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रविवार, दिसंबर 05, 2021

मानव का शरीर एक नौका के समान है - आचार्य महाश्रमण

धर्म-साधना द्वारा संसार सागर से तरने का प्रयास करे मानव

आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

05.12.2021, रविवार, अरनेठा, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता की प्रेरणा देने वाली, लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाली अहिंसा यात्रा वर्तमान में बूंदी जिले की सीमा में गतिमान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में अहिंसा यात्रा बूंदी जिले के नित नए गांव में मानवता की अलख जगा रही है। रविवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गामछ गांव से प्रातः की बेला में मंगल विहार किया। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। सबको आशीर्वाद बांटते, लोगों को प्रेरित करते आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर अरनेठा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो इस विद्यालय सहित पूरा अरनेठा पावनता को प्राप्त हो गया। रविवार को विद्यालय की छुट्टी होने के बावजूद भी आज पूरा विद्यालय स्थानीय ग्रामीणों व श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। ग्रामीणों तथा विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। 

 मध्याह्न के उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से अरनेठावासियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव का शरीर एक नौका के समान है, जीव इसका नाविक है और यह संसार सागर के समान है। त्यागी संत और महर्षि लोग इस संसार सागर को तर जाते हैं। गृहस्थ भी धर्म-साधना के द्वारा इस संसार सागर को तरने का प्रयास कर सकता है। शरीर है तो इससे साधना करते हुए आदमी को तरने का प्रयास करना चाहिए। शरीर रूपी नौका में आश्रव रूपी छेद भी हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, क्रोध, लोभ आदि आश्रव रूपी वह छिद्र हैं जो मानव जीवन रूपी नौका में पाप का पानी भरते हैं, जिसके कारण यह नौका संसार सागर में डूबती रहती है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। आदमी को पापकर्मों से बचने हुए इस शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। संतों की वाणी, भगवान का ध्यान, उनकी कथा श्रवण आदि के माध्यम से अपने जीवन में धर्म को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अच्छे हों, उनमें सद्गुणों का विकास हो, जीवन में धार्मिकता का विकास हो तो यह जीवन भव सागर से पार पाने वाला और कल्याणपथगामी बन सकता है। 

 मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान तो ग्रामीणों ने खड़े होकर संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री ने उन्हें व्यसनों से मुक्त रहने की विशेष प्रेरणा व पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के आगमन से मानों पूरा विद्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र मेला जैसा बना हुआ था। ग्रामीण जन पूरे दिन भर आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहे। उन्हें यथानुकूलता आचार्यश्री के दर्शन व आशीष का लाभ पूरे दिन प्राप्त होता रहा। 

साभार : महासभा कैम्प आफिस

शनिवार, सितंबर 04, 2021

जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है - आचार्य महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी

धार्मिक दृष्टि से पर्युषण सबसे महत्वपूर्ण समय - आचार्य महाश्रमण

पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस

04 सितम्बर 2021, शनिवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सान्निध्य में आज पर्वाधिराज पर्युषण का शुभारंभ हुआ। पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। पर्युषण अध्यात्म साधना का एक महान पर्व है। भाद्रव कृष्णा द्वादशी तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी के महाप्रयाण से भी जुड़ी हुई है। परम श्रद्धेय गुरुदेव के उद्बोधन से पूर्व मुख्यमुनि महावीर कुमार जी द्वारा गीत एवं साध्वीवर्या संबुद्ध यशा जी द्वारा श्रीमद जयाचार्य पर वक्तव्य दिया गया।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा पर्युषण का समय बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। हम देखें तो धार्मिक दृष्टि से वर्ष भर में एक अपेक्षा से चातुर्मास का अधिक महत्व होता है। चातुर्मास एक ऐसा समय है जब चारित्रआत्माएं विहार आदि नहीं करके एक ही स्थान पर चार मास प्रवास करते है। चातुर्मास में भी श्रावण - भाद्रव और फिर पर्युषण का सबसे अधिक महत्व है। पर्युषण धर्माराधना का एक अच्छा क्रम है। सकल जैन समाज इस अवसर पर विशेष रूप से धार्मिक साधना करता है। भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का भी पर्युषण काल में प्रवचन आदि द्वारा आख्यान किया जाता है। 

