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बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे

मंगलवार, अगस्त 27, 2019

आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है - आचार्य महाश्रमण

  • महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज का आध्यात्मिक आगाज
  • प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • महावीर के प्रतिनिधि ने आरम्भ किया ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग
  • महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन
  • मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान कर श्रद्धालुओं को किया मंत्रमुग्ध
  • तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर किया स्मरण
27.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का पर्वाधिराज पर्युषण का आध्यात्मिक आगाज मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिन ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे से पूर्व ही पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बन चुका था। हालांकि इस महापर्व में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास के क्षेत्र को पंडाल का रूप प्रदान किया था। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से मुख्य प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए तो आचार्यश्री के दांयीं ओर संत समाज की उपस्थिति तो बांयीं ओर साध्वीवृंद की उपस्थिति। सामने की ओर हजारों-हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति के बीच आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को पर्युषण पर्व के महत्त्व के बारे में अवगति प्रदान की। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित था। ‘खाद्य संयम दिवस’ से संबंधित गीत का संगान साध्वी ज्योतियशाजी द्वारा किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को खाद्य संयम के संदर्भ में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व की यात्रा मानव को आत्मा तक पहुंचाने वाली है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण करना होता है। शरीर को धारण करने के लिए शरीर की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करनी होती है। शरीर के लिए आदमी को भोजन, वस्त्र आदि-आदि की आवश्यकता होती है। जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। विवेक के बिना किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जिह्वा को जंक फूड और फास्ट फूड के स्वाद से निकालकर उसके गले में अस्वाद की घंटी को बांधने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा भोजन को हितकर, मितकर और सात्विक होना चाहिए। आचार्यश्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर आदमी को भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस के अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को श्रीमज्जयाचार्यजी के जीवन के विषय में अवगति प्रदान की।
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ एक सुन्दर विषय है। इस महापर्व पर भगवान महावीर की इस यात्रा को विस्तार से जानने के लिए आत्मवाद को भी जानने की आवश्यकता है। दुनिया में दो तत्त्व हैं-जड़ और चेतन। इन दोनों के अलावा जीवन में कुछ भी नहीं। जिसमें उपयोग हो, व्यापार हो चेतन और जिसमें ये नहीं वह जड़ होता है। आत्मा अनादि है। आत्मा का विनाश नहीं हो सकता। आत्मा शाश्वत अस्तित्व होता है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है।
अध्यात्म जगत में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है। ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में विवेचित किया गया है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर थे। हम उनके शासनकाल में साधना कर रहे हैं। वे परम सात्विक पुरुष थे। उनका यह जीवन पूर्वजन्मों की साधना पर टिका हुआ है। उनके पूर्व भव को जानने से कर्मवाद की पुष्टि भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन भी तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। वे तेरापंथ की दूसरी शताब्दी के सूत्रधार थे। वे अध्यात्मवेत्ता, तत्त्ववेत्ता और विधिवेत्ता थे। उनका आज के दिन हम श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, वन्दन करते हैं। आचार्यश्री ने ‘खाद्य संयम दिवस’ के संदर्भ में भी श्रद्धालुओं को खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। मुख्य प्रवचन से पूर्व मुनि रजनीशकुमारजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया तो मुनि अनुशासनकुमारजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया।
अंत में आचार्यश्री ने 18 जनवरी 2020 को उत्तरी कर्नाटक में स्थित गदग में दीक्षा समारोह करने की घोषणा की। इसमें मुमुक्षु रौनक बाफना, श्रुति चोपड़ा व सोनम पालगोता को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की तो पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। इसके उपरान्त अनेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : चंदन पांडे

मंगलवार, अक्तूबर 16, 2018

Terapanth


Philosophy of soul and Karma: Every living being is a soul , existing in the world from infinite time, passing through the cycles of birth and death. It is bound by Karma (a fine form of matter) through its own action of passion - attachment and aversion. Soul itself is the master of its own fate, responsible for all its action - good or otherwise . Jainism does not accept creationism.

Freedom from passion leading to Emancipation: Soul in the worldly existence undergoes suffering caused by Karma. It also possesses the potentiality of attaining Emancipation. First by getting rid of passions (such as anger, pride, deceit, and greed ) and attaining omniscience through right knowledge, right faith, right conduct and right penance one can finally get emancipated.

