रविवार, सितंबर 05, 2010

पर्यूषण पर्व अष्टान्हिका महोत्सव क्यों?

पर्युषण शब्द की परिभाषा व व्याख्या विभिन्न आचार्यों, साधु-साध्वियों ने विभिन्न विभिन्न रुप से की है। पर्युषण शब्द का सन्धि-विच्छेद करते हुए परि*उषण। परि का मतलब होता है चारों ओर से, सब तरफ से तथा उषण का अर्थ है दाह। जिस पर्व में कर्मों का दाह। विनाश किया जाये वह पर्यूषण शब्द के पर्यायवाची १) पज्जुसणा २) पज्जोसमणा ३) पज्जोसवणा ४) परिजुसणा ५) परिवजणा ६) पज्जुवासणा ७) परियाय ठवणा ८) पज्जूसण । पर्यूषण पर्व जैन धर्म का महान पर्व है। इस महान पर्व में सभी जैन श्रावक-श्राविकाएंं छोटे-छोटे बच्चे भी तपश्चर्या, व्रत, जप, आराधना करते हैं। अपने शरीर, मन, आत्मा को शुद्ध करने का महान पर्व पर्युषण पर्व है। संवत्सरी के दिन प्रतिक्रमण कर अपने व्यवहार, कर्म, बोलचाल आदि से हुई। असातना गलतियों के लिए प्राणीमात्र से क्षमा याचना करते हैं। पर्यूषण पर्व आठ दिन का होता है, इसलिए इसे आष्टान्हिक पर्व भी कहा गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि जैन धर्म का यह प्रमुख पर्व पर्युषण महापर्व आठ दिनों का ही क्यों निर्धारित किया गया है।

सात, नौ या अन्य दिनों का क्यों नहीं तो उसका उत्तर है कि- हमारी आत्मा के आठ प्रमाद है।
१) अज्ञान
२) संशय
३) मिथ्या ज्ञान
४) राग
५) द्वेष
६) स्मृति (स्मृति-भ्रंश)
७) धर्म-अनादर,
८) योग
दुष्परिणाम। में फंसी हुई आठ मद
१) जाति
२) कुल
३) बल
४) रुप
५) तप
६) लाभ
७) श्रुत
८) ऐश्वर्य,
ऐश्वर्य के कारण ८ कर्म -
१) ज्ञानावरणीय
२) दर्शनावरणीय
3) वेदनीय
४) मोहनीय
५) आयु
६) नाम
७) गौत्र
८) अनाराम- से आवृत्त होकर अपनी सच्ची अलौकिक शक्ति तथा ज्ञान को खोती चली जा रही है।

जब तक हर मानव आठो प्रमादों, मद और कर्म से स्वयं को परे नहीं रखेगा, इनका त्याग नहीं करेगा, तब तक उसे सच्चा ज्ञान और सच्चा दर्शन होना दुर्लभ है। इसीलिए पर्यूषण महापर्व क्रमशः इन्हीं आठ विकारों से आत्मा को परिमुक्त करने हेतु आठ दिन तक मनाया जाता है। आठ विकारों के नाश के पश्चात् ही आठ आत्मगुण - १) अनन्त ज्ञान २) अनन्त दर्शन ३) अनन्त सुख ४) अनन्त चरित्र ५) अटल अवगाहन ६) अमूर्तिक ७) अगुरु लघु ८) अनन्त बलवीर्य की प्राप्ति होती है। उत्तराध्ययन सूत्र ११ (४-५) में आठ बातें बतलायी गयी है, जिनका यदि पर्यूषण पर्व में अभ्यास किया जाए तो जीवन में नया प्रकाश व नई चेतना की स्फूरणा हो सकती है।
१) शांति
२) इन्द्रिय दमन
३) स्वदोष दृष्टि
४) सदाचार
५) ब्रह्मचर्य
६) अलो लुप्ता
७) अक्रोध
८) सत्याग्रह।
आठ विकारों को नाश करने के लिए आठ शिक्षाएं आठ शील के गुम, आठ प्रवचन माता की आज्ञा से देव, गुरु, धर्म एवं ५ व्रत इन आठ का श्रद्धापूर्वक आचरण करने के लिए अरिहन्तसिद्ध आचार्य उपाध्याय-साधु साध्वी श्रावक और श्राविका। इन ८ पदों की निकट सम्फता सम्यकत्व के ८ आचारों का निर्दोष पालन और आचार्य की ८ संपदाओं के स्मरण के रूप में इन ८ दिनों का महत्व स्वतः सिद्ध हो जाता है। प्राचीन काल में ८ दिन के उत्सव होते थे तथा किसी भी शुभ कार्य में ८ का योग होना अच्छा मानते थे। मंगल आठ माने गए हैं। सिद्ध भगवान के भी ८ गुण बताए हैं। साधु की प्रवचन माता आठ है। संयम के भी आठ भेद बताए गए हैं। योग के ८ अंग हैं। आत्मा के रूचक प्रदेश भी आठ हैं। इस प्रकार आठ की गणना बड़ी महत्वपूर्ण रही है। वर्ष भर में सांसारिक निजी प्रपंचों में उलझे मानव को पर्यूषण महापर्व के आठ दिनों में तो तप आराधना कर आठ विकारों का नाश कर आठ गुणों को प्राप्त करने का प्रयास कर मानव जीवन सफल सार्थक बनाने हेतु त्याग-तपस्या करनी चाहिए।

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