गुरूदेव ने आगे कहा कि जैन धर्म में आत्मवाद का सिद्धांत अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है। आत्मा ऐसा तत्व है जो शाश्वत है। जितनी आत्माएं अनंत काल से संसार में विद्यमान है उतनी ही अनंत काल तक रहेगी। कोई नई आत्मा जन्म नहीं लेती है। वही आत्मा थी है और रहेगी। इस आत्मवाद के सिद्धांत से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की बात भी सिद्ध हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व आत्मा जन्म-मरण करती रहती है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर इस अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर हुए। वें कोई एक ही दिन में तीर्थंकर नहीं बने, उनकी पृष्ठभूमि में कितनी ही साधना और तप है। आत्मवाद के साथ कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद भी जैनधर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत है। भगवान महावीर की 27 भवों की अध्यात्म यात्रा में हम जैन धर्म के सिद्धांतों को और अधिक गहराई से समझ सकते है।

खाद्य दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा- भोजन और शरीर का संबंध है। शरीर को टिकाने के लिए भोजन जरूरी है। कई तपस्या आदि भी करते है। जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है। खाते हुए भी नहीं खाना, संयम रखना बड़ी बात होती है। विगय वर्जन, द्रव्य सीमा द्वारा व्यक्ति भोजन में विवेक रखे यह काम्य है। 

प्रसंगवश आचार्यप्रवर ने कहा कि जयाचार्य हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट आचार्य हुए है। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी में आचार्य भिक्षु, द्वितीय शताब्दी में श्रीमदजयाचार्य और तीसरी शताब्दी में आचार्य तुलसी को मुख्यरूप से देख सकते है। जयाचार्य एक अध्यात्म वेत्ता, तत्व वेत्ता, विधि वेत्ता आचार्य थे। आज के दिन मैं उनके प्रति श्रद्धार्पण करता हूं।
कार्यक्रम में श्रीमती मीना गोखरू ने नौ, श्रीमती ऋतु चोरडिया ने  पन्द्रह,  श्रीमती जसोदा देवी चोपड़ा ने पैंतालीस, श्रीमती एकता ओस्तवाल ने आठ और श्री राकेश नौलखा ने नौ के तप में इक्कीस की तपस्या का गुरूदेव से प्रत्याख्यान किया।

साभार : जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

रविवार, जुलाई 18, 2021

लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता - आचार्य महाश्रमण

 चातुर्मास हेतु शांतिदूत का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्य का प्रथम चातुर्मास

स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य


18 जुलाई 2021, रविवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान, तेरापंथ नगर आदित्य विहार, प्रातः 09 बज कर 21 मिनट पर जैसे ही शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महाश्रमण सभागार में चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया पूरा वातावरण 'जय जय ज्योतिचरण - जय जय महाश्रमण' के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। हर ओर श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा था। वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री का यह चातुर्मास प्रवेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्यों का यह पहला चातुर्मास है। आचार्य श्री के साथ भी प्रथम बार 200 से अधिक साधु-साध्वियां चातुर्मास में है। देश- विदेश की हजारों किलोमीटर पदयात्रा संपन्न कर मेवाड़ पधारे गुरुवर के स्वागत में सभी में उत्साह-उमंग की नई लहर छाई हुई है।


प्रशासनिक दिशा-निर्देश एवं कोविद गाइडलाइन के मद्देनजर प्रवेश जुलूस का आयोजन नहीं रखा गया था। साधु-साध्वियों की धवल पंक्ति के मध्य आचार्य प्रवर को मंगल प्रवेश करता देख सभी श्रद्धानत थे। भीलवाड़ा वासियों का वर्षों पूर्व देखा गया स्वप्न आज साकार हो गया, ऐसा लग रहा था मानो भीलवाड़ा शहर महाश्रमणमय बन गया हो।


स्वागत समारोह में आचार्य प्रवर ने कहा- इस संसार में जब मंगल की बात आती है तो कई चीजों का नाम आ सकता है। कोई मुहूर्त आदि को मंगल मानता है, तो कहीं गुड़, नारियल आदि को भी मंगल माना जाता है, परंतु ये सब उत्कृष्ट मंगल नहीं है। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल होता है। धर्म साथ में है तो फिर सदा मंगल है।अहिंसा, संयम, तप ये धर्म के लक्षण हैं। जीवन में अगर ये है, तो मानो धर्म है, अध्यात्म है। अहिंसा एक ऐसा तत्व है जो लोक में सबके लिए क्षेमंकरी है, कल्याणकारी है। आज समाज, राजनीति में भी अहिंसामय नीति होनी चाहिए। लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों जनता की भलाई के लिए होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता। अहिंसा, प्रेम-मैत्री से भी समस्या सुलझाई जा सकती है।


गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि- इस भारत देश में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं पंथनिरपेक्षता भी है। सबको अपनी रुचि अनुसार धर्म करने की छूट है। भारत एक आजाद देश है, आजादी के साथ संयम, अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता। साथ ही सत्ता में निस्वार्थ सेवा रूपी तप भी होना चाहिए। सत्ता में आकर अगर जनता की सेवा ना करें तो वह व्यर्थता है। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर सकता है।


