शनिवार, फ़रवरी 18, 2023

प्रार्थना


एक बार एक पिता और उसका पुत्र जलमार्ग से कहीं यात्रा कर रहे थे और तभी अचानक दोनों रास्ता भटक गये। फिर उनकी नौका भी उन्हें ऐसी जगह ले गई, जहाँ दो टापू आस-पास थे और फिर वहाँ पहुंच कर उनकी नौका टूट गई। पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है, हम दोनों का अंतिम समय आ गया है, दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है।

अचानक पिता को एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है, तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें। उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए।

एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग टापू पर ईश्वर की प्रार्थना करने लगे।

पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें। ईश्वर ने प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये। उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया। फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ। तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी। अब उसने सोचा कि मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न मैं ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे लूँ ? उसने ऐसा ही किया उसने प्रार्थना की, एक नई नाव आ जाए जिसमें सवार होकर मैं यहाँ से बाहर निकल सकूँ। तत्काल नाव प्रकट हुई और पुत्र उसमें सवार होकर बाहर निकलने लगा।

तभी एक आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो? अपने पिता को साथ नहीं लोगे ? पुत्र ने कहा, उनको छोड़ो, प्रार्थना तो उन्होंने भी की, लेकिन आपने उनकी एक भी नहीं सुनी।  शायद उनका मन पवित्र नहीं है, तो उन्हें इसका फल भोगने दो ना ? आकाशवाणी ने कहा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे पिता ने क्या प्रार्थना की ? पुत्र बोला, नहीं !आकाशवाणी बोली तो सुनो, तुम्हारे पिता ने एक ही प्रार्थना की... हे भगवन। मेरा पुत्र आपसे जो भी माँगे, उसे दे देना क्योंकि मैं उसे दुःख में हरगिज़ नहीं देख सकता औऱ अगर मरने की बारी आए तो मेरी मौत पहले हो और जो कुछ तुम्हें मिल रहा है उन्हीं की प्रार्थना का परिणाम है। पुत्र बहुत शर्मिंदा हो गया।

हमें जो भी सुख, प्रसिद्धि, मान, यश, धन, संपत्ति और सुविधाएं मिल रही है उसके पीछे किसी अपने की प्रार्थना और शक्ति जरूर होती है लेकिन हम नादान रहकर अपने अभिमान वश इस सबको अपनी उपलब्धि मानने की भूल करते रहते हैं और जब ज्ञान होता है तो असलियत का पता लगने पर सिर्फ़ पछताना पड़ता है। हम चाह कर भी अपने माता पिता का ऋण नहीं चुका सकते। यह याद रखो उस परमपिता को जिसने पूरी सृष्टि रचाई है।  कभी अभिमान नहीं करना चाहिए, हम किसके भाग्य का पा रहे हैं, कोई बोल नही सकता।


Once a father and his son were traveling somewhere by a waterway and then suddenly both lost their way.  Then his boat also took him to a place where two islands were nearby and then his boat broke down after reaching there.  The father said to the son, now it seems, the last time has come for both of us, no support is visible far and wide.


 Suddenly the father thought of a solution, told his son that anyway our last time is near, so why not pray to God.  They divided both the islands among themselves.


 Father on one and son on the other, and both started praying to God on different islands.


 The son said to God, O God, let trees and plants grow on this island, with whose fruits and flowers we can satisfy our hunger.  God heard the prayer, immediately trees and plants grew and fruits and flowers also came in it.  He said that this is a miracle.  Then he prayed, a beautiful woman should come so that we can stay here with her and settle our family.  Immediately a beautiful woman appeared.  Now he thought that my every prayer is being heard, so why don't I ask God for a way out of here?  He did so and prayed that a new boat should come in which I could get out of here.  Immediately the boat appeared and the son started coming out riding in it.

Only then there was an Akashvani, son, you are going alone?  Won't you take your father with you?  Son said, leave them, they also prayed, but you didn't listen to them.  Maybe their mind is not pure, so let them suffer the consequences, right?  Akashvani said, do you know what your father prayed?  The son said, no! Listen to what Akashvani said, your father made only one prayer... O God.  Whatever my son asks from you, give him because I can never see him in sorrow and if it is his turn to die, I should die first and whatever you are getting is the result of his prayers.  The son became very embarrassed.


