मंगलवार, मार्च 08, 2022

World Women's Day

आज 8 मार्च को सम्पूर्ण विश्व Women's Day अर्थात नारी दिवस मना रहा है। जिसकी बधाई सभी विविध माध्यम से समाज का प्रत्येक वर्ग दे रहा है। मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है हम जन्मदिन, वैवाहिक व मृत्यु के तारीख के तर्ज पर ही शायद Women's Day, Mother's Day, Children Day, Father's Day, Valentine's Day जैसे के मनाने के लिए एक दिवस को चयनित कर सीमा में बांध दिया। जबकि यह सारे दिवस एक दिवसीय नहीं होते ये तो रोज के दिवस है पर हम सभ्य सामाजिक प्राणी है ख़ुशी के इजहार के लिए एक दिन चयन कर लेते है। क्या हम सिर्फ उस एक विशेष घोषित दिन को ही उन्हें बधाई देते है, उनसे आशीर्वाद लेते है या रोज ही आशीर्वाद लेते है या चिंतन करने योग्य बात है। हम दिल की गहराई से चिंतन जरुर करें।


आज समाज का हर वर्ग जब इस दिवस के लिए बधाई प्रेषित कर रहा है इसलिए मैं भी सभी के स्वर के साथ अपना एक स्वर मिलाते हुए आज के दिवस की बधाई देता हूँ। परन्तु मेरी यह बधाई / शुभकामना सिर्फ आज के लिए ही नहीं है। मेरी बधाई / शुभकामना शक्ति की प्रतिक नारी को सदा के लिए समर्पित है।


हम मूलतः नारी को माँ, बहन, जीवनसंगनी या बेटी के रूप में देखते है।


माँ हमें संसार में जन्म दे हमारा पालन पोषण कर शिक्षा दे हमें अलग पहचान देती है।


भाई बहन का सबसे पवित्र रिश्ता भावनओं के तार से जुड़ा होता है बहन जब कलाई में मोली के कच्चे धागों को भावनाओं के स्नेहाशीष से अटूट शक्ति भर बाँधती है जिससे भाई की रक्षा होती है।


जीवनसंगनी विवाह के पश्चात अपने माता - पिता का घर छोड़ जीवन भर 7 वचनों के पवित्र संकल्पों से अपने पति का साथ हर कदम पर देते हुए उसके परिवार का साथ जीवन भर निभाती है।


बेटी एक ऐसी अनमोल कड़ी है जो एक घर नहीं दो घर (जन्म लेकर पिता के घर, विवाह बाद पति के घर) को रौशन करती है।


हम नारी को दुर्गा, सरस्वती व लक्ष्मी के रूप में भी देखते है। हम ध्यान से देखे तो ये तीनो रूप एक तरह से शक्ति के ही पर्याय है।


आज इस दिवस को कई जगह सशक्तिकरण के रूप में भी मनाया जा रहा है। मनाना भी चाहिए क्योकि नारी सर्व शक्तिशाली है संसार पुरुष प्रधान हो सकता है पर सहनशीलता और कार्य करने की असीम क्षमता नारी में ही देखने की मिलती जिसमें सहने की क्षमता हो वो ही शक्तिशाली हो सकता है। कमजोर में सहने की क्षमता नहीं होती है। इसलिए मेरा पुरजोर मानना है की प्रत्येक नारी दुर्गा, सरस्वती व लक्ष्मी की प्रतिबिम्ब होती है।


बस यह अलग बात है की शक्ति जिसके पास है वो उसे कैसे उपयोग करता है कैसे उस शक्ति के द्वारा सृजन करता है या विनाश करता है।


कई बार हम सुनते है नारी अबला है, कमजोर है पर मैं यह नहीं मानता मेरा व्यक्तिगत मानना है की शक्ति की प्रतिबिम्ब नारी को सिर्फ नारी ही दबा सकती है अन्य किसी में वो क्षमता नहीं जो शक्तिरूपी नारी से मुकाबला कर सके। क्योकि जो शक्ति एक नए जीवन को संसार में अस्तित्व प्रदान करती है वो कमजोर हो ही नहीं सकती समय आने पर वो सरस्वती रूप में बच्चे की पहली शिक्षक बन ज्ञान, संस्कार प्रदान करती है, लक्ष्मी रूप में विष्णु (पति) के सहयोग से शांति द्वारा समृद्धि लाती है हम सुनते ही है बुजुर्गो से की जहाँ शांति है वहा समृद्धि है वही अन्याय के खिलाफ जब खड़ी होती है तब लोगों द्वारा अबला कहे जाने वाली नारी दुर्गा, काली, चंडी का रूप ले लेती है। नारी कमजोर नहीं हो सकती क्योकि उसमे माँ समाहित है और किसी की उत्पत्ति माँ द्वारा ही हो सकता है। प्रसंगवश कह रहा हूँ  हमारी जिद्द / हट के आगे उसकी माँ, बहन, पत्नी व बेटी झुक जाती है इसका अर्थ यह नहीं की जो झुकता है वो अबला होता है वास्तिवकता यह है की ये हमारे स्नेह के कारण भी कई बार झुकती है। 

हम अध्ययन करे तो लगेगा की हम नारी शक्ति के अनगिनत उदाहरण पढ़ चुके, देख चुके और भविष्य में भी पढने और देखने को मिलेगा पर उस शक्ति को शक्ति माने कैसे यह बात कईयों को आज भी समझ नहीं आती। इसलिए आज सभी से मैं पंकज दुधोडिया कोलकाता से यही कहना चाहता हूँ की -


यह दिवस नहीं

सिर्फ

एक दिवस का

ये दिवस तो रोज

प्रतिदिन आता है।


प्रति दिवस करें हम

शक्ति रूपी को

नमन

जिनसे प्राणी

अस्तित्व पाता है।


"पंकज" कहता यही

हे शक्ति रूपी

स्विकारों बधाई

भावों से नित मेरी

जो अन्तर्मन देता है।।

मंगलवार, जनवरी 04, 2022

आत्मा की शुद्धि के लिए ऋजुता आवश्यक - आचार्य महाश्रमण

 

04.01.2022, मंगलवार, बोराज, जयपुर (राजस्थान), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजस्थान की रेतीली धरती पर ज्ञान की गंगा बहाते हुए निरंतर गतिमान हैं। इस निर्मल गंगा से अब तक राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़ जिले के साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर भी पावनता को प्राप्त हो चुकी है। ग्यारह दिवसीय संघ प्रभावक जयपुर प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में गतिमान हैं। मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ देहमी कलां स्थित मणिपाल विश्वविद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। ठंड के मौसम में जहां लोग गर्म कपड़ों से ढंके होने के बावजूद भी बाहर निकलने पर आग का सहारा लेते दिखाई दे रहे थे वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना को और जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने के लिए महातपस्वी महाश्रमण गतिमान थे। रास्ते में अनेकानेक लोगों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से पावन बनाते आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर बोराज गांव में पधारे। ग्राम्यजनों तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल, शिक्षक व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री भव्य स्वागत किया। 

 विद्यालय परिसर के एक कमरे से आचार्यश्री ने वर्चुअल रूप में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? निर्वाण का अर्थ मोक्ष भी हो सकता है, किन्तु कभी-कभी एकार्थक शब्दों में गहराई में जाने पर कुछ सूक्ष्म भिन्नता भी प्राप्त हो सकता है। निर्वाण प्राप्ति की बात की जाए तो जिस आदमी के भीतर धर्म हो अर्थात् धर्मवान मनुष्य निर्वाण को प्राप्त हो सकता है। एक प्रश्न और हो सकता है कि धर्मवान कौन होता है अथवा धर्म किस आदमी के भीतर हो सकता है तो उसका उत्तर यह होगा कि जिस आदमी की आत्मा शुद्ध हो व धर्मवान होता है। पुनः एक प्रश्न हो सकता है आत्मा शुद्ध कैसे हो? इसका उत्तर होगा कि जो आदमी ऋजु अर्थात् सरल होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी के भीतर संयम, दया, शील, सत्य आदि की भावना हो तो आत्मशुद्धि की बात हो सकती है। जिस आदमी के भीतर छल-कपट हो, उसकी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती। 


शनिवार, दिसंबर 25, 2021

मेरे जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है - पंकज दुधोडिया

आज क्रिसमस के दिन यह मनमोहक तस्वीर देख मन मे विचार आया कि एक मान्यता है सेंटा 25 दिसंबर को गिफ्ट देने आते है पर मैं तो यह कहता हूँ मेरे  जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है।

माता पिता ने जीवन दिया, संस्कार दिए, कवच बन सदा सुरक्षा की और मेरे आध्यात्मिक गुरु तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से रोज सबको अनमोल गिफ्ट देते है आपका गिफ्ट मानव जीवन को उन्नत बनाने के लिए संदेश रूप में नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति की प्रेरणा देता है यदि यह गिफ्ट सभी ग्रहण कर ले तो विश्व की लगभग तमाम समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।

सोमवार, दिसंबर 06, 2021

राग-द्वेष पाप का आधार है - आचार्य महाश्रमण

पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल संग सैंकड़ों लोगों ने स्वीकार किए संकल्प, प्राप्त किया आशीर्वाद


06.12.2021, सोमवार, कापरेन स्टेशन, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जिस ओर भी निकलते हैं, जन-जन उनकी अभिवंदना में जुट जाता है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में अरनेठा ने मंगल प्रस्थान किया तो स्थानीय ग्रामीणों ने हाथ जोड़कर वंदना की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। रास्ते में आने वाले क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग और क्या नौजवान जो भी अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री को देख नतमस्तक होकर आचार्यश्री की अभिवंदना करता तो आचार्यश्री भी सभी पर समान रूप से आशीषवृष्टि करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कापरेन स्टेशन गांव पहुंचे तो लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री कापरेन स्टेशन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में पधारे। 


 विद्यालय प्रांगण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो भी पाप करता है उसके पृष्ठभूमि में राग और द्वेष होते हैं। दुनिया में आदमी जो भी कार्य करता है उसके जड़ में राग और द्वेष ही होते हैं। इसलिए राग और द्वेष को कर्मों का बीज भी कहा जाता है। अगर राग-द्वेष न हो तो आदमी कोई पाप ही न करे। आदमी किसी को मारे, किसी से झगड़ा करे, झूठ बोले, कोई अनैतिक कार्य करे, वह या तो राग के वशीभूत होकर करता है अथवा द्वेष की भावना से करता है। यदि आदमी के भीतर राग-द्वेष की न्यूनता हो जाए अथवा राग-द्वेष की भावना समाप्त हो जाए तो आदमी धर्मानुरागी बन सकता है। राग-द्वेष पाप का आधार है। आदमी को ध्यान, स्वाध्याय, जप और अन्य धर्माचरणों के माध्यम से राग-द्वेष को न्यून अथवा प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को राग-द्वेष को कम कर पापों से बचते हुए धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। 


 मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के उपरान्त पूर्व विधायक श्री प्रहलाद गुंजल व स्थानीय नेता रूपेश शर्मा के नेतृत्व में कापरेन, अजन्दा, जालीजिका बराना, कोडकिया, शिरपुरा, माइजा, रोटेदा, रड़ी व अरनेठा के सैंकड़ों लोग आचार्यश्री के दर्शनार्थ और पावन प्रेरणा के लिए उपस्थित हुए। इस तरह मानों आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनायास एक कार्यक्रम-सा आयोजित हो गया। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि 84 लाख जीव योनियों में यह मानव जीवन दुर्लभ है। पशु और मानव में धर्म का ही अंतर होता है। जो मनुष्य धर्महीन हो जाए, वह पशु के समान हो जाता है। सभी के जीवन में धार्मिकता का विकास हो। आचार्यश्री ने जैन धर्म, साधुचर्या, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्य परंपरा व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए कहा कि सभी के प्रति सद्भावना हो। किसी से वैर-विरोध नहीं होना चाहिए। आदमी जो भी काम करे, उसमें नैतिकता, प्रमाणिकता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के आह्वान पर समुपस्थित पूर्व विधायक गुंजल सहित सैंकड़ों लोगों ने करबद्ध खड़े होकर आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। 

            इसके पूर्व अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनिकुमारश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा की अवगति प्रस्तुत की। पूर्व विधायक ने आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि यह हम सभी का परम सौभाग्य है जो आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महापुरुष के दर्शन करने, उनकी मंगल कल्याणकारी वाणी को सुनने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। मानवता की सेवा की लिए आप जो कठोर श्रम करा रहे हैं वे अद्वितीय हैं, इससे जन-जन का कल्याण हो रहा है। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से हम सभी का जीवन धन्य हो गया। 


साभार : महासभा केम्प ऑफिस