Non-Violence and Non-possessiveness: The practice of religion consist in the renunciation of two deadly sins of humanity - the aggressive urge and the possessive urge - through Non- violence and Non- possessiveness respectively. The basic principles leading to this two are -
(1) all souls are equal to one’s own soul
(2) limitless desires and possessions vitiate one’s attitude and behavior.

Non-absolutism (Anekantvada): It asserts that infinite twin qualities of opposite nature such as, permanence and change , identity and difference exist in each and every substance. Therefore Truth is multifaceted . All statements contain relative truth. To comprehend the complete truth , one has to take into consideration the different aspects of a thing /even from different points of view.

Terapanth is a religious sect under Swetembar Jain. The terapanthi sub-sect is derived from the Sthanakvasi; section. The Terapanthi sub-sect was founded by Swami Bhikanaji Maharaj. Swami Bhikanaji was formerly a Sthanakvasi saint and had initiation from his Guru, by name Acharya Raghunatha. Swami Bhikanaji had differences with his Guru on several aspects of religious practices of Sthanakvasi ascetics It was Founded by Acharya Bhikshu in Vikram Sambat 1817 i.e. June 28th of 1760 ( Saturday ) at KELWA (a small town in Udaipur District of Rajasthan State ).This sect is entirely based upon the Ideology of Jain .

As Acharya Bhikanaji laid stress on the 13 religious principles, namely,
(i) five Mahavratas (great vows),
(ii) five samitis (regulations)
(iii) three Guptis (controls or restraints)
His sub-sect was known as the Tera (meaning thirteen)-pantha sub-sect. In this connection it is interesting to note that two other interpretations have been given for the use of the term Terapantha for the sub-sect. According to one account, it is mentioned that as there were only 13 monks and 13 laymen in the pantha when it was founded, it was called as Tera (meaning thirteen) -pantha. Sometimes another interpretation of the term Terapantha is given by its followers. Tera means yours and pantha means path; in other words, it means,
"Oh! Lord Mahavira! it is Your path ( Panth )". हे प्रभू यह तेरापंथ

This practice of regulating the entire Pantha by one Acharya only has become a characteristic feature of the Terapantha and an example for emulation by other Panthas. It is noteworthy that all monks and nuns of the Terapantha scrupulously follow the orders of their Acharya, preach under his guidance and carry out all religious activities in accordance with his instructions. Further, the Terapantha regularly observes a remarkable festival known as Maryada Mahotasava. This distinctive festival is celebrated every year on the 7th day of the bright half of the month of Magha when all ascetics and lay disciples, Sädhus (monks) and Sädhvis (nuns) are people who have voluntarily given up their household lives and worldly affairs and have accepted the five major vows to uplift their souls on the spiritual path. They strictly follow the rules laid down for them. Shrävaks and shrävikas, on the other hand, continue to lead worldly lives. They may observe in full or to a limited extent, twelve minor vows laid down for them.

Terapanth is non-idolatrous and are very finely organized under the complete direction of one Acharya, that is, religious Supreme . In its history of little more than 200 years, the Terapantha had a succession of only 10 Acharyas from the founder Acharya Bhikanaji as the First Acharya to the present At present Acharya Mahapragya is the supreme head . He is the Tenth Acharya of Terapanth religious sect comprising more than 850 monks , nuns, samans and samanis ( a new rank between the ascetic and the lay - followers ) following critical codes of disciplines, and millions of followers all over the world.
Apart From founder Acharya Bikshu Swami & other Acharya's , Acharya Jeetmal popular name " Jayacharya " ( the 4th Acharya ) & Gandipathi Acharya    Tulsi (the ninth Acharya) was a missionary in the history of Terapanth. The were a adorable torch - bearers of great spiritualistic tradition of India . People designated him a "lord of Humanity" His strenuous efforts are well known to the common people.