 Whatever happiness, fame, respect, fame, wealth, wealth and facilities we are getting, behind it there is certainly the prayer and power of someone close to us, but being ignorant, due to our pride, we keep making the mistake of considering all this as our achievement and when knowledge  If it happens, then only you have to repent after finding out the reality.  We cannot repay the debt of our parents even if we want to.  Remember this Supreme Father who created the whole world.  One should never be proud, whose fortune we are getting, no one can say.



साभार  : जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के व्हाट्सएप्प ग्रुप में श्री महेंद्र दुगड़ द्वारा अग्रेषित

शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2023

जो नहीं है उसको प्रधानता न देकर जो हमें प्राप्त है उसमें सुखी रहने का प्रयास करें - आचार्य महाश्रमण


ब्रम्हाकुमारी मुख्यालय पदार्पण पर दादी रतन मोहिनी ने किया आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत

हजारों ब्रम्हाकुमारी सदस्यों को युगप्रधान ने प्रदान किया प्रेरणा पाथेय


17.02.2023,  शुक्रवार, आबू रोड, सिरोही (राजस्थान), हजारों हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर मानवता के समुत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशस्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज आबू रोड स्थित ब्रह्माकुमारी मुख्यालय में पावन पदार्पण हुआ। ब्रह्माकुमारी संस्थान के विशेष निवेदन पर शांतिदूत पूर्व निर्धारित यात्रा पथ में परिवर्तन कर आज यहां पधारे एवं 87 वें त्रिमूर्ति शिव जयंती महोत्सव में अपना पावन सानिध्य प्रदान किया। कल आचार्य प्रवर का प्रवास कॉस्मो रेसीडेंसी में था जहां से मध्यान्ह में विहार कर पूज्य प्रवर आबू रोड स्थित जैन मंदिर में पधारे। आज प्रातः लगभग तीन किलोमीटर विहार कर सीआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज में गुरुदेव का पदार्पण हुआ।


देश-विदेश में फैले ब्रह्माकुमारी संस्थान के आबू रोड स्थित मुख्यालय प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, शांतिवन में जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का प्रथम बार आज पदार्पण हुआ तो मानो यह अध्यात्ममय प्रांगण एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत हो गया। ब्रम्हाकुमारी शांतिवन पदार्पण पर संस्थान की प्रमुख दादी रतन मोहिनी जी, बीके जयंती दीदी ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। इस दौरान कुछ देर आध्यात्मिक चर्चा वार्ता भी हुई। तत्पश्चात आचार्यश्री ने  परिसर का भी अवलोकन किया। ज्ञात हुआ की अभी महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु देश विदेश से 10 हजार से भी अधिक संख्या में ब्रम्हकुमार एवं ब्रम्हाकुमारी यहां पहुंचे हुए है। सेक्रेटरी BK मृत्युंजय कुमार एवं दादी रतन मोहिनी द्वारा भिक्षा ग्रहण करने की अर्ज पर आचार्य प्रवर ने अपने अनुग्रह से उन्हें अनुगृहित किया।


प्रवचन सभा में उपस्थित ब्रम्हाकुमारी संगठन से जुड़े हजारों सदस्यों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा – शरीर और आत्मा का योग जीवन है व आत्मा से शरीर का अलग हो जाना मृत्यु। आत्मा और शरीर का अत्यान्तिक वियोग होता है वह मोक्ष। जब तक शरीर और आत्मा का संबंध जुड़ा रहेगा यह जन्म मरण का चक्र चलता रहेगा। स्थाई रूप से दुःख मुक्ति व जन्म मरण से छुटकार राग-द्वेष के समाप्त होने पर ही संभव है।   हम इस संसार में रहते हुए भी पद्म-पत्र व कमल-पत्र की तरह अनासक्त रहने का प्रयास करे। जीवन में सुख-दुःख व अनुकूलता-प्रतिकूलता आती रहती है पर उसमें भी समता के भाव रखना एक विशेष उपलब्धि है। जो नहीं है उसको प्रधानता न देकर जो हमें प्राप्त है उसमें सुखी रहने का प्रयास करें। 


