सोमवार, नवंबर 02, 2020

गायन, चित्रकला, भाषण और लेखन प्रतियोगिताओं का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन शीघ्र

अणुव्रत आंदोलन द्वारा नई पीढ़ी के नव निर्माण की अनूठी पहल

नई पीढ़ी में रचनात्मकता और सकारात्मकता के विकास को केन्द्र में रख कर अणुव्रत आन्दोलन की प्रतिनिधि संस्था अणुव्रत विश्व भारती द्वारा पूरे देश में अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट के नाम से विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। गायन, चित्रकला, भाषण और कविता व निबन्ध लेखन जैसी रचनात्मक विधाओं में होने वाली इन प्रतियोगिताओं में तीन वर्गों में कक्षा 3 से 12 तक के बच्चे भाग ले सकेंगे। प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए शीघ्र ही वेबसाइट और ऐप लॉन्च किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि इनमें से कुछ प्रतियोगिताएं पिछले 25 वर्षों से आयोजित की जा रही हैं लेकिन कोरोना जनित परिस्थितियों के चलते पहली बार इन्हें ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आयोजित किया जा रहा है।


अणुविभा के अध्यक्ष श्री संचय जैन ने बताया कि ये प्रतियोगिताएं पूर्णतः ऑनलाइन आयोजित होंगी जिसमें बच्चे अपनी स्कूल के माध्यम से अथवा सीधे भी पंजीकरण करवा कर अपनी प्रविष्ठि अपलोड कर सकेंगे। प्रतियोगियों में बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग या लैंगिक भेदभाव के कक्षा 3 से 12 का कोई भी बच्चा भाग ले सकेगा और यह पूर्णतः निशुल्क होगी। शहर व जिला स्तर पर ई प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे एवं राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ प्रतियोगियों को चुना जाएगा और उन्हें पुरस्कार और प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। प्रतियोगिताओं का मुख्य विषय है - "कोरोना वैश्विक संकट : प्रभाव, समाधान और अवसर" जिसके अन्तर्गत दिए गए अनेक उप विषयों में से बच्चे अपनी पसन्द के विषय पर प्रस्तुति दे सकेंगे।


उल्लेखनीय है कि 7 दशक पूर्व महान संत आचार्य तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन मानवीय मूल्यों के संवर्द्धन के लिए अपने बहुआयामी रचनात्मक प्रकल्पों के माध्यम से निरन्तर प्रयासशील है। अणुव्रत दर्शन की यह मान्यता है छोटे-छोटे व्रत स्वीकार कर व्यक्ति स्वयं को सकारात्मक दिशा में अग्रसर कर सकता है और सुधरे व्यक्ति से ही समाज, राष्ट्र और विश्व सुधर सकता है। वर्तमान में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण इस आन्दोलन को आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं और अहिंसा यात्रा के रूप में हजारों किलोमीटर की पदयात्राएं करके जन-जन को नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं। 


नई पीढ़ी का संस्कार निर्माण अणुव्रत आंदोलन की प्रमुख प्रवृत्तियों में शामिल रहा है और अणुव्रत विश्व भारती का राजसमंद स्थित मुख्यालय चिल्ड्रन'स पीस पैलेस बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक प्रयोगशाला है जहां कुछ दिन बीता कर ही बच्चे अपने आप को रूपांतरित अनुभव करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणीत जीवन विज्ञान पाठ्यक्रम नई पीढ़ी के नव निर्माण का सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से लाखों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं।


श्री जैन ने बताया कि प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक स्कूल और बच्चों के लिए शीघ्र ही वेबसाइट का लिंक शेयर किया जाएगा। प्रतियोगिता की तैयारियों के लिए अणुविभा की केंद्रीय टीम में अध्यक्ष श्री संचय जैन के अलावा वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, महामंत्री श्री राकेश नौलखा, मंत्री श्री प्रकाश तातेड, सह मंत्री श्री जय बोहरा प्रतियोगिताओं के राष्ट्रीय संयोजक श्री रमेश पटावरी एवं लगभग 150 से अधिक जोनल, राज्य एवं स्थानीय संयोजकों की टीम दिन रात तैयारियों में जुटी है। श्री विमल गुलगुलिया के तकनीकी सहयोग से प्रतियोगिता के लिए वेबसाइट एवं ऐप तैयार किया गया है।



शुक्रवार, मई 15, 2020

सिद्ध और बुद्ध

पिछले दिनों वैशाख शुक्ला दशमी के दिन कई वर्ष पूर्व भगवान महावीर को सिद्धत्व की प्राप्ति हुई व वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भगवान बुद्धबुद्धत्व को प्राप्त हुए। वैसे तो दोनों शब्दों में कोई लंबा फर्क नहीं है।सिद्ध और बुद्ध दोनों ही करीब-करीब समानार्थी शब्द है। 

भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही करीब करीब समकालीन है,समकालीन ही नहीं दोनों भारत भूमि के उसी एक ही क्षेत्र से आते हैं जो वर्तमान में बिहार है और दोनों का अधिकतर विहार क्षेत्र भी वहीं रहा। चाहे राजगृह हो, चाहे नालंदा, चाहे वैशाली हो, चाहेमगध, चाहे पाटलिपुत्र। उनके अधिकतर चातुर्मास व विरहण इसी क्षेत्र में हुए। दोनों राजकुमार थे। दोनों ने विवाह किया। भगवान महावीर के पुत्री हुई है, एसा श्वेतांबर संप्रदाय मानता है और भगवान बुद्ध के 1 पुत्र था। भगवान महावीर और बुद्ध दोनों ही यौवन काल में घर गृहस्थी छोड़ के, राजमहल त्याग के, सन्यास की ओर मुड़े। सन्यास जीवन में ध्यान और तप कर आगे बढ़े। सिद्ध और बुद्ध बने दोनों ने श्रमण संस्कृति को आगे बढ़ाया।

कहा यह जाता है उस जमाने में करीब आठ-नौ लोग अपने आपको तीर्थंकर कहा करते थे और सब के सैकड़ों शिष्य बनाए थे। बुद्ध वमहावीर के भी थे और आज अढ़ाई-तीन हज़ार वर्ष बाद केवल बुद्ध व और महावीर का नाम रह गया। लोग भूल गए पुण्य कश्यप को,अजीत केश काबली को या मैं बात करूं मंखली पुत्र गौशालक की व प्रबुद्ध कात्यायन की, सबके अपने-अपने दर्शन थे और उन दर्शन के आधार पर ही इन सब का एक विभाजक रेखा बनी हुई थी।

लेकिन महावीर और बुद्ध तब से आज तक अपनी परंपरा के अनुसार चले आ रहे हैं और श्रमण संस्कृति के पुरोधा के रूप में दोनों की एक अपनी पहचान भारतीय संस्कृति में सदा के लिए अंकित है। दोनों महापुरुष एक ही महीने में सिद्ध - बुद्ध बने। एक ही समय में एक ही क्षेत्र में बिचरण किया और उन्हीं राजाओं को जो कि हिंसक थे,उन्हें अहिंसा का पाठ पढ़ाया। चाहे बिंबिसार, श्रेणिक हो, उदयन हो, चंड-प्रद्योत, इन सब राजाओं को उन्होंने अपने ज्ञान के द्वारा अनुयायी बनाया और अपनी शिक्षाएं उन्हें दी। हजारों लाखों लोगों को जीवन में अहिंसा का पाठ पढ़ाया, अपरिग्रह बताया और अपने संघ का अनुयायी बनाया।

मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा मेरे पापा जी की एक कविता का जहां उन्होंने बताया है

गंगा तो है एक, उसके घाट हैं अनेक,
हर घाट में कूदकर, व्यक्ति पा सकता है, असीम प्रभाह
और डुबकी लगाकर, पूरी कर सकता, निर्मल बनने की चाह
इसी तरह सत्य और अस्तित्व की गंगा से,
जो होना चाहता एकाकार
संकल्प और श्रम के तीर्थ से छलांग भरकर
जो पावन हो, उतरना चाहता उस पार
उसके लिए, तुमने श्रमण संस्कृति के तीर्थ का किया नवनिर्माण
तपोनिष्ठ ध्यान योगी बनकर, कहलाए तुम तीर्थंकर महान।

महावीर ने जहां पांच महाव्रत बताएं बुद्ध ने वही अष्टयाम धर्म बताया। महावीर के बात को गौतम और सुधर्मा ने आगे बढ़ाया, बुद्ध की बात को आनंद आदि शिष्य ने आगे बढ़ाया। वैसे कई विदेशी लेखक दोनों को एक मानते हैं क्योंकि उन्हें इनके इतिहास की, इनके परिवार की, इनके परिवेश की जानकारी नहीं है लेकिन दोनों का एक अपना अपना अलग-अलग महत्व है और अलग-अलग दर्शन है। कई बातें जैन धर्म मानता है वह बौद्ध धर्म नहीं मानता। बौद्ध धर्म में आत्मा का इतना महत्व नहीं है;जैन धर्म आत्मकृतत्ववाद के आधार पर ही आधारित रखता है।

यहाँ ऐसा भी कहा जाता है भगवान महावीर और बुद्ध आपस में कभी मिले या नहीं मिले, बहुत बड़ा प्रश्न है? दोनों समकालीन थे, क्षेत्र एक ही था और दोनों का मिलन क्यों नहीं हुआ, जब मिलन हुआ तो उसके बारे में कहीं कोई बात ना आगमों में आती है न ही त्रिपिटक  मेंआती है।

