शुक्रवार, जनवरी 29, 2021

Kayotsarg means, "abandoning the body" - Acharya Mahapragya

All humans have strong attachments to material things, and in fact, to their body. Strong attachments are a significant obstacle in practicing meditation. Attachments can make it difficult to take even the first step of meditation, called Kayotsarg. Kayotsarg means, "abandoning the body". 


There is a technique very similar to kayotsarg in Hindu tradition of Hathyoga called shavaasan. There are simi|arities and differences between Hathyoga’s shavaasan and Jain tradition’s kayotsarg. Therefore, readers who have heard about shavaasan should not assume that kayotsarg and shavaasan are the same. In shavaasan one concentrates on relaxing the body, whereas in kayotsarg one not only makes the body relaxed but goes beyond the body to experience the separateness of body and soul and detachment from the body (mamatva visarjan).


 This is a profound realization of seeing the soul as different from the body, and is known by a technical term in Jain philosophy called bhed-vigyaan (Le. the science of differentiation between the soul and the body). To completely achieve the state of kayotsarg it is essential to use bhed vigyaan, the science of differentiation. 


~ Acharya Mahapragya


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साभार : Preksha Meditation

सोमवार, नवंबर 02, 2020

गायन, चित्रकला, भाषण और लेखन प्रतियोगिताओं का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन शीघ्र

अणुव्रत आंदोलन द्वारा नई पीढ़ी के नव निर्माण की अनूठी पहल

नई पीढ़ी में रचनात्मकता और सकारात्मकता के विकास को केन्द्र में रख कर अणुव्रत आन्दोलन की प्रतिनिधि संस्था अणुव्रत विश्व भारती द्वारा पूरे देश में अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट के नाम से विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। गायन, चित्रकला, भाषण और कविता व निबन्ध लेखन जैसी रचनात्मक विधाओं में होने वाली इन प्रतियोगिताओं में तीन वर्गों में कक्षा 3 से 12 तक के बच्चे भाग ले सकेंगे। प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए शीघ्र ही वेबसाइट और ऐप लॉन्च किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि इनमें से कुछ प्रतियोगिताएं पिछले 25 वर्षों से आयोजित की जा रही हैं लेकिन कोरोना जनित परिस्थितियों के चलते पहली बार इन्हें ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आयोजित किया जा रहा है।


अणुविभा के अध्यक्ष श्री संचय जैन ने बताया कि ये प्रतियोगिताएं पूर्णतः ऑनलाइन आयोजित होंगी जिसमें बच्चे अपनी स्कूल के माध्यम से अथवा सीधे भी पंजीकरण करवा कर अपनी प्रविष्ठि अपलोड कर सकेंगे। प्रतियोगियों में बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग या लैंगिक भेदभाव के कक्षा 3 से 12 का कोई भी बच्चा भाग ले सकेगा और यह पूर्णतः निशुल्क होगी। शहर व जिला स्तर पर ई प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे एवं राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ प्रतियोगियों को चुना जाएगा और उन्हें पुरस्कार और प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। प्रतियोगिताओं का मुख्य विषय है - "कोरोना वैश्विक संकट : प्रभाव, समाधान और अवसर" जिसके अन्तर्गत दिए गए अनेक उप विषयों में से बच्चे अपनी पसन्द के विषय पर प्रस्तुति दे सकेंगे।


उल्लेखनीय है कि 7 दशक पूर्व महान संत आचार्य तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन मानवीय मूल्यों के संवर्द्धन के लिए अपने बहुआयामी रचनात्मक प्रकल्पों के माध्यम से निरन्तर प्रयासशील है। अणुव्रत दर्शन की यह मान्यता है छोटे-छोटे व्रत स्वीकार कर व्यक्ति स्वयं को सकारात्मक दिशा में अग्रसर कर सकता है और सुधरे व्यक्ति से ही समाज, राष्ट्र और विश्व सुधर सकता है। वर्तमान में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण इस आन्दोलन को आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं और अहिंसा यात्रा के रूप में हजारों किलोमीटर की पदयात्राएं करके जन-जन को नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं। 


नई पीढ़ी का संस्कार निर्माण अणुव्रत आंदोलन की प्रमुख प्रवृत्तियों में शामिल रहा है और अणुव्रत विश्व भारती का राजसमंद स्थित मुख्यालय चिल्ड्रन'स पीस पैलेस बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक प्रयोगशाला है जहां कुछ दिन बीता कर ही बच्चे अपने आप को रूपांतरित अनुभव करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणीत जीवन विज्ञान पाठ्यक्रम नई पीढ़ी के नव निर्माण का सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से लाखों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं।


श्री जैन ने बताया कि प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक स्कूल और बच्चों के लिए शीघ्र ही वेबसाइट का लिंक शेयर किया जाएगा। प्रतियोगिता की तैयारियों के लिए अणुविभा की केंद्रीय टीम में अध्यक्ष श्री संचय जैन के अलावा वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, महामंत्री श्री राकेश नौलखा, मंत्री श्री प्रकाश तातेड, सह मंत्री श्री जय बोहरा प्रतियोगिताओं के राष्ट्रीय संयोजक श्री रमेश पटावरी एवं लगभग 150 से अधिक जोनल, राज्य एवं स्थानीय संयोजकों की टीम दिन रात तैयारियों में जुटी है। श्री विमल गुलगुलिया के तकनीकी सहयोग से प्रतियोगिता के लिए वेबसाइट एवं ऐप तैयार किया गया है।



