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गुरुवार, जून 16, 2022

सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त हो जीवनशैली: शांतिदूत आचार्य महाश्रमण


16.06.2022, गुरुवार, गंगाशहर, बीकानेर (राजस्थान), गंगाशहर में भले ही जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का चार दिवसीय प्रवास ही प्राप्त हुआ हो, लेकिन इन चार दिनों में बीकानेर की आम जनता से लेकर हर क्षेत्र के उच्च पदस्थ पदाधिकारियों, विद्वतजनों, लेखकों, न्यायाधीशों सहित देश की सीमा की सुरक्षा में जुटे जवानों को भी आचार्यश्री महाश्रमणजी से मानवीय मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हो गया। इसमें भी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का अद्वितीय श्रम दृष्टिगोचर हो रहा था। 


 बुधवार की रात लगभग नौ बजे प्रबुद्धजन सम्मेलन में बीकानेर क्षेत्र के संभागीय आयुक्त नीरज के. पवन, पुलिस महानिरीक्षक, जिला कलक्टर, न्यायाधीश, वाइस चांसलर, महाविद्यालयों के प्रोफेसर, वकील, साहित्यकार, चिकित्सक, वरिष्ठ पत्रकार, कला, संस्कृति तथा व्यापारिक वर्ग के वरिष्ठजनों ने आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर आचार्यश्री से पावन प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करने के साथ ही पावन आशीर्वाद भी प्राप्त किया। 


 वहीं दूसरी ओर गुरुवार को प्रातः लगभग साढ़े छह बजे ही बीएसएफ के 100 से अधिक जवान डीआईजी श्री पुष्पेन्द्र सिंह व सिविल एयरपोर्ट अधिकारी श्री अनिल शुक्ला के नेतृत्व में तथा मिडिया के लोग आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए समुपस्थित हुए। आचार्यश्री ने जवानों को पावन प्रेरणा प्रदान की और आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि कुमारश्रमणजी ने उन्हें ध्यान-योग के प्रयोग द्वारा अपने चित्त को शांत और एकाग्र बनाने की विधि बताई। 


 इसके कुछ ही समय बाद आचार्यश्री अपने प्रातःकाल भ्रमण के दौरान गंगाशहर के असक्त, अक्षम और वयोवृद्ध श्रद्धालुओं को दर्शन देने और नगरवासियों पर कृपा बरसाने लगे। कुछ समय बाद ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आज बीकानेर क्षेत्र के समस्त जैन समाज की ओर ‘जैन जीवनशैली’ विषय पर आचार्यश्री का विशेष व्याख्यान भी आयोजित था तो आचार्यश्री प्रातःकालीन भ्रमण सम्पन्न कर कुछ ही क्षणों के बाद प्रज्ञा समवसरण में पहुंच जनता को पावन पाथेय प्रदान किया। देर रात तक बीकानेर के विशिष्ट लोगों को प्रेरणा, प्रातःकाल सेना के जवानों का उत्साहवर्धन और उनके जीवन को उन्नत बनाने की प्रेरणा और फिर श्रद्धालुओं को दर्शन देने की कृपा के बाद पुनः व्याख्यान में श्रद्धालुओं के मानस को अभिसिंचन प्रदान करना वह भी बिना रूके, बिना थके, बिना विश्राम किए। भला इससे अच्छा सोदाहरण महातपस्वी महाश्रमण के महाश्रम का और क्या हो सकता है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर रखा हो। आचार्यश्री के महाश्रम को देख केवल तेरापंथ ही नहीं, बीकानेर का जन-जन बस यहीं कह रहा था -‘महातपस्वी महाश्रमण की जय हो, जय हो, जय हो। 


 बुधवार की रात को आयोजित प्रबुद्धजन सम्मेलन में उपस्थित बीकानेर जिले के सभी वरिष्ठ लोगों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने अपनी बुद्धि को शुद्ध करने और बुद्धि द्वारा समस्या पैदा करने नहीं, समस्याओं के समाधान में नियोजित करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त उपस्थित विशिष्ट महानुभावों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने मन की जिज्ञासाओं को अभिव्यक्त किया तो आचार्यश्री ने सभी की जिज्ञासाओं का समाधान प्रदान किया। जिज्ञासा-समाधान का क्रम मानों कुछ तरह चल रहा था जैसे गुरुकुल में शिष्य अपने गुरु से अपनी जिज्ञासा करते हैं और सुगुरु उनकी जिज्ञासाओं को समाहित कर उन्हें आत्मतोष प्रदान करते हैं। कार्यक्रम के शुभारम्भ में तेरापंथी सभा-गंगाशहर के आयोजन प्रभारी श्री लूणकरण छाजेड़ ने स्वागत वक्तव्य दिया। मुनिकुमारश्रमणजी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी और अहिंसा यात्रा के विषय में जानकारी दी। श्री महावीर रांका ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में संभागीय आयुक्त श्री नीरज के. पवन के अलावा न्यायाधीश श्री महेश शर्मा, पत्रकार श्री हेम शर्मा, डॉ. सुधा आचार्य, बाफना अकादमी के सीइओ श्री पी.एस. बोहरा, कैरियर काउन्सलर श्री चन्द्रशेखर श्रीमाली व महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के सचिव श्री बिट्ठल बिस्सा ने अपनी जिज्ञासाएं प्रस्तुत कीं। इसके उपरान्त कार्यक्रम में पुलिस महानिरीक्षक श्री ओमप्रकाश, जिला कलक्टर श्री भगवती प्रसाद कलाल, एसडीएम श्री पंकज शर्मा, आयकर अधिकारी श्री प्रमोद के. देवड़ा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री विनोद कुमार, वृत्ताधिकारी श्री दीपचन्द, वास्तुविज्ञ श्री आर.के. सुथार, शिक्षाविद् डॉ. पन्नालाल हर्ष, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के डॉ. गिरिराज हर्ष, लॉयन एक्सप्रेस के पत्रकार श्री हरीश बी शर्मा, खबर एक्सप्रेस के श्री हेम शर्मा, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र पाल, एडवोकेट श्री अजय पुरोहित, लेखक डॉ. अजय जोशी, कवि श्री गिरिराज पारीक, श्री राजाराम स्वर्णकार, पूर्व महापौर श्री नारायण चौपड़ा, कार्डियोलॉजी विभाग के डा. श्री पिन्टू नाहटा, गैस्ट्रोलॉजी विभाग के डॉ. सुशील फलोदिया, सर्जन डा. संजय लोढ़ा, चिकित्सक होमियोपैथिक विभाग डा. चारूलाल शर्मा, प्राइवेट स्कूल ऐसोसिएशन राजस्थान (पेपा) के अध्यक्ष श्री गिरिराज खैरीवाल, प्राचार्य श्री प्रदीप लोढ़ा, अखिल भारतीय अल्पसंख्य आयोग के श्री सलीम भाटी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के श्री टेकचन्द बरड़िया, श्री राजेन्द्र अग्रवाल, सी.बी.एस. अस्पताल के डा. श्री एन.के.दारा, भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के एएसपी श्री रजनीश पुनिया, कार्डियोलाजिस्ट डा. आर.एल. रांका, नेत्र रोग विभाग के डा. जीसी जैन के अलावा अनेकों लेखन, कला, साहित्य, नाट्य, उद्योग, शिक्षा, व प्रशासनिक कार्यों से जुड़े विशिष्ट महानुभावों की उपस्थिति रही। उपस्थित सभी महानुभावों को साहित्य आदि से सम्मानित किया गया। 