मेरे पिता श्री ने इस पर भी एक कविता के माध्यम से अपनी बातकही है कि

यही सही है कि कभी मिले नहीं बुद्ध और महावीर
और यह भी सही है कि उनके अंदर जागृत चेतन एक सा था
यद्यपि उनके अलग से शरीर
वे भी मिल लेते तो अलग दिखता न आकार
और अलग रहे तो भी उनका रहा एक ही प्रकार
मिलने पर केवल हृदय बोलता मौन हो जाता वचन
अंतर में दोनों के प्रभावित हो रहा था एक सा ज्योतिर्मय जीवन
ज्ञानियों के बीच बात हो सकती है पर होती न कभी
और अज्ञानी बात कर नहीं सकते पर बहुत बोलते सभी
दोनों का असीम केवल-ज्ञान शब्दों में होता नहीं आबद्ध
और उनकी अपूर्व मुक्त चेतना तन में रही नहीं प्रतिबद्ध
यह तथ्य है कि कभी मिले नहीं उनके तन
और यह सत्य है कि मिलता रहा
सदा सर्वदा उनका जागृत चेतन।

ऐसे दोनों प्रणम्य पुरुषों को मैं प्रणाम करता हूं और भारतीय संस्कृति के इन दोनों पुरोधाओं को जिन्होंने हमें जीवन जीने की कला में नवीनता बताइए और हमें साधना के आधार पर जीवन को जीना सिखाया है। हमें इनके बारे में पढ़कर अपने जीवन मैं सार्थकता लानी है। इन्हें भी समझना है, जानना है, पढ़ना है और आने वाली पीढ़ी को इनके बारे में बताना है। बता तभी पाएंगे जब हम स्वयं जानेंगे अन्यथा कोरे रह जाएंगे। मानव जीवन मिला है कोरा ना रहे और कुछ ना कुछ आध्यात्मिकता जीवन में जरूर रहे। यही बुद्ध व महावीर ने सिखाया यही समझाया है।


रचनाकार: श्री मर्यादा कुमार कोठारी, (आप युवादृष्टि, तेरापंथ टाइम्स के पूर्व संपादक, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष , अणुव्रत महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री रह चुके हैं।)


गुरुवार, मई 07, 2020

हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो




जन्म लिया "मोहन" बनकर,
"मुदित" बने, ले दीक्षा तुम ।
हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो,
"महाश्रमण" लो अभिनंदन तुम ।।

झूमर नेमा के हो नन्दन,
कुल "दुगड़" बड़भागी है ।
जन्म लिया सरदारशहर में,
धन्य हुई यह माटी है ।।

"तुलसी" गुरु की कृपा पाई,
संयम रत्न का मिला वरदान ।
चतुर्दशी वैशाख शुक्ल दिन,
अध्यात्म "सुमेर" चढ़े सौपान ।।

"तुलसी-महाप्रज्ञ" की प्रतिकृति,
हे महाश्रमण ! अभिनंदन ।
मुदित भाव से दीक्षा दिवस पर,
हे ज्योतिचरण ! तुम्हें करते वंदन ।।

रचनाकार : श्री पवन फुलफगर, संपादन टीम सदस्य, भातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज

बुधवार, मई 06, 2020

आराध्य के प्रति भावों की अभ्यर्थना


बालक मोहन सरदारशहर दुगड़ कुल के अद्भुत , विलक्षण , रत्न अनमोल,
गुरु तुलसी आज्ञा से मुनि सुमेर ने दी दीक्षा, सीखे प्रभु आध्यात्म के बोल।

12 वर्ष की अल्प आयु में मोहन से मुनि मुदित बन संयम यात्रा हुई प्रारंभ,
गुरु - आज्ञा को आत्मधर्म मान, सहज, समर्पण, निष्ठा से शिक्षा हुई आरंभ।

छोटा कद था पर संकल्प फौलादी , लक्ष्य बड़े लेकर बढ़ते थे प्रभुवर के चरण,
राग विराग के भावों से ऊपर उठकर बन गए मुनि मुदित से आप महाश्रमण।

गौर मुखमंडल को जब जब देखा, सहज मुस्कान की मिलती छाया शीतल,
प्रवचन की धारा इतनी निर्मल जैसे कल कल बहता हो गंगा का अमृत जल।

सर्दी-गर्मी, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में भी महातपस्वी को सदा सम देखा,
तुलसी - महाप्रज्ञ का रूप जय जय ज्योतिचरण, जय जय महाश्रमण में है देखा।

दीक्षा दिवस के अवसर पर तेरापंथ सरताज को जन जन शुभ भावों से बधाता है
तेरी दृष्टि में मेरी सृष्टि रहें सदा "पंकज" अपने भगवान की गौरव गाथा गाता है।