शुक्रवार, मई 15, 2020

सिद्ध और बुद्ध

पिछले दिनों वैशाख शुक्ला दशमी के दिन कई वर्ष पूर्व भगवान महावीर को सिद्धत्व की प्राप्ति हुई व वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भगवान बुद्धबुद्धत्व को प्राप्त हुए। वैसे तो दोनों शब्दों में कोई लंबा फर्क नहीं है।सिद्ध और बुद्ध दोनों ही करीब-करीब समानार्थी शब्द है। 

भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही करीब करीब समकालीन है,समकालीन ही नहीं दोनों भारत भूमि के उसी एक ही क्षेत्र से आते हैं जो वर्तमान में बिहार है और दोनों का अधिकतर विहार क्षेत्र भी वहीं रहा। चाहे राजगृह हो, चाहे नालंदा, चाहे वैशाली हो, चाहेमगध, चाहे पाटलिपुत्र। उनके अधिकतर चातुर्मास व विरहण इसी क्षेत्र में हुए। दोनों राजकुमार थे। दोनों ने विवाह किया। भगवान महावीर के पुत्री हुई है, एसा श्वेतांबर संप्रदाय मानता है और भगवान बुद्ध के 1 पुत्र था। भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही यौवन काल में घर गृहस्थी छोड़ के, राजमहल त्याग के, सन्यास की ओर मुड़े। सन्यास जीवन में ध्यान और तप कर आगे बढ़े। सिद्ध और बुद्ध बने दोनों ने श्रमण संस्कृति को आगे बढ़ाया।

कहा यह जाता है उस जमाने में करीब आठ-नौ लोग अपने आपको तीर्थंकर कहा करते थे और सब के सैकड़ों शिष्य बनाए थे। बुद्ध वमहावीर के भी थे और आज अढ़ाई-तीन हज़ार वर्ष बाद केवल बुद्ध व और महावीर का नाम रह गया। लोग भूल गए पुण्य कश्यप को,अजीत केश काबली को या मैं बात करूं मंखली पुत्र गौशालक की व प्रबुद्ध कात्यायन की, सबके अपने-अपने दर्शन थे और उन दर्शन के आधार पर ही इन सब का एक विभाजक रेखा बनी हुई थी।

लेकिन महावीर और बुद्ध तब से आज तक अपनी परंपरा के अनुसार चले आ रहे हैं और श्रमण संस्कृति के पुरोधा के रूप में दोनों की एक अपनी पहचान भारतीय संस्कृति में सदा के लिए अंकित है। दोनों महापुरुष एक ही महीने में सिद्ध - बुद्ध बने। एक ही समय में एक ही क्षेत्र में बिचरण किया और उन्हीं राजाओं को जो कि हिंसक थे,उन्हें अहिंसा का पाठ पढ़ाया। चाहे बिंबिसार, श्रेणिक हो, उदयन हो, चंड-प्रद्योत, इन सब राजाओं को उन्होंने अपने ज्ञान के द्वारा अनुयायी बनाया और अपनी शिक्षाएं उन्हें दी। हजारों लाखों लोगों को जीवन में अहिंसा का पाठ पढ़ाया, अपरिग्रह बताया और अपने संघ का अनुयायी बनाया।

मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा मेरे पापा जी की एक कविता का जहां उन्होंने बताया है

गंगा तो है एक, उसके घाट हैं अनेक,
हर घाट में कूदकर, व्यक्ति पा सकता है, असीम प्रभाह
और डुबकी लगाकर, पूरी कर सकता, निर्मल बनने की चाह
इसी तरह सत्य और अस्तित्व की गंगा से,
जो होना चाहता एकाकार
संकल्प और श्रम के तीर्थ से छलांग भरकर
जो पावन हो, उतरना चाहता उस पार
उसके लिए, तुमने श्रमण संस्कृति के तीर्थ का किया नवनिर्माण
तपोनिष्ठ ध्यान योगी बनकर, कहलाए तुम तीर्थंकर महान।

महावीर ने जहां पांच महाव्रत बताएं बुद्ध ने वही अष्टयाम धर्म बताया। महावीर के बात को गौतम और सुधर्मा ने आगे बढ़ाया, बुद्ध की बात को आनंद आदि शिष्य ने आगे बढ़ाया। वैसे कई विदेशी लेखक दोनों को एक मानते हैं क्योंकि उन्हें इनके इतिहास की, इनके परिवार की, इनके परिवेश की जानकारी नहीं है लेकिन दोनों का एक अपना अपना अलग-अलग महत्व है और अलग-अलग दर्शन है। कई बातें जैन धर्म मानता है वह बौद्ध धर्म नहीं मानता। बौद्ध धर्म में आत्मा का इतना महत्व नहीं है;जैन धर्म आत्मकृतत्ववाद के आधार पर ही आधारित रखता है।

यहाँ ऐसा भी कहा जाता है भगवान महावीर और बुद्ध आपस में कभी मिले या नहीं मिले, बहुत बड़ा प्रश्न है? दोनों समकालीन थे, क्षेत्र एक ही था और दोनों का मिलन क्यों नहीं हुआ, जब मिलन हुआ तो उसके बारे में कहीं कोई बात ना आगमों में आती है न ही त्रिपिटक  मेंआती है।

मेरे पिता श्री ने इस पर भी एक कविता के माध्यम से अपनी बातकही है कि

यही सही है कि कभी मिले नहीं बुद्ध और महावीर
और यह भी सही है कि उनके अंदर जागृत चेतन एक सा था
यद्यपि उनके अलग से शरीर
वे भी मिल लेते तो अलग दिखता न आकार
और अलग रहे तो भी उनका रहा एक ही प्रकार
मिलने पर केवल हृदय बोलता मौन हो जाता वचन
अंतर में दोनों के प्रभावित हो रहा था एक सा ज्योतिर्मय जीवन
ज्ञानियों के बीच बात हो सकती है पर होती न कभी
और अज्ञानी बात कर नहीं सकते पर बहुत बोलते सभी
दोनों का असीम केवल-ज्ञान शब्दों में होता नहीं आबद्ध
और उनकी अपूर्व मुक्त चेतना तन में रही नहीं प्रतिबद्ध
यह तथ्य है कि कभी मिले नहीं उनके तन
और यह सत्य है कि मिलता रहा
सदा सर्वदा उनका जागृत चेतन।

ऐसे दोनों प्रणम्य पुरुषों को मैं प्रणाम करता हूं और भारतीय संस्कृति के इन दोनों पुरोधाओं को जिन्होंने हमें जीवन जीने की कला में नवीनता बताइए और हमें साधना के आधार पर जीवन को जीना सिखाया है। हमें इनके बारे में पढ़कर अपने जीवन मैं सार्थकता लानी है। इन्हें भी समझना है, जानना है, पढ़ना है और आने वाली पीढ़ी को इनके बारे में बताना है। बता तभी पाएंगे जब हम स्वयं जानेंगे अन्यथा कोरे रह जाएंगे। मानव जीवन मिला है कोरा ना रहे और कुछ ना कुछ आध्यात्मिकता जीवन में जरूर रहे। यही बुद्ध व महावीर ने सिखाया यही समझाया है।


रचनाकार: श्री मर्यादा कुमार कोठारी, (आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष , अणुव्रत महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री रह चुके हैं।)


गुरुवार, मई 07, 2020

हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो




जन्म लिया "मोहन" बनकर,
"मुदित" बने, ले दीक्षा तुम ।
हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो,
"महाश्रमण" लो अभिनंदन तुम ।।

झूमर नेमा के हो नन्दन,
कुल "दुगड़" बड़भागी है ।
जन्म लिया सरदारशहर में,
धन्य हुई यह माटी है ।।

"तुलसी" गुरु की कृपा पाई,
संयम रत्न का मिला वरदान ।
चतुर्दशी वैशाख शुक्ल दिन,
अध्यात्म "सुमेर" चढ़े सौपान ।।

"तुलसी-महाप्रज्ञ" की प्रतिकृति,
हे महाश्रमण ! अभिनंदन ।
मुदित भाव से दीक्षा दिवस पर,
हे ज्योतिचरण ! तुम्हें करते वंदन ।।

रचनाकार : श्री पवन फुलफगर, संपादन टीम सदस्य, भातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज

बुधवार, मई 06, 2020

आराध्य के प्रति भावों की अभ्यर्थना


बालक मोहन सरदारशहर दुगड़ कुल के अद्भुत , विलक्षण , रत्न अनमोल,
गुरु तुलसी आज्ञा से मुनि सुमेर ने दी दीक्षा, सीखे प्रभु आध्यात्म के बोल।

12 वर्ष की अल्प आयु में मोहन से मुनि मुदित बन संयम यात्रा हुई प्रारंभ,
गुरु - आज्ञा को आत्मधर्म मान, सहज, समर्पण, निष्ठा से शिक्षा हुई आरंभ।

छोटा कद था पर संकल्प फौलादी , लक्ष्य बड़े लेकर बढ़ते थे प्रभुवर के चरण,
राग विराग के भावों से ऊपर उठकर बन गए मुनि मुदित से आप महाश्रमण।

गौर मुखमंडल को जब जब देखा, सहज मुस्कान की मिलती छाया शीतल,
प्रवचन की धारा इतनी निर्मल जैसे कल कल बहता हो गंगा का अमृत जल।

सर्दी-गर्मी, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में भी महातपस्वी को सदा सम देखा,
तुलसी - महाप्रज्ञ का रूप जय जय ज्योतिचरण, जय जय महाश्रमण में है देखा।

दीक्षा दिवस के अवसर पर तेरापंथ सरताज को जन जन शुभ भावों से बधाता है
तेरी दृष्टि में मेरी सृष्टि रहें सदा "पंकज" अपने भगवान की गौरव गाथा गाता है।