चातुर्मास प्रवेश पर गुरुदेव ने कहा कि- यह चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्षभर यात्रा के पश्चात ये चार महीने ऐसे होते हैं जब साधु को एक स्थान पर रहना होता है। आज चातुर्मास हेतु यहां प्रवेश हुआ है। कितने ही रत्नाधिक व छोटे साधु-साध्वियां वर्षों बाद इस बार साथ में है। यहां की जनता भी जितना हो सके उतना धर्म का लाभ उठाएं। यह चातुर्मास उपलब्धिकारक रहे, मंगलकामना।


साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने उद्बोधन में कहा- आचार्यश्री एक महान यात्रा, विजय यात्रा कर यहां पधारे हैं। मेवाड़ के श्रावकों में विशिष्ट भक्ति है। चातुर्मास में सभी लक्ष्य बनाएं कि हमें गुरुवर की वाणी को आत्मसात कर जीवन में अपनाना है। यह सिर्फ भीलवाड़ा का ही नहीं पूरे मेवाड़ का चतुर्मास है।


स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य

शांतिदूत के स्वागत में पंजाब के महामहिम राज्यपाल श्री वीपी सिंह बदनोर विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर सांसद श्री सुभाष बहेरिया, विधायक श्री रामलाल जाट, विधायक श्री विट्ठल शंकर अवस्थी, नगर परिषद चेयरमैन श्री राकेश पाठक, जिला कलेक्टर श्री शिव प्रकाश नकाते, जिला पुलिस अधीक्षक श्री विकास शर्मा, राइफल संघ के जिलाध्यक्ष श्री अभिजीत सिंह बदनोर, वरिष्ठ एडवोकेट उमेद सिंह राठौड़ आदि अनेक गणमान्य जनों ने भी आचार्य वर का अभिनंदन किया।


स्वागत करते हुए राज्यपाल श्री वीपी.सिंह बदनोर ने कहा- यह मेरा परम सौभाग्य है जो आज मेवाड़ की धरा पर मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। आप के प्रवचन हम सभी का मार्गदर्शन करने वाले हैं। मेरी विनती है पंजाब की धरा पर भी आप पधारे। इस चातुर्मास से पूरे देश में धर्म की ज्योति जलेगी।


कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया, स्वागताध्यक्ष श्री महेंद्र ओस्तवाल, वरिष्ठ श्रावक श्री नवरतन झाबक ने अपने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी व व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री निर्मल गोखरू ने किया।