रविवार, जून 03, 2018

मन ही बंधन और मन ही मोक्ष का कारण होता है - आचार्य श्री महाश्रमण जी

श्रुत ज्ञान से मन रूपी अश्व पर लगाई जा सकती है लगाम: महातपस्वी 

03.06.2018 तुम्मापलेम, गुन्टूर (आंध्रप्रदेश), JTN, जन-जन के मानस को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सद्विचारों से अपने जीवन को अच्छा बनाने की पावन प्रेरणा अपने अमृतवाणी से प्रदान करते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ चेन्नई महानगर में वर्ष 2018 के चतुर्मास के लिए निरंतर गतिमान हैं। वर्तमान में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की धवल सेना राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 16 से निकल रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरती आचार्यश्री की धवल सेना ऐसे लगती है मानों गंगा की धवल धारा जन-जन को तारने के लिए कल-कल कर प्रवाहित होती जा रही है। इस प्रदेश में भाषा की समस्या के बावजूद भी जब स्थानीय लोगों को किसी माध्यम से आचार्यश्री की इस महान अहिंसा यात्रा, आचार्यश्री के जीवन, आचार्यश्री के कठिन श्रम की जानकारी होती है तो उनके भी सर श्रद्धा के साथ नत होते हैं और ऐसे महान आचार्य के दर्शन कर अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं। 
रविवार को प्रातः आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ चोवदावरम स्थित कल्लाम हरनधा रेड्डी इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाॅजी से प्रस्थान किया। आज आसमान बिल्कुल साफ था, जिसके कारण प्रातः से ही सूर्य की किरणें धरती का तापमान बढ़ाने में जुट गईं। जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ा धूप भी बढ़ती गई। यह गर्मी लोगों को बेहाल बनाने में सक्षम थी, किन्तु समताभावी आचार्यश्री के मुख की एक मोहक मुस्कान लोगों को उत्प्रेरित कर रही थी। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर तुम्मापलेम स्थित श्री मित्तापाल्ली काॅलेज आॅफ इंजीनियरिंग में पधारे। 
काॅलेज परिसर में बने एक हाॅल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जिस प्रकार आदमी के जीवन में शरीर और वाणी का महत्त्व होता है, उसी प्रकार मन का भी आदमी के जीवन में बहुत महत्त्व होता है। मन को एक प्रकार का दुष्ट अश्व (घोड़ा) बताया गया है जो आदमी को उत्पथ की ओर ले जा सकता है। इस अश्व को नियंत्रण में रखकर इसे अच्छा भी बनाया जा सकता है। 
मन बहुत तेज गति से चलने वाला अवश्य है और बिना नियंत्रण के आदमी को कुमार्ग की ओर भी ले जाता है। मन रूपी अश्व पर लगाम लगाने के लिए श्रुत के द्वारा ज्ञानार्जन करने का प्रयास करना चाहिए। अर्जित आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से ही इस घोड़े पर नियंत्रण किया जा सकता है। मन ही बंधन और मन ही मोक्ष का कारण होता है। मन दुःखों का बढ़ा सकता है और ही शांति प्रदान करने वाला होता है। मन मंत्र में लग जाए, मन धर्म में लग जाए तो वह पवित्र और अच्छा हो सकता है। पवित्र मन आदमी को सत्पथ की ओर ले जाने वाला हो सकता है। 

शनिवार, अप्रैल 22, 2017

हे महायोगी, हे दिव्य पुरुष



हे महायोगी, हे दिव्य पुरुष

शब्दों बाँधु कैसे हे महापुरुष।

विनम्रता, तत्परता, गुरु के प्रति समर्पण
मेरे महाप्रज्ञ प्रभु का जीवन जैसे दर्पण।।

प्रेक्षाप्रणेता ने दिया प्रेक्षा ध्यान अनमोल
साहित्य सृजन कर दिया खजाना खोल।।

शांति का तुमने सदा ही था पाठ पढ़ाया
मानव को तुमने सदा मानव ही बनाया।।

हिंसा पर लगाने अंकुश तुमने कदम बढ़ाया
अहिंसा यात्रा द्वारा शांति सन्देश फैलाया।।

हे दिव्य दिवाकर, हे शांत सुधा के सागर
तुम भी बने मेरे जीवन निर्माण के आधार।।

महाप्रयाण दिवस पर दिव्य प्रज्ञ को अर्पित
"पंकज" प्रभु महाप्रज्ञ के चरणों में समर्पित।।

हे महायोगी, हे दिव्य पुरुष
शब्दों बाँधु कैसे हे महापुरुष।।

गुरुवार, फ़रवरी 23, 2017

अब घर बैठे सीखे प्रतिक्रमण

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🔺 अब घर बैठे सीखे प्रतिक्रमण

🔺 ⏰न टाइम की कमी की फ़िक्र

🔺 न साधू साध्वी की अनुपस्थिति में प्रतिक्रमण नही सिख पाने का अफ़सोस करने की जरूरत
बस सिर्फ एक क्लिक और ...........

