रविवार, दिसंबर 05, 2021

मानव का शरीर एक नौका के समान है - आचार्य महाश्रमण

धर्म-साधना द्वारा संसार सागर से तरने का प्रयास करे मानव

आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

05.12.2021, रविवार, अरनेठा, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता की प्रेरणा देने वाली, लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाली अहिंसा यात्रा वर्तमान में बूंदी जिले की सीमा में गतिमान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में अहिंसा यात्रा बूंदी जिले के नित नए गांव में मानवता की अलख जगा रही है। रविवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गामछ गांव से प्रातः की बेला में मंगल विहार किया। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। सबको आशीर्वाद बांटते, लोगों को प्रेरित करते आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर अरनेठा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो इस विद्यालय सहित पूरा अरनेठा पावनता को प्राप्त हो गया। रविवार को विद्यालय की छुट्टी होने के बावजूद भी आज पूरा विद्यालय स्थानीय ग्रामीणों व श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। ग्रामीणों तथा विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। 

 मध्याह्न के उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से अरनेठावासियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव का शरीर एक नौका के समान है, जीव इसका नाविक है और यह संसार सागर के समान है। त्यागी संत और महर्षि लोग इस संसार सागर को तर जाते हैं। गृहस्थ भी धर्म-साधना के द्वारा इस संसार सागर को तरने का प्रयास कर सकता है। शरीर है तो इससे साधना करते हुए आदमी को तरने का प्रयास करना चाहिए। शरीर रूपी नौका में आश्रव रूपी छेद भी हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, क्रोध, लोभ आदि आश्रव रूपी वह छिद्र हैं जो मानव जीवन रूपी नौका में पाप का पानी भरते हैं, जिसके कारण यह नौका संसार सागर में डूबती रहती है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। आदमी को पापकर्मों से बचने हुए इस शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। संतों की वाणी, भगवान का ध्यान, उनकी कथा श्रवण आदि के माध्यम से अपने जीवन में धर्म को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अच्छे हों, उनमें सद्गुणों का विकास हो, जीवन में धार्मिकता का विकास हो तो यह जीवन भव सागर से पार पाने वाला और कल्याणपथगामी बन सकता है। 

 मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान तो ग्रामीणों ने खड़े होकर संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री ने उन्हें व्यसनों से मुक्त रहने की विशेष प्रेरणा व पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के आगमन से मानों पूरा विद्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र मेला जैसा बना हुआ था। ग्रामीण जन पूरे दिन भर आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहे। उन्हें यथानुकूलता आचार्यश्री के दर्शन व आशीष का लाभ पूरे दिन प्राप्त होता रहा। 

साभार : महासभा कैम्प आफिस

सोमवार, सितंबर 27, 2021

नागपुर में मनाया गया जीवन विज्ञान दिवस

जीवन विज्ञान दिवस

नागपुर, 27 सितंबर 2021, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन, जीवन विज्ञान दिवस। कार्यक्रम की शुरुआत, महिला मंडल ने अणुव्रत गीत से की। साध्वी रिद्धि श्री जी ने उद्बोधन में कहा - शारीरिक मानसिक भावनात्मक विकास जरूरी है। सुंदर उदाहरण द्वारा उन्होंने बहुत अच्छे ढंग से समझाया। जीवन बिना लक्ष्य के, बिना उद्देश्य के, तथा बिना जीने की कला आए, व्यर्थ है। साध्वी वर्धमान श्री जी ने अपने उदबोधन में फरमाया - जीवन जीने की कला, बिना प्रयोग के संभव नहीं है। उन्होंने सुंदर गीतिका द्वारा प्रेक्षा ध्यान का महत्व समझाया। कुछ प्रयोग करवाएं। साथ ही श्वास प्रेक्षा तथा श्वास स्वर के द्वारा चिकित्सा कैसे कर सकते हैं, बताया। शरीर आपका ऑर्डर मानता है। बस दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ प्रयोग करें। सफलता जरूर मिलेगी। मंच संचालन प्रेक्षा ट्रेनर जतन जी मालू ने किया। साथ ही उन्होंने प्राणिक हीलिंग का छोटा सा सुंदर प्रयोग भी कराया।