शांतिवन आगमन के संदर्भ में आचार्य श्री ने आगे कहा कि यात्रा के दौरान जगह जगह ब्रम्हाकुमारी की बहनों से मिलने का काम पड़ता रहता है। हर बार ये हमारे वहां आती हैं आज मैं यहां आया हु। ब्रम्हाकुमारी परिवार सद्भावना का एक उदाहरण है। संगठन में एक उदारता का दर्शन होता है। जब व्यक्ति की चेतना निर्मल होगी तभी समाज, राष्ट्र व विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। हमारे भीतर सबके प्रति मैत्री, प्रेम की भावना और बढ़ती रहे। ब्रम्हाकुमारी संगठन आध्यात्मिक विकास करता रहे अपने आचरणों से पाठ पढ़ाता रहे मंगलकामना। 


कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा ने सारगर्भित वक्तव्य दिया। मुनि कुमारश्रमण जी ने आचार्य प्रवर का परिचय प्रस्तुत किया। ब्रम्हाकुमारी संगठन के सेक्रेटरी BK मृत्युंजय कुमार ने आज के दिन को ऐतिहासिक बताते हुए आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। BK गीता बहन ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम संचालन संचालन शांतिवन की कार्यवाहक BK सविता जी ने किया। इस दौरान संगठन द्वारा साहित्य से शांतिदूत का अभिनंदन किया गया।

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2023

कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए - आचार्य महाश्रमण


07.02.2023,  मंगलवार, सायला, जालौर (राजस्थान), 52 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा तय करने के बाद भी जनकल्याण एवं मानवता के नैतिक उत्थान के लिए निरंतर गतिमान मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज सायला ग्राम आगमन पर भव्य स्वागत हुआ। लगभग 10 वर्षों पूर्व 2013 में आचार्यश्री सायला में पधारे थे अब पुनः इतने वर्षों पश्चात शांतिदूत के पावन आगमन से क्षेत्र वासियों में विशेष हर्षोल्लास छाया हुआ था। प्रातः आचार्यश्री ने बावतरा से मंगल प्रस्थान किया तब स्थानीय रावले के ठाकुर भगतसिंह जी सहित ग्रामीणों ने कृतज्ञता भाव व्यक्त करते हुए आचार्यश्री से पुनः शीघ्र पदार्पण का निवेदन किया। तत्पचात स्थान–स्थान पर ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए गुरुदेव गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज शांतिदूत के सायला आगमन से जैन समाज ही नहीं अपितु सकल समाज में उत्साह, उमंग का माहौल था। गणवेश में जैन ध्वज लेकर सायलावासी जयघोषों से आचार्यश्री की आगवानी कर रहे थे। लगभग 13.8 किमी विहार कर पुज्यप्रवर सायला ग्राम में पधारे। इस दौरान सायला सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, पूर्व सीआई सुरेंद्र सिंह राठौड़, पंचायत समिति प्रधान शैलेंद्र सिंह सहित मुस्लिम समाज के लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। जैन मंदिर में पधार कर मंगलपाठ फरमाया। तत्पश्चात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में गुरुदेव प्रवास हेतु पधारे। 


धर्मसभा को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा– ध्यान आध्यात्म जगत का एक महत्वपूर्ण शब्द है। योग व ध्यान की अनेक पद्धतियाँ है, उनमें एक है – प्रेक्षाध्यान। शरीर में जिस प्रकार सिर का व वृक्ष में मूल का जो स्थान होता है, वही स्थान अध्यात्म जगत में ध्यान का है। एकाग्र चिंतन के साथ शरीर, वाणी व मन का संयम व निरोध करना ही ध्यान है। ध्यान के चार भेद कहे गए है– आर्त, रौद्र, धर्म व शुक्ल। आर्त और रौद्र अशुभ ध्यान होते है व धर्म और शुक्ल शुभ ध्यान। किसी प्रिय के वियोग से मोह होना अशुभ व अमोह की साधना शुभ होती है। मोह का संयोग व उससे प्रभावित हो जाना अशुभ ध्यान होता है। हम अशुभ भाव से बचने का व शुभ में रमण करने का प्रयास करें।