सोमवार, सितंबर 23, 2019

आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए : आचार्य महाश्रमण

 समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम

23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

साभार : महासभा कैम्प ऑफिस, फ़ोटो साभार : बबलू भाई

आत्मा को हल्का बनाएं : आचार्य महाश्रमण





समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम



23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

सोमवार, सितंबर 16, 2019

व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए - आचार्य महाश्रमण


शांति पाने के लिए करे साधना – आचार्य महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 44वें वार्षिक अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मानित
16-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, बेंगलुरु के आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में चातुर्मास कालीन प्रवास कर रहे तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जनमेदिनी को  संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि हमारे कर्मों में मोह कर्म सेनापति के रूप में है अन्य कर्म इसके अंतर्गत रहते हैं। जब सेनापति के रूप में  इसका क्षय हो जाता है तो अन्य कर्म अपने आप क्षीण हो जाते हैं और केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। सामान्य आदमी को संन्यासी जीवन नीरस लगता है परंतु साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ही इसकी सरसता का ज्ञान होता है। जो सुख अध्यात्म के क्षेत्र में है वह भौतिक जीवन में नहीं मिल सकता है। भौतिकता से बाहरी सुख मिल जाता है परंतु आंतरिक सुख अध्यात्म मय जीवन में ही आता है अर्थात भौतिक साधनों से सुख मिलता है और साधना से शांति का अनुभव होता है। हमारे जीवन में शरीर दिखाई देता है परंतु चेतना दिखाई नहीं देती है। हम शरीर को भौतिक साधनों से स्वच्छ कर सकते हैं परंतु चेतना अगर मैली हो जाए तो इसे स्वच्छ रखने के लिए आध्यात्मिकता और नैतिकता का आलंबन लेकर स्वच्छ किया जा सकता है। आचार्यवर ने आगे कहा कि व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्य करें उसे साधनों की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में ईमानदारी का प्रयास करें और जीवन में गुस्से का परिहार करना चाहिए। व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए।
*आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार के विषय में आचार्यश्री ने कहा -  कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके सम्मान से पुरस्कार भी सम्मानित होता है और श्रीमती सुमित्रा महाजन के सम्मान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आचार्यप्रवर ने आचार्य तुलसी को कर्तृत्वशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने देश भर की यात्रा के माध्यम से नारी जाति एवं अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज का उत्थान किया। इस अवसर पर महिला मंडल का सर्वोच्च पुरस्कार आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 'लोकसभा' की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को प्रदान किया गया।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि आचार्य तुलसी ने महिलाओं के जीवन में पर्दा प्रथा, बाल विवाह और नारी उन्मूलन के लिए नया मोड़ कार्यक्रम से महिलाओं का कल्याण किया। आज महिलाएं केवल घरेलू बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रही है और इसका जीवंत उदाहरण महिला मंडल एवं स्वयं श्रीमती सुमित्रा महाजन है जो एक महिला है और इन्होंने देशभर से चुनकर आए प्रतिनिधियों को लोकसभा में एक सूत्र में बांधे रखा। अभातेमम  की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती  सायर बेंगाणी  एवं अभातेमम  अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा अपने विचार रखें।
पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ दोनों का संगम आचार्य महाश्रमण में देखने को मिलता है। उन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की तुलना एक माता से करते हुए अपने आप को इस पुरस्कार से सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस किया। उपस्थित महिला शक्ति को आह्वान करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को अपनी शक्ति को पहचानना जरूरी है। कार्यक्रम में पुरस्कार प्रायोजक श्री देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री बीसी जैन भलावत, श्री केसी जैन का भी सम्मान किया गया। महिला मंडल द्वारा हैप्पी एंड हारमोनियस डॉक्यूमेंट्री फिल्म, देशभर से प्राप्त आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी समारोह पर सौ कविताओं की पुस्तक "स्पंदन" का लोकार्पण भी हुआ। पुरस्कार सत्र का संचालन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया।

साभार : महासभा कैम्प आफिस

रविवार, सितंबर 15, 2019

मोह जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है - आचार्य महाश्रमण

राजनीति के क्षेत्र में शुचिता की शांतिदूत ने प्रदान की प्रेरणा
भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दर्शन कर पाया आशीष

15-09-2019  रविवार , कुम्बलगोडु, कर्नाटक, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण का बेंगलुरु की धरा पर दक्षिण भारत का द्वितीय चातुर्मास प्रवर्धमान है।  पर्युषण महापर्व के बाद से अनेक गांवों व शहरों का श्रावक समाज एक के बाद एक संघ रूप में  गुरु दर्शनार्थ पहुंच रहा हैं।
रविवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य महाश्रमण जी ने कहा - जब व्यक्ति के मन में अपराध की चेतना उभर जाती है तो वह हिंसा,  चोरी आदि दुष्कृत्य करने लग जाता है।   ऐसी विकृत चेतना तब पैदा होती है जब ज्ञान और दर्शन का अभाव होता है।  लोभ और आवेश हिंसा के प्रमुख कारण है और मोह  जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है। 
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन में अगर इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो मोह कमजोर हो जाएगा। त्याग , तपस्या और जप मोह  को निष्फल करने के  श्रेष्ठ साधन है। 

बेंगलुरु में अब तक 40 मासखमण
चातुर्मास काल में बेंगलुरु में  हो रही तपस्याओं के संदर्भ में  महातपस्वी ने कहा -  तपस्या करना कोई  आसान काम नहीं है।  शौर्य शक्ति का क्षयोपशम  होने से ही लंबी तपस्या हो सकती है।  बेंगलुरु में 40 मासखमण होना कोई सामान्य बात नहीं है।  लोग तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं यह अपने आप में अनूठा है। 

राजनीति के क्षेत्र में सुचिता की प्रेरणा देते हुए अनुव्रत अनुशास्ता  ने कहा राजनीति सेवा का माध्यम है। राजनीति में शुद्धता और नैतिकता बनी रहे तो  समाज और देश का अच्छा विकास हो सकता है। 

भाजपा महामंत्री पहुंचे आशीर्वाद लेने
प्रवचन के दौरान भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आचार्य श्री से सन 2021 में इंदौर में  जन्मोत्सव एवं पटोत्सव ससमारोह मनाने की अर्ज की  एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर साध्वी  जिनप्रभा जी की पुस्तक ' जैन विद्या का प्रवेश द्वार :  पच्चीस बोल'  का विमोचन हुआ। 

