रविवार, अगस्त 04, 2019

दोस्ती मेरी नजर में.......


मित्रता मात्र एक शब्द ही नहीं है,
ये विश्वास है, जीने का श्वास है।
दिल कहता है ये इतना अटूट है,
ये दोस्ती ही दोस्तो की जान है।।
ये रिश्ता इतना गजब रिश्ता है,
जो किसी का मोहताज नही है।
इसमें चुम्बक जैसा आकर्षण है,
"पंकज" ये दिल कुछ कहता है।।
बंधुत्व दिवस पर सभी दोस्तों को ढेरों बधाई। दिल तो एक - एक दोस्त को नाम लेकर बधाई देना चाहता है। आज का दिन इतना विशेष है कि जिसे शब्दो से बंधना असंभव है पर इस रिश्ते को विश्वास के डोर से बंधा जा सकता है क्योकि इसकी नींव ही विश्वास है।
यह वह रिश्ता है जो किसी जाती, धर्म, सम्प्रदाय, रंग, रूप आदि का मोहताज नही। यह वह रिश्ता है जो हम जन्म के बाद से स्वयं बनाते है। कुछ अच्छे दोस्त बनते है तो कुछ खराब। मेरा मानना है कि जन्म के साथ कोई दोस्त बनते है तो वो माँ-बाप बनते है, फिर आगे चलकर स्कूल, कॉलेज, समाज, व्यापार आदि के माध्यम से संपर्क में आये लोग दोस्त बनते जाते है। विवाह उपरांत पति पत्नी दोस्त बन जाते है। कभी पिता पुत्र , कभी माँ बेटे, कभी पति पत्नी तो कभी अनजान पहचान वाले भी मित्र बन जाते है। सिर्फ इंसान ही क्यों पशु पक्षी भी दोस्त बन जातें है। आखिर ऐसा क्या कमाल है इस दोस्ती में हो हर कोई जुड़ता जाता है दोस्त बनता जाता है। यह चुम्बक सा आकर्षण आखिर क्या है जो सबको एक दूसरे के प्रति आकर्षित करता है। कुछ तो खास बात जरूर है इसमें तभी हम दोस्त बनाते है।
मुझे अर्हत वंदना की पंक्ति मित्ति में सव्व भुवेसु....... स्मृति में आता है तो समझ आता है कि सभी मेरे मित्र है कोई शत्रु नही है।
मुझे मेरे खास परिचित भाई चंदन पांडे जी की वो बात स्मृति में आ गई जो कुछ दिन पहले उन्होंने कही थी -
👉 मित्र एक शब्द नहीं बल्कि भावनाओं का वह महासागर है, जिसमें डुबने का भी अथाह आनंद है। सारे रिश्ते व्यक्ति को जीवन में पूर्व निर्धारित रूप में प्राप्त होते हैं, किन्तु मित्रता एक ऐसा रिश्ता है, जिसका निर्माण भावनाओं के सम्यक् मिलाप से उत्पन्न होता है। मित्रता तो वह होती है जो विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत दीवाल की तरह अडिग होती है। जिससे टकराकर जीवन में आने वाला भूचाल भी मुंह की खाकर लौटता है।
मित्रता भावनाओं का वह ज्वार है, जो शब्द की सीमा से परे है। मित्रता सम्पूर्ण समर्पण है एक-दूसरे के प्रति। मित्रता विश्वास की पराकाष्ठा है एक-दूसरे के प्रति।
👆उपरोक्त बात कितनी सटीक है वाकई में इस मित्र शब्द की गहराई इतनी गहरी है जो विश्वास के बिना समझ पाना असंभव है। विश्वास की हर स्थिति परिस्थिति से ऊपर है। मित्र के उदहारण में कृष्ण और सुदामा की मित्रता अपने आप मे मिशाल है जहाँ एक अमीर तो दूसरा दरिद्र पर दोनों का परस्पर स्नेह आपस मे एक दूजे के प्रति निश्चल विश्वास के धागे से बंधा हुआ था। यही तो है मित्रता जो किसी स्वार्थ का मोहताज नही होता जहा होता है तो सिर्फ विश्वास विश्वास और विश्वास।



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

मित्र की मित्रता तो अपरिमेय है।