बुधवार, अगस्त 09, 2023
आप के जैसा दूसरा कोई नहीं
मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या माँसाहारी ??
मृत्यु के 14 प्रकार
बुधवार, जुलाई 26, 2023
ज्ञानदाता के प्रति विनय, सम्मान की भावना हो - अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण जी
26.07.2023, बुधवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र), जैन धर्म में कर्मवाद का सिद्धांत है। भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि ज्ञानावरणीय कर्म प्रयोग का बंध किन कारणों से होता है? उत्तर दिया गया कि ज्ञान का विरोध करने, ज्ञान के विकास में अवरोध डालने, ज्ञान की अवज्ञा करने, ज्ञान की अवहेलना करने आदि कुल सात कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। भगवती सूत्र में वर्णित इन सातों को जानकर ज्ञानावरणीय कर्म बंध के इन सातों कारकों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को इनसे बचने के लिए ज्ञान के प्रति प्रेम, ज्ञान के प्रति विनय का भाव, ज्ञानदाता के प्रति आदर व विनय का भाव, दूसरों को ज्ञान प्रदान करने में सहयोग करने, ज्ञान प्राप्ति में अवरोध न बनने, ज्ञान की अवज्ञा नहीं करने, दूसरों के ज्ञान प्राप्ति में सहयोग करने, किसी को ज्ञान प्रदान करने से ज्ञानावरणीय कर्म बंध से बचा सकता है और ज्ञान का अच्छा विकास हो सकता है।
भगवती सूत्र में वर्णित इन सात हेतुओं को जानकर आदमी को इनसे दूर रहने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञानावरणीय कर्म बंध से अपने आपको बचाने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के विकास में प्रतिकूल आचरण से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के प्रति विनय का भाव हो, ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेम हो, ज्ञानदाता के प्रति विनय, सम्मान की भावना हो, दूसरों के ज्ञान प्राप्ति में सहयोग करने का प्रयास और ज्ञानदान का भी प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। लाभ होना बुरा नहीं, बुद्धि बुरी नहीं होती, भोग बुरा नहीं होता, बस इसके प्रयोग में असंयम और इसके दुरुपयोग करना बुरा होता है। आदमी को ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा ज्ञानशाला के माध्यम से, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा श्रुतोत्सव के द्वारा, जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के द्वारा ज्ञान के क्षेत्र में विकास का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार अनेक माध्यमों से ज्ञान के विकास का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान की।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में श्रुतोत्सव (तत्त्व/तेरापंथ प्रचेता दीक्षांत समारोह) का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया ने जानकारी प्रस्तुत की। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा श्रुतोत्सव के माध्यम से ज्ञानाराधना का अच्छा उपक्रम चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से महिला समाज ही नहीं, कई चारित्रात्माएं भी जुड़ी हुई हैं। जिन्होंने ज्ञान का विकास कर लिया है, वे दूसरों के ज्ञान के विकास में सहयोग करें। गोठी परिवार के सदस्य ज्ञान के विकास आदि से जुड़ा हुआ है। ज्ञान के विकास का अच्छा प्रयास होता रहे।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में बुधवार को 21 जुलाई को देवलोक हुए मुनि शांतिप्रियजी की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने मुनि शांतिप्रियजी का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भावना व्यक्त की और आचार्यश्री सहित चतुर्विध धर्मसंघ ने उनकी आत्मा के शांति के लिए चार लोग्गस का ध्यान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी व साध्वीप्रमुखा विश्रुत ने मुनि शांतिप्रियजी के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की। मुनि अक्षयप्रकाशजी, मुनि कोमलकुमारजी, मुनि ध्रुवकुमारजी, मुनि मृदुकुमारजी व मुनि गौरवकुमारजी ने भी उनके प्रति अपनी अभिव्यक्ति दी। मुनि शांतिप्रियजी के संसारपक्षीय पुत्र श्री बिनोद बोरदिया व दीसा सभा के अध्यक्ष श्री रतनलाल मेहता व समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।