रविवार, सितंबर 26, 2021

अणुव्रत समिति नागपुर ने किया संप्रदायिक सौहार्द दिवस का आयोजन

अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी, द्वारा 26 सितंबर से 2 अक्टूबर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह प्रतिवर्ष मनाया जाता है। आज दिनांक 26 सितंबर, रविवार को अणुव्रत समिति नागपुर  ने केंद्र द्वारा निर्देशित संप्रदायिक सौहार्द दिवस का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी श्री समीक्षा प्रभा जी,धृति प्रभा जी और राज श्री जी द्वारा अणुव्रत गीत से किया गया। नागपुर अणुव्रत समिति अध्यक्ष राजेंद्र जी पटावरी ने अपने वक्तव्य में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हुए कहा कि मैं अणुव्रत का  कार्यकर्ता हूँ। उन्होंने और भी अणुव्रत संबंधित जानकारी दी। साध्वी श्री जी द्वारा वक्तव्य, कविता तथा गीत का संगान किया गया। विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों का वक्तव्य हुआ। साध्वी चंदनबाला जी ने उद्बोधन में कहा - जब प्रकृति, कुदरत अपनी उर्जा देने में भेदभाव नहीं करते हैं ,तो फिर हम क्यों करें। साथ ही कहा संप्रदायिकता घातक है।केवल प्रोग्राम लेने मात्र से कुछ नहीं होगा, अपितु स्वयं में सुधार करना पड़ेगा। आपके व्यवहार में आचार में नैतिकता दिखनी चाहिए। नैतिकता से शुन्य जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

 ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा (हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई) अलग-अलग गेट अप में आ, सौहार्द सद्भावना का संदेश दिया। प्रोग्राम का कुशल संचालन मंत्री श्रद्धा जवेरी ने किया ।

शनिवार, सितंबर 04, 2021

जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है - आचार्य महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी

धार्मिक दृष्टि से पर्युषण सबसे महत्वपूर्ण समय - आचार्य महाश्रमण

पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस

04 सितम्बर 2021, शनिवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सान्निध्य में आज पर्वाधिराज पर्युषण का शुभारंभ हुआ। पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। पर्युषण अध्यात्म साधना का एक महान पर्व है। भाद्रव कृष्णा द्वादशी तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी के महाप्रयाण से भी जुड़ी हुई है। परम श्रद्धेय गुरुदेव के उद्बोधन से पूर्व मुख्यमुनि महावीर कुमार जी द्वारा गीत एवं साध्वीवर्या संबुद्ध यशा जी द्वारा श्रीमद जयाचार्य पर वक्तव्य दिया गया।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा पर्युषण का समय बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। हम देखें तो धार्मिक दृष्टि से वर्ष भर में एक अपेक्षा से चातुर्मास का अधिक महत्व होता है। चातुर्मास एक ऐसा समय है जब चारित्रआत्माएं विहार आदि नहीं करके एक ही स्थान पर चार मास प्रवास करते है। चातुर्मास में भी श्रावण - भाद्रव और फिर पर्युषण का सबसे अधिक महत्व है। पर्युषण धर्माराधना का एक अच्छा क्रम है। सकल जैन समाज इस अवसर पर विशेष रूप से धार्मिक साधना करता है। भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का भी पर्युषण काल में प्रवचन आदि द्वारा आख्यान किया जाता है। 

गुरूदेव ने आगे कहा कि जैन धर्म में आत्मवाद का सिद्धांत अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है। आत्मा ऐसा तत्व है जो शाश्वत है। जितनी आत्माएं अनंत काल से संसार में विद्यमान है उतनी ही अनंत काल तक रहेगी। कोई नई आत्मा जन्म नहीं लेती है। वही आत्मा थी है और रहेगी। इस आत्मवाद के सिद्धांत से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की बात भी सिद्ध हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व आत्मा जन्म-मरण करती रहती है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर इस अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर हुए। वें कोई एक ही दिन में तीर्थंकर नहीं बने, उनकी पृष्ठभूमि में कितनी ही साधना और तप है। आत्मवाद के साथ कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद भी जैनधर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत है। भगवान महावीर की 27 भवों की अध्यात्म यात्रा में हम जैन धर्म के सिद्धांतों को और अधिक गहराई से समझ सकते है।

खाद्य दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा- भोजन और शरीर का संबंध है। शरीर को टिकाने के लिए भोजन जरूरी है। कई तपस्या आदि भी करते है। जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है। खाते हुए भी नहीं खाना, संयम रखना बड़ी बात होती है। विगय वर्जन, द्रव्य सीमा द्वारा व्यक्ति भोजन में विवेक रखे यह काम्य है। 

प्रसंगवश आचार्यप्रवर ने कहा कि जयाचार्य हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट आचार्य हुए है। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी में आचार्य भिक्षु, द्वितीय शताब्दी में श्रीमदजयाचार्य और तीसरी शताब्दी में आचार्य तुलसी को मुख्यरूप से देख सकते है। जयाचार्य एक अध्यात्म वेत्ता, तत्व वेत्ता, विधि वेत्ता आचार्य थे। आज के दिन मैं उनके प्रति श्रद्धार्पण करता हूं।
कार्यक्रम में श्रीमती मीना गोखरू ने नौ, श्रीमती ऋतु चोरडिया ने  पन्द्रह,  श्रीमती जसोदा देवी चोपड़ा ने पैंतालीस, श्रीमती एकता ओस्तवाल ने आठ और श्री राकेश नौलखा ने नौ के तप में इक्कीस की तपस्या का गुरूदेव से प्रत्याख्यान किया।

साभार : जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा