चूना और बाल्टी
गुरु शिष्यों को अपने प्रवचन में स्वाध्याय का महत्व बता रहे थे।
गुरु ने बताया कि हर प्रकार के तप से कर्मों की निर्जरा होती है और उनमें से स्वाध्याय भी एक तप है।
शिष्य ने पूछा - गुरु जी, वह कैसे?
हमें तो कल का पढ़ा हुआ आज भी याद नहीं रहता और आज का सुना हुआ प्रवचन के पंडाल से निकलते ही भूल जाता है। फिर हमारे कर्म कैसे कटेंगे?
"चाहे याद रहे या न रहे, बस! सुनते रहो।"
ऐसा करो अंदर एक बाल्टी रखी है। वह लेकर आओ।
शिष्य बाल्टी लेकर आया तो सबने देखा कि बाल्टी में कई वर्ष पहले से चूना घोलते रहने के कारण वह चूना उसमें बुरी तरह चिपका हुआ था।
यहां तक कि उसने लोहे की बाल्टी को भी खाना शुरू कर दिया था।
उस बाल्टी में छेद होने लगे थे, जो अभी तक चूने से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।
गुरु ने कहा कि इस बाल्टी में साफ पानी डालो।
शिष्य ने पानी डाला तो चूना घुलने लगा और पानी छेदों में से बाहर निकलने लगा।
होते - होते सारा पानी निकल गया।
गुरु ने कहा कि और पानी डालो।
शिष्य ने और पानी डाला लेकिन जैसे प्रवचन की बातें एक कान से सुनते ही दूसरे कान से निकल जाती हैं, वैसे ही पानी की एक बूँद भी उसमें नहीं टिकी।
गुरु ने कहा - और पानी डालो।
शिष्य ने कहा भी कि पानी डालने के क्या होगा? टिकता तो है नहीं।
पर वह भी गुरु का आज्ञाकारी शिष्य था। गुरु ने 25 बाल्टी पानी उसमें डलवा दिया।
अब गुरु ने पूछा कि क्या तुम्हें कोई बदलाव दिखाई देता है इसमें?
शिष्य ने ध्यान से देखा और कहा कि गुरु जी, इसमें बाल्टी में पानी भले ही न टिका हो, पर बाल्टी साफ हो गई है और चूना इसे छोड़कर पानी के साथ बह चुका है।
अब बाल्टी बिल्कुल साफ दिखाई दे रही है।
इसके छिद्र भी दिखाई दे रहे हैं जो पहले चूने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।
बस! यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्रवचन की बातें भले ही तुम्हारे मन में नहीं टिके, बार-बार सुनने से मन का मैल तो धुल ही जाएगा और तुम्हें अपने अवगुण दिखाई देने लगेंगे।
अभी तक तो तुम उन दोषों को छिपाए बैठे थे। अब तुम्हें अहसास हो जाएगा कि उनको दूर किए बिना बाल्टी में पानी टिकने वाला नहीं है और तुम गुणों को धारण करने की प्रक्रिया में लग जाओगे।
इसीलिए निरंतर स्वाध्याय करो। एक दिन यही तप तुम्हें मोक्ष- मार्ग पर लाकर खड़ा कर देगा।
साभार : व्हाट्सएप्प ग्रुप से श्री विकास धाकड़ द्वारा प्राप्त