🔺 घर बेठे ही स्वयं सीखे ओरो को सिखाये प्रतिक्रमण

🔺 तेरापन्थ धर्मसंघ का श्रावक प्रतिक्रमण अब ऑडियो वर्जन के साथ लिंक में जाते ही इंग्लिश और हिंदी में पढ़ने और सिखने के लिए उपलब्ध


आज ही डाउनलोड करे गूगल प्ले स्टोर से


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🔺 आप कही भी ,कभी भी इसे अपने मोबाइल की दुनिया में समेट कर सकते है।

🔺 स्वयं Download करे एवं औरो को प्रेरित करें इसे Download करने के लिए।

प्रसारक – अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज

मंगलवार, दिसंबर 27, 2016

सीमा सुरक्षा बलों के बीच पहुंचे आध्यात्मिकता के महासंरक्षक आचार्यश्री महाश्रमण

 सीमा सुरक्षा बलों के बीच पहुंचे आध्यात्मिकता के महासंरक्षक आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

27 दिसंबर 2016, पानबाड़ी, (आसाम), आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर पानबाड़ी स्थित सीमा सुरक्षा बल के 71वें बटालियन के कैंप परिसर में पहुंचे। इस बटालियन के कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता सहित अन्य श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का स्वागत किया। आचार्यश्री कैंप स्थित ऑफिसर इन्स्टीट्यूट भवन परिसर में पधारे सीमा सुरक्षा बल के 71वें बटालियन कैंप के जवानों को आत्मा को जीतने का गुर सिखाने आत्मविजेताअखंड परिव्राजकअहिंसा यात्रा के प्रणेताजैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पहुंचे। आचार्यश्री ने जवानों को जहां अपनी आत्मा को जीतने का ज्ञान प्रदान किया और साथ ही कमांडेंट सहित प्रवचन में उपस्थित जवानों को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी स्वीकार कराए। इस तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने को तत्पर जवान आचार्यश्री से आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त कर अपनी आत्मा को सुरक्षित करने के लिए खुद को तैयार किया।
परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं और सेना के जवानों को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि एक योद्धा युद्ध में लाखों शत्रुओं को जीत लेता है, जिसे अजेय समझा जाता है उसे भी जीत लेता है तो कितनी बड़ी बात हो जाती है, किन्तु अध्यात्म जगत में आत्मा को जीतना युद्ध में जीतने से भी बड़ा विजय बताया गया है। जो आत्मा को जीत लेता है, वह अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। युद्ध के लिए तैयार रहना, प्रशिक्षण लेना और प्राणों की परवाह किए बिना देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना मनोबल की दृष्टि से बहुत ऊंची बात है। सीमा सुरक्षा बल के जवान किस प्रकार प्रशिक्षित होते होंगे और किस प्रकार अपना कार्य करते होंगे। आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज हम सीमा सुरक्षा बल के स्थान में आए हैं। यदि एक प्रकार से देखा जाए तो साधु-साध्वियां भी योद्धा हैं, जो आत्मा की सुरक्षा के लिए समर्पित रहते हैं।
आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा, जैन साधुचर्या के बारे में बताने के उपरान्त अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के बारे में बताया और जवानों से भी इसके तीन संकल्प-सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने और नशामुक्त जीवन जीने को स्वीकार करने का आह्वान किया। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित जवानों सहित स्वयं कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। नशामुक्ति के संकल्प के दौरान आचार्यश्री ने जब कमांडेंट जवानों से कहा कि यदि मद्यपान छोड़ना आप सभी के लिए संभव हो तो स्वीकार करें अथवा नहीं। तब कमांडेंट महोदय ने आचार्यश्री से कहा कि शायद आपका पदार्पण ही इसीलिए हुआ है। आचार्यश्री ने पुनः प्रश्न करते हुए कहा कि आपका विश्वास पक्का है ना ? पुनः एकबार कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने कहा कि बिलकुल मेरा विश्वास पक्का आप संकल्प करवाइए। इस दृढ़ निश्चय को देखते हुए आचार्यश्री ने कमांडेंट सहित जवानों को मद्यपान करने का संकल्प कराया।
इसके पूर्व कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने आचार्यश्री का स्वागत करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि इस कैंप का परम सौभाग्य है जो आज आप जैसे महापुरुष का आगमन हुआ। मैं पूरी बटालियन की ओर से आपका स्वागत करता हूं। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ का भी विस्तृत परिचय दिया। तेरापंथ धर्मसंघ की जानकारी कमांडेंट के मुंह से सुन एकबार तेरापंथी श्रद्धालु भी आश्चर्यचकित थे। श्री नरेन्द्र सेठिया ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी तो सुश्री सोनल पीपाड़ा ने गीत का संगान किया। अहिंसा यात्रा की ओर से कैंप में स्थित पुस्तकालय के लिए कमांडेंट महोदय को तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की महान कृति तुलसी वाङ्मय की 108 पुस्तकें प्रदान की गईं।