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का राष्ट्रीय अधिवेशन
आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का 44वां राष्ट्रीय अधिवेशन के शुभारंभ हुआ जो 18 सितंबर तक चलेगा।  अमृतवाणी द्वारा ' महाप्राण महाप्रज्ञ' सीडी का लोकार्पण हुआ जिसमें गायक मनीष पगारिया ने स्वर दिया है। मंच का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे

मंगलवार, अगस्त 27, 2019

आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है - आचार्य महाश्रमण

  • महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज का आध्यात्मिक आगाज
  • प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • महावीर के प्रतिनिधि ने आरम्भ किया ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग
  • महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन
  • मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान कर श्रद्धालुओं को किया मंत्रमुग्ध
  • तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर किया स्मरण
27.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का पर्वाधिराज पर्युषण का आध्यात्मिक आगाज मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिन ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे से पूर्व ही पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बन चुका था। हालांकि इस महापर्व में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास के क्षेत्र को पंडाल का रूप प्रदान किया था। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से मुख्य प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए तो आचार्यश्री के दांयीं ओर संत समाज की उपस्थिति तो बांयीं ओर साध्वीवृंद की उपस्थिति। सामने की ओर हजारों-हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति के बीच आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को पर्युषण पर्व के महत्त्व के बारे में अवगति प्रदान की। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित था। ‘खाद्य संयम दिवस’ से संबंधित गीत का संगान साध्वी ज्योतियशाजी द्वारा किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को खाद्य संयम के संदर्भ में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व की यात्रा मानव को आत्मा तक पहुंचाने वाली है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण करना होता है। शरीर को धारण करने के लिए शरीर की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करनी होती है। शरीर के लिए आदमी को भोजन, वस्त्र आदि-आदि की आवश्यकता होती है। जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। विवेक के बिना किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जिह्वा को जंक फूड और फास्ट फूड के स्वाद से निकालकर उसके गले में अस्वाद की घंटी को बांधने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा भोजन को हितकर, मितकर और सात्विक होना चाहिए। आचार्यश्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर आदमी को भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस के अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को श्रीमज्जयाचार्यजी के जीवन के विषय में अवगति प्रदान की।
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ एक सुन्दर विषय है। इस महापर्व पर भगवान महावीर की इस यात्रा को विस्तार से जानने के लिए आत्मवाद को भी जानने की आवश्यकता है। दुनिया में दो तत्त्व हैं-जड़ और चेतन। इन दोनों के अलावा जीवन में कुछ भी नहीं। जिसमें उपयोग हो, व्यापार हो चेतन और जिसमें ये नहीं वह जड़ होता है। आत्मा अनादि है। आत्मा का विनाश नहीं हो सकता। आत्मा शाश्वत अस्तित्व होता है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है।
अध्यात्म जगत में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है। ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में विवेचित किया गया है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर थे। हम उनके शासनकाल में साधना कर रहे हैं। वे परम सात्विक पुरुष थे। उनका यह जीवन पूर्वजन्मों की साधना पर टिका हुआ है। उनके पूर्व भव को जानने से कर्मवाद की पुष्टि भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन भी तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। वे तेरापंथ की दूसरी शताब्दी के सूत्रधार थे। वे अध्यात्मवेत्ता, तत्त्ववेत्ता और विधिवेत्ता थे। उनका आज के दिन हम श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, वन्दन करते हैं। आचार्यश्री ने ‘खाद्य संयम दिवस’ के संदर्भ में भी श्रद्धालुओं को खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। मुख्य प्रवचन से पूर्व मुनि रजनीशकुमारजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया तो मुनि अनुशासनकुमारजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया।
अंत में आचार्यश्री ने 18 जनवरी 2020 को उत्तरी कर्नाटक में स्थित गदग में दीक्षा समारोह करने की घोषणा की। इसमें मुमुक्षु रौनक बाफना, श्रुति चोपड़ा व सोनम पालगोता को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की तो पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। इसके उपरान्त अनेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : चंदन पांडे

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

हिंसा, हत्या, चोरी, लूट, छल-कपट, झूठ यह सभी अधर्म हैं - आचार्य महाश्रमण

‘सम्बोधि’ प्रवचनमाला के अंतर्गत आचार्यश्री ने की धर्म और अधर्म की व्याख्या
सदैव धर्म में रत रहने और समस्या के मूल को उन्मूलित करने का आचार्यश्री ने दिया ज्ञान
विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री दिनेशचंद्रजी ने आचार्यश्री के दर्शन कर पाया आशीर्वाद