 गुरुवार को प्रातः बीएसएफ के जवानों व मिडियाकर्मियों के साथ आयोजित कार्यक्रम में आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने के उपरान्त बीएसएफ के डीआईजी श्री पुष्पेन्द्र सिंह ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। मुनि कुमारश्रमणजी ने जवानों को ध्यान आदि का प्रयोग कराया। 


 गुरुवार को ‘जैनी जीवनशैली’ विषय पर आधारित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि सृष्टि का प्रत्येक प्राणी जीवन जीता है, किन्तु कलापूर्ण जीवन जीना महत्त्वपूर्ण बात होती है। जीवनशैली को अच्छा बनाने के लिए पहले जीवन में लक्ष्य का निर्धारण हो और फिर उसके अनुरुप सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए। विचार से लेकर आहार तक में विशुद्धि रखने का प्रयास हो तो ‘जैनी जीवनशैली’ की बात सार्थक हो सकती है। हिंसा से बचना, भोजन में मांसाहार का सर्वथा त्याग, नशा से मुक्तता ‘जैनी जीवनशैली का महत्त्वपूर्ण अंग है। 


 कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने अपना उद्बोधन दिया। अपनी जन्मभूमि में मुनि राजकुमारजी, समणी जयंतप्रज्ञाजी व समणी सन्मतिप्रज्ञाजी ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। मूर्तिपूजक समाज की ओर से तथा जैन महासभा के मंत्री श्री सुरेन्द्र जैन, स्थानकवासी समाज की ओर से श्री मोहन सुराणा, दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष श्री विनोद जैन, जैन महासभा के अध्यक्ष व जैन श्वेताम्बर तेरापंथी समाज की ओर से श्री लूणकरण छाजेड़ व तेरापंथी सभा-बीकानेर के मंत्री श्री रतनलाल छल्लाणी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला-गंगाशहर के ज्ञानार्थियों ने जैन ध्वज के साथ मार्च पास्ट करने के उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष ‘महाश्रमण अष्टकम्, भक्तामर, प्रतिक्रमण आदि की भावूपर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय-बीकानेर की शोधार्थिनी डा. मेघना व्यास ने आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित पुस्तक ‘रत्नपालचरितम्’ः एक समीक्षात्मक अनुशीलन शोध की पुस्तक पूज्यचरणों में समर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 


मंगलवार, जनवरी 04, 2022

आत्मा की शुद्धि के लिए ऋजुता आवश्यक - आचार्य महाश्रमण

 

04.01.2022, मंगलवार, बोराज, जयपुर (राजस्थान), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी राजस्थान की रेतीली धरती पर ज्ञान की गंगा बहाते हुए निरंतर गतिमान हैं। इस निर्मल गंगा से अब तक राजस्थान के भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़ जिले के साथ राजस्थान की राजधानी जयपुर भी पावनता को प्राप्त हो चुकी है। ग्यारह दिवसीय संघ प्रभावक जयपुर प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में गतिमान हैं। मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ देहमी कलां स्थित मणिपाल विश्वविद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। ठंड के मौसम में जहां लोग गर्म कपड़ों से ढंके होने के बावजूद भी बाहर निकलने पर आग का सहारा लेते दिखाई दे रहे थे वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना को और जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने के लिए महातपस्वी महाश्रमण गतिमान थे। रास्ते में अनेकानेक लोगों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से पावन बनाते आचार्यश्री लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर बोराज गांव में पधारे। ग्राम्यजनों तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल, शिक्षक व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री भव्य स्वागत किया। 

 विद्यालय परिसर के एक कमरे से आचार्यश्री ने वर्चुअल रूप में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? निर्वाण का अर्थ मोक्ष भी हो सकता है, किन्तु कभी-कभी एकार्थक शब्दों में गहराई में जाने पर कुछ सूक्ष्म भिन्नता भी प्राप्त हो सकता है। निर्वाण प्राप्ति की बात की जाए तो जिस आदमी के भीतर धर्म हो अर्थात् धर्मवान मनुष्य निर्वाण को प्राप्त हो सकता है। एक प्रश्न और हो सकता है कि धर्मवान कौन होता है अथवा धर्म किस आदमी के भीतर हो सकता है तो उसका उत्तर यह होगा कि जिस आदमी की आत्मा शुद्ध हो व धर्मवान होता है। पुनः एक प्रश्न हो सकता है आत्मा शुद्ध कैसे हो? इसका उत्तर होगा कि जो आदमी ऋजु अर्थात् सरल होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी के भीतर संयम, दया, शील, सत्य आदि की भावना हो तो आत्मशुद्धि की बात हो सकती है। जिस आदमी के भीतर छल-कपट हो, उसकी आत्मा शुद्ध नहीं हो सकती। 


शनिवार, दिसंबर 25, 2021

मेरे जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है - पंकज दुधोडिया

आज क्रिसमस के दिन यह मनमोहक तस्वीर देख मन मे विचार आया कि एक मान्यता है सेंटा 25 दिसंबर को गिफ्ट देने आते है पर मैं तो यह कहता हूँ मेरे  जीवन के सेंटा माता - पिता व गुरु है।

माता पिता ने जीवन दिया, संस्कार दिए, कवच बन सदा सुरक्षा की और मेरे आध्यात्मिक गुरु तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से रोज सबको अनमोल गिफ्ट देते है आपका गिफ्ट मानव जीवन को उन्नत बनाने के लिए संदेश रूप में नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति की प्रेरणा देता है यदि यह गिफ्ट सभी ग्रहण कर ले तो विश्व की लगभग तमाम समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।

सोमवार, दिसंबर 06, 2021

राग-द्वेष पाप का आधार है - आचार्य महाश्रमण

पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल संग सैंकड़ों लोगों ने स्वीकार किए संकल्प, प्राप्त किया आशीर्वाद


06.12.2021, सोमवार, कापरेन स्टेशन, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जिस ओर भी निकलते हैं, जन-जन उनकी अभिवंदना में जुट जाता है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में अरनेठा ने मंगल प्रस्थान किया तो स्थानीय ग्रामीणों ने हाथ जोड़कर वंदना की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। रास्ते में आने वाले क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग और क्या नौजवान जो भी अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री को देख नतमस्तक होकर आचार्यश्री की अभिवंदना करता तो आचार्यश्री भी सभी पर समान रूप से आशीषवृष्टि करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कापरेन स्टेशन गांव पहुंचे तो लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री कापरेन स्टेशन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में पधारे। 


 विद्यालय प्रांगण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो भी पाप करता है उसके पृष्ठभूमि में राग और द्वेष होते हैं। दुनिया में आदमी जो भी कार्य करता है उसके जड़ में राग और द्वेष ही होते हैं। इसलिए राग और द्वेष को कर्मों का बीज भी कहा जाता है। अगर राग-द्वेष न हो तो आदमी कोई पाप ही न करे। आदमी किसी को मारे, किसी से झगड़ा करे, झूठ बोले, कोई अनैतिक कार्य करे, वह या तो राग के वशीभूत होकर करता है अथवा द्वेष की भावना से करता है। यदि आदमी के भीतर राग-द्वेष की न्यूनता हो जाए अथवा राग-द्वेष की भावना समाप्त हो जाए तो आदमी धर्मानुरागी बन सकता है। राग-द्वेष पाप का आधार है। आदमी को ध्यान, स्वाध्याय, जप और अन्य धर्माचरणों के माध्यम से राग-द्वेष को न्यून अथवा प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को राग-द्वेष को कम कर पापों से बचते हुए धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए। 


 मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के उपरान्त पूर्व विधायक श्री प्रहलाद गुंजल व स्थानीय नेता रूपेश शर्मा के नेतृत्व में कापरेन, अजन्दा, जालीजिका बराना, कोडकिया, शिरपुरा, माइजा, रोटेदा, रड़ी व अरनेठा के सैंकड़ों लोग आचार्यश्री के दर्शनार्थ और पावन प्रेरणा के लिए उपस्थित हुए। इस तरह मानों आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनायास एक कार्यक्रम-सा आयोजित हो गया। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि 84 लाख जीव योनियों में यह मानव जीवन दुर्लभ है। पशु और मानव में धर्म का ही अंतर होता है। जो मनुष्य धर्महीन हो जाए, वह पशु के समान हो जाता है। सभी के जीवन में धार्मिकता का विकास हो। आचार्यश्री ने जैन धर्म, साधुचर्या, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्य परंपरा व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए कहा कि सभी के प्रति सद्भावना हो। किसी से वैर-विरोध नहीं होना चाहिए। आदमी जो भी काम करे, उसमें नैतिकता, प्रमाणिकता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के आह्वान पर समुपस्थित पूर्व विधायक गुंजल सहित सैंकड़ों लोगों ने करबद्ध खड़े होकर आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। 

            इसके पूर्व अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनिकुमारश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा की अवगति प्रस्तुत की। पूर्व विधायक ने आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि यह हम सभी का परम सौभाग्य है जो आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महापुरुष के दर्शन करने, उनकी मंगल कल्याणकारी वाणी को सुनने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। मानवता की सेवा की लिए आप जो कठोर श्रम करा रहे हैं वे अद्वितीय हैं, इससे जन-जन का कल्याण हो रहा है। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से हम सभी का जीवन धन्य हो गया। 


साभार : महासभा केम्प ऑफिस

The basis of sinful deeds is anger and hatred: Acharya Mahashraman

Hundreds of people with former MLA Prahlad Gunjal accepted the resolution of non violence journey and received blessings 


06.12.2021, Monday, Kapren Station, Bundi (Rajasthan), Giving the message of humanity to human beings, the Jain Shvetambara Terapanth Dharmasangh Ekadashmadhishasta, the pioneer of non-violence journey, the shantidoot Acharyashree Mahashramanji, with his Dhaval army, wherever he goes, people get involved in his greetings. Acharyashree Mahashramanji on Monday morning at Mangal Bela, Arnetha departed for Mars, then the local villagers prayed with folded hands and Acharyashree blessed him with holy blessings. Whether the children coming on the way, the elderly and the young, whoever bowed down  on seeing the Akhand Parivrajak Acharya Shree.Acharya Shree was also moving towards the destination, showering blessings on everyone equally. When Acharyashree reached Kapren station village after visiting about 15 kms, people gave a grand welcome to Acharyashree with drums. Acharyashree came to the Government Secondary School premises located at Kapren station. 


In the main Mangal discourse program organized in the school premises, Acharyashree while providing holy inspiration to the devotees said that whatever sin a man commits, there is anger and hatred in the background. Whatever work a man does in the world is rooted in anger and hatred. That is why anger and aversion are also called seeds of actions. If there is no attachment or aversion, then a person should not commit any sin. A man kills someone, quarrels with someone, tells a lie, does some immoral act, he does it either out of passion or out of hatred. If there is a minimum of attachment and aversion within a person or the feeling of attachment and aversion ends, then a man can become a devotee of religion. Anger and hatred are the basis of sin. One should try to reduce anger and aversion through meditation, self-study, chanting and other religious practices. One should try to practice righteousness by reducing attachment and aversion and avoiding sins. 


After the main Mangal discourse program, under the leadership of former MLA Shri Prahlad Gunjal and local leader Rupesh Sharma, hundreds of people from Kapren, Ajanda, Jaljika Barana, Kodakia, Shirpura, Maija, Roteda, Radi and Arnetha appeared for Acharyashri's darshan and holy inspiration. In this way, it was as if a program was organized spontaneously in the Mangal Sannidhi of Acharyashree. Acharyashree while providing sacred inspiration to the people said that this human life is rare among 84 lakh creatures. Religion is the only difference between animal and human. A man who becomes religionless, he becomes like an animal.So there be development of righteousness in everyone's life. Giving information about Jainism, Sadhucharya, Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, Acharya tradition and non-violence journey, Acharyashree said that there should be goodwill towards all. There should be no conflict with anyone. In whatever work a man does, one should try to maintain morality, authenticity. One should try to lead a drug free life and try to make the present life good. On the call of Acharyashree, hundreds of people including former MLA Gunjal, who were present, accepted all the three resolutions of non-violence journey from Acharyashree and got blessings from him too.

Earlier, non-violence yatra spokesperson Muni Kumarshramanji presented the information about non-violence yatra. The former MLA, while giving his expression in the obeisance of Acharyashree, said that-"it is the utmost good fortune of all of us who have got the opportunity to see a great man like Acharyashree Mahashramanji, listen to his auspicious voice and get blessings from him. The hard work you are doing for the service of humanity is unique, it is benefiting the people. All our lives have become blessed with your inspiration and blessings."


Broadcaster : Jain Shwetambar Terapanth Mahasabha

रविवार, दिसंबर 05, 2021

Human should try to come out from the ocean of the world through religious practice - Acharya Mahashraman

With the inspiration of Acharya Shri, the villagers accepted the resolution of non-violence journey

 

05.12.2021, Sunday, Arnetha, Bundi (Rajasthan), The non-violence journey of Acharya Mahashraman which inspires humanity to human beings, awakens goodwill, morality and de-addiction among people, is currently moving in the border of Bundi district. Ahimsa Yatra under the able leadership of Acharya Shree Mahashramanji, the eleventh disciple of Jain Shwetambar Terapanth Dharmasangh, is awakening the spirit of humanity in the new village of Bundi district. On Sunday, Mahatapasvi Acharyashree Mahashramanji, along with his non-violence journey, performed Mangal Vihar from Gamach village in the early morning hours. On the way, villagers of many villages were benefited by the darshan and blessings of Acharya Shree. Distributing blessings to everyone, motivating the people, Acharyashree visited the Government Higher Secondary School located in Arnetha village after traveling for about 16 kms, then the entire Arnetha including this school was attained to the holiness. Despite the school being a holiday on Sunday, today the whole school was full of local villagers and devotees. The villagers and the people associated with the school warmly welcomed and greeted Acharyashree. 


After midday, Acharyashree gave holy inspiration to the people of Arnetha with his auspiciousness and said that the human body is like a boat, the soul is its sailor and this world is like the ocean. Tyagi saints and Maharishi people submerge this world ocean. The householder can also try to float this ocean of the world through religious practice. If there is a body, then while doing spiritual practice with it, one should try to get absorbed. There may also be a tear-shaped hole in the boat of the body. Violence, theft, lies, anger, greed, etc. are those holes in the form of tears which fill the water of sin in the boat of human life, due to which this boat keeps sinking in the ocean of the world. Eighteen sins are mentioned in Jainism. One should try to make the boat of this body free from sinful activities. Efforts should be made to increase religion in one's life through the speech of saints, meditation of God, listening to his story etc. If the householders are good, virtues are developed in them, righteousness is developed in life, then this life can become one who can cross the ocean of the world and go on the path of welfare. 

After the Mangal discourse, Acharyashree gave information about Jain Sadhucharya and Ahimsa Yatra to a large number of villagers and called upon them to accept the resolutions of Ahimsa Yatra, while the villagers stood up and accepted the resolutions. Acharyashree gave them special inspiration and holy blessings to be free from addictions. With the arrival of Acharyashree, the entire school campus and the surrounding area had become like a fair. The villagers continued to be present throughout the day for the darshan of Acharyashree. He continued to get the benefit of Acharyashree's darshan and blessings as per the condition throughout the day.


Credits: Mahasabha Camp Office

मानव का शरीर एक नौका के समान है - आचार्य महाश्रमण

धर्म-साधना द्वारा संसार सागर से तरने का प्रयास करे मानव

आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प 

05.12.2021, रविवार, अरनेठा, बूंदी (राजस्थान), मानव-मानव को मानवता की प्रेरणा देने वाली, लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाने वाली अहिंसा यात्रा वर्तमान में बूंदी जिले की सीमा में गतिमान है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में अहिंसा यात्रा बूंदी जिले के नित नए गांव में मानवता की अलख जगा रही है। रविवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गामछ गांव से प्रातः की बेला में मंगल विहार किया। रास्ते में अनेक गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। सबको आशीर्वाद बांटते, लोगों को प्रेरित करते आचार्यश्री लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर अरनेठा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो इस विद्यालय सहित पूरा अरनेठा पावनता को प्राप्त हो गया। रविवार को विद्यालय की छुट्टी होने के बावजूद भी आज पूरा विद्यालय स्थानीय ग्रामीणों व श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। ग्रामीणों तथा विद्यालय से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन किया। 

 मध्याह्न के उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से अरनेठावासियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव का शरीर एक नौका के समान है, जीव इसका नाविक है और यह संसार सागर के समान है। त्यागी संत और महर्षि लोग इस संसार सागर को तर जाते हैं। गृहस्थ भी धर्म-साधना के द्वारा इस संसार सागर को तरने का प्रयास कर सकता है। शरीर है तो इससे साधना करते हुए आदमी को तरने का प्रयास करना चाहिए। शरीर रूपी नौका में आश्रव रूपी छेद भी हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, क्रोध, लोभ आदि आश्रव रूपी वह छिद्र हैं जो मानव जीवन रूपी नौका में पाप का पानी भरते हैं, जिसके कारण यह नौका संसार सागर में डूबती रहती है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। आदमी को पापकर्मों से बचने हुए इस शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। संतों की वाणी, भगवान का ध्यान, उनकी कथा श्रवण आदि के माध्यम से अपने जीवन में धर्म को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अच्छे हों, उनमें सद्गुणों का विकास हो, जीवन में धार्मिकता का विकास हो तो यह जीवन भव सागर से पार पाने वाला और कल्याणपथगामी बन सकता है। 

 मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान तो ग्रामीणों ने खड़े होकर संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री ने उन्हें व्यसनों से मुक्त रहने की विशेष प्रेरणा व पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के आगमन से मानों पूरा विद्यालय परिसर और आसपास का क्षेत्र मेला जैसा बना हुआ था। ग्रामीण जन पूरे दिन भर आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहे। उन्हें यथानुकूलता आचार्यश्री के दर्शन व आशीष का लाभ पूरे दिन प्राप्त होता रहा। 

साभार : महासभा कैम्प आफिस

शनिवार, सितंबर 04, 2021

जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है - आचार्य महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी

धार्मिक दृष्टि से पर्युषण सबसे महत्वपूर्ण समय - आचार्य महाश्रमण

पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस

04 सितम्बर 2021, शनिवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सान्निध्य में आज पर्वाधिराज पर्युषण का शुभारंभ हुआ। पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। पर्युषण अध्यात्म साधना का एक महान पर्व है। भाद्रव कृष्णा द्वादशी तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी के महाप्रयाण से भी जुड़ी हुई है। परम श्रद्धेय गुरुदेव के उद्बोधन से पूर्व मुख्यमुनि महावीर कुमार जी द्वारा गीत एवं साध्वीवर्या संबुद्ध यशा जी द्वारा श्रीमद जयाचार्य पर वक्तव्य दिया गया।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा पर्युषण का समय बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। हम देखें तो धार्मिक दृष्टि से वर्ष भर में एक अपेक्षा से चातुर्मास का अधिक महत्व होता है। चातुर्मास एक ऐसा समय है जब चारित्रआत्माएं विहार आदि नहीं करके एक ही स्थान पर चार मास प्रवास करते है। चातुर्मास में भी श्रावण - भाद्रव और फिर पर्युषण का सबसे अधिक महत्व है। पर्युषण धर्माराधना का एक अच्छा क्रम है। सकल जैन समाज इस अवसर पर विशेष रूप से धार्मिक साधना करता है। भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का भी पर्युषण काल में प्रवचन आदि द्वारा आख्यान किया जाता है। 

गुरूदेव ने आगे कहा कि जैन धर्म में आत्मवाद का सिद्धांत अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है। आत्मा ऐसा तत्व है जो शाश्वत है। जितनी आत्माएं अनंत काल से संसार में विद्यमान है उतनी ही अनंत काल तक रहेगी। कोई नई आत्मा जन्म नहीं लेती है। वही आत्मा थी है और रहेगी। इस आत्मवाद के सिद्धांत से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की बात भी सिद्ध हो सकती है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व आत्मा जन्म-मरण करती रहती है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में भगवान महावीर इस अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर हुए। वें कोई एक ही दिन में तीर्थंकर नहीं बने, उनकी पृष्ठभूमि में कितनी ही साधना और तप है। आत्मवाद के साथ कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद भी जैनधर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत है। भगवान महावीर की 27 भवों की अध्यात्म यात्रा में हम जैन धर्म के सिद्धांतों को और अधिक गहराई से समझ सकते है।

खाद्य दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा- भोजन और शरीर का संबंध है। शरीर को टिकाने के लिए भोजन जरूरी है। कई तपस्या आदि भी करते है। जीवन में भोजन का संयम आवश्यक है। खाते हुए भी नहीं खाना, संयम रखना बड़ी बात होती है। विगय वर्जन, द्रव्य सीमा द्वारा व्यक्ति भोजन में विवेक रखे यह काम्य है। 

प्रसंगवश आचार्यप्रवर ने कहा कि जयाचार्य हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट आचार्य हुए है। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी में आचार्य भिक्षु, द्वितीय शताब्दी में श्रीमदजयाचार्य और तीसरी शताब्दी में आचार्य तुलसी को मुख्यरूप से देख सकते है। जयाचार्य एक अध्यात्म वेत्ता, तत्व वेत्ता, विधि वेत्ता आचार्य थे। आज के दिन मैं उनके प्रति श्रद्धार्पण करता हूं।
कार्यक्रम में श्रीमती मीना गोखरू ने नौ, श्रीमती ऋतु चोरडिया ने  पन्द्रह,  श्रीमती जसोदा देवी चोपड़ा ने पैंतालीस, श्रीमती एकता ओस्तवाल ने आठ और श्री राकेश नौलखा ने नौ के तप में इक्कीस की तपस्या का गुरूदेव से प्रत्याख्यान किया।

साभार : जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

रविवार, जुलाई 18, 2021

लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता - आचार्य महाश्रमण

 चातुर्मास हेतु शांतिदूत का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश

भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्य का प्रथम चातुर्मास

स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य


18 जुलाई 2021, रविवार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान, तेरापंथ नगर आदित्य विहार, प्रातः 09 बज कर 21 मिनट पर जैसे ही शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महाश्रमण सभागार में चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया पूरा वातावरण 'जय जय ज्योतिचरण - जय जय महाश्रमण' के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। हर ओर श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा था। वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री का यह चातुर्मास प्रवेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। भीलवाड़ा में तेरापंथ के आचार्यों का यह पहला चातुर्मास है। आचार्य श्री के साथ भी प्रथम बार 200 से अधिक साधु-साध्वियां चातुर्मास में है। देश- विदेश की हजारों किलोमीटर पदयात्रा संपन्न कर मेवाड़ पधारे गुरुवर के स्वागत में सभी में उत्साह-उमंग की नई लहर छाई हुई है।


प्रशासनिक दिशा-निर्देश एवं कोविद गाइडलाइन के मद्देनजर प्रवेश जुलूस का आयोजन नहीं रखा गया था। साधु-साध्वियों की धवल पंक्ति के मध्य आचार्य प्रवर को मंगल प्रवेश करता देख सभी श्रद्धानत थे। भीलवाड़ा वासियों का वर्षों पूर्व देखा गया स्वप्न आज साकार हो गया, ऐसा लग रहा था मानो भीलवाड़ा शहर महाश्रमणमय बन गया हो।


स्वागत समारोह में आचार्य प्रवर ने कहा- इस संसार में जब मंगल की बात आती है तो कई चीजों का नाम आ सकता है। कोई मुहूर्त आदि को मंगल मानता है, तो कहीं गुड़, नारियल आदि को भी मंगल माना जाता है, परंतु ये सब उत्कृष्ट मंगल नहीं है। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल होता है। धर्म साथ में है तो फिर सदा मंगल है।अहिंसा, संयम, तप ये धर्म के लक्षण हैं। जीवन में अगर ये है, तो मानो धर्म है, अध्यात्म है। अहिंसा एक ऐसा तत्व है जो लोक में सबके लिए क्षेमंकरी है, कल्याणकारी है। आज समाज, राजनीति में भी अहिंसामय नीति होनी चाहिए। लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों जनता की भलाई के लिए होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं हो सकता। अहिंसा, प्रेम-मैत्री से भी समस्या सुलझाई जा सकती है।


गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए आगे कहा कि- इस भारत देश में धर्मनिरपेक्षता ही नहीं पंथनिरपेक्षता भी है। सबको अपनी रुचि अनुसार धर्म करने की छूट है। भारत एक आजाद देश है, आजादी के साथ संयम, अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। लोकतंत्र में अगर कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन नहीं तो देश का विकास नहीं हो सकता। साथ ही सत्ता में निस्वार्थ सेवा रूपी तप भी होना चाहिए। सत्ता में आकर अगर जनता की सेवा ना करें तो वह व्यर्थता है। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर सकता है।


चातुर्मास प्रवेश पर गुरुदेव ने कहा कि- यह चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्षभर यात्रा के पश्चात ये चार महीने ऐसे होते हैं जब साधु को एक स्थान पर रहना होता है। आज चातुर्मास हेतु यहां प्रवेश हुआ है। कितने ही रत्नाधिक व छोटे साधु-साध्वियां वर्षों बाद इस बार साथ में है। यहां की जनता भी जितना हो सके उतना धर्म का लाभ उठाएं। यह चातुर्मास उपलब्धिकारक रहे, मंगलकामना।


साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने उद्बोधन में कहा- आचार्यश्री एक महान यात्रा, विजय यात्रा कर यहां पधारे हैं। मेवाड़ के श्रावकों में विशिष्ट भक्ति है। चातुर्मास में सभी लक्ष्य बनाएं कि हमें गुरुवर की वाणी को आत्मसात कर जीवन में अपनाना है। यह सिर्फ भीलवाड़ा का ही नहीं पूरे मेवाड़ का चतुर्मास है।


स्वागत में पहुंचे पंजाब के राज्यपाल सहित अनेक गणमान्य

शांतिदूत के स्वागत में पंजाब के महामहिम राज्यपाल श्री वीपी सिंह बदनोर विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर सांसद श्री सुभाष बहेरिया, विधायक श्री रामलाल जाट, विधायक श्री विट्ठल शंकर अवस्थी, नगर परिषद चेयरमैन श्री राकेश पाठक, जिला कलेक्टर श्री शिव प्रकाश नकाते, जिला पुलिस अधीक्षक श्री विकास शर्मा, राइफल संघ के जिलाध्यक्ष श्री अभिजीत सिंह बदनोर, वरिष्ठ एडवोकेट उमेद सिंह राठौड़ आदि अनेक गणमान्य जनों ने भी आचार्य वर का अभिनंदन किया।


स्वागत करते हुए राज्यपाल श्री वीपी.सिंह बदनोर ने कहा- यह मेरा परम सौभाग्य है जो आज मेवाड़ की धरा पर मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। आप के प्रवचन हम सभी का मार्गदर्शन करने वाले हैं। मेरी विनती है पंजाब की धरा पर भी आप पधारे। इस चातुर्मास से पूरे देश में धर्म की ज्योति जलेगी।


कार्यक्रम में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया, स्वागताध्यक्ष श्री महेंद्र ओस्तवाल, वरिष्ठ श्रावक श्री नवरतन झाबक ने अपने विचार रखे। मंच संचालन मुनि दिनेश कुमार जी व व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री निर्मल गोखरू ने किया।

बुधवार, अप्रैल 21, 2021

नोट लेकर आया था खोट देकर गया


21/4/2021, विहार के मध्य आज श्रद्धा-भक्ति का अनूठा दृश्य देखने को मिला। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जब विहार करा रहे थे तभी सामने से आता एक ट्रक सहसा शांतिदूत के समक्ष रुक गया और उसमें से ट्रक ड्राइवर ने उतरकर गुरुदेव को कुछ रुपए भेंट करने चाहे। जब उसे साधुचर्या के बारे में बताया गया कि जैन साधु रूपए-पैसे आदि नहीं लेते तब वह विस्मित हो उठा। आचार्यश्री की प्रेरणा से उसने शराब आदि नशे को छोड़ते हुए नशामुक्ति की भावना व्यक्त की। शांतिदूत के चरणों में नोट चढ़ाने आया वह व्यक्ति मानों अपने जीवन की खोट चढ़ा गया।

Fwd & Received

गुरुवार, मई 07, 2020

हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो




जन्म लिया "मोहन" बनकर,
"मुदित" बने, ले दीक्षा तुम ।
हे "महाप्रज्ञ" पट्टधारी जय हो,
"महाश्रमण" लो अभिनंदन तुम ।।

झूमर नेमा के हो नन्दन,
कुल "दुगड़" बड़भागी है ।
जन्म लिया सरदारशहर में,
धन्य हुई यह माटी है ।।

"तुलसी" गुरु की कृपा पाई,
संयम रत्न का मिला वरदान ।
चतुर्दशी वैशाख शुक्ल दिन,
अध्यात्म "सुमेर" चढ़े सौपान ।।

"तुलसी-महाप्रज्ञ" की प्रतिकृति,
हे महाश्रमण ! अभिनंदन ।
मुदित भाव से दीक्षा दिवस पर,
हे ज्योतिचरण ! तुम्हें करते वंदन ।।

रचनाकार : श्री पवन फुलफगर, संपादन टीम सदस्य, भातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज

बुधवार, मई 06, 2020

आराध्य के प्रति भावों की अभ्यर्थना


बालक मोहन सरदारशहर दुगड़ कुल के अद्भुत , विलक्षण , रत्न अनमोल,
गुरु तुलसी आज्ञा से मुनि सुमेर ने दी दीक्षा, सीखे प्रभु आध्यात्म के बोल।

12 वर्ष की अल्प आयु में मोहन से मुनि मुदित बन संयम यात्रा हुई प्रारंभ,
गुरु - आज्ञा को आत्मधर्म मान, सहज, समर्पण, निष्ठा से शिक्षा हुई आरंभ।

छोटा कद था पर संकल्प फौलादी , लक्ष्य बड़े लेकर बढ़ते थे प्रभुवर के चरण,
राग विराग के भावों से ऊपर उठकर बन गए मुनि मुदित से आप महाश्रमण।

गौर मुखमंडल को जब जब देखा, सहज मुस्कान की मिलती छाया शीतल,
प्रवचन की धारा इतनी निर्मल जैसे कल कल बहता हो गंगा का अमृत जल।

सर्दी-गर्मी, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में भी महातपस्वी को सदा सम देखा,
तुलसी - महाप्रज्ञ का रूप जय जय ज्योतिचरण, जय जय महाश्रमण में है देखा।

दीक्षा दिवस के अवसर पर तेरापंथ सरताज को जन जन शुभ भावों से बधाता है
तेरी दृष्टि में मेरी सृष्टि रहें सदा "पंकज" अपने भगवान की गौरव गाथा गाता है।

शनिवार, जनवरी 04, 2020

गूंजेगा विश्वशांति व एकता का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय जैन सामायिक फेस्टिवल ५ जनवरी को

कोलकाता, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आगामी 5 जनवरी 2020 को नववर्ष के प्रथम रविवार को सम्पूर्ण विश्व मे सकल जैन समाज द्वारा विश्व मैत्री और एकता का संदेश लिए हो रहे जैन सामायिक फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है।
विश्व में अहिंसा एवं शांति के सिद्धांतों पर चलकर विश्व शांति हेतु प्रेरणा देने वाले जैन धर्म में समायिक साधना का अनूठा महत्व है । जैन धर्म के सिद्धांतों अनुसार 48 मिनट तक मन-वचन-काया से किसी की प्रकार की पापकारी प्रवृति का त्यागकर अपनी आत्मा में रमण करना ही समायिक करना है ।
विश्वशांति एवं एकता हेतु परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन प्रेरणा से जैन तेरापंथ धर्मसंघ के युवाओं का संगठन अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा अनूठे रूप में जैन समायिक फेस्टिवल का आयोजन पूरे देशभर में और विश्व के अनेक प्रमुख शहरों में नववर्ष 2020 के प्रथम रविवार, दिनांक 5 जनवरी को किया जाएगा।
इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए अभातेयुप राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संदीप कोठारी ने कहां कि पूरे भारतवर्ष सहित पूरे विश्व में अनेंको स्थानों पर जैन समायिक फेस्टिवल के माध्यम जैन धर्म के सभी संप्रदायों के श्रावक समाज साथ मिलकर एक समायिक की आराधना कर जैन एकता का परिचय देंगे । इस कार्यक्रम हेतु जैन धर्म के महान आचार्य श्री महाश्रमण जी, आचार्य डॉ. शिवमुनि जी म.सा, आचार्य विजय श्री अभयदेव सुरी जी म.सा, आचार्य श्री ललितप्रभ सागर जी म.सा, श्री सौभाग्य मुनि जी म.सा, मुनिप्रवर श्री जयकीर्ति म.सा आदि अनेकों आचार्यों - मुनि प्रवर, साधु साध्वी जी भगवंतों ने जैन समायिक फेस्टिवल कार्यक्रम हेतु आशीर्वाद प्रदान किया है और इस प्रयास की अनुमोदना की है ।
जैन समाज के गौरव एवं जैन समाज से एकमात्र मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी ने जैन सामायिक फेस्टिवल कार्यक्रम को समर्थन दिया है ।
इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के साथ श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेस, अखिल भारतीय खतरगच्छ युवा परिषद, अखिल भारतीय श्री प्राज्ञ जैन युवा मंडल, भारतीय जैन संगठना आदि विभिन्न संगठनों ने सहभागिता दर्ज करने हेतु समर्थन दिया है । जैन एकता में मील का पत्थर सिद्ध होनेवाले कार्यक्रम को पूरे देशभर में आयोजन करवाने हेतु अनेकों संघीय संस्थाएं सज्ज बन चुकी है ।
अभातेयुप के महामंत्री श्री मनीष दफ्तरी ने इस कार्यक्रम की आयोजना हेतु बताया कि अभातेयुप की 346 शाखाओं में इस कार्यक्रम को लेकर अपूर्व उत्साह है और जैन समाज के सभी युवा इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे यही विश्वास है ।
अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज के सहसंपादक पंकज दुधोडिया ने बताया कि वर्ष के प्रथम रविवार 5 जनवरी 2020 को देश भर में वृहद रूप से आयोजित जैन सामायिक फेस्टिवल को लेकर सकल जैन समाज में उत्साह देखने को मिल रहा है। यह आयोजन विश्व मैत्री और जैन एकता का प्रतीक बनेगा।

सोमवार, सितंबर 23, 2019

आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए : आचार्य महाश्रमण

 समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम

23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

साभार : महासभा कैम्प ऑफिस, फ़ोटो साभार : बबलू भाई

आत्मा को हल्का बनाएं : आचार्य महाश्रमण





समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन है अहिंसा यात्रा : सिख समाज

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में संगोष्ठी में हुआ जैन धर्म और सिख धर्म का संगम



23-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन धर्म और सिख धर्म के प्रतिनिधियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में उपस्थित सिख समाज के लोगों को आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा , जैन धर्म आदि के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को अपनाने का आह्वान किया। हलसुर गुरुद्वारा के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रभजोत सिंह बाली और मंत्री श्री हरजिन्दर सिंह भाटिया ने आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा को समाज सुधार का महत्वपूर्ण मिशन बताया।

इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने जैन धर्म और सिख धर्म की समानताओं को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में जिज्ञासा-समाधान का क्रम भी चला, जिसके अंतर्गत दोनों धर्मों की ओर से प्रश्नोत्तर का क्रम रहा। यह संगोष्ठी अहिंसा यात्रा के प्रथम आयाम सद्भावना का साक्षात उदाहरण सिद्ध हुई।

कार्यक्रम का संचालन अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमार श्रमणजी ने किया। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचन्द जी नाहर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री बाबूलाल पोरवाल आदि ने अतिथियों का सम्मान किया व आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष श्री प्रकाश जी लोढ़ा ने किया।

आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पाप कर्म सघन होते हैं तो चेतना का ह्रास होता है , पाप कर्म हल्के होते हैं तो चेतना का विकास होता है।  आदमी को अपने पाप कर्मों को हल्के बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म को हल्का करना चाहिए। यह हमारी चेतना में विकृति पैदा करता है। आठ कर्मों में चार कर्म घाती कर्म होते हैं और चार कर्म अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्म चेतना के मूल गुणों को नाश करने वाले होते हैं। मनुष्य मरकर तिर्यंच या नरक गति में उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है उसकी चेतना का ह्रास, यदि वह देव गति मे उत्पन्न होता है तो इसका अर्थ है, उसका कुछ विकास हुआ और मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो इसका अर्थ है उसकी आत्मा पूर्ण विकसित हो चुकी है। अगर मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य गति में ही होता है तो इसका अर्थ है उसके मूल को भी सुरक्षित रखा है। कर्मों की प्रबलता से ही आत्मा का ह्रास और कर्मों के हल्के होने से आत्मा का विकास होता है।

सोमवार, सितंबर 16, 2019

व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए - आचार्य महाश्रमण


शांति पाने के लिए करे साधना – आचार्य महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 44वें वार्षिक अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मानित
16-09-2019  सोमवार , कुम्बलगोडु, बेंगलुरु, कर्नाटक, बेंगलुरु के आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में चातुर्मास कालीन प्रवास कर रहे तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जनमेदिनी को  संबोधित करते हुए अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि हमारे कर्मों में मोह कर्म सेनापति के रूप में है अन्य कर्म इसके अंतर्गत रहते हैं। जब सेनापति के रूप में  इसका क्षय हो जाता है तो अन्य कर्म अपने आप क्षीण हो जाते हैं और केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। सामान्य आदमी को संन्यासी जीवन नीरस लगता है परंतु साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ही इसकी सरसता का ज्ञान होता है। जो सुख अध्यात्म के क्षेत्र में है वह भौतिक जीवन में नहीं मिल सकता है। भौतिकता से बाहरी सुख मिल जाता है परंतु आंतरिक सुख अध्यात्म मय जीवन में ही आता है अर्थात भौतिक साधनों से सुख मिलता है और साधना से शांति का अनुभव होता है। हमारे जीवन में शरीर दिखाई देता है परंतु चेतना दिखाई नहीं देती है। हम शरीर को भौतिक साधनों से स्वच्छ कर सकते हैं परंतु चेतना अगर मैली हो जाए तो इसे स्वच्छ रखने के लिए आध्यात्मिकता और नैतिकता का आलंबन लेकर स्वच्छ किया जा सकता है। आचार्यवर ने आगे कहा कि व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्य करें उसे साधनों की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में ईमानदारी का प्रयास करें और जीवन में गुस्से का परिहार करना चाहिए। व्यक्ति को जीवन में कुछ समय अध्यात्मिक साधना और जप की साधना में लगाना चाहिए।
*आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अधिवेशन में आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार के विषय में आचार्यश्री ने कहा -  कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके सम्मान से पुरस्कार भी सम्मानित होता है और श्रीमती सुमित्रा महाजन के सम्मान से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आचार्यप्रवर ने आचार्य तुलसी को कर्तृत्वशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि उन्होंने देश भर की यात्रा के माध्यम से नारी जाति एवं अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज का उत्थान किया। इस अवसर पर महिला मंडल का सर्वोच्च पुरस्कार आचार्य तुलसी कर्तृत्व पुरस्कार 'लोकसभा' की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को प्रदान किया गया।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने वक्तव्य में फरमाया कि आचार्य तुलसी ने महिलाओं के जीवन में पर्दा प्रथा, बाल विवाह और नारी उन्मूलन के लिए नया मोड़ कार्यक्रम से महिलाओं का कल्याण किया। आज महिलाएं केवल घरेलू बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रियता से कार्य कर रही है और इसका जीवंत उदाहरण महिला मंडल एवं स्वयं श्रीमती सुमित्रा महाजन है जो एक महिला है और इन्होंने देशभर से चुनकर आए प्रतिनिधियों को लोकसभा में एक सूत्र में बांधे रखा। अभातेमम  की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती  सायर बेंगाणी  एवं अभातेमम  अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा अपने विचार रखें।
पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ दोनों का संगम आचार्य महाश्रमण में देखने को मिलता है। उन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की तुलना एक माता से करते हुए अपने आप को इस पुरस्कार से सम्मानित होकर गौरवान्वित महसूस किया। उपस्थित महिला शक्ति को आह्वान करते हुए कहा कि सभी महिलाओं को अपनी शक्ति को पहचानना जरूरी है। कार्यक्रम में पुरस्कार प्रायोजक श्री देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री बीसी जैन भलावत, श्री केसी जैन का भी सम्मान किया गया। महिला मंडल द्वारा हैप्पी एंड हारमोनियस डॉक्यूमेंट्री फिल्म, देशभर से प्राप्त आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी समारोह पर सौ कविताओं की पुस्तक "स्पंदन" का लोकार्पण भी हुआ। पुरस्कार सत्र का संचालन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया।

साभार : महासभा कैम्प आफिस

रविवार, सितंबर 15, 2019

मोह जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है - आचार्य महाश्रमण

राजनीति के क्षेत्र में शुचिता की शांतिदूत ने प्रदान की प्रेरणा
भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दर्शन कर पाया आशीष

15-09-2019  रविवार , कुम्बलगोडु, कर्नाटक, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण का बेंगलुरु की धरा पर दक्षिण भारत का द्वितीय चातुर्मास प्रवर्धमान है।  पर्युषण महापर्व के बाद से अनेक गांवों व शहरों का श्रावक समाज एक के बाद एक संघ रूप में  गुरु दर्शनार्थ पहुंच रहा हैं।
रविवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य महाश्रमण जी ने कहा - जब व्यक्ति के मन में अपराध की चेतना उभर जाती है तो वह हिंसा,  चोरी आदि दुष्कृत्य करने लग जाता है।   ऐसी विकृत चेतना तब पैदा होती है जब ज्ञान और दर्शन का अभाव होता है।  लोभ और आवेश हिंसा के प्रमुख कारण है और मोह  जितना कमजोर होता है उतना ही हमारी आत्मा निर्मल होती है। 
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन में अगर इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो मोह कमजोर हो जाएगा। त्याग , तपस्या और जप मोह  को निष्फल करने के  श्रेष्ठ साधन है। 

बेंगलुरु में अब तक 40 मासखमण
चातुर्मास काल में बेंगलुरु में  हो रही तपस्याओं के संदर्भ में  महातपस्वी ने कहा -  तपस्या करना कोई  आसान काम नहीं है।  शौर्य शक्ति का क्षयोपशम  होने से ही लंबी तपस्या हो सकती है।  बेंगलुरु में 40 मासखमण होना कोई सामान्य बात नहीं है।  लोग तपस्या में आगे बढ़ रहे हैं यह अपने आप में अनूठा है। 

राजनीति के क्षेत्र में सुचिता की प्रेरणा देते हुए अनुव्रत अनुशास्ता  ने कहा राजनीति सेवा का माध्यम है। राजनीति में शुद्धता और नैतिकता बनी रहे तो  समाज और देश का अच्छा विकास हो सकता है। 

भाजपा महामंत्री पहुंचे आशीर्वाद लेने
प्रवचन के दौरान भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने आचार्य श्री से सन 2021 में इंदौर में  जन्मोत्सव एवं पटोत्सव ससमारोह मनाने की अर्ज की  एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर साध्वी  जिनप्रभा जी की पुस्तक ' जैन विद्या का प्रवेश द्वार :  पच्चीस बोल'  का विमोचन हुआ। 

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का राष्ट्रीय अधिवेशन
आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का 44वां राष्ट्रीय अधिवेशन के शुभारंभ हुआ जो 18 सितंबर तक चलेगा।  अमृतवाणी द्वारा ' महाप्राण महाप्रज्ञ' सीडी का लोकार्पण हुआ जिसमें गायक मनीष पगारिया ने स्वर दिया है। मंच का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस

बुधवार, अगस्त 28, 2019

साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है - आचार्य महाश्रमण


  • पर्युषण महापर्व का द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में प्रथम भव नयसार का किया वर्णन
  • अध्यात्म की टिफिन तैयार करने व स्वाध्याय करने की आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
  • चतुर्मास में पहली बार व्याख्यान हेतु आचार्यश्री पधारे कन्वेंशन हाॅल
  • साध्वीप्रमुखाजी ने स्वाध्याय के संदर्भ में दिया प्रतिबोध
  • साध्वीवर्याजी ने गीत तो मुख्यमुनिश्री ने वक्तव्य के माध्यम से क्षांति-मुक्ति धर्म को किया विवेचित
  • प्रबल प्रवाह से प्रवाहित होती ज्ञानगंगा में डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

28.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवाकेन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आरम्भ हुए पर्युषण महापर्व में ज्ञानगंगा की अविरल धारा इतनी गति से साथ प्रवाहित हो रही है कि आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु अपने आपको आप्लावित महसूस कर रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रातः से ही साधु-साध्वियों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए श्रद्धालु जब आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर लेते हैं तो मानों पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं। उसके उपरान्त भी पूरे दिन चारित्रात्माओं द्वारा नियमानुसार धर्म, अध्यात्म आदि के माध्यम से लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यों माना जा सकता है कि आचार्यश्री की पावन सन्निधि में वर्तमान में मानों कोई महाकुम्भ लगा हुआ है।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम हेतु चतुर्मास प्रवास स्थल में बने कन्वेंशन हाॅल की ओर पधारे। आचार्यश्री का प्रथम आगमन कन्वेंशन हाॅल में हुआ तो श्रद्धालुओं के जयकारे से यह विशाल हाॅल गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी शांतिलताजी ने श्रद्धालुओं को प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के जीवन के विषय में बताया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म के संदर्भ में रचित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस प्रकार के श्रमण धर्मों में प्रथम दो क्षांति और मुक्ति को विवेचित करते हुए लोगों को सकारात्मक सोच रखकर शांति में रहते हुए मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। साध्वी मैत्रीयशाजी तथा साध्वी ख्यातयशाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को ‘स्वाध्याय दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय से निर्जरा होती है। आदमी को स्वाध्याय में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। स्वाध्याय के माध्यम से आदमी अपने ज्ञान का विकास कर सकता है और आत्मा के विषय में भी जान सकता है और परमात्मा को भी जान सकता है।
आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके नयसार के भव का वर्णन आरम्भ किया। नयसार द्वारा साधुओं को दान देने और साधुओं द्वारा नयसार को ज्ञान प्रदान करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि साधु जन कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। ज्ञान देना तो साधु का परम कर्त्तव्य होता है। निर्धारित समय से पूर्व ही साधु को प्रवचन स्थान पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और निर्धारित समय होते ही व्याख्यान आरम्भ कर देने का प्रयास करना चाहिए। इसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। जितना संभव हो सके दिन में एक व्याख्यान तो अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं की संगति प्राप्त होती है तो कितने लोगों की चेतना जागृत हो जाती है और उनका कल्याण हो जाता है। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में धर्म का टिफिन तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की यात्रा के लिए धन की धर्म की आवश्यकता होगी, इसलिए आदमी को धर्म का टिफिन तैयार कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस पर श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो या आम आदमी स्वाध्याय सबके लिए हितकारी होता है। आदमी स्वाध्याय कर ज्ञान को और अधिक बढ़ाने का प्रयास करे। ज्ञान का चिताड़ने भी चाहिए। चिताड़ने से ज्ञान पुष्ट होता है। आदमी को अर्थ बोध का भी प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सदा स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। अनेकानेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया तथा मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अर्पित मोदी ने आचार्यश्री से 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

साभार : श्री चंदन पांडे

मंगलवार, अगस्त 27, 2019

आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है - आचार्य महाश्रमण

  • महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज का आध्यात्मिक आगाज
  • प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
  • महावीर के प्रतिनिधि ने आरम्भ किया ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग
  • महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन
  • मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान कर श्रद्धालुओं को किया मंत्रमुग्ध
  • तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर किया स्मरण
27.08.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का पर्वाधिराज पर्युषण का आध्यात्मिक आगाज मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिन ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे से पूर्व ही पूरा प्रवचन पंडाल जनाकीर्ण बन चुका था। हालांकि इस महापर्व में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास के क्षेत्र को पंडाल का रूप प्रदान किया था। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से मुख्य प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रातः नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए तो आचार्यश्री के दांयीं ओर संत समाज की उपस्थिति तो बांयीं ओर साध्वीवृंद की उपस्थिति। सामने की ओर हजारों-हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति के बीच आचार्यश्री ने महामंत्रोच्चार कर पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को पर्युषण पर्व के महत्त्व के बारे में अवगति प्रदान की। पर्युषण महापर्व का प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ के रूप में समायोजित था। ‘खाद्य संयम दिवस’ से संबंधित गीत का संगान साध्वी ज्योतियशाजी द्वारा किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को खाद्य संयम के संदर्भ में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व की यात्रा मानव को आत्मा तक पहुंचाने वाली है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण करना होता है। शरीर को धारण करने के लिए शरीर की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करनी होती है। शरीर के लिए आदमी को भोजन, वस्त्र आदि-आदि की आवश्यकता होती है। जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। विवेक के बिना किया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए भोजन में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जिह्वा को जंक फूड और फास्ट फूड के स्वाद से निकालकर उसके गले में अस्वाद की घंटी को बांधने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा भोजन को हितकर, मितकर और सात्विक होना चाहिए। आचार्यश्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर आदमी को भोजन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए।
तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस के अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर अपनी भावांजलि अर्पित की। साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को श्रीमज्जयाचार्यजी के जीवन के विषय में अवगति प्रदान की।
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ एक सुन्दर विषय है। इस महापर्व पर भगवान महावीर की इस यात्रा को विस्तार से जानने के लिए आत्मवाद को भी जानने की आवश्यकता है। दुनिया में दो तत्त्व हैं-जड़ और चेतन। इन दोनों के अलावा जीवन में कुछ भी नहीं। जिसमें उपयोग हो, व्यापार हो चेतन और जिसमें ये नहीं वह जड़ होता है। आत्मा अनादि है। आत्मा का विनाश नहीं हो सकता। आत्मा शाश्वत अस्तित्व होता है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है।
अध्यात्म जगत में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद पर पुनर्जन्मवाद टिका हुआ है। ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में विवेचित किया गया है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम तीर्थंकर थे। हम उनके शासनकाल में साधना कर रहे हैं। वे परम सात्विक पुरुष थे। उनका यह जीवन पूर्वजन्मों की साधना पर टिका हुआ है। उनके पूर्व भव को जानने से कर्मवाद की पुष्टि भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन भी तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। वे तेरापंथ की दूसरी शताब्दी के सूत्रधार थे। वे अध्यात्मवेत्ता, तत्त्ववेत्ता और विधिवेत्ता थे। उनका आज के दिन हम श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, वन्दन करते हैं। आचार्यश्री ने ‘खाद्य संयम दिवस’ के संदर्भ में भी श्रद्धालुओं को खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। मुख्य प्रवचन से पूर्व मुनि रजनीशकुमारजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया तो मुनि अनुशासनकुमारजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया।
अंत में आचार्यश्री ने 18 जनवरी 2020 को उत्तरी कर्नाटक में स्थित गदग में दीक्षा समारोह करने की घोषणा की। इसमें मुमुक्षु रौनक बाफना, श्रुति चोपड़ा व सोनम पालगोता को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की तो पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। इसके उपरान्त अनेक तपस्वियों ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : चंदन पांडे