शनिवार, नवंबर 26, 2016

YOU CAN WIN : Design a LOGO Competition

www.jainterapanthnews.in

YOU CAN WIN
आप भी बन सकते है सहभागी

Design a LOGO Competition

आप के द्वारा डिज़ाइन किया हुआ लोगो हो सकता है आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष कि पहचान।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के लिए LOGO बनाने कि प्रतियोगिता पूरे भारत में आयोजित कि जा रही है। प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी वैज्ञानिक, साधना पुरुष, नई नई सोच के साथ नई नई खोज करने वाले व्यक्तित्व थे। इसलिए हमें कुछ नई सोच के साथ नव इतिहास का निर्माण करना है।

आप अपने स्वयं के द्वारा बनाये गए LOGO (jpeg File) में janmshatabdilogo@gmail.com पर प्रेषित करे उन में से सबसे बेहतरीन LOGO का चयन होगा और चयनित LOGO को पुरस्कृत किया जाएगा।

विजेताओ को मिलेगा

Ist PRIZE NEW APPLE IPHONE
2nd PRIZE LENOVO LAPTOP
3rd PRIZE SAMSUNG TAB

Let your imagination flow, let your creativity show !! Lets design a wonder Logo for the great visionary HH. Acharya Mahapragya ji's Birth Centenary. Last date for sending the design is 12/12/2016

: निवेदक :
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद्
बी॰सी भलावत               विमल कटारिया
अध्यक्ष                          महामंत्री