गुरुदेव ने आगे कहा कि उपदेश देना एक बात व उसका अनुपालन कर जीवन में उतारना दूसरी बात है। कथनी करनी में एकता रहनी चाहिए। जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है जब प्रिय का वियोग व अप्रिय का संयोग मन के लिए कष्टकारक होता है। इस कष्ट को आध्यात्म यात्रा व अंतरयात्रा से कम किया जा सकता है। हम ध्यान से वीतरागता की ओर प्रस्थान करने क प्रयास करें व ध्यान हमारे आत्म कल्याण का हेतु बने। भाव क्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार व मित भाषण के प्रयोगों द्वारा ध्यान की साधना में आगे बढ़ा जा सकता है। 


प्रसंगवश आचार्यश्री ने कहा आज हमारा सायला में आना हुआ है। यहां के श्रद्धालुओं में अध्यात्म की चेतना बढ़ती रहे। और जितना हो सके धर्म आराधना का क्रम चले मंगलकामना। 


स्वागत के क्रम में श्री चंद्रशेखर सालेचा, सरपंच श्रीमती रजनी कंवर, श्रीमती लीलादेवी सालेचा, किरण चारण, विद्यालय प्रिंसिपल हरिराम जी ने वक्तव्य द्वारा गुरुदेव का स्वागत किया। सालेचा परिचर की बहनों ने गीत का संगान किया। जसोल ज्ञानशाला से समागत ज्ञानार्थियों ने नियंठा दिग्दर्शन गीत पर प्रस्तुति दी।

सोमवार, फ़रवरी 06, 2023

विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है - आचार्य महाश्रमण


06.02.2023, सोमवार, बावतरा, जालौर (राजस्थान), अपनी अहिंसा यात्रा द्वारा नेपाल, भूटान एवं भारत के 23 राज्यों में पदयात्रा कर नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जालोर जिले में सानंद गतिमान है। बाड़मेर जिले को पावन बना अब आचार्यश्री जिरावला पार्श्वनाथ तीर्थ एवं आबूरोड की ओर प्रवर्धमान है। आज प्रातः शांतिदूत ने जीवाणा ग्राम से मंगल विहार किया। जीवाणावासी पुज्यप्रवर का पावन प्रवास पाकर कृतार्थता का अनुभव कर रहे थे। विहार मार्ग में जगह–जगह स्थानीय ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। विहार के दौरान आज तीव्र धूप मौसम के परिवर्तन का संकेत दे रही थी। लगभग 09 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बावतरा ग्राम में पधारे। इस मौके पर स्थानीय ठाकुर भगतसिंह जी एवं ग्रामीणों के निवेदन पर पुज्यश्री रावले में पधारे एवं ठाकुर परिवार को आशीष प्रदान किया। तत्पचात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। ग्राम सरपंच श्री पारस राजपुरोहित एवं विद्यालय के शिक्षकों सहित विद्यार्थियों ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। 


मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा – विद्यालय एक ऐसा ज्ञान का मंदिर है जहां ज्ञान का आदान प्रदान होता है। विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करे वह उनके जीवन में आचरित हो यह अपेक्षा है। बच्चे ही बड़े बनकर देश की बागडोर सँभालने वाले बनते है, देश का भविष्य होते है। विकास के लिए चार मुख्य बिंदु अपेक्षित होते हैं – शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास, मानसिक विकास व भावनात्मक विकास। इनके साथ–साथ आध्यात्मिकता का विकास भी हो, अध्यात्म विद्या भी जीवन में आए। विद्यार्थी अहिंसा, मैत्री, अभय व आत्मानुशासन जैसे गुणों से जीवन को सज्जित कर लें तो जीवन संस्कारित बन सकता है। 


गुरुदेव ने आगे एक कथा के माध्यम से प्रेरित करते हुए कहा कि व्यक्ति जीवन व्यवहार में अनेक प्रकार की प्रवृत्तियां करता है। खाना, पीना, सोना, चलना, कोई कार्य करना जैसी अनेकों प्रवृत्तियां है। इन प्रवृत्तियों में धर्म का भी समावेश भी हो। कर्म धर्मयुक्त बने। जीवन में स्वअनुशासन आए। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है, स्वतंत्र देश है। पर स्वतंत्रता का मतलब उषृंखलता नहीं होता। व्यक्ति दूसरों पर अधिकार करने की सोचता है उससे पूर्व खुद का खुद पर अधिकार है या नहीं ये ध्यान दे। जीवन में धर्म व अनुशासन का अंकुश हो तो प्रगति की दिशा सही हो सकती है। 


विद्यार्थियों ने लिया नशामुक्ति का संकल्प

कार्यक्रम में आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों एवं ग्रामीणों ने नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार करते हुए आजीवन नशामुक्ति का संकल्प लिया। इस अवसर पर ठाकुर श्री भगतसिंह जी एवं विद्यालय के प्रिंसिपल श्री गणेशाराम चौधरी ने शांतिदूत के स्वागत में अपने विचार रखे। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति अहमदाबाद के पदाधिकारियों ने स्मृति चिन्ह विद्यालय प्रिंसिपल को भेंट किया।


रविवार, फ़रवरी 05, 2023

व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो - आचार्य महाश्रमण


05.02.2023, रविवार, जीवाणा, जालौर (राजस्थान), अपनी पदयात्राओं द्वारा देश–विदेशों में परिभ्रमण कर जन-जन में नैतिक मूल्यों की चेतना को जागृत करने वाले तेरापंथ प्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज जीवाणा में मंगल पदार्पण हुआ। जालौर जिले में गतिमान आचार्यश्री ने प्रभात वेला में सिराणा से मंगल विहार किया। मार्ग में कई स्थानों पर स्थानीय ग्राम वासियों को आचार्यप्रवर का पावन आशीष प्राप्त हुआ। सड़क मार्ग के दोनों और अनार, अरंडी, आदि के विस्तृत खेत नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। ज्ञात हुआ कि यहां अनार की काफी प्रचुरता है तथा भारत में अनार की मंडी के रूप में तीसरे स्थान पर यह स्थान पहचाना जाता है। स्टेट हाईवे संख्या 16 पर गतिमान आचार्य श्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर जीवाणा ग्राम में पधारे। इस अवसर पर स्थानीय जैन समाज  के श्रद्धालु ही नहीं अपितु सकल ग्रामवासी आचार्यवर का जयनारों से स्वागत कर रहे था। श्री बायोसा आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय में आचार्य प्रवर का प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।

स्कूल प्रांगण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री ने कहा - मनुष्य इस दुनिया का श्रेष्ठ प्राणी है। मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जहां से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जहां केवलज्ञान प्राप्त हो सकता है और साधना के द्वारा 14 वां गुणस्थान फिर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु व्यक्ति पाप ज्यादा करें तो पतन में भी गिर सकता है, नरक में भी जा सकता है। मनुष्य बहुत बढ़िया कार्य कर सकता है, तो बहुत घटिया कार्य भी कर सकता है। भीतर हिंसा के है तो अहिंसा के भाव भी देखने को मिलते है। व्यक्ति में निष्ठुरता है तो दया के भाव भी होते हैं। अच्छाइयां होती है तो बुराइयां भी मिल जाती है। आवश्यकता इस बात की है की व्यक्ति हिंसा से, बुरे कार्यों से बचने का प्रयास करें।

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि व्यक्ति के भीतर अच्छाईयां, दया, करुणा व आध्यात्मिकता के भाव प्रकट हो तो वह अपने जीवन में आगे बढ सकता है। अंधकार से प्रकाश की ओर मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। अज्ञान का अंधकार हमारे भीतर ज्ञान को कम कर देता है। अज्ञानी आदमी कभी भी हित–अहित, विवेक–अविवेक को समझ नहीं सकता। ज्ञान रूपी तलवार द्वारा अज्ञान को छिन्न किया जा सकता है। जीवन को ज्ञान द्वारा प्रकाशित करने का प्रयास करे यह काम्य है। 

इस अवसर पर पंजाब के गोविंदगढ़ से चातुर्मास संपन्न आज गुरु दर्शन करने वाली साध्वी प्रसन्नयशा जी ने गुरुदेव के समक्ष अपने विचार  रखे। 

तत्पश्चात जीवाणा आदर्श विद्या स्कूल के प्रधानाचार्य इंदरसिंहजी ने स्वागत वक्तव्य दिया। श्री धीरज गोलेछा, सोहनलालजी कोठारी (रिछेड़) ने भी गुरुदेव के समक्ष अपने विचार रखें। पूज्य चरणों में 'बढ़ते कदम' पुस्तक का विमोचन किया गया।