शनिवार, अप्रैल 25, 2020

मधुमक्खी से मिली प्रेरणा कोई आपका Creation चुरा जा सकता है Talent नहीं - पंकज दुधोडिया


💤💫 बहुत सुन्दर सन्देश 💫💤

एक चिड़िया ने मधुमक्खी से पूछा कि तुम इतनी मेहनत से शहद बनाती हो और इंसान आकर उसे चुरा ले जाता है, तुम्हें बुरा नहीं लगता ??
मधुमक्खी ने बहुत सुंदर मार्मिक जवाब दिया :
इंसान मेरा शहद ही चुरा सकता है पर मेरी शहद बनाने की कला नहीं !!
कोई भी आपका Creation चुरा सकता है पर आपका Talent (हुनर) नहीं चुरा सकता।

Whatsaap पर आये इस अग्रेषित मैसेज को पढ़ने के बाद ऐसा विचार (फिलिंग) मन में आया की चिंतन कितना विशाल है सकारात्मक है मधुमक्खी का की शहद चुरा सकता है पर टेलेंट नहीं।


इस सकारात्मक प्रेरणा देने वाले मैसेज के साथ मैं भी कुछ अपने विचार जोड़ रहा हूँ।


हम 84 लाख जीवयोनी मे मनुष्य जीवन को श्रेष्ठ मानते है। हम माने भी क्यों ना मनुष्य चिंतनशील प्राणी होता है।
यह अलग बात है चिंतन हम किस दिशा में करते है सकारात्मक दिशा या नकारात्मक दिशा यह हम विचार करें।

उपरोक्त FWD मैसेज में जो सकारात्मक जबाब मधुमक्खी ने दिया वो वास्तव में सीख प्रदान करता है की हम कभी जीवन में हतास ना हो सुख दुःख, ख़ुशी गम, आते रहेगे जाते रहेगे। पर हमें हर भाव में सकारात्मक सोच के साथ प्रसन्न रहना है। अपने विचार को सकारात्मक सोच से भावीत करना है। तभी हम जीवन की वास्तविक कड़वाहट के साथ साथ मिठास का अनुभव कर पायेगे। 
यह विचार मेरे स्वयं पर भी लागू होती है क्योकि हम लिखते तो बहुत है पर उसे जीवन में कितना अपनाते है यह महत्वपूर्ण है। हम जीवन में पढ़ते तो बहुत है पर उसे कितना आत्मसात करते है यह महत्वपूर्ण है।
हम आईने को रोज देखते है आइना हमें प्रतिबिम्ब दिखाता है कुछ ऐसा ही प्रतिबिम्ब हमें हमारी आत्मा में भी देखने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग करना चाहिए। आत्मावलोकन, आत्मवलोचन करना चाहिए व सदा इसे सकारात्मक चिंतन से भावीत करना चाहिए। जिससे हम ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण कर पाये की हमारा Creation कोई भले ही चुरा ले पर हम अपने Talent के बल पर पुनः सकारात्मक सोच, सकारात्मक कार्य से आगे बढ़ते हुए जीवन में विकास के सोपान चढ़ते जाए।
यदि हम अपनी ऊर्जा प्रयास के द्वारा मन वचन काया के माध्यम से होने वाले निगेटिव सोच को हटा सकारात्मक सोच को स्थापित कर पाये तो हो सकता है हम नव युग का निर्माण कर दें।
क्योकि हमारी सोच ही हमें ऊंचाई प्रदान करती है और हमारी सोच ही हमें निचे गिराती है।
मैं पंकज धन्यवाद देना चाहूँगा जिसने भी उपरोक्त मैसेज बनाया है और जिन्होंने FWD किया उनके माध्यम से प्राप्त मैसेज से यही सकारात्मक विचार आया की हम चिंतित ना हो, हतास ना हो हम अपने पुरुषार्थ से पुनः प्रयास करे जिससे हम जीवन में प्रगति कर सकते है।


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10155256602639451&id=641524450

बुधवार, अप्रैल 15, 2020

जिंदगी को कभी हल्के में ना ले

"जिंदगी का सफर है यह कैसा सफर .."
"कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं..."


_महान गीतकार इंदीवर की यह भावपूर्ण रचना वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठ रही है ।_

इसीलिए कहा जाता है कि जिंदगी को कभी हल्के में ना लें । पल में सब कुछ बदल जाता है । आप खुद ही देखिए कि कुछ हफ्तों पहले हम सब की जिंदगी क्या थी । क्या कोई सोच सकता था कि इतना परिवर्तन अकस्मात आ जाएगा । हम में से हर एक को कुछ पलों तक की फुरसत नहीं हुआ करती थी और आज ....