: सम्पर्क सूत्र :
नितेश कोठारी : 9367750695
अभिषेक पोखरना : 9829074922

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रविवार, जुलाई 31, 2011

उपासक श्रेणी

महासभा द्वारा संचालित प्रवृत्तियों में उपासक श्रेणी का निर्माण एक प्रमुख कार्य है। तेरापंथ समाज के विकास और उसके बढ़ते हुए प्रभाव को ध्यान में रखकर यह आवश्यक समझा गया कि साधु-साध्वियों, समण-समणियों के अतिरिक्त एक ऐसी श्रेणी का निर्माण किया जाये जो पूरे तेरापंथ समाज को आध्यात्मिक संबल, संरक्षण और संस्कार निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके। इस श्रेणी की आवश्यकता और उपयोगिता को आज से बहुत पहले पूज्य गुरुदेव तुलसी ने महसूस की थी और उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप 1970 के दशक में उपासक श्रेणी के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। फलस्वरूप धर्म क्षेत्र के एक वर्ग के लोगों को प्रशिक्षण देकर इस रूप में तैयार किया जाने लगा जो पर्युषण पर्व एवं अन्य अवसरों पर निर्दिष्ट स्थानों पर उपस्थित होकर प्रवचन, प्रयोग आदि के द्वारा वहाँ के लोगों को आध्यात्मिक आराधना में सहायता कर सकें।
उपासक का अर्थ है साधना के द्वारा आत्मोन्नयन की दिशा में अग्रसर होना। उपासक बनने के इच्छुक व्यक्तियों को पूज्यवरों के सान्निध्य में प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है, जिसके पूर्व उन्हें प्रशिक्षण शिविर में प्रवेश हेतु निर्दिष्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता है।
प्रवेश परीक्षा का पाठ्यक्रम
  1. अर्हत वंदना
  2. परमेष्टि वंदना
  3. पंचपद वंदना
  4. प्रतिक्रमण
  5. पच्चीस बोल
(इनका कंठस्थ होना आवश्यक है)
उपर्युक्त पाठ्यक्रम के अनुसार लिखित परीक्षा ली जाती है जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है।
शिविर आयोजन का समय प्रतिवर्ष के लिए निर्धारित है।
दस दिवसीय शिविर का प्रारंभ श्रावण कृष्ण पंचमी से होता है।
उपासकों की श्रेणियाँ
उपासकों की मुख्यतः दो श्रेणियां निर्धारित हैं।
  1. सहयोगी उपासक
  2. प्रवक्ता
    सहयोगी उपासक
    यह उपासक की प्रथम भूमिका है। प्रवक्ता उपासक के साथ सहायक के रूप में पर्युषण यात्रा पर जाते हैं। उपर्युक्त लिखित प्रवेश परीक्षा में सफल होने वाले बहन-भाइयों को ही ‘केंद्रीय उपासक प्रशिक्षण शिविर’ में प्रवेश मिलता है एवं शिविर में उन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है।
  3. पाठ्यक्रम –
  4. पच्चीस बोल (भावार्थ)
  5. श्रावक सम्बोध (भावार्थ)
  6. भगवान महावीर के पूर्वभव एवं संपूर्ण जीवनवृत
  7. ग्यारह गणधर का इतिहास
  8. जैन जीवनशैली के नौ सूत्र
  9. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है, जिसका उत्तीर्णांक 70 प्रतिशत है। सफल होने पर सहयोगी उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में ‘प्रवक्ता उपासक’ के साथ पर्युषण यात्रा पर जा सकते हैं।
- सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अधिकतम दो अवसर दिए जाते हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है।
प्रवक्ता उपासक
यह उपासकों की अपेक्षाकृत परिपक्व श्रेणी होती है। प्रवक्ता उपासकों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिविर में प्रशिक्षण दिया जाता है।
पाठ्यक्रम
  1. पर्युषण विषय
  2. कालचक्र और तीर्थंकर
  3. प्रभावक जैन आचार्य
  4. अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान
  5. गाथा (सिद्धांत एवं कथाएं)
  6. जैन दर्शन, तेरापंथ एवं अन्य विषयों की प्रासंगिक जानकारी।
प्रशिक्षण के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है। सफल होने पर प्रवक्ता उपासक की अर्हता प्राप्त करते हैं एवं निर्दिष्ट क्षेत्र में पर्युषण यात्रा में जा सकते हैं।
- प्रवक्ता उपासक के लिए प्रशिक्षण शिविर में सीधे प्रवेश नहीं मिलता है, पहले सहयोगी उपासक को परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है एवं दो पर्युषण यात्राएं करनी होती हैं।
- तीन साल तक लगातार पर्युषण यात्रा पर न जाने की स्थिति में पुनः परीक्षा देकर उतीर्ण होना अनिवार्य होता है। तब तक सहयोगी के रूप में पर्युषण यात्रा कर सकते हैं।

