रविवार, सितंबर 10, 2023

महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सन्निधि में पहुंचे इस्कॉन संत श्री गौर गोपालदासजी


10.09.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र), मानवता के उत्थान के लिए संकल्पित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मानवों का मानों रेला-सा उमड़ रहा है। केवल तेरापंथी ही नहीं, अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी बड़ी संख्या में ऐसे महापुरुष के दर्शन और मंगल प्रवचन श्रवण का लाभ प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। 

रविवार को नन्दनवन परिसर विशेष रूप से गुलजार हो जाता है। कामकाजी लोगों की छुट्टियां वर्तमान समय में आध्यात्मिक वातावरण में व्यतीत हो रही हैं। पूरे परिवार के साथ नन्दनवन में पहुंचकर श्रद्धालु धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। तीर्थंकर समवसरण पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। नित्य की भांति तीर्थंकर समवसरण में तीर्थंकर के प्रतिनिधि अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। 


जैन भगवती आगम के आधार पर अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न किया गया कि जीव के कर्म चैतन्य के द्वारा कृत होते हैं या अचैतन्य के द्वारा। भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि जीव के कर्म चैतन्य द्वारा ही कृत होते हैं, अचैतन्य के द्वारा कृत नहीं। 


धर्म के जगत में आत्मवाद और कर्मवाद बहुत महत्त्वपूर्ण व प्रमुख सिद्धान्त है। धर्म व अध्यात्म जगत के लिए आत्मवाद और कर्मवाद मानों आधार स्तम्भ हैं। अध्यात्म का जो जगत है, अध्यात्म की साधना आत्मवाद पर निर्धारित है। आत्मा है तो धर्म और अध्यात्म की साधना का विशेष महत्त्व हो सकता है। आत्मा है ही नहीं, तो अध्यात्म और धर्म का विशेष मूल्य नहीं रह जाता। आत्मा शाश्वत है, इसलिए आत्मा की निर्मलता व सुख-शांति के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना होती है। इन्द्रियों से ग्राह्य और भौतिक पदार्थों से प्राप्त सुख क्षणिक होता है, किन्तु कर्म की निर्जरा, साधना, ध्यान, जप योग से प्राप्त होने वाला आत्मिक सुख वास्तविक और स्थाई होता है। इसलिए आदमी को स्थाई सुख की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। निर्मल व शुद्ध आत्मा मोक्ष का भी वरण कर सकती है। 


मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने 12 सितम्बर से आरम्भ होने जा रहे पर्युषण महापर्व के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आठ दिनों का यह पर्व धर्म की साधना में लगाने वाले दिन हैं। सांसारिक कार्यों को थोड़ा गौण कर धर्म की प्रभावना करने का प्रयास करना चाहिए। व्रत, उपवास व त्याग में एक त्याग व उपवास डिजिटल उपकरणों का भी हो। इन आठ दिनों में रात्रि भोजन न हो। इस प्रकार अपने जीवन को धर्म के आचरण से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री से तपस्या का प्रत्याख्यान किया। श्री बाबूलाल जैन उज्ज्वल ने समग्र जैन चतुर्मास सूची का आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पण करते हुए अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 


मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ट्रान्सफायर कार्यक्रम समायोजित हुआ। इस कार्यक्रम के निदेशक श्री दिलीप सरावगी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्रीमती श्वेता लोढ़ा ने मुख्य बिजनेसमैन श्री मोतीलाल ओसवाल का परिचय प्रस्तुत किया। श्री मोतीलाल ओसवाल ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संत की सन्निधि प्राप्त हुई है। आपका आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहे। श्री विरार मधुमालती वानखेड़े ने आचार्यश्री के समक्ष तेरापंथ गाथा गीत को प्रस्तुति दी। 


आज दोपहर बाद लगभग तीन बजे के आसपास आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इस्कॉन के संत व मोटिवेसनर श्री गौर गोपालदासजी पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन किया। तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को उद्बोधित करते हुए आचार्यश्री ने भौतिकता पर आध्यात्मिकता का नियंत्रण रखने की प्रेरणा प्रदान की। इस्कान संत श्री गौर गोपालदासजी ने कहा कि यह अच्छी बात है कि भौतिकता के दौड़ में इतने लोग आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए पहुंचे हैं। आदमी अपने विचारों की दिशा सही रखे तो सही दिशा में तरक्की भी हो सकती है। परिस्थितियों से पार पाने के लिए मनःस्थिति को अच्छा बनाना होगा। 

गुरुवार, अगस्त 17, 2023

दिनचर्या को अच्छा बनाने के लिए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने किया अभिप्रेरित


शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण से भगवती सूत्र आगम के आधार पर उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से पूछा गया कि प्राणियों का जागना अच्छा या सोना? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि कुछ जीवों का सोना अच्छा और कुछ जीवों का जागना अच्छा होता है। भगवान महावीर ने इसका विस्तार प्रदान करते हुए बताया गया कि जीवों को उनके कर्मों के आधार पर दो भागों में बांटे तो धार्मिक और अधार्मिक जीव प्राप्त होते हैं।

इस दृष्टिकोण से धार्मिक जीवों का जागना अच्छा होता है और अधार्मिक जीवों का सोना अच्छा होता है। अधार्मिक यदि जगेगा तो दूसरे प्राणियों को कष्ट देगा, प्रताड़ित करेगा, किसी न किसी जीव की हत्या कर देगा, किसी को अपमानित करेगा, किसी को अनावश्यक कष्ट देगा। इससे वह अपनी आत्मा के कर्मबंध भी कर लेगा। इसलिए ऐसे अधार्मिक जीव का सोना अच्छा होता है। उसके सोने से कितने-कितने जीव कष्ट पाने से बच सकते हैं, कितने जीवों की प्राणों की रक्षा हो सकती है और कितने जीव शांति से जी सकते हैं।

दूसरी ओर धार्मिक जीव के जागरण से दुःखी जीवों की सेवा हो सकती है, कितने परेशान जीवों को परेशानी से बचा सकता है, कितनी की आत्मा के कल्याण का प्रयास करेगा, कितने जीवों को धार्मिकता के मार्ग पर लाएगा। इस प्रकार कितने जीवों का कल्याण हो सकता है। इसलिए धार्मिक जीव का जागना बहुत अच्छा हो सकता है।

प्राणी के तीन प्रकार भी किए जा सकते हैं, अधार्मिक कार्यों में संलग्न रहने वाला अधम का सोना अच्छा होता है। इससे प्राणी कष्ट, हत्या, प्रताड़ना आदि से बच जाते हैं और उसकी आत्मा भी कर्म बंधनों से बच सकती है। मध्यम श्रेणी के प्राणियों का सोना-जगना दोनों ही ठीक होता है। वे न तो पाप कर्म करते और न ही ज्यादा धार्मिक कार्य करते हैं। उत्तम श्रेणी के लोगों का सतत जागृत अवस्था में बने रहना लाभकारी हो सकता है। आदमी को अपने सोने और जागने के समय का निर्धारण करने का प्रयास करना चाहिए। इससे दिनचर्या अच्छी हो सकती है तो आदमी अपने जीवन में अच्छा विकास भी कर सकता है।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास का सरसशैली में आख्यान किया। आचार्यश्री के आख्यान का श्रवण कर जनता भावविभोर नजर आ रही थी।

बुधवार, अगस्त 16, 2023

अपनी आत्मा को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिए - अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण

16.08.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र), भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न बनाने के लिए अपनी धवल सेना के साथ मुम्बई में चतुर्मास प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रतिदिन आगमवाणी के माध्यम से अध्यात्मक की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। सागर तट पर प्रवाहित होने वाली यह निर्मल ज्ञानगंगा जन-जन के मानस के संताप का हरण करने वाली है। इस ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने के लिए मुम्बईवासी ही नहीं, देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। 


महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तपस्याओं की अनुपम भेंट भी श्रद्धालुओं ने इस प्रकार चढ़ाई हैं, जिसने तेरापंथ धर्मसंघ में एक नवीन कीर्तिमान का सृजन कर दिया है। इसके अतिरिक्त अनेकों प्रकार की तपस्याओं में रत श्रद्धालु अपने आराध्य से नियमित रूप से तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। 


युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से ज्ञानगंगा को प्रवाहित करते हुए कहा कि भगवान महावीर की मंगल देशना के बाद श्रमणोपासिका जयंती उनके पास पहुंचती है और प्रश्न करती है कि जीवों की आत्मा किन कर्मों से भारी बनती है? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए 18 चीजों को वर्णित किया, जिसके कारण जीव की आत्मा कर्मों का बंध कर भारी हो जाती है और अधोगामी बन जाती है। 18 चीजें अर्थात् अठारह पापों के कारण जीव की आत्मा गुरुता को प्राप्त करती है और पापकर्मों से भारी बनी आत्मा अधोगति की ओर जाती है। पापों से भारी आत्मा अधोगति और हल्की आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती है। इसलिए आदमी को इन पापों से विमरण करते हुए अपनी आत्मा को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी अच्छी सुगति की प्राप्ति हो सकती है। साधु तो सर्व सावद्य योगों का त्याग करने वाले होेते हैं, किन्तु श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका बारहव्रत, संयम, नियम आदि का स्वीकरण के द्वारा भी अपनी आत्मा को पापों के भार से बचाने का प्रयास कर सकते हैं। गृहस्थावस्था में पूर्ण विरमण भले न हो पाए, किन्तु आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी ही अच्छी बात हो सकती है। कई बार त्याग-तपस्या, नियम, व्रत व संयम के द्वारा श्रमणोपासक भी एक ही जन्म के बाद मोक्षश्री का भी वरण कर सकता है। इस प्रकार भगवान महावीर ने संयमयुक्त जीवन जीने और अपनी आत्मा को पापों से बचाने की प्रेरणा प्रदान की। 


आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए परम पूज्य कालूगणी के भीलवाड़ा से कष्टप्रद स्थिति में विहार करते हुए गंगापुर में चतुर्मास में पधारने और वहां सेवा में रत रहने वाले संतों को न्यारा में भेजने के प्रसंगों का सरसशैली में वर्णन किया। अपने सुगुरु की वाणी से अपने पूर्वाचार्य के इतिहास का श्रवण कर श्रद्धालुजन मंत्रमुग्ध नजर आ रहे थे। अनेक तपस्वियों को आचार्यश्री ने उनकी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। 

बुधवार, अगस्त 09, 2023

अनोखा है, इंसानी जिस्म

*🛑 अनोखा है, इंसानी जिस्म 🛑*
जानिए जिस्म के बारे में

*जबरदस्त फेफड़े*
हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.

*ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं*
हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.

*लाखों किलोमीटर की यात्रा*
इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.

*धड़कन, धड़कन*
एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.

*सारे कैमरे और दूरबीनें फेल*
इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.

*नाक में एंयर कंडीशनर*
हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.

*400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार*
तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.

*जबरदस्त मिश्रण*
शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.

*बेजोड़ झींक*
झींकते समय बाहर निकले वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर झींक मारना नामुमकिन है.

*बैक्टीरिया का गोदाम*
इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं.

*ईएनटी की विचित्र दुनिया*
आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.

*दांत संभाल के*
इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.

*मुंह में नमी*
इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.

*झपकती पलकें*
वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.

*नाखून भी कमाल के*
अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.

*तेज रफ्तार दाढ़ी*
पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.

*खाने का अंबार*
एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.

*बाल गिरने से परेशान*
एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.

*सपनों की दुनिया*
इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.

*नींद का महत्व*
नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.

स्त्रियां जब चली जाती हैं

केदार नाथ सिंह की एक सुंदर मार्मिक कविता :

*स्त्रियां जब चली जाती हैं*

स्त्रियां
अक्सर कहीं नहीं जातीं
साथ रहती हैं
पास रहती हैं
जब भी जाती हैं कहीं
तो आधी ही जाती हैं
शेष घर मे ही रहती हैं

लौटते ही
पूर्ण कर देती हैं घर
पूर्ण कर देती हैं हवा, माहौल, आसपड़ोस

स्त्रियां जब भी जाती हैं
लौट लौट आती हैं
लौट आती स्त्रियां बेहद सुखद लगती हैं
सुंदर दिखती हैं
प्रिय लगती हैं

स्त्रियां
जब चली जाती हैं दूर
जब लौट नहीं  पातीं
घर के प्रत्येक कोने में तब
चुप्पी होती है
बर्तन बाल्टियां बिस्तर चादर नहाते नहीं
मकड़ियां छतों पर लटकती  ऊंघती हैं
कान में मच्छर बजबजाते हैं
देहरी हर आने वालों के कदम सूंघती  है

स्त्रियां जब चली जाती हैं
ना लौटने के लिए
रसोई टुकुर टुकुर देखती है
फ्रिज में पड़ा दूध मक्खन घी फल सब्जियां एक दूसरे से बतियाते नहीं
वाशिंग मशीन में ठूँस कर रख दिये गए कपड़े 
गर्दन निकालते हैं बाहर
और फिर खुद ही दुबक-सिमट जाते हैँ मशीन के भीतर

स्त्रियां जब चली जाती हैं 
कि जाना ही सत्य है
तब ही बोध होता है
कि स्त्री कौन होती है
कि जरूरी क्यों होता है 
घर मे स्त्री का बने रहना