इसलिए जिंदगी को कभी हल्के में ना ले और हर समय पूरी गंभीरता और सहज भाव में रहे । हो सकता है आने वाला समय और कठिन हो लेकिन हम संयम और जागरूकता से इसे पार कर सकते है । अपने अपने हिसाब से सबको इस जंग से निपटना है लेकिन इस समय का भी घर परिवार में साथ रहकर सम्यक नियोजन करके, दिनचर्या को व्यवस्थित करके साथ ही अपनों को अपना समय व साथ देकर जीवन को सजीव बनाए रखने का भरसक प्रयास करते रहे ।

धर्मेन्द्र डाकलिया, गंगाशहर बीकानेर, 15/04/2020, बुधवार

सोमवार, अप्रैल 06, 2020

तीर्थंकर का समवशरण कैसा होता है ? : प्रियंका गादिया

तीर्थंकर के केवल कल्याणक के बाद देवता समवशरण की रचना करते हैं समवशरण खुला प्रवचन स्थल होता है इसके चारों तरफ तीन कोट चकरा कार दीवार होती है पहला कोट चांदी का होता है उस पर सोने के रंग कंगूरे होते हैं उस कोट के भीतर 1300 धनुष का अंतर छोड़कर दूसरे सोने का कोट होता है उस पर रत्नों के कंगूरे होते हैं फिर उसके भीतर 1300 धनुष का अंतर छोड़कर रत्नों का बना हुआ तीसरा कोट होता है उस पर मणि रत्नों के कंगूरे होते हैं इस कोर्ट के मध्य में 8 माह प्रतिहार य से युक्त तीर्थंकर भगवान पद्मासन में विराजमान होकर भगवान प्रतिभूति भावना से धर्म देशना देते हैं

प्रियंका गादिया , राजगढ़

महावीर प्रभु की वाणी दुनिया को आज अपनाने की ज़रूरत है - जयंत सेठिया

दुनिया वालों याद करो महावीर प्रभु की वाणी को
आज ज़रूरत दुनिया में इस वाणी की हर प्राणी को

जब सम्पूर्ण विश्व आज एक समस्या से सामना कर रहा है ऐसे समय में भगवान महावीर के सिद्धांत वर्तमान की आवश्यकता है।
पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला ने बालक वर्धमान को जन्म दिया। वर्धमान से महावीर तक का सफ़र आसान नहीं था, संसार के सुख-वैभव छोड़कर अपनी इच्छा से कष्ट सहन करना, जब तक माता-पिता जीवित हैं तब तक उनकी सेवा और तत्पश्चात् अपना सम्पूर्ण जीवन संसार के कल्याण के लिए अर्पित करना, अवतरित महापुरुष ही इस पथ पर चल सकते हैं।
भगवान महावीर ने आत्मा को महत्व देते हुए बताया की प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है, आनंद बाहर से नहीं आता.
भगवान ने असली शत्रु लालच, द्वेष, क्रोध, घमंड, आसक्ति इत्यादि को बताया और कहा ये शत्रु हमारे भीतर रहते हैं, इन पर विजय प्राप्त करना बाहरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने से बेहतर है।
हर जीवित प्राणी, चाहे वह एकेंद्रिय हो या पंचेंद्रिय, के प्रति समभाव और दयाभाव ही अहिंसा है, घृणा से मनुष्य का विनाश होता है। भगवान ने अहिंसा के महत्व को बताया।
भगवान महावीर ने अपने जीवन को रोशन करने के साथ-साथ दूसरों के जीवन के अंधेरे को भी दूर करते हुए जैन धर्म प्रतिपादित किया। जीवन में मोक्ष पाने के हर रास्ते पर पहले स्वयं चले जिसमें भव्य सफलता प्राप्त करने के बाद उन्होंने जगत को बताया की मनुष्य जीवन मोक्ष पाने की उत्तम सेवा है और पिछले जन्मों में किए हर बंधन से मुक्त होने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
तप, धर्म और दया इन बातों को प्राप्त करने के लिए अपने जीवन में साढ़े बारह वर्षों तक कठोर साधना करने के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और बाद में परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त किया। 
आत्मा को परमात्मा बनाने वाले और दुनिया को अहिंसा सिखाने वाले भगवान महावीर का जन्म कल्याणक  मनाना तब सार्थक होगा जब हम महावीर के दिए उपदेशों को जीवन में अपनाएँ।

जयंत सेठिया, गंगाशहर

रविवार, मार्च 15, 2020

कोरोना मार्केट मंदी सोशल मीडिया और जागरूकता : करुणा कोठारी

श्रीमती करुणा कोठारी
आज पूरा विश्व एक ही डर के साये में जी रहा है,पूरे विश्व मे एक आतंक है। आपसी मतभेदों को भुला कर आज सब साथ खड़े है। एक छोटे से वायरस ने ना सिर्फ आम जनजीवन को प्रभावित किया है वरन पूरे विश्व मे एक इमरजेंसी जैसा माहौल बना दिया है। आर्थिक मंदी से जूझते विश्व मे कोरोना के कारण गिरावट आई है। वैश्विक मार्केट पर इसका सीधा प्रभाव दिख रहा है।