शुक्रवार, मई 14, 2010

Acharya Mahapragya

Sun can feel proud of it self if it pierces the dense layer of clouds and provides light to the earth. An artist is satisfied if he engraves and creates a lively statue from a huge unshaped rock. Acharya Mahapragya was one such personality who was gifted with both the virtues. A difficult job is encouraging for those who are transparent towards their goal and their commitment to serve mankind is evident. Nourishment amid darkness is meaningful only if it has ability to converge into light. “Nathu” as he was called in his childhood encouraged himself and got the nourishment to become Mahatma “Mahapragya”. Acharya Mahapragya born to Tolaramji Choraria and Baludevi Choraria at Tamkore (a small village in Jhunjhunun district of Rajasthan, India) in Choraria family was famous for his simple undeveloped image. But once he was admitted to monk hood by Acharya Kalugani, the 8th Acharya of Terapanth Order, he began his steps of the long journey of about 80 years under able guidance of Acharya Shri Tulsi. His determination, devotion, effort, politeness, sense of gratitude and his journey around soul enabled him to make great contribution to the society and world at large by discovery of modern meditation techniques named – ‘Preksha Meditation’ and ‘Science of Living ‘ to teach people the art of living purposeful life.
His enlightened spirituality has offered great solution to the modern world problem of terrorism, nonviolence and economic imbalances. His philosophy of relative economics offers amazing solution to the modern economic recession and related problems. His way of presentation of the teachings of Lord Mahavira i.e. principles of truth, non-stealing, non-violence, practice of chastity and non possessiveness have made Lord Mahavira more meaningful in the present scenario.

He has in the young age of about 80 years commenced the Ahimsa Yatra and studied the root causes of violence and has been regularly preaching people to remove those evils to eradicate terrorism and violence from the earth. Besides the Study of the modern problems he never ignored the smallest unit of the institution named family. He always preached to develop Equanimity, amity, assurance, compassion, affection, tolerance, endurance, encouragement of others to have peaceful co existence. He was a world renowned philosopher, writer of hundreds of books and commentaries. Even though he did not complete formal primary education, he has created such literary works that many research scholars have completed their Phd. on his literature.

Being a member of the Choraria Family of Tamkore, I too feel proud of the contributions made by His Holiness. His glorified effort has made the tiny village of Tamkore more prominent on the World Map.

The news of his untimely demise came as a great shock to our family. We are deeply saddened. a large vacuum has been created. I pray for his spiritual journey abode. May his soul get liberation from the bondage of karma and attain Moksha soon. I pray for myself to apply his teachings and experiments for spiritual development of my own soul.
I bow with folded hands –
OM NAMAH MAHAPRAGYA GURUVAI NAMAH !

FROM: SUSHIL KUMAR JAIN (CHORARIA), TAMKORE, KOLKATA

Acharya Mahapragya cremated Raj Sadosh



Sriganganagar/Abohar, May 10
Acharya Mahapragya, the 10th Acharya and supreme head of the Jain Swetambar Terapanth community was cremated today evening in Sardarshehar — the place where he gained monkhood and where he was staying for the past few days to conduct Chaturmaas.

Former President Abdul Kalam, who had co-authored a book with the Mahapragya, too turned up and said “I have come here for ‘antim darshan’ of the great saint and philosopher".
Special emissaries of President Pratibha Patil, AICC president Sonia Gandhi and Gujarat Chief Minister Narendra Modi visited the town to deliver condolence messages. Modi was expected to attend the funeral procession but the programme was changed.
Baikunthi (procession carrying body of the deceased saint) was taken out from Shree Samvasaran complex where tens of thousands of devotees had made a beeline to have ‘antim darshan.’ People stood on both sides with folded hands, most of them bowing heads in reverence as the procession proceeded to the cremation ground through main roads of the historic town.
Punjab Governor Shivraj Patil said in his message, “The Acharya was a great sage and philosopher who gave a new direction to Anuvrat movement and spread the message of non-violence through his Ahimsa Yatra.”
Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot, his cabinet colleagues and other prominent people, attended the funeral along with Rajasthan Pradesh Congress president and Central minister CP Joshi. “He was a guru to all, including followers of other communities,” said state home minister Shanti Dhariwal. Gehlot said, “The country has lost a great guru and a social reformer.” Former CM Vasundhara Raje and Rajasthan BJP president Arun Chaturvedi too condoled the demise.
Notably, late Indian President S Radhakrishnan had termed Acharya Mahapragya (then known as Muni Nathmal) as one of the two finest philosophers of modern India along with Swami Vivekananda. Acharya Mahapragya is credited with the formulation of the ‘preksha’ meditation system in 1970s. He was also the supreme head of Jain Vishva Bharati University and played a key role in its establishment. He also took forward the Anuvrat movement launched by Acharya Tulsi.
- Lalit Garg