22.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में बेंगलुरु के कुम्बलगोडु में स्थित आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में दक्षिण भारत का दूसरा चतुर्मास कर रहे हैं। चतुर्मासकाल की व्यापक प्रभावना का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं, उनकी मंगलवाणी का श्रवण करते हैं, आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गुरुवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शनार्थ विश्व हिन्दू परिषद के परामर्शक व मार्गदर्शक श्री दिनेशचंद्रजी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री राघवल्लुजी उपस्थित हुए। आचार्यश्री के दर्शन के उपरान्त मंगल प्रवचन श्रवण के लिए ‘महाश्रमण समवसरण’ में भी पहुंचे। आचार्यश्री ने नित्य की भांति उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अधर्म क्या होता है, अधर्म से क्या फल मिलता है, इसे जानने के लिए आदमी को पहले धर्म को जानने का प्रयास करना चाहिए। जिससे आत्मा की शुद्धि हो अथवा आत्मशुद्धि के साधन को धर्म कहा गया है। आदमी के जीवन में दो तत्त्वों की प्रधानता होती है-शरीर और आत्मा। शरीर तो प्रत्यक्ष है, किन्तु आत्मा परोक्ष तत्त्व है। इस दुनिया में दो प्रकार के पदार्थ बताए गए हैं-मूर्त और अमूर्त। मूर्त को आंखों से देखा जा सकता है, इसमें भी कुछ मूर्त इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें आंखों से देखा ही नहीं जा सकता, ऐसे में भला आदमी अमूर्त आत्मा को कैसे देख सकता है। आत्मा को आत्मा के द्वारा देखा जा सकता है। साधना के द्वारा आत्मा की अनुभूति की जा सकती है। आत्मा अमूर्त है। धर्म से आत्मा का शोधन होता है। अध्यात्म की साधना और धर्म के द्वारा आत्मा का शुद्धिकरण किया जाता है। जिस प्रकार मिट्टी से मिले स्वर्ण को प्रक्रिया के माध्यम से शुद्ध किया जाता है, उसी प्रकार अधर्म के कारण मलीन हुई आत्मा को धर्म और अध्यात्म की प्रक्रिया से शुद्ध किया जाता है। ‘सम्बोधि’ में बताया गया कि अधर्म के कारण नए-नए असत् तत्त्वों का विकास होता है। हिंसा, हत्या, चोरी, लूट, छल-कपट, झूठ यह सभी अधर्म हैं। इनके माध्यम से अशुभ कर्म आत्मा से बंधते हैं तो आत्मा मलीन हो जाती है। अधर्म बुरा फल प्रदान करने वाला होता है। आदमी को अधर्म से बचने के लिए उसके मूल पर ध्यान देना चाहिए। अधर्म के मूल में राग और द्वेष होते हैं। आदमी को मूल पर ध्यान देकर उसे उन्मूलित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन से अधर्म का सर्वनाश हो सके। इसलिए आदमी को धर्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित गणमान्यों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान करते हुए पावन पथदर्शन प्रदान किया। अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी का वक्तव्य हुआ।
इसके उपरान्त विश्व हिन्दू परिषद के परामर्शक व संरक्षक श्री दिनेशचंद्रजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री के प्रवचनों से हमें जीवन जीने की राह प्राप्त होती है। आचार्यश्री के आशीर्वाद रूपी ऊर्जा प्राप्त कर मानों जीवन धन्य हो जाता है। बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीश्री सुषमाकुमारीजी ने तपस्या के संदर्भ में श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।

मंगलवार, जून 05, 2018

श्रावक तीन मनोरथों का चिंतन करे : आचार्यश्री महाश्रमण


  • राष्ट्रीय राजमार्ग 16 पर गतिमान हैं राष्ट्रीय महासंत आचार्यश्री महाश्रमण
  • लगभग 13 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे माटूर
  • संसार में रहते हुए भी अनासक्तिपूर्ण जीवन जीने की दी पावन प्रेरणा



आचार्यश्री महाश्रमणजी
     05.06.2018 माटूर, गुन्टूर (आंध्रप्रदेश), (JTN) : भारत की हृदयस्थली कहे जाने वाली नई दिल्ली के लालकीले से प्रारम्भ हुई जनकल्याणकारी अहिंसा यात्रा अब तक भारत के देश के तेरह राज्यों सहित दो विदेशी धरती नेपाल और भूटान की ऐतिहासिक यात्रा परिसम्पन्न कर नवीन इतिहास की संरचना को दक्षिण भारत में गतिमान हो चुकी है। अपने प्रणेता, शांतिदूत, महातपस्वी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ अहिंसा यात्रा वर्तमान में आंध्रप्रदेश की जनता को अपने उद्देश्यों से लाभान्वित करा रही है।