इससे पूर्व भी कई बार विभिन्न आपदाओं के कारण विश्व आर्थिक मंदी से गुजरा है,कई बीमारियों के कारण विश्व के हालात पर भी असर पड़ा है। फिर इस बार अचानक इतना व्यापक रूप कैसे लिया वायरस ने। इसे इतनी व्यापकता के साथ फैलाने में कही ना कही एक महत्वपूर्ण रोल सोशल मीडिया ने भी निभाया है।

कोरोना वायरस कोविड 19 जिसकी पुष्टि चीन के वुहान शहर में सबसे पहले हुई और फिर अचानक से पुर चीन में इस वायरस के पेशेंट दिखाई देने लगे। चीन में अभी न्यू ईयर का माहौल होता है और ये वक़्त होता है जब चीन की अर्थव्यवस्था उछाल पर होती है। लेकिन इस वायरस ने लोगो को घर तक सीमित कर दिया व्यापार ठप्प हो गया। चीन में सबसे ज्यादा उपभोक्ता है जिसके कारण विश्व की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में चीन का योगदान भी है।साथ ही आयात के साथ निर्यात भी बंद हो गया। विधवा के कई देश कई चीजों के लिए चीन पर निर्भर है जिसमे मोबाईल से लेकर रोजमर्रा की चीजें भी है।

पहले से आर्थिक मंदी का असर विश्व के कई देशों पर दिख रहा था लेकिन अब तो अमेरिका जैसे देश पर भी ये संकट महसूस किया जा सकता है।

चीन के सामानों का उपभोक्ता मार्केट में पिछले 10 से 15 वर्षो में ज्यादा बड़ा है। हर छोटी बड़ी वस्तु को सस्ता करके लोगो मे एक तरह से उनकी लत ही लगा दी गई। चीन में शायद सबसे ज्यादा रिसर्च यही होती है कि किस तरह आम आदमी के बजट में हम नवीन वस्तुओं को लांच कर सके और ये कहना गलत नही होगा कि इसमें चीन सफल भी हुआ है।

लेकिन आज जब चीन मार्केट बंद है तो स्थानीय स्तर पर वही वस्तुए अधिक या दुगुने दाम में भी बिक रही है। ऐसे माहौल में व्यक्तिगत रूप से भी मंदी बढ़ेगी,जो लोग इस बीमारी के कारण शाकाहार की ओर बढ़ रहे है और घर के खाने को ज्यादा महत्व दे रहे है उसका असर होटल व्यवसाय ओर किराना स्टोर पर दिख रहा है।

हैंड वाश ओर सेनिटाइजर जिनके दाम पिछले कुछ दिनों में जिस तरह बड़े है क्या आम व्यक्ति की पहुंच में है एक व्यक्ति जो सड़क पर अपना ठेला लगा कर परिवार का पालन करता है ये सब उसकी पहुँच से बाहर है,उसका व्यवसाय तो लगभग बंद ही हो गया है।

सरकार को इस समय इस तबके विशेष के लिए भी सोचना आवश्यक है जिनके लिए 2 जून की रोटी मुश्किल है वो कोरोना से बच कर भुखमरी की गिरफ्त में ना पहुच जाए।

सोशल मीडिया पर कोरोना से बचाव के जितने मेसेज आ रहे है उनकी सत्यता संदिग्ध है। फिर वो कोई भी मेसेज क्यो ना हो यहाँ किसी खाने की चीज का या कुछ और करने का लिख कर हम उस मेसेज को आगे नही बढ़ाना चाहते।

लेकिन जब तक उनकी सत्यता सिद्ध ना हो हम ऐसे बिना प्रमाण वाले निम हकीम से दूरी ही रखे। जिस तरह गाड़ी के पीछे लिखा होता है कीप डिस्टेंस दूरी बनाए रखे बस इसी लाइन को अपने जीवन मे अपना ले और शारीरिक रूप से दूरी बनाए रखे। हाथ मिलाने की बजाय नमस्ते कहे हाथ पैरों को अच्छे धोए किसी से बात करते समय मुह पर मास्क या कपड़ा रखे।घर से बाहर जाते समय मास्क का उपयोग करे ये कोरोना के साथ प्रदूषित हवा से भी बचाएगा। सर्दी खांसी सांस फूलना बुखार आना चाहे मौसमी ही क्यो ना हो डॉ से जल्द से जल्द सम्पर्क करें।

