- महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज का आध्यात्मिक आगाज
- प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
- महावीर के प्रतिनिधि ने आरम्भ किया ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग
- महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन
- मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान कर श्रद्धालुओं को किया मंत्रमुग्ध
- तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर किया स्मरण
27.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का पर्वाधिराज पर्युषण का आध्यात्मिक आगाज मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिन ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे से पूर्व ही पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बन चुका था। हालांकि इस महापर्व में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास के क्षेत्र को पंडाल का रूप प्रदान किया था। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से मुख्य प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए तो आचार्यश्री के दांयीं ओर संत समाज की उपस्थिति तो बांयीं ओर साध्वीवृंद की उपस्थिति। सामने की ओर हजारों-हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति के बीच आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को पर्युषण पर्व के महत्त्व के बारे में अवगति प्रदान की। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित था। ‘खाद्य संयम दिवस’ से संबंधित गीत का संगान साध्वी ज्योतियशाजी द्वारा किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को खाद्य संयम के संदर्भ में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व की यात्रा मानव को आत्मा तक पहुंचाने वाली है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण करना होता है। शरीर को धारण करने के लिए शरीर की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करनी होती है। शरीर के लिए आदमी को भोजन, वस्त्र आदि-आदि की आवश्यकता होती है। जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। विवेक के बिना किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जिह्वा को जंक फूड और फास्ट फूड के स्वाद से निकालकर उसके गले में अस्वाद की घंटी को बांधने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा भोजन को हितकर, मितकर और सात्विक होना चाहिए। आचार्यश्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर आदमी को भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस के अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को श्रीमज्जयाचार्यजी के जीवन के विषय में अवगति प्रदान की।
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ एक सुन्दर विषय है। इस महापर्व पर भगवान महावीर की इस यात्रा को विस्तार से जानने के लिए आत्मवाद को भी जानने की आवश्यकता है। दुनिया में दो तत्त्व हैं-जड़ और चेतन। इन दोनों के अलावा जीवन में कुछ भी नहीं। जिसमें उपयोग हो, व्यापार हो चेतन और जिसमें ये नहीं वह जड़ होता है। आत्मा अनादि है। आत्मा का विनाश नहीं हो सकता। आत्मा शाश्वत अस्तित्व होता है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है।
अध्यात्म जगत में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है। ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में विवेचित किया गया है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर थे। हम उनके शासनकाल में साधना कर रहे हैं। वे परम सात्विक पुरुष थे। उनका यह जीवन पूर्वजन्मों की साधना पर टिका हुआ है। उनके पूर्व भव को जानने से कर्मवाद की पुष्टि भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन भी तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। वे तेरापंथ की दूसरी शताब्दी के सूत्रधार थे। वे अध्यात्मवेत्ता, तत्त्ववेत्ता और विधिवेत्ता थे। उनका आज के दिन हम श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, वन्दन करते हैं। आचार्यश्री ने ‘खाद्य संयम दिवस’ के संदर्भ में भी श्रद्धालुओं को खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। मुख्य प्रवचन से पूर्व मुनि रजनीशकुमारजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया तो मुनि अनुशासनकुमारजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया।
अंत में आचार्यश्री ने 18 जनवरी 2020 को उत्तरी कर्नाटक में स्थित गदग में दीक्षा समारोह करने की घोषणा की। इसमें मुमुक्षु रौनक बाफना, श्रुति चोपड़ा व सोनम पालगोता को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की तो पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। इसके उपरान्त अनेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : चंदन पांडे
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