आते ही, हवा में सीलन
बदन में तपिश,
और रूह में
कंपनमहसूस होती है,
सीने पत्थरों के
भी पसीजने लगते हैं
रो पड़ते हैं मेरे
घर के सामने वाले
घर के सामने वाले
पहाड़ भी,
याद करके उन वीरों को
जिन्होंने हमें ये खुली हवा
में साँस लेने का
सुअवसर दिया,
उन्हें रहती दुनिया तक
मेरा, सम्पूर्ण विश्व का
शत-शत प्रणाम।
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