचन व कामिनी के त्यागी है ऐसे गुरुओं की सेवा उपासना करे। तीसरा सत्वानुकंपा यानी सब प्राणी मात्र के प्रति दया व करुणा के भाव रहे व किसी को भी कष्ट न दें। चौथा सुपात्रदान, अर्थात त्यागी साधुओं को शुद्ध दान दें। पांचवा गुणों के प्रति हमारे मन में अनुराग व प्रेम के भाव रहें। अनुराग व्यक्ति की अपेक्षा गुणों से होना चाहिए व गुण किसी में भी हो हमें उसका सम्मान करना चाहिए यह गुणानुराग हो। छठा श्रुतिरागमस्य, अर्थात आगम वाणी व शास्त्रों की वाणी का श्रवण करो। हम मनुष्य जीवन को इन छह फलों के द्वारा सुफल एवं सफल कर सकते है। इस जन्म के साथ अगले जन्म के बारे में भी चिंतन करे। 


विद्यालय के प्रिंसिपल श्री माधाराम जी ने आचार्य श्री के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। अहमदाबाद प्रवास व्यवस्था समिति से संबद्ध व्यक्तियों द्वारा प्रिंसिपल को अणुव्रत नियम पट्ट एवं साहित्य प्रदान किया गया।