क्योकि बचाव ही सुरक्षा है। प्रतिदिन प्रातः उठते ही ओर रात को सोने से पूर्व अपने सकारात्मक प्रार्थना अवश्य करे कि आप स्वस्थ है आपकी रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति अच्छी है।आपका मन शांत है,आपके भीतर की ऊर्जा आपके मनोबल को मजबूत कर रही है और आप खुश है।

किसी भी प्रकार के डर को खुद पर हावी ना होने दे व्यस्त रहे जिससे फालतू की बातों से दूर रह सके,ओर सिर्फ सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी की बातों पर ध्यान दे।सोशल मीडिया पर कोई मेसेज आये जीसमे किसी भी इलाज की जनकारी हो तो उसे फॉरवर्ड करने से पहले देख ले कि वो सम्बंधित संस्था के लेटर पेड़ पर है या नही।अपवाहों को फैलने से रोकना भी कोरोना को रोकने के लिए एक सफल प्रयास ही होगा।

देश जिस विकट हालातो का सामना कर रहा है उस समय सब एकजुटता से एकसाथ खड़े रहे।

लेखिका प्रबुद्ध मोटिवेशनल स्पीकर, विचारक होने के साथ साथ JTN मुम्बई की प्रतिनिधि भी है।

गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020

स्वाध्याय परम तप है

चूना और बाल्टी

गुरु शिष्यों को अपने प्रवचन में स्वाध्याय का महत्व बता रहे थे।

गुरु ने बताया कि हर प्रकार के तप से कर्मों की निर्जरा होती है और उनमें से स्वाध्याय भी एक तप है।
शिष्य ने पूछा - गुरु जी,  वह कैसे?

हमें तो कल का पढ़ा हुआ आज भी याद नहीं रहता और आज का सुना हुआ प्रवचन के पंडाल से निकलते ही भूल जाता है। फिर हमारे कर्म कैसे कटेंगे? 

"चाहे याद रहे या न रहे,  बस! सुनते रहो।"

ऐसा करो अंदर एक बाल्टी रखी है। वह लेकर आओ।

शिष्य बाल्टी लेकर आया तो सबने देखा कि बाल्टी में कई वर्ष पहले से चूना घोलते रहने के कारण वह चूना उसमें बुरी तरह चिपका हुआ था।
यहां तक कि उसने लोहे की बाल्टी को भी खाना शुरू कर दिया था।

उस बाल्टी में छेद होने लगे थे,  जो अभी तक चूने से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

गुरु ने कहा कि इस बाल्टी में साफ पानी डालो।

शिष्य ने पानी डाला तो चूना घुलने लगा और पानी छेदों में से बाहर निकलने लगा।
होते - होते सारा पानी निकल गया।

गुरु ने कहा कि और पानी डालो।
शिष्य ने और पानी डाला लेकिन जैसे प्रवचन की बातें एक कान से सुनते ही दूसरे कान से निकल जाती हैं,  वैसे ही पानी की एक बूँद भी उसमें नहीं टिकी।

गुरु ने कहा - और पानी डालो।
शिष्य ने कहा भी कि पानी डालने के क्या होगा?  टिकता तो है नहीं।

पर वह भी गुरु का आज्ञाकारी शिष्य था। गुरु ने 25 बाल्टी पानी उसमें डलवा दिया।

अब गुरु ने पूछा कि क्या तुम्हें कोई बदलाव दिखाई देता है इसमें? 

शिष्य ने ध्यान से देखा और कहा कि  गुरु जी,  इसमें बाल्टी में पानी भले ही न टिका हो, पर बाल्टी साफ हो गई है और चूना इसे छोड़कर पानी के साथ बह चुका है।
अब बाल्टी बिल्कुल साफ दिखाई दे रही है।
इसके छिद्र भी दिखाई दे रहे हैं जो पहले चूने के कारण दिखाई नहीं दे रहे थे।

बस! यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्रवचन की बातें भले ही तुम्हारे मन में नहीं टिके,  बार-बार सुनने से मन का मैल तो धुल ही जाएगा और तुम्हें अपने अवगुण दिखाई देने लगेंगे।

अभी तक तो तुम उन दोषों को छिपाए बैठे थे। अब तुम्हें अहसास हो जाएगा कि उनको दूर किए बिना बाल्टी में पानी टिकने वाला नहीं है और तुम गुणों को धारण करने की प्रक्रिया में लग जाओगे।

इसीलिए  निरंतर स्वाध्याय करो। एक दिन यही तप तुम्हें मोक्ष- मार्ग पर लाकर खड़ा कर देगा।

