रविवार, अगस्त 02, 2009

बहुत चले हैं बिना शिकायत :- साध्वी कनकप्रभा

बहुत चले हैं बिना शिकायत हम मंज़िल के आश्वासन पर,

लेकिन हर मंज़िल को पीछे छोड़ रहे हैं चरण तुम्हारे,

तपे बहुत जलती लूओं से, रहें नीड़ में मन करता है,

पर नभ की उन्मुक्त पवन में खींच रहे हो प्राण हमारे॥


देख रहे दिन में भी सपने, कितनी सरज रहे हो चाहें,

सदा दिखाते ही रहते हो हमें साधना की तुम राहें,

खोली हाट शान्ति की जब से ग्राहक कितने बढ़ते जाते,

नहीं रहा अनजाना कोई सबका स्नेह अकारण पाते,

बिना शिकायत जुटे हुए हम हर सपना साकार बनाने,

फिर भी तोष नहीं धरती से तोड़ रहे अंबर के तारे॥

कोई टिप्पणी नहीं: