बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे

कोई टिप्पणी नहीं: