रविवार, दिसंबर 29, 2019

टोडरमल जैन की धार्मिक सहिष्णुता और उदारता की प्रेरणास्प्रद कहानी - डॉ अनेकांत कुमार जैन

2016 में महावीर जयंती के दिन मुझे पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरु ग्रन्थ साहिब वर्ल्ड यूनिवर्सिटी में एक अन्ताराष्ट्रीय सम्मेलन में जैनदर्शन पर व्याख्यान देने हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ| फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला का मुख्यालय है। यह जिला सिक्‍खों की श्रद्धा और विश्‍वास का प्रतीक है। 

पटियाला के उत्‍तर में स्थित यह स्‍थान ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। सिक्‍खों के लिए इसका महत्‍व इस लिहाज से भी ज्‍यादा है कि यहीं पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को सरहिंद के तत्‍कालीन फौजदार वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। उनका शहीदी दिवस आज भी यहां लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरुद्वारों का शहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां पर अनेक गुरुद्वारे हैं जिनमें से गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का विशेष स्‍थान है। 

वहां के जागरूक शोधअध्येताओं ने मुझसे जैनदर्शन पर बहुत अभिरुचि प्रगट की ,वे मुझे वहां के उस प्रसिद्द गुरूद्वारे ले गए जहाँ गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों पुत्रों को वहां के नवाब ने दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था | 

इसी सन्दर्भ में उन्होंने वहां के दीवान टोडरमल जैन की उदार दृष्टि की जो कथा सुनाई वह मुझे पता ही नहीं थी , उन्होंने बताया कि  -

तीन सौ वर्ष पहले सरहिंद में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों को दीवार में चिनवाने के बाद उनके व दादी मां के पार्थिव शरीरों को अंतिम संस्कार के लिए नवाब जगह नहीं दे रहा था , उसने शर्त रखी कि अंतिम संस्कार के लिए जितनी जगह चाहिए उतनी जगह स्वर्ण मुहरें बिछा दो , वहां के सुप्रसिद्ध नगर सेठ टोडरमल जैन ने यह जिम्मेदारी  अपने ऊपर ले ली, और स्वर्ण मुद्राएँ बिछा दीं , नवाब का लालच बढ़ गया और फिर उसने कहा कि स्वर्ण मुद्राएँ खड़ी करके बिछाओ लिटा का नहीं, टोडरमल जी ने फिर भी शर्त मान ली और खड़ी स्वर्ण मोहरें बिछा दीं और अंतिम संस्कार हेतु जगह ली |

 नवाब से स्वर्ण मोहरें बिछाकर भूमि प्राप्त करने वाले दीवान टोडरमल जैन का नाम भी तीर्थ भूमि सरहिंद से जुड़ा है। सामाना में जन्मे व माता चक्रेश्वरी देवी के उपासक टोडरमल जैन जमीनी मामलों के जानकार होने के कारण सरहिंद के नवाब वजीर खां के दरबार में दीवान के पद पर असीन हुए। उन्होंने नवाब से सोने की मोहरों के बदले भूमि लेकर उन तीनों महान विभूतियों का स्वयं अंतिम संस्कार किया। उसी स्थान पर फतेहगढ़ साहिब में गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप बना हुआ है जिसके बेसमैंट का नाम सिख समाज ने स्मृति स्वरूप दीवान *टोडरमल जैन हाल* रखा है।
उसके बाद वे वहां स्थित जैन मंदिर ले गए जहाँ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी की अधिष्ठात्री चक्रेश्वरी देवी का एकमात्र ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर, सरहिंद शहर के चंडीगढ़ रोड पर स्थित है। यहां 12वीं सदी से लगातार माता जी के श्रद्धालु विशेषत: खंडेलवाल बंधु अपनी कुलदेवी के रूप में माता जी की पूजा-अर्चना के लिए आते रहे हैं।पास में ही तीर्थंकर आदिनाथ का एक सुन्दर श्वेताम्बर मंदिर भी है|

उन्होंने बताया कि12वीं शताब्दी में मारवाड़ में भीषण अकाल के कारण पंजाब की ओर लोगों ने पलायन किया। जैन खंडेलवाल परिवारों का एक जत्था कांगड़ा में विराजित भगवान ऋषभ देव के दर्शनों के लिए बढ़ रहा था जो सरहिंद में एक रात्रि के लिए रुका। अगली सुबह अधिष्ठात्री कुलदेवी की पूजन शिला वाली बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी। दूसरी रात्रि भी वहीं रुकना पड़ा, तब आकाशवाणी सुनाई दी-मेरा स्थान आ गया है। मेरा भवन यहीं बनवाया जाए। भक्तों ने वहीं पर मंदिर बनवाया और स्वयं भी सरहिंद एवं पंजाब के अन्य शहरों में बस गए परन्तु सरहिंद में माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान पर निरंतर आते रहे।

मैंने वहां देखा कि तीर्थ परिसर में विशाल धर्मशाला, विश्राम घर, खुले लॉन, भोजनशाला आदि की सुचारू व्यवस्था है। अपने गौरवपूर्ण व स्वर्णिम इतिहास तथा श्रद्धा का व्यापक आधार होने के कारण माता चक्रेश्वरी देवी के इस स्थान को अब अखिल भारतीय जैन तीर्थ होने का भी गौरव प्राप्त है।वहीँ दीवार पर बने टोडरमल जी के दो चित्र भी इस लेख के साथ संलग्न हैं |

इस पूरी कहानी से यह पता चलता है कि जैन समाज अपने से अन्य धर्म और धार्मिकों के प्रति कितनी उदार दृष्टि रखता आया है | जैनों द्वारा इस प्रकार की धार्मिक सहिष्णुता के हजारों किस्से हैं | आज सिर्फ आवश्यकता है उनके इन सार्वजनीन सार्वभौमिक कार्यों को उजागर करने की ,क्यों कि उदारता की एक परिभाषा अपने दान को उजागर नहीं करने की भी रही है ,शायद इसीलिए भी इस प्रकार की नज़ीर दुनिया के सामने नहीं आ पातीं । 

आज साम्प्रदायिक द्वेष के काँटों भरे पेड़ों को ज्यादा सींचने के दुर्भाग्यपूर्ण माहौल के बीच इस प्रकार के उदाहरणों को प्रेरणा एवं सामाजिक सौहार्द के लिए सामने रखना ज्यादा आवश्यक हो गया है । 

आप अपने विचार मुझे email भी कर सकते हैं ।

डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली 
drakjain2016@gmail.com

शनिवार, अक्टूबर 05, 2019

Save Drive Save Life व नशामुक्ति जागरूकता अभियान

कोलकाता का प्रमुख अखबार सन्मार्ग व नवगठित संगठन उत्कृष्ट ने पश्चिम बंगाल का प्रमुख त्यौहार दुर्गा पूजा के अवसर पर देशवासियों को जागरूक करने के उद्देश्य से व्यापक प्रचार प्रसार किया।
बंगाल की दुर्गा पूजा विश्व प्रसिद्ध है। लाखों-लाखों लोग इसे निहारने हेतु बंगाल की धरा विशेष कर कोलकाता हावड़ा आते है। सन्मार्ग व उत्कृष्ट ने इस बार हावड़ा सिटी पुलिस के साथ मिलकर हावड़ा क्षेत्र में हावड़ा के विशेष पूजा पंडालों में व हावड़ा के मुख्य मार्गों में लोगों को नशे से होने वाले दुष्परिणाम व नशे से दूर रहने व Save Drive Save Life मुहिम के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से सैकड़ों बैनर व हार्डिंग लगाये गए।
उल्लेखनीय है कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा, अहिंसा यात्रा कर लोगों को नशा मुक्ति का प्रेरणा दे रहे है। आप लाखों लोगों को नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला चुके है। नशामुक्ति के लिए आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा दिये जा रहें प्रेरणा से ही प्रेरित होकर उत्कृष्ट ने इस बार नशामुक्ति के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इस आयाम को बंगाल के विशेष अवसर पर संपादित करने का निर्णय किया। जिसमें उत्कृष्ट को महानगर के विख्यात हिन्दी अखबार सन्मार्ग व हावड़ा सिटी पुलिस का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। उत्कृष्ट के श्री अमित तातेड़ सहित उत्कृष्ट के साथियों ने इस हेतु विशेष श्रम किया।

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

HOWDY MODI कार्यक्रम में समणी वृन्द को विशेष रूप से किया गया आमंत्रित

तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी पुण्यप्रज्ञा जी और समणी जिज्ञासा प्रज्ञा जी जिनका इस बार ह्यूस्टन (अमेरिका) में प्रवास है। उन्हें भी HOWDY MODI कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
सम्पूर्ण विश्व की नजर जिस कार्यक्रम पर टिकी हुई थी। जिस कार्यक्रम का अलग आकर्षण था। ऐसे प्रवासी भारतीयों की ओर से समायोजित कार्यक्रम में जैन धर्म के प्रतिनिधि के रुप में आपको आमंत्रित किया गया था वहाँ किसी साधर्मिक बंधु द्वारा लिया गया छायाचित्र।

सोमवार, सितंबर 23, 2019

आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए : आचार्य महाश्रमण

 समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम

23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

साभार : महासभा कैम्प ऑफिस, फ़ोटो साभार : बबलू भाई

आत्मा को हल्का बनाएं : आचार्य महाश्रमण





समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम



23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

बुधवार, सितंबर 18, 2019

Contact and Connection

एक साधु का न्यूयार्क में बडे पत्रकार इंटरव्यू ले रहा थे। 

पत्रकार-
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में 
संपर्क (Contact) और
 संजोग (Connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दिया।

"आप न्यूयॉर्क से हैं?"

पत्रकार: "Yeah..."

सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"

पत्रकार को लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहे है क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं सब शादीशुदा हैं "

साधू ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा:
 "आप अपने पिता से बात करते हैं?"

पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...

साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से last कब बात की?"

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले".

साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले एक परिवार की तरह ?"

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?  
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस पर 2 साल पहले".

साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब साथ में रहे ?"

पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला :  "3 दिन..."

साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा... 

साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ? 
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ ?  
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है ?

पत्रकार की आंखों से आंसू छलकने लगे।

साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, परेशान या दुखी मत होना। 
मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुंचाई हो,
 लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । "संपर्क और संजोग" 
(Contact and Connection)

आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क (Contact) में हैं
 ‌पर आपका उनसे कोई 'Connection'  (जुड़ाव ) नही है।
 You are not connected to him.
आप अपने father से संपर्क में हैं जुड़े नही है 

Connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है।
 heart से heart होता है। 
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना 

आप अपने  पिता, भाई और बहनों  के संपर्क ('Contact') में हैं लेकिन आपका आपस मे कोई' जुड़ाव '(Connection) नहीं है".

पत्रकार ने आंखें पोंछी और बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".

वो तब का न्यूयार्क था पर आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है।
 At home and society में सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं पर कोई connection नही।
कोई विचार-विमर्श  नहीं।
हर आदमी अपनी नकली दुनिया में खोया हुआ है।

 हमें केवल "संपर्क" नहीं बनाए रखना चाहिए अपितु "कनेक्टेड" भी रहना चाहिये। हमें हमारे सभी प्रियजनों की देखभाल करना, उनके सुख-दुख को साझा करना और साथ में समय व्यतीत करना चाहिए।

वो साधु और कोई नहीं " स्वामी विवेकानंद" थे।

साभार : नीलेश भाई द्वारा प्राप्त Whatsapp

मंगलवार, सितंबर 17, 2019

बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी मिलीं श्रीमती जशोदाबेन से

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कोलकाता एअरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परित्यक्ता धर्मपत्नी जशोदाबेन से भेंट कर कुछ देर बातें कीं। इसके बाद ममता दिल्ली रवाना हो गयीं, जहां कल उन्हें प्रधानमंत्री से भेंट करनी है। मोदी के जन्मदिन पर जशोदाबेन बंगाल में आसनसोल के कल्याणेश्वरी मंदिर में पूजा करने आई थीं। उनके आने की खबर किसी को नहीं थीं। जसोदाबेन के साथ उनके भाई और भाभी थीं। उन्होंने मंदिर के सामने राजेश प्रसाद की दुकान से 201 रुपए का प्रसाद खरीदा, उसके बाद मंदिर में पूजा कराने के एवज में पुरोहित बिल्टू मुखर्जी और शुभंकर देवघरिया को 101 रुपए की दक्षिणा प्रदान की।
साभार : राष्ट्रीय महानगर ग्रुप के प्रमुख श्री प्रकाश चंडालिया जी

सोमवार, सितंबर 16, 2019

व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए - आचार्य महाश्रमण


शांति पाने के लिए करे साधना – आचार्य महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 44वें वार्षिक अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मानित
16-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, बेंगलुरु के आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में चातुर्मास कालीन प्रवास कर रहे तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जनमेदिनी को  संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि हमारे कर्मों में मोह कर्म सेनापति के रूप में है अन्य कर्म इसके अंतर्गत रहते हैं। जब सेनापति के रूप में  इसका क्षय हो जाता है तो अन्य कर्म अपने आप क्षीण हो जाते हैं और केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। सामान्य आदमी को संन्यासी जीवन नीरस लगता है परंतु साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ही इसकी सरसता का ज्ञान होता है। जो सुख अध्यात्म के क्षेत्र में है वह भौतिक जीवन में नहीं मिल सकता है। भौतिकता से बाहरी सुख मिल जाता है परंतु आंतरिक सुख अध्यात्म मय जीवन में ही आता है अर्थात भौतिक साधनों से सुख मिलता है और साधना से शांति का अनुभव होता है। हमारे जीवन में शरीर दिखाई देता है परंतु चेतना दिखाई नहीं देती है। हम शरीर को भौतिक साधनों से स्वच्छ कर सकते हैं परंतु चेतना अगर मैली हो जाए तो इसे स्वच्छ रखने के लिए आध्यात्मिकता और नैतिकता का आलंबन लेकर स्वच्छ किया जा सकता है। आचार्यवर ने आगे कहा कि व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्य करें उसे साधनों की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में ईमानदारी का प्रयास करें और जीवन में गुस्से का परिहार करना चाहिए। व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए।
*आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार के विषय में आचार्यश्री ने कहा -  कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके सम्मान से पुरस्कार भी सम्मानित होता है और श्रीमती सुमित्रा महाजन के सम्मान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आचार्यप्रवर ने आचार्य तुलसी को कर्तृत्वशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने देश भर की यात्रा के माध्यम से नारी जाति एवं अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज का उत्थान किया। इस अवसर पर महिला मंडल का सर्वोच्च पुरस्कार आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 'लोकसभा' की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को प्रदान किया गया।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि आचार्य तुलसी ने महिलाओं के जीवन में पर्दा प्रथा, बाल विवाह और नारी उन्मूलन के लिए नया मोड़ कार्यक्रम से महिलाओं का कल्याण किया। आज महिलाएं केवल घरेलू बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रही है और इसका जीवंत उदाहरण महिला मंडल एवं स्वयं श्रीमती सुमित्रा महाजन है जो एक महिला है और इन्होंने देशभर से चुनकर आए प्रतिनिधियों को लोकसभा में एक सूत्र में बांधे रखा। अभातेमम  की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती  सायर बेंगाणी  एवं अभातेमम  अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा अपने विचार रखें।
पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ दोनों का संगम आचार्य महाश्रमण में देखने को मिलता है। उन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की तुलना एक माता से करते हुए अपने आप को इस पुरस्कार से सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस किया। उपस्थित महिला शक्ति को आह्वान करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को अपनी शक्ति को पहचानना जरूरी है। कार्यक्रम में पुरस्कार प्रायोजक श्री देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री बीसी जैन भलावत, श्री केसी जैन का भी सम्मान किया गया। महिला मंडल द्वारा हैप्पी एंड हारमोनियस डॉक्यूमेंट्री फिल्म, देशभर से प्राप्त आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी समारोह पर सौ कविताओं की पुस्तक "स्पंदन" का लोकार्पण भी हुआ। पुरस्कार सत्र का संचालन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया।

साभार : महासभा कैम्प आफिस

यह भी नहीं रहने वाला


एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"

आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"

कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"

यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"

साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"

साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"

विचार करे 🙏

साभार : Whatsapp

रविवार, सितंबर 15, 2019

मोह जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है - आचार्य महाश्रमण

राजनीति के क्षेत्र में शुचिता की शांतिदूत ने प्रदान की प्रेरणा
भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दर्शन कर पाया आशीष

15-09-2019  रविवार , कुम्बलगोडु, कर्नाटक, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण का बेंगलुरु की धरा पर दक्षिण भारत का द्वितीय चातुर्मास प्रवर्धमान है।  पर्युषण महापर्व के बाद से अनेक गांवों व शहरों का श्रावक समाज एक के बाद एक संघ रूप में  गुरु दर्शनार्थ पहुंच रहा हैं।
रविवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य महाश्रमण जी ने कहा - जब व्यक्ति के मन में अपराध की चेतना उभर जाती है तो वह हिंसा,  चोरी आदि दुष्कृत्य करने लग जाता है।   ऐसी विकृत चेतना तब पैदा होती है जब ज्ञान और दर्शन का अभाव होता है।  लोभ और आवेश हिंसा के प्रमुख कारण है और मोह  जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है। 
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन में अगर इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो मोह कमजोर हो जाएगा। त्याग , तपस्या और जप मोह  को निष्फल करने के  श्रेष्ठ साधन है। 

बेंगलुरु में अब तक 40 मासखमण
चातुर्मास काल में बेंगलुरु में  हो रही तपस्याओं के संदर्भ में  महातपस्वी ने कहा -  तपस्या करना कोई  आसान काम नहीं है।  शौर्य शक्ति का क्षयोपशम  होने से ही लंबी तपस्या हो सकती है।  बेंगलुरु में 40 मासखमण होना कोई सामान्य बात नहीं है।  लोग तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं यह अपने आप में अनूठा है। 

राजनीति के क्षेत्र में सुचिता की प्रेरणा देते हुए अनुव्रत अनुशास्ता  ने कहा राजनीति सेवा का माध्यम है। राजनीति में शुद्धता और नैतिकता बनी रहे तो  समाज और देश का अच्छा विकास हो सकता है। 

भाजपा महामंत्री पहुंचे आशीर्वाद लेने
प्रवचन के दौरान भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आचार्य श्री से सन 2021 में इंदौर में  जन्मोत्सव एवं पटोत्सव ससमारोह मनाने की अर्ज की  एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर साध्वी  जिनप्रभा जी की पुस्तक ' जैन विद्या का प्रवेश द्वार :  पच्चीस बोल'  का विमोचन हुआ। 

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का राष्ट्रीय अधिवेशन
आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का 44वां राष्ट्रीय अधिवेशन के शुभारंभ हुआ जो 18 सितंबर तक चलेगा।  अमृतवाणी द्वारा ' महाप्राण महाप्रज्ञ' सीडी का लोकार्पण हुआ जिसमें गायक मनीष पगारिया ने स्वर दिया है। मंच का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे

मंगलवार, अगस्त 27, 2019

आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है - आचार्य महाश्रमण

  • महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज का आध्यात्मिक आगाज
  • प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • महावीर के प्रतिनिधि ने आरम्भ किया ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग
  • महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन
  • मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान कर श्रद्धालुओं को किया मंत्रमुग्ध
  • तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर किया स्मरण
27.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का पर्वाधिराज पर्युषण का आध्यात्मिक आगाज मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिन ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे से पूर्व ही पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बन चुका था। हालांकि इस महापर्व में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास के क्षेत्र को पंडाल का रूप प्रदान किया था। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से मुख्य प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए तो आचार्यश्री के दांयीं ओर संत समाज की उपस्थिति तो बांयीं ओर साध्वीवृंद की उपस्थिति। सामने की ओर हजारों-हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति के बीच आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को पर्युषण पर्व के महत्त्व के बारे में अवगति प्रदान की। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित था। ‘खाद्य संयम दिवस’ से संबंधित गीत का संगान साध्वी ज्योतियशाजी द्वारा किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को खाद्य संयम के संदर्भ में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व की यात्रा मानव को आत्मा तक पहुंचाने वाली है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण करना होता है। शरीर को धारण करने के लिए शरीर की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करनी होती है। शरीर के लिए आदमी को भोजन, वस्त्र आदि-आदि की आवश्यकता होती है। जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। विवेक के बिना किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जिह्वा को जंक फूड और फास्ट फूड के स्वाद से निकालकर उसके गले में अस्वाद की घंटी को बांधने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा भोजन को हितकर, मितकर और सात्विक होना चाहिए। आचार्यश्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर आदमी को भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस के अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को श्रीमज्जयाचार्यजी के जीवन के विषय में अवगति प्रदान की।
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ एक सुन्दर विषय है। इस महापर्व पर भगवान महावीर की इस यात्रा को विस्तार से जानने के लिए आत्मवाद को भी जानने की आवश्यकता है। दुनिया में दो तत्त्व हैं-जड़ और चेतन। इन दोनों के अलावा जीवन में कुछ भी नहीं। जिसमें उपयोग हो, व्यापार हो चेतन और जिसमें ये नहीं वह जड़ होता है। आत्मा अनादि है। आत्मा का विनाश नहीं हो सकता। आत्मा शाश्वत अस्तित्व होता है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है।
अध्यात्म जगत में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है। ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में विवेचित किया गया है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर थे। हम उनके शासनकाल में साधना कर रहे हैं। वे परम सात्विक पुरुष थे। उनका यह जीवन पूर्वजन्मों की साधना पर टिका हुआ है। उनके पूर्व भव को जानने से कर्मवाद की पुष्टि भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन भी तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। वे तेरापंथ की दूसरी शताब्दी के सूत्रधार थे। वे अध्यात्मवेत्ता, तत्त्ववेत्ता और विधिवेत्ता थे। उनका आज के दिन हम श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, वन्दन करते हैं। आचार्यश्री ने ‘खाद्य संयम दिवस’ के संदर्भ में भी श्रद्धालुओं को खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। मुख्य प्रवचन से पूर्व मुनि रजनीशकुमारजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया तो मुनि अनुशासनकुमारजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया।
अंत में आचार्यश्री ने 18 जनवरी 2020 को उत्तरी कर्नाटक में स्थित गदग में दीक्षा समारोह करने की घोषणा की। इसमें मुमुक्षु रौनक बाफना, श्रुति चोपड़ा व सोनम पालगोता को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की तो पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। इसके उपरान्त अनेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : चंदन पांडे

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

हिंसा, हत्या, चोरी, लूट, छल-कपट, झूठ यह सभी अधर्म हैं - आचार्य महाश्रमण

‘सम्बोधि’ प्रवचनमाला के अंतर्गत आचार्यश्री ने की धर्म और अधर्म की व्याख्या
सदैव धर्म में रत रहने और समस्या के मूल को उन्मूलित करने का आचार्यश्री ने दिया ज्ञान
विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री दिनेशचंद्रजी ने आचार्यश्री के दर्शन कर पाया आशीर्वाद

