शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण से भगवती सूत्र आगम के आधार पर उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से पूछा गया कि प्राणियों का जागना अच्छा या सोना? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि कुछ जीवों का सोना अच्छा और कुछ जीवों का जागना अच्छा होता है। भगवान महावीर ने इसका विस्तार प्रदान करते हुए बताया गया कि जीवों को उनके कर्मों के आधार पर दो भागों में बांटे तो धार्मिक और अधार्मिक जीव प्राप्त होते हैं।
इस दृष्टिकोण से धार्मिक जीवों का जागना अच्छा होता है और अधार्मिक जीवों का सोना अच्छा होता है। अधार्मिक यदि जगेगा तो दूसरे प्राणियों को कष्ट देगा, प्रताड़ित करेगा, किसी न किसी जीव की हत्या कर देगा, किसी को अपमानित करेगा, किसी को अनावश्यक कष्ट देगा। इससे वह अपनी आत्मा के कर्मबंध भी कर लेगा। इसलिए ऐसे अधार्मिक जीव का सोना अच्छा होता है। उसके सोने से कितने-कितने जीव कष्ट पाने से बच सकते हैं, कितने जीवों की प्राणों की रक्षा हो सकती है और कितने जीव शांति से जी सकते हैं।
दूसरी ओर धार्मिक जीव के जागरण से दुःखी जीवों की सेवा हो सकती है, कितने परेशान जीवों को परेशानी से बचा सकता है, कितनी की आत्मा के कल्याण का प्रयास करेगा, कितने जीवों को धार्मिकता के मार्ग पर लाएगा। इस प्रकार कितने जीवों का कल्याण हो सकता है। इसलिए धार्मिक जीव का जागना बहुत अच्छा हो सकता है।
प्राणी के तीन प्रकार भी किए जा सकते हैं, अधार्मिक कार्यों में संलग्न रहने वाला अधम का सोना अच्छा होता है। इससे प्राणी कष्ट, हत्या, प्रताड़ना आदि से बच जाते हैं और उसकी आत्मा भी कर्म बंधनों से बच सकती है। मध्यम श्रेणी के प्राणियों का सोना-जगना दोनों ही ठीक होता है। वे न तो पाप कर्म करते और न ही ज्यादा धार्मिक कार्य करते हैं। उत्तम श्रेणी के लोगों का सतत जागृत अवस्था में बने रहना लाभकारी हो सकता है। आदमी को अपने सोने और जागने के समय का निर्धारण करने का प्रयास करना चाहिए। इससे दिनचर्या अच्छी हो सकती है तो आदमी अपने जीवन में अच्छा विकास भी कर सकता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास का सरसशैली में आख्यान किया। आचार्यश्री के आख्यान का श्रवण कर जनता भावविभोर नजर आ रही थी।