      स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत भारत के चारों महानगरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए बने राष्ट्रीय राजमार्ग लोगों के सुलभ आवागमन का अब महत्त्वपूर्ण साधन हो चुके हैं। इन्हीं राष्ट्रीय राजमार्गों में से एक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-16 महान राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा का मार्ग बना कर अपने सौभाग्य पर इतरा रहा है। आचार्यश्री की वर्तमान की प्रायः यात्रा इसी राजमार्ग पर हो रही है।

      मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ चिलाकलुरीपेट स्थित श्री निवास डीएड कॉलेज परिसर से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया और राजमार्ग पर लगभग तेरह किलोमीटर की पदयात्रा कर माटूर स्थित विवेकानंद नेक्स्ट जेनरेशन इंग्लिश स्कूल में पधारे।

      आचार्यश्री विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को परिग्रह में बहुत ज्यादा आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। श्रावक को अपने जीविकोपार्जन में भी धार्मिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। धनार्जन करने में नैतिकता और अहिंसा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को श्रावक के तीन मनोरथों का वर्णन करते हुए कहा कि श्रावक को भी आसक्ति के भाव से मुक्त होकर परिग्रहों के अल्पीकरण करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक का पहला मनोरथ है कि कब मैं परिग्रह का अल्पीकरण करूं। श्रावक का दूसरा मनोरथ है कब मैं मुण्ड हो सकूं। श्रावक का तीसरा मनोरथ अनशन, संलेखना में शरीर छूटे। इस प्रकार श्रावक इन तीन मनोरथों का चिंतन भी करे तो वह अपने जीवन का कल्याण कर सकता है।













रविवार, जून 03, 2018

मन ही बंधन और मन ही मोक्ष का कारण होता है - आचार्य श्री महाश्रमण जी

श्रुत ज्ञान से मन रूपी अश्व पर लगाई जा सकती है लगाम: महातपस्वी 

03.06.2018 तुम्मापलेम, गुन्टूर (आंध्रप्रदेश), JTN, जन-जन के मानस को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सद्विचारों से अपने जीवन को अच्छा बनाने की पावन प्रेरणा अपने अमृतवाणी से प्रदान करते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ चेन्नई महानगर में वर्ष 2018 के चतुर्मास के लिए निरंतर गतिमान हैं। वर्तमान में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की धवल सेना राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 16 से निकल रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरती आचार्यश्री की धवल सेना ऐसे लगती है मानों गंगा की धवल धारा जन-जन को तारने के लिए कल-कल कर प्रवाहित होती जा रही है। इस प्रदेश में भाषा की समस्या के बावजूद भी जब स्थानीय लोगों को किसी माध्यम से आचार्यश्री की इस महान अहिंसा यात्रा, आचार्यश्री के जीवन, आचार्यश्री के कठिन श्रम की जानकारी होती है तो उनके भी सर श्रद्धा के साथ नत होते हैं और ऐसे महान आचार्य के दर्शन कर अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं। 
रविवार को प्रातः आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ चोवदावरम स्थित कल्लाम हरनधा रेड्डी इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाॅजी से प्रस्थान किया। आज आसमान बिल्कुल साफ था, जिसके कारण प्रातः से ही सूर्य की किरणें धरती का तापमान बढ़ाने में जुट गईं। जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ा धूप भी बढ़ती गई। यह गर्मी लोगों को बेहाल बनाने में सक्षम थी, किन्तु समताभावी आचार्यश्री के मुख की एक मोहक मुस्कान लोगों को उत्प्रेरित कर रही थी। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर तुम्मापलेम स्थित श्री मित्तापाल्ली काॅलेज आॅफ इंजीनियरिंग में पधारे। 
काॅलेज परिसर में बने एक हाॅल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जिस प्रकार आदमी के जीवन में शरीर और वाणी का महत्त्व होता है, उसी प्रकार मन का भी आदमी के जीवन में बहुत महत्त्व होता है। मन को एक प्रकार का दुष्ट अश्व (घोड़ा) बताया गया है जो आदमी को उत्पथ की ओर ले जा सकता है। इस अश्व को नियंत्रण में रखकर इसे अच्छा भी बनाया जा सकता है। 
मन बहुत तेज गति से चलने वाला अवश्य है और बिना नियंत्रण के आदमी को कुमार्ग की ओर भी ले जाता है। मन रूपी अश्व पर लगाम लगाने के लिए श्रुत के द्वारा ज्ञानार्जन करने का प्रयास करना चाहिए। अर्जित आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से ही इस घोड़े पर नियंत्रण किया जा सकता है। मन ही बंधन और मन ही मोक्ष का कारण होता है। मन दुःखों का बढ़ा सकता है और ही शांति प्रदान करने वाला होता है। मन मंत्र में लग जाए, मन धर्म में लग जाए तो वह पवित्र और अच्छा हो सकता है। पवित्र मन आदमी को सत्पथ की ओर ले जाने वाला हो सकता है। 