22.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में बेंगलुरु के कुम्बलगोडु में स्थित आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में दक्षिण भारत का दूसरा चतुर्मास कर रहे हैं। चतुर्मासकाल की व्यापक प्रभावना का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं, उनकी मंगलवाणी का श्रवण करते हैं, आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गुरुवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शनार्थ विश्व हिन्दू परिषद के परामर्शक व मार्गदर्शक श्री दिनेशचंद्रजी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री राघवल्लुजी उपस्थित हुए। आचार्यश्री के दर्शन के उपरान्त मंगल प्रवचन श्रवण के लिए ‘महाश्रमण समवसरण’ में भी पहुंचे। आचार्यश्री ने नित्य की भांति उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अधर्म क्या होता है, अधर्म से क्या फल मिलता है, इसे जानने के लिए आदमी को पहले धर्म को जानने का प्रयास करना चाहिए। जिससे आत्मा की शुद्धि हो अथवा आत्मशुद्धि के साधन को धर्म कहा गया है। आदमी के जीवन में दो तत्त्वों की प्रधानता होती है-शरीर और आत्मा। शरीर तो प्रत्यक्ष है, किन्तु आत्मा परोक्ष तत्त्व है। इस दुनिया में दो प्रकार के पदार्थ बताए गए हैं-मूर्त और अमूर्त। मूर्त को आंखों से देखा जा सकता है, इसमें भी कुछ मूर्त इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें आंखों से देखा ही नहीं जा सकता, ऐसे में भला आदमी अमूर्त आत्मा को कैसे देख सकता है। आत्मा को आत्मा के द्वारा देखा जा सकता है। साधना के द्वारा आत्मा की अनुभूति की जा सकती है। आत्मा अमूर्त है। धर्म से आत्मा का शोधन होता है। अध्यात्म की साधना और धर्म के द्वारा आत्मा का शुद्धिकरण किया जाता है। जिस प्रकार मिट्टी से मिले स्वर्ण को प्रक्रिया के माध्यम से शुद्ध किया जाता है, उसी प्रकार अधर्म के कारण मलीन हुई आत्मा को धर्म और अध्यात्म की प्रक्रिया से शुद्ध किया जाता है। ‘सम्बोधि’ में बताया गया कि अधर्म के कारण नए-नए असत् तत्त्वों का विकास होता है। हिंसा, हत्या, चोरी, लूट, छल-कपट, झूठ यह सभी अधर्म हैं। इनके माध्यम से अशुभ कर्म आत्मा से बंधते हैं तो आत्मा मलीन हो जाती है। अधर्म बुरा फल प्रदान करने वाला होता है। आदमी को अधर्म से बचने के लिए उसके मूल पर ध्यान देना चाहिए। अधर्म के मूल में राग और द्वेष होते हैं। आदमी को मूल पर ध्यान देकर उसे उन्मूलित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन से अधर्म का सर्वनाश हो सके। इसलिए आदमी को धर्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित गणमान्यों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान करते हुए पावन पथदर्शन प्रदान किया। अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी का वक्तव्य हुआ।
इसके उपरान्त विश्व हिन्दू परिषद के परामर्शक व संरक्षक श्री दिनेशचंद्रजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री के प्रवचनों से हमें जीवन जीने की राह प्राप्त होती है। आचार्यश्री के आशीर्वाद रूपी ऊर्जा प्राप्त कर मानों जीवन धन्य हो जाता है। बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीश्री सुषमाकुमारीजी ने तपस्या के संदर्भ में श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।

रविवार, अगस्त 04, 2019

दोस्ती मेरी नजर में.......


मित्रता मात्र एक शब्द ही नहीं है,
ये विश्वास है, जीने का श्वास है।
दिल कहता है ये इतना अटूट है,
ये दोस्ती ही दोस्तो की जान है।।
ये रिश्ता इतना गजब रिश्ता है,
जो किसी का मोहताज नही है।
इसमें चुम्बक जैसा आकर्षण है,
"पंकज" ये दिल कुछ कहता है।।
बंधुत्व दिवस पर सभी दोस्तों को ढेरों बधाई। दिल तो एक - एक दोस्त को नाम लेकर बधाई देना चाहता है। आज का दिन इतना विशेष है कि जिसे शब्दो से बंधना असंभव है पर इस रिश्ते को विश्वास के डोर से बंधा जा सकता है क्योकि इसकी नींव ही विश्वास है।
यह वह रिश्ता है जो किसी जाती, धर्म, सम्प्रदाय, रंग, रूप आदि का मोहताज नही। यह वह रिश्ता है जो हम जन्म के बाद से स्वयं बनाते है। कुछ अच्छे दोस्त बनते है तो कुछ खराब। मेरा मानना है कि जन्म के साथ कोई दोस्त बनते है तो वो माँ-बाप बनते है, फिर आगे चलकर स्कूल, कॉलेज, समाज, व्यापार आदि के माध्यम से संपर्क में आये लोग दोस्त बनते जाते है। विवाह उपरांत पति पत्नी दोस्त बन जाते है। कभी पिता पुत्र , कभी माँ बेटे, कभी पति पत्नी तो कभी अनजान पहचान वाले भी मित्र बन जाते है। सिर्फ इंसान ही क्यों पशु पक्षी भी दोस्त बन जातें है। आखिर ऐसा क्या कमाल है इस दोस्ती में हो हर कोई जुड़ता जाता है दोस्त बनता जाता है। यह चुम्बक सा आकर्षण आखिर क्या है जो सबको एक दूसरे के प्रति आकर्षित करता है। कुछ तो खास बात जरूर है इसमें तभी हम दोस्त बनाते है।
मुझे अर्हत वंदना की पंक्ति मित्ति में सव्व भुवेसु....... स्मृति में आता है तो समझ आता है कि सभी मेरे मित्र है कोई शत्रु नही है।
मुझे मेरे खास परिचित भाई चंदन पांडे जी की वो बात स्मृति में आ गई जो कुछ दिन पहले उन्होंने कही थी -
👉 मित्र एक शब्द नहीं बल्कि भावनाओं का वह महासागर है, जिसमें डुबने का भी अथाह आनंद है। सारे रिश्ते व्यक्ति को जीवन में पूर्व निर्धारित रूप में प्राप्त होते हैं, किन्तु मित्रता एक ऐसा रिश्ता है, जिसका निर्माण भावनाओं के सम्यक् मिलाप से उत्पन्न होता है। मित्रता तो वह होती है जो विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत दीवाल की तरह अडिग होती है। जिससे टकराकर जीवन में आने वाला भूचाल भी मुंह की खाकर लौटता है।
मित्रता भावनाओं का वह ज्वार है, जो शब्द की सीमा से परे है। मित्रता सम्पूर्ण समर्पण है एक-दूसरे के प्रति। मित्रता विश्वास की पराकाष्ठा है एक-दूसरे के प्रति।
👆उपरोक्त बात कितनी सटीक है वाकई में इस मित्र शब्द की गहराई इतनी गहरी है जो विश्वास के बिना समझ पाना असंभव है। विश्वास की हर स्थिति परिस्थिति से ऊपर है। मित्र के उदहारण में कृष्ण और सुदामा की मित्रता अपने आप मे मिशाल है जहाँ एक अमीर तो दूसरा दरिद्र पर दोनों का परस्पर स्नेह आपस मे एक दूजे के प्रति निश्चल विश्वास के धागे से बंधा हुआ था। यही तो है मित्रता जो किसी स्वार्थ का मोहताज नही होता जहा होता है तो सिर्फ विश्वास विश्वास और विश्वास।



शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2019

वीर जवानों को हमें सलामी देना है


संसद में बैठे नेताओ से मुझको कुछ कहना है
चुपी है क्यों बोलो सेना को कब तक मरना है।।

भारत माता के रक्षक चौकीदार हमारी सेना है
युद्ध भूमि में शाहिद हुए उनको नमन करना है।।

दे दो आदेश वीर जवानों को अब नही रुकना है
दिवंगत सपूतों का बदला लेकर तुमको आना है।।

बलिदान हुए वीर सैनानी के आगे सर झुकाना है
"पंकज" ऐसे वीर जवानों को हमें सलामी देना है।।