03.02.2023, शुक्रवार, अरणियाली, बाड़मेर (राजस्थान), पाव–पाव चल गांव, नगर, शहरों में नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की ज्योत जलाने वाले अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अरणियाली ग्राम में मंगल पदार्पण हुआ। प्रातः आचार्य श्री ने सिणधरी से मंगल विहार किया। लगभग 15 किलोमीटर विहार कर गुरुदेव राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय अरणियाली में प्रवास हेतु पधारे। बाड़मेर जिले के पश्चात अब उत्तर गुजरात की ओर अग्रसर गुरुदेव का आगामी कुछ दिन का जालोर जिला क्षेत्र में संभावित है। बायतु मर्यादा महोत्सव के पश्चात आचार्यवर की यात्रा अब गुजरात की ओर प्रवर्धमान है।
अरणियाली में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान ने कहा –यह मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है। चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करते हुए यह मनुष्य जीवन दुबारा कब मिलेगा, यह कोई नहीं जानता। अभी तो यह हमें आसानी से उपलब्ध है इसे यूं ही गंवा देना भारी भूल है। संसार में सभी तो साधु नहीं बन सकते, ऐसे में गृहस्थ जीवन में रहकर भी जो आत्मस्थ, तटस्थ व मध्यस्थ रह सकता है, वह स्वयं के आत्म कल्याण के पथ को प्रशस्त कर सकता है। मनुष्य जन्म एक प्रकार का वृक्ष है, जिस वृक्ष में सुंदर फल होते है, हितकर फल होते है उसकी उपयोगिता होती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस मनुष्य जन्म रूपी वृक्ष में हम छह प्रकार के फल लगाने का प्रयास करें। पहला है जिनेन्द्र-पूजा। अर्थात राग-द्वेष से मुक्त वीतराग भगवान की पूजा करें, उनकी स्तुति करे भक्ति करे। दूसरा फल है गुरु पर्युपासना। जो कंचन व कामिनी के त्यागी है ऐसे गुरुओं की सेवा उपासना करे। तीसरा सत्वानुकंपा यानी सब प्राणी मात्र के प्रति दया व करुणा के भाव रहे व किसी को भी कष्ट न दें। चौथा सुपात्रदान, अर्थात त्यागी साधुओं को शुद्ध दान दें। पांचवा गुणों के प्रति हमारे मन में अनुराग व प्रेम के भाव रहें। अनुराग व्यक्ति की अपेक्षा गुणों से होना चाहिए व गुण किसी में भी हो हमें उसका सम्मान करना चाहिए यह गुणानुराग हो। छठा श्रुतिरागमस्य, अर्थात आगम वाणी व शास्त्रों की वाणी का श्रवण करो। हम मनुष्य जीवन को इन छह फलों के द्वारा सुफल एवं सफल कर सकते है। इस जन्म के साथ अगले जन्म के बारे में भी चिंतन करे।
विद्यालय के प्रिंसिपल श्री माधाराम जी ने आचार्य श्री के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। अहमदाबाद प्रवास व्यवस्था समिति से संबद्ध व्यक्तियों द्वारा प्रिंसिपल को अणुव्रत नियम पट्ट एवं साहित्य प्रदान किया गया।