मंगलवार, दिसंबर 27, 2016

सीमा सुरक्षा बलों के बीच पहुंचे आध्यात्मिकता के महासंरक्षक आचार्यश्री महाश्रमण

 सीमा सुरक्षा बलों के बीच पहुंचे आध्यात्मिकता के महासंरक्षक आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

27 दिसंबर 2016, पानबाड़ी, (आसाम), आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर पानबाड़ी स्थित सीमा सुरक्षा बल के 71वें बटालियन के कैंप परिसर में पहुंचे। इस बटालियन के कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता सहित अन्य श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का स्वागत किया। आचार्यश्री कैंप स्थित ऑफिसर इन्स्टीट्यूट भवन परिसर में पधारे सीमा सुरक्षा बल के 71वें बटालियन कैंप के जवानों को आत्मा को जीतने का गुर सिखाने आत्मविजेताअखंड परिव्राजकअहिंसा यात्रा के प्रणेताजैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पहुंचे। आचार्यश्री ने जवानों को जहां अपनी आत्मा को जीतने का ज्ञान प्रदान किया और साथ ही कमांडेंट सहित प्रवचन में उपस्थित जवानों को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी स्वीकार कराए। इस तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने को तत्पर जवान आचार्यश्री से आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त कर अपनी आत्मा को सुरक्षित करने के लिए खुद को तैयार किया।
परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं और सेना के जवानों को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि एक योद्धा युद्ध में लाखों शत्रुओं को जीत लेता है, जिसे अजेय समझा जाता है उसे भी जीत लेता है तो कितनी बड़ी बात हो जाती है, किन्तु अध्यात्म जगत में आत्मा को जीतना युद्ध में जीतने से भी बड़ा विजय बताया गया है। जो आत्मा को जीत लेता है, वह अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। युद्ध के लिए तैयार रहना, प्रशिक्षण लेना और प्राणों की परवाह किए बिना देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना मनोबल की दृष्टि से बहुत ऊंची बात है। सीमा सुरक्षा बल के जवान किस प्रकार प्रशिक्षित होते होंगे और किस प्रकार अपना कार्य करते होंगे। आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज हम सीमा सुरक्षा बल के स्थान में आए हैं। यदि एक प्रकार से देखा जाए तो साधु-साध्वियां भी योद्धा हैं, जो आत्मा की सुरक्षा के लिए समर्पित रहते हैं।
आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा, जैन साधुचर्या के बारे में बताने के उपरान्त अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के बारे में बताया और जवानों से भी इसके तीन संकल्प-सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने और नशामुक्त जीवन जीने को स्वीकार करने का आह्वान किया। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित जवानों सहित स्वयं कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। नशामुक्ति के संकल्प के दौरान आचार्यश्री ने जब कमांडेंट जवानों से कहा कि यदि मद्यपान छोड़ना आप सभी के लिए संभव हो तो स्वीकार करें अथवा नहीं। तब कमांडेंट महोदय ने आचार्यश्री से कहा कि शायद आपका पदार्पण ही इसीलिए हुआ है। आचार्यश्री ने पुनः प्रश्न करते हुए कहा कि आपका विश्वास पक्का है ना ? पुनः एकबार कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने कहा कि बिलकुल मेरा विश्वास पक्का आप संकल्प करवाइए। इस दृढ़ निश्चय को देखते हुए आचार्यश्री ने कमांडेंट सहित जवानों को मद्यपान करने का संकल्प कराया।
इसके पूर्व कमांडेंट श्री वीरेन्द्र दत्ता ने आचार्यश्री का स्वागत करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि इस कैंप का परम सौभाग्य है जो आज आप जैसे महापुरुष का आगमन हुआ। मैं पूरी बटालियन की ओर से आपका स्वागत करता हूं। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ का भी विस्तृत परिचय दिया। तेरापंथ धर्मसंघ की जानकारी कमांडेंट के मुंह से सुन एकबार तेरापंथी श्रद्धालु भी आश्चर्यचकित थे। श्री नरेन्द्र सेठिया ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी तो सुश्री सोनल पीपाड़ा ने गीत का संगान किया। अहिंसा यात्रा की ओर से कैंप में स्थित पुस्तकालय के लिए कमांडेंट महोदय को तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की महान कृति तुलसी वाङ्मय की 108 पुस्तकें प्रदान की गईं।