साभार : व्हाट्सएप्प ग्रुप से श्री विकास धाकड़ द्वारा प्राप्त

बुधवार, फ़रवरी 05, 2020

इचलकरंजी में आचार्य श्री महाश्रमण जी के पदार्पण से पूर्व जारी आमंत्रण वीडियो


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महातपस्वी, शांतिदूत
अहिंसा यात्रा प्रणेता
परमपूज्य
आचार्य श्री महाश्रमणजी
का अपनी धवल सेना सह 
वस्त्रनगरी इचलकरंजी
में
त्रिदिवसीय पावन प्रवास
29 फरवरी, 1,2 मार्च 2020
● आमंत्रण वीडियो ●
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"Yug Purush Mahapragya"

अमृतवाणी निर्मित "युगपुरुष महाप्रज्ञ"
डॉक्यूमेंट्री यूटयूब पर तेरापंथ चैनल में अपलोड कर दी गई है
"Yug Purush Mahapragya"
इस माध्यम से आप तक पहुँचाने का प्रयास अमृतवाणी संस्था कर रही है कृपया आप देखें, डाउनलोड करे व जन जन तक पहुँचाएँ ।

शनिवार, जनवरी 04, 2020

गूंजेगा विश्वशांति व एकता का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय जैन सामायिक फेस्टिवल ५ जनवरी को

कोलकाता, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आगामी 5 जनवरी 2020 को नववर्ष के प्रथम रविवार को सम्पूर्ण विश्व मे सकल जैन समाज द्वारा विश्व मैत्री और एकता का संदेश लिए हो रहे जैन सामायिक फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है।
विश्व में अहिंसा एवं शांति के सिद्धांतों पर चलकर विश्व शांति हेतु प्रेरणा देने वाले जैन धर्म में समायिक साधना का अनूठा महत्व है । जैन धर्म के सिद्धांतों अनुसार 48 मिनट तक मन-वचन-काया से किसी की प्रकार की पापकारी प्रवृति का त्यागकर अपनी आत्मा में रमण करना ही समायिक करना है ।
विश्वशांति एवं एकता हेतु परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन प्रेरणा से जैन तेरापंथ धर्मसंघ के युवाओं का संगठन अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा अनूठे रूप में जैन समायिक फेस्टिवल का आयोजन पूरे देशभर में और विश्व के अनेक प्रमुख शहरों में नववर्ष 2020 के प्रथम रविवार, दिनांक 5 जनवरी को किया जाएगा।
इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए अभातेयुप राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संदीप कोठारी ने कहां कि पूरे भारतवर्ष सहित पूरे विश्व में अनेंको स्थानों पर जैन समायिक फेस्टिवल के माध्यम जैन धर्म के सभी संप्रदायों के श्रावक समाज साथ मिलकर एक समायिक की आराधना कर जैन एकता का परिचय देंगे । इस कार्यक्रम हेतु जैन धर्म के महान आचार्य श्री महाश्रमण जी, आचार्य डॉ. शिवमुनि जी म.सा, आचार्य विजय श्री अभयदेव सुरी जी म.सा, आचार्य श्री ललितप्रभ सागर जी म.सा, श्री सौभाग्य मुनि जी म.सा, मुनिप्रवर श्री जयकीर्ति म.सा आदि अनेकों आचार्यों - मुनि प्रवर, साधु साध्वी जी भगवंतों ने जैन समायिक फेस्टिवल कार्यक्रम हेतु आशीर्वाद प्रदान किया है और इस प्रयास की अनुमोदना की है ।
जैन समाज के गौरव एवं जैन समाज से एकमात्र मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी ने जैन सामायिक फेस्टिवल कार्यक्रम को समर्थन दिया है ।
इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के साथ श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेस, अखिल भारतीय खतरगच्छ युवा परिषद, अखिल भारतीय श्री प्राज्ञ जैन युवा मंडल, भारतीय जैन संगठना आदि विभिन्न संगठनों ने सहभागिता दर्ज करने हेतु समर्थन दिया है । जैन एकता में मील का पत्थर सिद्ध होनेवाले कार्यक्रम को पूरे देशभर में आयोजन करवाने हेतु अनेकों संघीय संस्थाएं सज्ज बन चुकी है ।
अभातेयुप के महामंत्री श्री मनीष दफ्तरी ने इस कार्यक्रम की आयोजना हेतु बताया कि अभातेयुप की 346 शाखाओं में इस कार्यक्रम को लेकर अपूर्व उत्साह है और जैन समाज के सभी युवा इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे यही विश्वास है ।
अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज के सहसंपादक पंकज दुधोडिया ने बताया कि वर्ष के प्रथम रविवार 5 जनवरी 2020 को देश भर में वृहद रूप से आयोजित जैन सामायिक फेस्टिवल को लेकर सकल जैन समाज में उत्साह देखने को मिल रहा है। यह आयोजन विश्व मैत्री और जैन एकता का प्रतीक बनेगा।