शनिवार, मई 15, 2010

गुरू के विरह को सहना कठिन

सरदारशहर। श्रीसमवसरण में स्मृति सभा के दूसरे दिन बुधवार को आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के अधूरे कामों को पूरा करने के लिए अपने आप को तैयार करना ही उन्हे श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के सामने कठिन परिस्थितियां हैं। जहां गुरू शिष्य का आत्मिक संबंध होता है वहां समता न रख पाना कोई बडी बात नहीं है। गुरू के विरह को सहन करना कठिन होता है।

भगवान महावीर के निर्वाण होने पर गणधर गोतम भी विचलित हो गए थे। महाश्रमण ने कहा कि जितनी समता की साधना बढेगी उतनी ही वीतरागता नजदीक आएगी। आचार्य महाप्रज्ञ के पास बचपन से रहने वाले ज्येष्ठ मुनि सुमेरमल सुदर्शन ने कहा कि उनकी कृपा नहीं होती तो वे जीवन में आने वाले संघर्षों में कहां खो जाते कुछ पता नहीं। उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने तेरापंथ के सभी आचार्यो के कीर्तिमान को स्थान दिया है।

मुनि महेन्द्र कुमार ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ अमर थे, अमर हैं और अमर रहेंगे। मुनि किशनलाल ने श्रद्धांजलि व्यक्त की तथा मुनि श्रवण ने देश-विदेश के प्रतिष्ठित लोगों की ओर से भेजी गई संवेदनाओं का वाचन किया। मुनि योगेश कुमार, मुनि जितेन्द्र कुमार, बाल मुनि मृदुकुमार, साध्वी जिन प्रज्ञा, साध्वी पीयूष प्रभा, जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति समणी डा. मंगल प्रज्ञा, समणी नियोजिका, समणी मधुरप्रज्ञा, समणी प्रतिभा प्रज्ञा ने भावांजलियां प्रस्तुत की।

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